अमरीका की अफगानिस्तान नीति से आतंकवाद बडे़गा - अरविन्द सिसौदिया
अमरीका की अफगानिस्तान नीति से आतंकवाद बडे़गा - अरविन्द सिसौदिया
आतंकवादी या उनका संगठन कोई भी हो, वह मानवता के लिये शत्रु होता है। उनके आगे आतम समर्पण निश्चित ही मानवता को बडा नुकसान पहुंचाती है। अमरीका की अफगानिस्तान नीति से आतंकवाद बडे़गा ।
अमरीका के आम चुनावों में अमरीकी सैनिकों के अफगानिस्तान में रहने और बलिदान होनें को लेकर अमरीका के आम जन में आक्रोस था वे सैनिकों की घर वापसी चाहते थे। वोट के लिये सब मंजूर वाली बात के चलते ही राष्ट्रपति ट्रंप ने तालिवान के एक गुट से दोहा में समझौता किया और अमरीकी सैनिको के चरणबद्ध वापसी की बात भी कही थी। हलांकी ट्रंप चुनावों में वापसी नहीं कर पाये। किन्तु विजयी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी सैनिको की वापसी ही चाहते है। पहले भी अमरीका वियतनाम में भी इसी तरह से हार चुका है। अफगानिस्तान में भी वह गत 20 साल से था ही ।
चीन और रूस के बीच का यह देश अफगानिस्तान , अमरीका और यूरोपीय देशों की विश्व सामरिक राजनीति के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण था और आगे भी है। अमरीका की यह बडी चूक है। उसे अफगानिस्तान में बनें रहना चाहिये था, इससे विश्व स्तर पर, सामरिक मामलों में व्यापक सन्तुलन बना हुआ था। तालिबान को विश्व की दो अन्य महाशक्तियों का समर्थन है सो वह काबू में रहेगा येशा बिलकुल नहीं होगा । कुछ वर्षों बाद हो सकता है कि सद्दाम हुसैन एपीसोड की तरह ही फिर अमरीका अपने साथियों के साथ फिर मैदान में हो । दूसरी बात अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को अमरीका के हितों की चिन्ता करनी चाहिये। उन्हे चीन के प्रति नम्र भाव को त्यागना होगा।
भारत के लिए खतरा है तालिबान, पाकिस्तान के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर में फिर बढ़ाएगा आतंकवाद
अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा भारत के लिए एक बड़ा खतरा है. खतरा इस वजह है कि आतंकी संगठन तालिबान अब दूसरे बड़े आतंकी संगठनों के साथ मिलकर भारत में भी गड़बड़ी कर सकता है और इस बात का दिखावा कर सकता है कि इस्लाम का रहनुमा सिर्फ वही है. तालिबान के इस कदम से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान भी बड़ी चुनौती बन गया है. अभी तक भारत का दोस्त रहा अफगानिस्तान भारत के लिए चुनौती नहीं था तो भारत को सिर्फ पाकिस्तान पर ध्यान देना पड़ता था. लेकिन अब तो भारत को पाकिस्तान के अलावा तालिबान पर भी नज़र रखनी होगी
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तालिबान के जरिए पाकिस्तान को मिला खजाना ! ...चीन को मिलेगा फायदा ?
आज सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सिर्फ अफगानिस्तान की चर्चा है.. वो देश जहां आतंकवादी तालिबान ने कब्जा कर लिया है.. वो देश जिसका राष्ट्रपति अपनी जनता को छोड़कर भाग चुका है... पौने चार करोड़ की आबादी वाले मुल्क में भगदड़ का माहौल है.. एयरपोर्ट पर गोली की आवाजें गूंज रही हैं.. लोग सूटकेस लेकर विमान में चढ़ने के लिए चढ़ने के लिए हड़कंप मचा रहे हैं. हालांकि जानकार मानते हैं की तालिबानी हुकुमत का पाकिस्तान को बड़ा फायदा मिलेगा जो घूम फिर कर चीन की मदद करेगा.
अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान ने अमेरिका को दी चेतावनी
अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान अमेरिका को आंख दिखा रहा है. तालिबान ने सीधे-सीधे अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा कि 11 सितंबर तक अमेरिका अफगानिस्तान छोड़ दे. तालिबान की ये चेतावनी ऐसे समय में आई है जब अमेरिका के करीब दस हजार सैनिक अभी भी अफगानिस्तान में हैं.
तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जे के साथ ही उसके हाथ अमेरिकी हथियारों का जख़ीरा भी लग गया है.
