श्री गणेश जी का संदेशा message from shri ganesh ji
श्री गणेश जी का संदेशा message from shri ganesh ji
श्री गणेश वन्दना
गजाननं भूत गणधि सेवितं, कपीत्थ जम्बू फल चारू भक्षणम् ।
उमासुतं शोक विनाश कारकंम्, नमामी विध्नेश्वर पाद पंकजम् ।
वर्णानामर्थ संघानाम् रसानाम छन्द सामपी ।
मंगलनाम् च कर्तारो वन्दे वाणी विनायको: ॥
- अरविन्द सीसोदिया
श्री गणेश जी के जन्म के पूर्व ...
शक्ति स्वरूपा , माता पार्वती अपनीं सहेलियों के साथ कोई चर्चा कर रहीं थी कि उनकी प्रिय सहेलीयां जया और विजया ने उलाहना दिया कि हमारा भी गण ( रक्षा कार्य को कर्त्ता ) होना चाहिए..! उन्होंने कहा नंदी , भ्रन्गी सहित सभी गण हमारे होते हुए भी हमारे नहीं हैं , वे भगवाण शंकर की ही सेवा में रहते हैं और आज्ञा पालन करते हैं , इन असंख्य प्रथम गणों में हमारा कोई नही है , यद्यपी वे सभी हमारे ही हैं , आप हमारे लिए भी कृपा पूर्वक एक गण की रचना करें जो हमारी रक्षा को ही प्राथमिकता दे..!
एकबार माता पार्वती जी स्नान कर रहीं थीं , भगवान शंकर आये , नंदी पहरे पर होते हुए भी रोक नही पाए , पति होने के नाते भगवान् अंदर चले गए , पार्वतीजी को शर्मिन्दगी उठानी पड़ी.., उन्हें तत्काल सहेलियों की बात का स्मरण हो आया.., सोचा यह सही ही होगा कि एक गण अपना भी हो...!
यहाँ यह बात सहज ही समझी जा सकती है कि शक्ति की सहेली जय और विजय ही तो होंगी...!
जब आर्यावर्त शक्तिशाली था उसका राज , पूरे विश्व पर था, जब इंग्लैंड शक्तिशाली हुआ उसका राज पूरे विश्व पर हो गया , शक्तिहीन हुआ तो अपने ही उत्पन्न किये हुए देश अमरीका की छाया में खड़ा है..! आज अमरीका और चीन का खौप है, उनकी बात मानीं जाती है , उनके घर के अन्दर घुसा कर कोई आतंक नही फैलाता , उनकी सीमाओं पर शांती रहती है , उनके व्यापारिक हित कोई प्रभावित नहीं कर पाता है |
श्री गणेश जी का जन्म ...
एक बार माता पार्वती जी के उबटन लगा हुआ था और वे स्नान की तैयारी कर रहीं थी सहेलियां भी उनके साथ थी जी स्नान में मदद करतीं थीं .., उबटन को मल मल कर छुटाया जा रहा था , कि पार्वती जी ने इसी दौरान उस मेल से एक सुंदर बालक की प्रतिमा बना दी और उसमें प्राणों का संचार कर दिया , वह बालक ही श्री गणेश हुए..,
पार्वती जी ने उसे सुन्दर सुंदर वस्त्र , आभूषण और शस्त्र इत्यादी दे कर कहा तुम मरे पुत्र हो और तुम्हारा कार्य मेरी रक्षा करना है , उन्हें अनेक प्रकार के आशीर्वाद दे कर उन्हें एक दंड भी दे दिया जिसे हाथ में लेकर , गणपती ही द्वारपाल हो गए ..!!
भाद्रपद्र शुक्ल की चतुर्थी पर छोटे छोटे बच्चे हाथ में छोटी छोटी दंडिकाओं को बजाते हुए घर घर पैसा मांगते हैं .., यह बल गणेश कि दंडिका का ही स्वरूप है..!
श्री गणेश और देवों में भीषण संग्राम...
