न्याय के देवता शनिदेव

 

ईश्वर की सृष्टि संचालन व्यवस्था में, प्राणीयों के जीवन को व्यवस्थित करने की व्यवस्था में कर्म फल , दण्ड विधान एवं न्याय के महत्वपूर्ण कार्य के देव शनि महाराज है। शनि महाराज का कालखण्ड एवं उनकी स्थिती हमें पूर्व जन्मों के संचित फलों के बारे में भी इशारा करती है। जो भी हमारा कर्म फल बैंक का बैंक बेलेंस है। उसी क्रम में जीवन का पथ कैसा होगा । इसकी ओर सही जन्म पत्री इशारा भी करती है। हमें शनि महाराज को अपने चाल चलन से प्रशन्न करना चाहिये। क्यों कि जिस तरह न्यायालय में न्यायिक अभिरक्षा होती है। उसी तरह शनि देव भी न्यायिक अभिरक्षा प्रदान करते हे। शनि महाराज को न तो मित्र मानना चाहिये न शत्रु । वे सिर्फ आपके वर्तमान चाल चलन को देखते हैं और आपके प्रति नम्र या कठोर बनते है। 

- आविन्द सिसौदिया 9414180151

 
shani dev

 

 

 

 न्याय के देवता शनि महाराज
शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है।
शनि  ईश्वरीय दण्ड अधिकारी, दण्ड व्यवस्था प्रदाता, कर्म फल प्रदाता और न्याय के देवता
शनि महाराज का दिन शनी वार है
निवास स्थान    शनि मण्डल, शनि लोक, शनि ग्रह

सनातन धर्म में शनिदेव को न्याय का देवता माना गया है, जो व्यक्ति को जीवित अवस्था में उसके कर्मों के आधार पर फल प्रदान करते हैं। ... जबकि Shani Dev केवल बुरे कर्म पर ही दंड देते हैं, वहीं यदि ये प्रसन्न हो जाएं तो व्यक्ति को Blessing देकर उन उंचाइयों तक ले जाते हैं, जिनकी व्यक्ति कल्पना तक नहीं कर सकता।

शनिदेव

 शिव के आशीर्वाद से शनि बन गए न्याय के देवता
     
शनि के प्रकोप से सभी भली भांति अवगत है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि को न्याय का देवता माना जाता है। हिन्दू पौराणिक कथाओं मे इस बात का भी वर्णन है की सदाशिव भोले शंकर शनि देव के गुरु हैं।

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि सूर्य देव और देवी छाया के पुत्र हैं।

कथाओं मे इस बात का वर्णन है की शनि देव बचपन से ही काफी शैतान थे वो किसी की भी बात नहीं सुना करते थे। उनके पिता सूर्य देव उनकी इन आदतों से काफी परेशान रहते थे।

एक बार सूर्य देव इन सब से चिंतित होकर भगवान भोले शंकर के पास चले गए और उनसे अपने पुत्र शनि को सही मार्ग बताने का आग्रह करने लगे।

शिव मान गए और शिव ने शनि देव को समझाया परन्तु शनि किसी भी कहा सुनने को तैयार थे शनि ने शिवजी की बातों को अनसुनी कर दी।

शनि के इस तरह के व्यवहार से शिव जी भी काफी व्याकुल हो गए, तब शिव ने शनि को सबक सिखाने के लिए शनि पर प्रहार किया और उस प्रहार से शनि मूर्छित हो गए।

सूर्य देव के कहने पर फिर शिव ने शनि की मूर्छा दूर कर दी और शनि को अपना शिष्य बना लिया। इसके बाद शनि को आशीर्वाद भी दिया कि आज से वो दंडाधिकारी भी होंगे और न्यायाधीस समान न्याय और दंड के कार्यो में भगवान शिव का सहयोग करेंगे। इस तरह शिव के आशीर्वाद से शनि बन गए न्याय के देवता।

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Shanidev :

 न्याय के देवता की ये हैं प्रमुख बातें, डरते हैं राजा से रंक तक
भगवान सूर्य और माता छाया के पुत्र शनिदेव कलयुग के जागृत देवों में से एक हैं. वे शक्ति, अध्यात्म, साधना और न्याय के देवता हैं. उनका रंग काला है. उन्हें काली वस्तु पसंद है. वे अपने भक्तों को वरदान देकर कष्टों को हरते हैं. इसलिए भक्तगण उनके मंदिरों में शनिवार को पूजा अर्चना करते हैं.