व्हाइट हाउस ने मंगलवार को माना है कि तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़े के बाद बड़ी संख्या में अमेरिकी हथियार इकट्ठा कर लिए हैं.सामने आई कुछ तस्वीरों और वीडियो में तालिबान चरमपंथी उन हथियारों और सैन्य गाड़ियों के साथ नज़र आ रहे हैं जो अमेरिकी सैनिक इस्तेमाल करते थे या जो अफग़ानिस्तान के सुरक्षा बलों को दिए गए थे.इनमें कंधार एयरपोर्ट पर मौजूद अत्याधुनिक यूएच-60 ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर और अन्य उपकरण भी शामिल हैं.
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा, "सभी सैन्य सामान कहां गए ये अभी तक स्पष्ट नहीं है. लेकिन निश्चित रूप से इसका एक बड़ा हिस्सा तालिबान के हाथ लग गया है. हमें अंदाज़ा नहीं है कि वो ये सब अमेरिका को लौटाने के लिए तैयार होंगे."
जेक सुलिवन ने कहा कि लाखों डॉलर के सैन्य हथियारों को दुश्मन के पास छोड़ना दिखाता है कि 20 साल की जंग को ख़त्म करने को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने कितनी मुश्किल स्थिति थी.
उन्होंने बताया कि तालिबान चरमपंथियों से लड़ने के लिए अफ़ग़ान सरकार को ब्लैक हॉक दिये गये थे. लेकिन सरकारी सुरक्षा बलों ने तालिबान के सामने इतनी जल्दी हार मान ली और हथियारों के बड़े जख़ीरे व हेलिकॉप्टर्स को तालिबान के हवाले कर दिया.
अफ़ग़ानिस्तान के अल्पसंख्यकों को देंगे शरण: पीएम मोदी
अफ़ग़ानिस्तान के मौजूदा हालात की समीक्षा के लिए मंगलवार को हुई 'कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी' की बैठक में पीएम मोदी ने कहा कि भारत को ना केवल अपने नागरिकों की सुरक्षा करनी चाहिए बल्कि सिख और हिंदू अल्पसंख्यकों को भी शरण देनी चाहिए. साथ ही भारत की तरफ़ देख रहे अफ़ग़ानियों को भी मदद देनी चाहिए.
अंग्रेज़ी अख़बार 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि सीसीएस की बैठक में अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा सुरक्षा और राजनीतिक स्थिति को लेकर जानकारी दी गई. पीएम मोदी ने अधिकारियों को आने वाले दिनों में अफ़ग़ानिस्तान से भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी उपाय करने के निर्देश दिए.
पीएम मोदी ने कहा कि जो सिख और हिंदू अल्पसंख्यक भारत आना चाहते हैं उनकी सुरक्षा करनी चाहिए और अफ़ग़ान नागरिकों को भी मदद देनी चाहिए. इस बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी मौजूद थे.
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तालिबान ने अफगान में 15 साल से 45 साल से कम उम्र की महिलाओं की लिस्ट मांगी
इतना ही नहीं अफगानिस्तान में महिलाओं की जिंदगी बद से बदतर हो रही है। तालिबान ने एक बयान जारी कर स्थानीय धार्मिक नेताओं से उन्हें 15 साल से अधिक उम्र की लड़कियों और 45 साल से कम उम्र की विधवाओं की सूची देने का आदेश जारी किया है। रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान ने अपने लड़कों से उनकी शादी करने का वादा किया है, जिसके बाद उन्हें पाकिस्तान के वजीरिस्तान ले जाया जाएगा जहां उन्हें इस्लाम में परिवर्तित कर उन्हें फिर से संगठित किया जाएगा।
बतां दें कि 2001 से पहले तालिबान शासन के तहत अफगानिस्तान में महिलाओं को स्कूल जाने, घर से बाहर काम करने या पुरुष के बिना घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दी गई थी। वहीं, इन नियमों का उल्लंघन करने वालों को तालिबान की धार्मिक पुलिस द्वारा सार्वजनिक रूप से अपमानित कर उन्हें पीटा जाता था।
इसे देखते हुए अब अफ़ग़ानिस्तान के बुज़ुर्गों का कहना है कि तालिबान उनकी बेटियों को ले जाएगा और जबरन उनकी शादी करेगा और उन्हें गुलाम बना देगा।
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तालिबान ने महज 22 दिनों में ही अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ गए हैं और हथियारबंद लड़ाकों को राष्ट्रपति भवन में टहलते देखा जा सकता है।
20 सालों में अमेरिका ने बनाई अफगान सेना,
तालिबान के आगे ताश के पत्तों की तरह बिखर गई, आखिर क्यों?
