अफगानिस्तान : वेट एंड वाच की नीति पर भारत को चलना होगा - अरविन्द सिसौदिया
अफगानिस्तान को लेकर वेट एंड वाच की नीति पर भारत को चलना होगा - अरविन्द सिसौदिया
लम्बे समय से दुनिया दो ध्रुवों में थी और किसी एक के दूसरी तरफ जाते ही पहला धराशाही हो जाता था। पहले विश्व युद्ध और दूसरे विश्व युद्ध में यही देखनें को मिला । इसके बाद चले लगातार शीतयुद्ध में भी यही था । अमरीका बनाम सोवियत संघ चलता रहा । सोवियत संघ से चूक हुई कि उसने लिब्रल रूप अपनाया और उसके कई टुकडे हो गये । इसे संभलने में वक्त लगा मगर सामरिक टेक्नोलोजी के कारण वह फिर से महाशक्ति जैसा ही हो गया। मगर इस बीच चीन ने अपने अस्तित्व को कई गुणा बडाया । भारत चाहता तो वह भी अपनी शक्ति बहुत अधिक बडा सकता था। क्यों नहीं का जबाव भी नहीं है। चीन आज महाशक्ति ही है। अब दुनिया सामरिक त्रिकोंण में पहुंच गई है। विश्व की सामरिक स्थिती के त्रिकोण में चीन पाकिस्तान एक गुट है। इसलिये रसिया को भारत की जरूरत है, वहीं अमरीका को भी भारत की जरूरत रहेगी।
किसी दूसरे देश में अपनी सेना भेज कर उसे सामरिक रूप से आत्म निर्भर नहीं किया जा सकता हे, जब तक कि उसमें स्वंय शक्ति सम्पन्न होनें की इच्छा न हो। अफगानिस्तान में पहले रूस ने भी सेना भेज कर साम्यवादी शासन चलवाया था वह कुल मिला कर फैल हुआ । रूस की सैन्य वापसी के बाद वह साम्यवादी सरकार भी गायव हो गई। अमरीका के ट्रेड सेंटर पर 2001 में हुये हमले के बाद। अमरीका ने भी अपनी सेना के द्वारा अफगानिस्तान पर नियंत्रण किया, उसे लाभ भी हुआ कि फिर कोई बडी आतंकी घटना अमरीका में नहीं हुई। किन्तु वह जिन अफगानी नेताओं की मदद कर रहे थे। वे सामरिक रूप से वैचाीक रूप से आत्म निर्भर बन ही नहीं रहे थे बल्कि उन्होनें अपने आप को अमरीकी दामांद की तरह रखा और जम कर अमरीकी धन में भ्रष्टाचार किया। तमीनी सच्चाई जानने में अमरीका से चूक हुई, उसने अफगानिस्तान के नागरिकों की सुरक्षा एवं सुव्यवस्था का कोई प्लान बनाया ही नहीं।
अफगानिस्तान पर रूस, चीन ईरान और पाकिस्तान की दृष्टि बनीं हुई थी और वे अमरीकी फौजों के हटनें का इंतजार ही की रहे थे। जैसे ही दोहा में पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने अमरीकी सेनाओं की वापसी की बात कही थ्री तब से ही योजनायें तो आंतरिक रूप से बन ही रहीं थीं। तालिबान को सत्ता तक पहुंचानें में रूस क भी सहयोग है, चीन का भी, पाकिस्तान का भी, यहां तक कि वर्तमान राष्ट्रपति जो बाईडेन का भी। कुछ दिनों में स्थिती स्पष्ट हो जायेगी।
अमरीका को अफगानिस्तान से अमरीकी सेना वापस तो बुलानी ही थी और यह कभी तो होना ही था। किन्तु उसने तालिवान से भी वार्ता बिना अफगानिस्तानी राष्ट्रपति की मौजूदगी के दोहा में प्रारम्भ की थी । इन हालातों में कानून व्यवस्था एवं सत्ता हस्तांतरण का कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था तय करना चाहिये थी। आतंकवादियों के आगे आत्म समर्पण के दुष्परिणामों को भी समझना और उन पर अंकुश लगानें की बात भी होनी चाहिये थी। अमरीका को अफगानिस्तान छोडने से पूर्व कोई ठोस व्यवस्था मानवता व लोकतंत्र की रक्षा के लिये करना ही चाहिये थी। वहीं अफगानिस्तान के राष्ट्रपति को भी अफगानिस्तान की कानून व्यवस्था एवं सैन्य सुरक्षा को चाक चौबंद करना ही चाहिये था। इतनी बडी अफगानी सैना ताश के पत्तों की तरह ढह गई , इसका यही मतलब है कि अन्दर ही अन्दर काई बडा षडयंत्र चल रहा था। जो कि अमरीका और अफगानिस्तान को पता ही नहीं चला ।
अमेरिका ने अफगान केंद्रीय बैंक से जुड़ी लगभग 9.5 अरब डॉलर की संपत्ति को फ्रीज कर दिया है और देश को नकदी के शिपमेंट को रोक दिया है। अमेरिका ने तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार को पैसो तक पहुंचने से रोकने के लिए यह कदम उठाया है।
भारत के लिये दो बातें बहुत स्पष्ट हें कि :-
1- भारत आतंकवाद से त्रस्त देश रहा है और तालिवान आदतन आतंकबादी है वह अफगानिस्तान को आतंकबाद का घर नहीं बनने देगा , इसकी कोई गारंटी नहीं है। बल्कि पूरी पूरी संभावना है कि तालिवान चीन और पाकिस्तान के हाथ की कटपुतली मात्र साबित होगा । क्यों कि तालिवान मानवता और शांती के रास्ते पर न तो चला है और आगे भी चल ही नहीं सकता। इसलिये भारत से उसके सम्बंध ठीक होनें अथवा रहनें का प्रश्न ही नहीं उठता ।
2- भारत किसी हिंसक आक्रमण कर्ता के असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी शासन को मान्यता कैसे दे सकता है।
भारत को अपने हितों को ध्यान में रखते हुये ही अफगानिस्तान को लेकर वेट एंड वाच की नीति पर चलना होगा, अफगानिस्तान पर भारत को, वहां की स्थिती को देख कर, समझ कर ही नीति बनानी और निर्णय लेनें होगें ।