महा शक्ति पार्वती और आदि देव भगवान शंकर ने कौन सी लीला रच रखी थी यह तो वे ही जानें , मगर शिव पुराण में इस भीषण संग्राम को बहुत ही रोचक प्रस्तुती है..,
घटना क्रम वही बनता है , पार्वतीजी अपनी सखियों के साथ स्नान करने गई हैं द्वार पर द्वारपाल रूप में दंडिका लिए श्री गणेश जी खड़े हैं , भगवान शिव पहुचते हैं , गणेश जी उन्हें रोक देते हैं , माता स्नान कर रहीं हैं ; उनकी आज्ञा मिलने पर ही आप अन्दर जा सकेगें.., भगवान शिवजी सभी तर्कों और तथ्यों से समझाते हैं कि उनके अन्दर प्रवेश में कोई बाधा नहीं है , वे पति होने के नाते जा ही सकते हैं , मगर गणेश जी उन्हें नही जाने देते .., एक छोटे से बालक की इस ध्रष्टता पर वे कुपित होकर गणों को आदेश देते हैं कि वह बालक को हटादें..,
संझिप्त में इतना बताना ही बहुत होगा की ; गण क्या, भूत प्रेत क्या , देव और अन्य शिव भक्त क्या .., सभी शिवजी के सहयोग के लिए आ पहुचे और उनकी आज्ञा पर युद्धरत भी हो लिए |
सक्षम के साथ दुनिया खड़ी हो जाती है , यह उसका उदहारण है , एक बालक से युद्ध करने सब तत्पर थे, शक्तिशाली शिव को संतुष्ट करने के लिए सभी देव आगये और अपनीं सेवाएं शिव को समर्पित करदीं .., ईश्वरतुल्य देवों ने भी बालक गणेश से त्रिलोकी के स्वामी शिव के पक्ष में युद्ध किया .., भगवान की लीला भगवान जानें.., सभी पराजित हुए कोई गणेश विजय नहीं कर सका.., अन्तः शिव जी ने अपने त्रिशूल से गणेश जी के सीर को काट दिया..,
महाशक्ती पार्वती का प्रलय .,
उन्होंने अपनीं तेजस्वी शक्त्तीयों को संसार में प्रलय मचा देने की आज्ञा देदी, सम्पूर्ण ब्रम्हांड प्रलय ग्रस्त हो गया , सृष्टी चक्र प्रभावित हो गया, ब्रम्हा , विष्णु , महेश कोई रास्ता निकाल कर स्थिति को संभालने की कोशिश में जुट गए.., नारद जी सहित तमाम देव गण, त्राहीमाम की स्थिती में आ गए .., तब माता पार्वती की स्तुती करते हुए प्रलय शांत करने का आग्रह किया जाने लगा, स्तुती के पश्चात माता ने शांत हो कर देवों को निर्देश दिए कि..,
१- सबसे पहले; मेरे पुत्र गणेश को पुनः जीवित करो..,
२- तुम सभी देव मिल कर भी उसे पराजित नहीं कर सके; फलतः.., वह देवों में प्रथम पूज्य घोषित हो..,
३- आप लोग गणेश को सर्वदेवाध्यक्ष स्वीकार करो..,
महाशक्ती के आगे समर्पण..,
देवों ने समझोते के इस फार्मूले को स्वीकार कर लिया.., देवी ने प्रलय को रोक दिया ,
१- देवों ने सबसे पहले गणेश के धड में हाथी के बच्चे का सिर जोड़ कर उन्हें जीवित किया..,
यह सिर प्रत्यारोपण की घटना थी ..,
२ - सभी देवों ने एक साथ उपस्थित हो , वचनबध्दता की कि हम सभी देवों में प्रथम पूज्य देव गणेश होंगे.., गणेश जी की पूजा के बिना यदी कोई पूजा होओगी तो वह फलीभूत नहीं होगी.., अतः गणेश जी की पूजा अर्चना के पश्चात ही अन्य पूजाएँ की जाएँ.., तब से यही विधी सनातन संस्कृती में चल रही है..,