By: एबीपी न्यूज़ | Updated : 08 Apr 2021


शनिदेव का काम व्यक्ति को अच्छे बुरे कर्मों के आधार पर सजा देकर सुधारना होता है. ऐसा वे न्याय के देवता के रूप में करते हैं. इसे सकारात्मक रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. शनिदेव की दृष्टि अत्यंत प्रभावशाली है. कहा जाता है कि शनिदेव की सीधी नजर से सभी को बचना चाहिए. शनिदेव की विभिन्न विशेषताएं ये हैं-


-शनिदेव का काला रंग है. काला रंग उन्हें प्रिय भी है.
-जन्मस्थान शिंगणापुर महाराष्ट्र है.
-धातु लौहा है. इसके उत्पादन से राष्ट्र को मजबूती और वैभव प्राप्त होता है.
-शनिदेव मृत्युलोक के ऐसे स्वामी हैं, जो समय आने पर व्यक्ति के अच्छे-बुरे कर्मों के आधार पर सजा देकर सुधारने के लिए प्रेरित करते हैं.
-शनिदेव न्यायाधीश हैं. उन्हें अन्याय हमेशा अप्रिय होता है. वे दोषी को दंड देते हैं. इसलिए उन्हें क्रूर समझा जाता है.
-शनि की प्रिय वस्तुएं तेल, कोयला, लौह, काला तिल, उड़द, जूता, चप्पल हैं। इन्हें दान किया जाना हितकर है.
-शनि का वाहन गिद्ध तथा रथ लोहे का बना हुआ है.
-शनिदेव का आयुध धनुष्य बाण और त्रिशूल है.
-शनिदेव के लिए समय तथा श्रमदान सर्वाेत्तम दान माना जाता है.
-शनिदेव अध्यात्म के कारक ग्रह हैं, किसी भी आराधना, साधना, सिद्धि हेतु शनिदेव की उपासना परमावश्यक है.
-शनिदेव संगठन के मालिक हैं. उनकी कृपा बिना संयुक्त परिवार या राजनीतिक उत्कर्ष की कल्पना असंभव है.
-शनिदेव सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, प्रशासनिक, विद्या, व्यापार आदि में ऊंचाई देने का कार्य करते हैं.
-शनिदेव रोगमुक्ति तथा आयुवृद्धि दाता हैं.
-शनिदेव की दृष्टि से राजा से लेकर रंक तक सभी प्रभावित होते हैं. इसलिए डरे हुए रहते हैं.
-शनिदेव नश्वर जगत के शाश्वत देव हैं.

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शनि महाराज का प्रकोप कम करने के उपाय
बिना पैसा खर्च किए शनि को खुश करने के असान उपाय

हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी शनि की दशा जरूर आती है। हर तीस साल पर शनि विभिन्न राशियों में भ्रमण करते हुए फिर से उसी राशि में लौटकर आ जाता है जहां से वह चला होता है।

जब शनि व्यक्ति की राशि से एक राशि पीछे आता है तब साढ़ेसाती शुरू हो जाती है। इस समय शनि पिछले तीस साल में किए गए कर्मों एवं पूर्व जन्म के संचित कर्मों का फल देता है।


जिनकी कुण्डली में शनि प्रतिकूल स्थिति में होती है उन्हें साढ़ेसाती एवं शनि की ढैय्या के दौरान काफी संघर्ष करना पड़ता है। शनि के प्रभाव के कारण इन्हें शारीरिक मानसिक एवं आर्थिक समस्याओं से गुजरना होता है। ज्योतिषशास्त्र में कहा गया है कि शनि के प्रतिकूल प्रभाव को दूर किया जाए तो शनि दशा के दौरान मिलने वाली परेशानियों में कमी आती है।

इसके लिए ज्योतिशास्त्रियों द्वारा ऐसे उपाय बताए जाते हैं जो काफी खर्चीले होते हैं जैसे काली गाय, काले तिल, काली उड़द, लोहे के बर्तन, काले कंबल का दान। जबकि ज्योतिशास्त्र में शनि को प्रसन्न करने के लिए कुछ ऐसे भी उपाय बताए गए हैं जिनके लिए एक पैसे भी खर्च करने की जरूरत नहीं है।

शनि शांति के सरल उपाय
इनमें सबसे आसान उपाय है प्रत्येक शनिवार को 11 बार महाराज दशरथ द्वारा लिखा गया दशरथ स्तोत्र का पाठ। शनि महाराज ने स्वयं दशरथ जी को वरदान दिया था कि जो व्यक्ति आपके द्वारा लिखे गये स्तोत्र का पाठ करेगा उसे मेरी दशा के दौरान कष्ट का सामना नहीं करना होगा।

शनि महाराज प्रत्येक शनिवार के दिन के दिन पीपल के वृक्ष में निवास करते हैं। इसदिन जल में चीनी एवं काला तिल मिलाकर पीपल की जड़ में अर्पित करके तीन परिक्रमा करने से शनि प्रसन्न होते हैं। शनिवार के दिन उड़द दाल की खिचड़ी खाने से भी शनि दोष के कारण प्राप्त होने वाले कष्ट में कमी आती है।

मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर में तिल का दीया जलाने से भी शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है।

शनि को खुश करने के लिए ज्योतिषशास्त्र में कुछ मंत्रों का भी उल्लेख किया गया है। जैसे शनि वैदिक मंत्र 'ओम शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु न:।'

शनि का पौराणिक मंत्र 'ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तण्डसंभुतं नमामि शनैश्चरम।'

इन मंत्रों का नियमित कम से कम 108 बार जप करने से शनि के प्रकोप में कमी आती है।
 

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शनि (ज्योतिष)

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