भारत के विदेशमंत्री और अफगानिस्तान समस्या
अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान द्वारा कब्जा किए जाने के बाद अब तक तीन देश चीन, पाकिस्तान और रूस उसे मान्यता दे चुके हैं। यह भी आश्चर्य है कि हिंसा के बल पर सत्ता पर कब्जा करने तालिवानों को सरकार के रूप में इनने मान्यता दे दी हे। हालांकि भारत की ओर से इस पूरे मसले पर कोई बयान सामने नहीं आया है। इसी बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को न्यूयॉर्क में कहा कि तालिबान के देश की कमान संभालने के बाद से भारत अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर नजर रख कर चल रहा है। हालांकि, कैबिनेट मंत्री ने स्पष्ट किया कि अफगान लोगों के साथ संबंध स्पष्ट रूप से जारी रहेंगे।
उन्होंने कहा कि, इस समय हमारी नजर काबुल के तेजी से बदलते हालात पर है। तालिबान और उसके प्रतिनिधि काबुल में हैं। हमें उनसे वहां से बात करनी होगी। आने वाले दिनों में अफगानिस्तान के प्रति हमारे नजरिये को तय करेगा। उन्होंने कहा कि, ये शुरुआती दिन हैं। इस समय हमारा ध्यान भारतीय नागरिकों (अफगानिस्तान में) की सुरक्षा पर है। उन्होंने भारत अफगानिस्तान के रिश्ते पर कहा कि हमारे लिए, अफगानिस्तान में भारतीय निवेश दर्शाता है कि अफगान लोगों के साथ हमारे ऐतिहासिक संबंध क्या थे। अफगान लोगों के साथ यह संबंध स्पष्ट रूप से जारी है।आगे हमारे रिश्ते कैसे होंगे यह भी धीरे धीरे पता चलेगा। भारत ने कहा कि अफगानिस्तान से आने और वहां जाने के लिए मुख्य चुनौती काबुल हवाईअड्डे का संचालन है।
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UNSC में बोले विदेश मंत्री जयशंकर
लश्कर-जैश जैसे पाक आधारित आतंकवादी समूह बेखौफ होकर अपनी हरकतों को अंजाम दे रहे, UNSC में बोले विदेश मंत्री जयशंकर
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि जब हम देखते हैं कि जिनके हाथ निर्दोष लोगों के खून से सने हैं उन्हें राजकीय आतिथ्य दिया जा रहा है, तो हमें उनके दोहरेपन को उजागर करने से पीछे नहीं हटना चाहिए.
author TV9 Hindi Thu, 19 August 21 Edited By: दीपक पोखरिया
भारत ने गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे पाकिस्तान आधारित आतंकी समूह बेखौफ अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं और उन्हें इसके लिए संरक्षण भी मिल रहा है. साथ ही आतंकवाद के अभिशाप पर चुनिंदा दृष्टिकोण नहीं अपनाने और उन लोगों के दोहरे मापंदड को उजागर करने का साहस दिखाने का आह्वान किया, जिन्होंने उन लोगों को सुविधाएं उपलब्ध कराईं जिनके हाथ निर्दोष लोगों के खून से सने हैं.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता करते हुए आतंकवादी कृत्यों के कारण अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को खतरा विषय पर एक उच्च स्तरीय बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि प्रतिबंधित हक्कानी नेटवर्क की गतिविधियों में बढ़ोतरी इस बढ़ती चिंता को सही ठहराती है. विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि हमारे पड़ोस में आईएसआईएल-खोरासन (आईएसआईएल-के) अधिक ताकतवर हो गया है और लगातार अपने पांव पसारने की कोशिश कर रहा है. अफगानिस्तान में होने वाले घटनाक्रम ने स्वाभाविक रूप से क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर वैश्विक चिंताओं को बढ़ा दिया है.
बेखौफ होकर अपनी हरकतों को अंजाम दे रहे हैं लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद
उन्होंने कहा कि चाहे वो अफगानिस्तान में हो या भारत के खिलाफ, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूह को संरक्षण प्राप्त है और वो बेखौफ होकर अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं. विदेश मंत्री ने कहा कि इसलिए ये महत्वपूर्ण है कि सुरक्षा परिषद हमारे सामने आ रही समस्याओं को लेकर एक चयनात्मक, सामरिक या आत्मसंतुष्ट दृष्टिकोण नहीं अपनाए. उन्होंने कहा कि हमें कभी भी आतंकवादियों के लिए पनाहगाह उपलब्ध नहीं करानी चाहिए या उनके संसाधनों में इजाफे की अनदेखी नहीं करनी चाहिए.
पाकिस्तान जहां संयुक्त राष्ट्र की तरफ से प्रतिबंधित आतंकवादी और आतंकवादी समूह कथित तौर पर सुरक्षित पनाह पाते हैं और सरकार के समर्थन का फायदा उठाते हैं, का नाम लिए बिना विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि जब हम देखते हैं कि जिनके हाथ निर्दोष लोगों के खून से सने हैं उन्हें राजकीय आतिथ्य दिया जा रहा है, तो हमें उनके दोहरेपन को उजागर करने से पीछे नहीं हटना चाहिए.
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