३ - भगवान शिव , विष्णु और ब्रम्हा ने गणेश जी को सर्व देवाध्य्क्ष घोषित किया..,
४- भगवान शिव ने उन्हें अपना पुत्र स्वीकार कर गणों का नायक बना दिया..,
महाशक्ती का आशीर्वाद..,
महाशक्ति पार्वती जी ने गणेश जी की समर्पण पूर्ण सेवा ( युद्ध कौशल और बलिदान ) के बदले आशीर्वाद दिया कि ' तुम्हारा पुर्न जीवित होते समय मुखमंडल सिन्दूर की तरह तेजस्वी हो रहा था .., इसलिए तुम्हारी पूजा सिन्दूर से करनी चाहिए.., जो कोई तुम्हारी पूजा सिन्दूर करेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी और वह विघ्न रहित होकर सुख पूर्वक जीवन यापन करेगा ..,
गणेश परिवार
गणेश जी का विवाह प्रजापति कि दोनों कन्याओं से हुआ , उनका नाम रिद्धी और सिद्धी है, उनके दो पुत्र शुभ और लाभ हैं , उनकी एक पुत्री संतोषी माता को कहा गया है , मगर इस पर कुछ लोगों का मानना है कि यह गलत है..!
स्वतंत्रता संग्राम में भी गणेशजी..
स्वतन्त्रता संग्राम में में बाल गंगाधर तिलक ने गणेश मंडलों की स्थापना की और उन्हें राष्ट्र जागरण से जोड़ा.., महाराष्ट्र से प्रारंभ होकर पूरे देश में गणपती जी के मंडल फैल गए और वे स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत बनें..,
निष्कर्ष
कुल मिला कर शिवी और शिव की इस लीला से हमें सन्देश मिलता है कि .., सृष्टि में सिर्फ शक्ती का ही महत्व है.., उसके अभाव में पराजित होना पड़ता है.., शक्ति जिस पर हो उसी की अग्रपूजा होती है.., शक्ति जिस पर हो वही सर्व देवाध्यक्ष होता है.., शक्ति जिस पर हो वही वन्दनीय होता है..! आज गणेश जयंती के अवसर पर वे हमें सन्देश दे रहे हैं कि है भारत पुत्रों.., स्वय शक्ति शाली बनों , देश को शक्ति सम्पन्न बनाओ.., शक्ति ही अस्तित्व की गारंटी है, शक्ति सम्पन्न बनों..!
एक बार माता पार्वती जी के उबटन लगा हुआ था और वे स्नान की तैयारी कर रहीं थी सहेलियां भी उनके साथ थी जी स्नान में मदद करतीं थीं .., उबटन को मल मल कर छुटाया जा रहा था , कि पार्वती जी ने इसी दौरान उस मेल से एक सुंदर बालक की प्रतिमा बना दी और उसमें प्राणों का संचार कर दिया , वह बालक ही श्री गणेश हुए..,
पार्वती जी ने उसे सुन्दर सुंदर वस्त्र , आभूषण और शस्त्र इत्यादी दे कर कहा तुम मरे पुत्र हो और तुम्हारा कार्य मेरी रक्षा करना है , उन्हें अनेक प्रकार के आशीर्वाद दे कर उन्हें एक दंड भी दे दिया जिसे हाथ में लेकर , गणपती ही द्वारपाल हो गए ..!!
भाद्रपद्र शुक्ल की चतुर्थी पर छोटे छोटे बच्चे हाथ में छोटी छोटी दंडिकाओं को बजाते हुए घर घर पैसा मांगते हैं .., यह बल गणेश कि दंडिका का ही स्वरूप है..!
श्री गणेश और देवों में भीषण संग्राम...
महा शक्ति पार्वती और आदि देव भगवान शंकर ने कौन सी लीला रच रखी थी यह तो वे ही जानें , मगर शिव पुराण में इस भीषण संग्राम को बहुत ही रोचक प्रस्तुती है..,
घटना क्रम वही बनता है , पार्वतीजी अपनी सखियों के साथ स्नान करने गई हैं द्वार पर द्वारपाल रूप में दंडिका लिए श्री गणेश जी खड़े हैं , भगवान शिव पहुचते हैं , गणेश जी उन्हें रोक देते हैं , माता स्नान कर रहीं हैं ; उनकी आज्ञा मिलने पर ही आप अन्दर जा सकेगें.., भगवान शिवजी सभी तर्कों और तथ्यों से समझाते हैं कि उनके अन्दर प्रवेश में कोई बाधा नहीं है , वे पति होने के नाते जा ही सकते हैं , मगर गणेश जी उन्हें नही जाने देते .., एक छोटे से बालक की इस ध्रष्टता पर वे कुपित होकर गणों को आदेश देते हैं कि वह बालक को हटादें..,
संझिप्त में इतना बताना ही बहुत होगा की ; गण क्या, भूत प्रेत क्या , देव और अन्य शिव भक्त क्या .., सभी शिवजी के सहयोग के लिए आ पहुचे और उनकी आज्ञा पर युद्धरत भी हो लिए |
सक्षम के साथ दुनिया खड़ी हो जाती है , यह उसका उदहारण है , एक बालक से युद्ध करने सब तत्पर थे, शक्तिशाली शिव को संतुष्ट करने के लिए सभी देव आगये और अपनीं सेवाएं शिव को समर्पित करदीं .., ईश्वरतुल्य देवों ने भी बालक गणेश से त्रिलोकी के स्वामी शिव के पक्ष में युद्ध किया .., भगवान की लीला भगवान जानें.., सभी पराजित हुए कोई गणेश विजय नहीं कर सका.., अन्तः शिव जी ने अपने त्रिशूल से गणेश जी के सीर को काट दिया..,
महाशक्ती पार्वती का प्रलय .,
उन्होंने अपनीं तेजस्वी शक्त्तीयों को संसार में प्रलय मचा देने की आज्ञा देदी, सम्पूर्ण ब्रम्हांड प्रलय ग्रस्त हो गया , सृष्टी चक्र प्रभावित हो गया, ब्रम्हा , विष्णु , महेश कोई रास्ता निकाल कर स्थिति को संभालने की कोशिश में जुट गए.., नारद जी सहित तमाम देव गण, त्राहीमाम की स्थिती में आ गए .., तब माता पार्वती की स्तुती करते हुए प्रलय शांत करने का आग्रह किया जाने लगा, स्तुती के पश्चात माता ने शांत हो कर देवों को निर्देश दिए कि..,
१- सबसे पहले; मेरे पुत्र गणेश को पुनः जीवित करो..,
२- तुम सभी देव मिल कर भी उसे पराजित नहीं कर सके; फलतः.., वह देवों में प्रथम पूज्य घोषित हो..,
३- आप लोग गणेश को सर्वदेवाध्यक्ष स्वीकार करो..,
महाशक्ती के आगे समर्पण..,
देवों ने समझोते के इस फार्मूले को स्वीकार कर लिया.., देवी ने प्रलय को रोक दिया ,
१- देवों ने सबसे पहले गणेश के धड में हाथी के बच्चे का सिर जोड़ कर उन्हें जीवित किया..,
यह सिर प्रत्यारोपण की घटना थी ..,
२ - सभी देवों ने एक साथ उपस्थित हो , वचनबध्दता की कि हम सभी देवों में प्रथम पूज्य देव गणेश होंगे.., गणेश जी की पूजा के बिना यदी कोई पूजा होओगी तो वह फलीभूत नहीं होगी.., अतः गणेश जी की पूजा अर्चना के पश्चात ही अन्य पूजाएँ की जाएँ.., तब से यही विधी सनातन संस्कृती में चल रही है..,
३ - भगवान शिव , विष्णु और ब्रम्हा ने गणेश जी को सर्व देवाध्य्क्ष घोषित किया..,
४- भगवान शिव ने उन्हें अपना पुत्र स्वीकार कर गणों का नायक बना दिया..,
महाशक्ति पार्वती जी ने गणेश जी की समर्पण पूर्ण सेवा ( युद्ध कौशल और बलिदान ) के बदले आशीर्वाद दिया कि ' तुम्हारा पुर्न जीवित होते समय मुखमंडल सिन्दूर की तरह तेजस्वी हो रहा था .., इसलिए तुम्हारी पूजा सिन्दूर से करनी चाहिए.., जो कोई तुम्हारी पूजा सिन्दूर करेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी और वह विघ्न रहित होकर सुख पूर्वक जीवन यापन करेगा ..,
गणेश परिवार
गणेश जी का विवाह प्रजापति कि दोनों कन्याओं से हुआ , उनका नाम रिद्धी और सिद्धी है, उनके दो पुत्र शुभ और लाभ हैं , उनकी एक पुत्री संतोषी माता को कहा गया है , मगर इस पर कुछ लोगों का मानना है कि यह गलत है..!
स्वतंत्रता संग्राम में भी गणेशजी..
स्वतन्त्रता संग्राम में में बाल गंगाधर तिलक ने गणेश मंडलों की स्थापना की और उन्हें राष्ट्र जागरण से जोड़ा.., महाराष्ट्र से प्रारंभ होकर पूरे देश में गणपती जी के मंडल फैल गए और वे स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत बनें..,
निष्कर्ष
कुल मिला कर शिवी और शिव की इस लीला से हमें सन्देश मिलता है कि .., सृष्टि में सिर्फ शक्ती का ही महत्व है.., उसके अभाव में पराजित होना पड़ता है.., शक्ति जिस पर हो उसी की अग्रपूजा होती है.., शक्ति जिस पर हो वही सर्व देवाध्यक्ष होता है.., शक्ति जिस पर हो वही वन्दनीय होता है..! आज गणेश जयंती के अवसर पर वे हमें सन्देश दे रहे हैं कि है भारत पुत्रों.., स्वय शक्ति शाली बनों , देश को शक्ति सम्पन्न बनाओ.., शक्ति ही अस्तित्व की गारंटी है, शक्ति सम्पन्न बनों..!
श्री गुरू वन्दना
ध्यान मूलं गुर्रु: मूर्ती, पूजा मूलं गुर्रू पदम् ।मन्त्र मूलं गुर्रू: वाक्यं, मोक्ष मूलं गुर्रू कृपा ॥
गुर्रू ब्रह्मा,गुर्रू विष्णु:, गुर्रू देवो महेश्वर: ।
गुरू: साक्षात परं ब्रह्म: तस्मै श्री गुरुवै नम: ॥
6 सितंबर 2024 अपडेट
स्वतंत्रता को अक्षुण्य रखने का संकल्प
गणेशोत्सव उत्सव के 11 दिवसीय कार्यक्रमों के माध्यम से युवा शक्ति महा-जागरण के उत्सव में आपकी सक्रीय भागेदारी को नमन् करता हूं एवं समाजोत्थान के इस महान पुरूषार्थ में आपका स्वागत करते हुऐ, में आपका एवं आपके मित्र - बंधुओं एवं सहयोगियों का अभिवादन करता हूं , अभिनंदन करता हूं एवं शुभकामनायें प्रेषित करता हूं।
भारत के विश्वप्रसिद्ध तेजस्वी प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी के आव्हान पर आजादी की 70वीं जयंती पर हमनें “ याद करो कुर्बानी ” कार्यक्रम के माध्यम से शहीदों एवं स्वतंत्रता सेनानियों को तिरंगायात्रा निकाल कर श्रृद्धांजली दी हैं। गणेशोत्सव की स्वतंत्रता संग्राम में अत्यंत महत्पवूर्ण भूमिका रही है। हम इस अवसर पर “स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार” की प्रेरणा देने वाले एवं गणेशोत्सव के संस्थापक भारतमाता के महान सपूत लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का पूज्य स्मरण करते हुऐ, अपने - अपने क्षैत्र में गरिमापूर्ण तरीके से गणेशोत्सवों का आयोजन सम्पन्न करें।
समस्त विध्नों के हर्ता और मंगलकर्ता गणपति महाराज की पूजा का इतिहास चिर-पुरातन तथा वे हमेशा ही अग्रपूज्य रहे हैं। इसमें नित्य नवीनता के प्रयास निरंतर होते रहे हें। इसी क्रम में हमारे पूर्वज ़ऋषियों ; मुनियों ; संतो और शासनकर्ताओं के द्वारा गणेशोत्सव आयोजित होते रहे हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज की माता सौभाग्यकांक्षणी जीजाबाई ने पूणे में गणेश मण्डप की स्थापना की थी जो “क़स्बा गणपति” नाम से आज भी जाना जाता है। पूर्वकाल में यह पर्व पारिवारिक गणेशोत्सव त्यौहार ही था । स्वतंत्रता संग्राम में युवा शक्ति में अपनी संस्कृति के प्रति तेजस्विता का व्यापक जनजागरण करने के लिये, स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस त्यौहार को सामाजिक त्यौहार का स्वरूप दिया, जिससे परिवार और मंदिरों से निकलकर चौराहों पर , गली - मौहल्लों में पांण्डलों एवं झांकियों के रूप में गणपति उत्सव आयोजित होना प्रारम्भ हुऐ। जिनके माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में युवा शक्ति की व्यापक सहभागिता प्रारम्भ हुई, जनजागरण से समाज में ओजस्वी एवं तेजस्वी सांस्कृतिक उत्थान का स्वरूप निर्मित हुआ। जिसमें सर्म्पूण भारतीय समाज एकत्रित होकर स्वतंत्रता के लिये आंदोलित व सह भागी बना। इसके परिणाम स्वरूप हम आज स्वतंत्र है।
स्वतंत्रता को अक्षुण्य रखनें का संकल्प
माननीय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव की विधिवत शुरुआत 1893 ई. में की थी। इतिहासविद् व ब्रिटिश सरकार ने एकमत से स्विकार किया है कि भारत की आजादी के आंदोलन में गणपति उत्सव की अहम भूमिका रही थी। तिलक द्वारा शुरू किए गए इस उत्सव को आज भी भारतीय पूरी निष्ठा , समर्पण एवं धूमधाम से मनाते हैं और आगे भी मनाते रहेंगे। तब से आज तक और आगे भी इस स्वतंत्रता को अक्षुण्य रखनें का संकल्प , हम भारतवासियों के हदय में हमेशा - हमेशा गणपति उत्सव के माध्यम से प्रेरणास्त्रोत बन कर रहेगा । इस वसर पर स्वतंत्रता को अक्क्षुण्य रखनें का संकल्प लेते हुए पुनः आप सभी को गणेशोत्सव की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें। आदर सहित ।
बहुत अच्छी पोस्ट और अच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को तीज, गणेश चतुर्थी और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत से फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा, “मनोज” पर, मनोज कुमार की प्रस्तुति पढिए!
कुल मिला कर शिवी और शिव की इस लीला से हमें सन्देश मिलता है कि .., सृष्टि में सिर्फ शक्ती का ही महत्व है.., उसके अभाव में पराजित होना पड़ता है.., शक्ति जिस पर हो उसी की अग्रपूजा होती है.., शक्ति जिस पर हो वही सर्व देवाध्यक्ष होता है.., शक्ति जिस पर हो वही वन्दनीय होता है..! आज गणेश जयंती के अवसर पर वे हमें सन्देश दे रहे हैं कि है भारत पुत्रों.., स्वय शक्ति शाली बनों , देश को शक्ति सम्पन्न बनाओ.., शक्ति ही अस्तित्व की गारंटी है, शक्ति सम्पन्न बनों..!
जवाब देंहटाएं...सुन्दर ढंग से आपने गणेशोत्सव को सार्थक बना दिया ...बहुत ही रोचक जानकारी और निष्कर्ष सटीक लगा ..गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत अच्छी पोस्ट, गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ
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