काबुल, अगस्त 15: अमेरिका दावा करता है कि उसने एक ट्रिलियन डॉलर यानि भारतीय रुपयों के हिसाब से देखें तो 71,260,000,000,000 रुपये अफगानिस्तान में खर्च किए हैं। अमेरिका कहता है कि इतने पैसे खर्च कर अफगानिस्तान में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास किया गया, तालिबान की कमर तोड़ी गई, अलकायदा को खत्म किया गया और अमेरिका का सबसे बड़ा दावा था कि उसने अफगानिस्तान में एक ऐसी सेना तैयार की है, जो तालिबान को रोककर रखेगा। लेकिन, अमेरिका के दावे ताश के पत्तों की तरफ बिखर चुकी है और अफगानिस्तान की सेना शीश महल की तरह चकनाचूर हो चुकी है। काबुल पर अब तालिबान का कब्जा होने वाला है। (कब्जा हो गया है, राष्ट्रपति देश छोड कर भाग गये हें।)
टूटकर बिखर गई अफगान सेना अफगानिस्तान की रक्षा करने में अफगान सेना पूरी तरह से फेल हो गई है और राजधानी काबुल के चारों तरफ तालिबान डेरा डाल चुका है। अभी तक तालिबान का आक्रमण काबुल पर हो चुका होता, लेकिन खबर है कि अमेरिका ने तालिबान से गुहार लगाई थी कि उसे अपना दूतावास खाली करने दे। यानि, अब अगर आपको काबुल से बाहर निकलना है तो आपके लिए सिर्फ हवाई मार्ग ही सहारा है। जमीन के हर रास्ते पर तालिबान का नियंत्रण हो चुका है।
तालिबान की एकतरफा जीत अफगानिस्तान में अब सरकार के नियंत्रण में सिर्फ 82 जिले हैं और कब तक हैं, ये तालिबान पर निर्भर करता है। तालिबान के हाथ में अब 252 जिले हैं और तालिबान की 31 प्रांतीय राजधानियों में 20 राजधानियों पर अब तालिबानी झंडा लहरा रहा है। तालिबान ने ये जीत सिर्फ एक महीने में हासिल कर ली है, यानि देखा जाए तो अफगानिस्तान की सेना तालिबान के खिलाफ बेअसर साबित हुई है। तो सवाल ये उठता है कि आखिर अमेरिका ने अफगानिस्तान के अंदर किस तरह की आर्मी का निर्माण किया था, जो बिना प्रतिरोध के घुटने टेक गई?
तालिबान के आगे नतमस्तक अफगान आर्मी अफगानिस्तान से मिल रही है रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान उतनी ही तेजी से अफगानिस्तान पर कब्जा कर पा रहा है, जितना वक्त उसे एक जगह से दूसरे जगह तक पहुंचने में लगता है। तालिबान के पहुंचते ही अफगान सेना अपना हथियार डाल कर आत्मसमर्पण कर रही है। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि तालिबान ने कहा है कि जो सैनिक आत्मसमर्पण कर देंगे, उन्हें मारा नहीं जाएगा। लिहाजा ज्यादातर प्रांतों में स्थानीय नेता और अफगान आर्मी के जवान सरेंडर कर अपनी जान बचा रहे है। यानि, अमेरिका ने 20 सालों में जिस अफगानिस्तान की आर्मी को तैयार किया था, वो महज कुछ ही महीनों में बिखर गई और अमेरिका की इस वजह से जमकर आलोचना हो रही है। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अमेरिका की पोल-पट्टी खोलकर रख दी है।
ट्रेनिंग पर खर्च किए 83 बिलियन डॉलर न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान की नेशनल आर्मी ने तालिबान से लड़ने के बजाए सरेंडर करने पर ज्यादा ध्यान दिया है और बड़े पैमाने पर सैनिकों ने सरेंडर कर अपनी जान बचाई है। जिसकी वजह से भारी संख्या में अमेरिकी लड़ाकू हेलीकॉप्टर, अमेरिकी रक्षा उपकरणों और हथियारों पर तालिबान का कब्जा हो गया है, जिसने तालिबान को काफी मजबूत बनाने का काम किया है। कई इलाकों में अफगानिस्तान की सेना शहर के बाहरी इलाकों में लड़ाई लड़ती नजर आई और हफ्तों का संघर्ष भी चला, लेकिन अंतिम जीत तालिबान की हुई है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका ने अफगान सेना की ट्रेनिंग पर, उन्हें हथियार देने पर और उपकरणों से लैस करने पर करीब 83 बिलियन डॉलर यानि करीब 6.10 लाख करोड़ रुपये खर्च किए।
कैसी सेना बनाई गई जो सरेंडर करती है? रिपोर्ट के मुताबिक, बराक ओबामा प्रशासन ने अपने दूसरे कार्यकाल में अफगानिस्तान से अमेरिकन सैनिकों को वापस बुलाने की बात की थी और कहा था कि अफगानिस्तान की सुरक्षा अफगान सैनिकों के हाथ में सौंप दिया जाए। लेकिन, बाद में तय किया गया कि अफगान सैनिकों को इस लायक बना दिया जाए कि वो तालिबान को अकले रोकने में कामयाब हो सके। लेकिन, अमेरिका की तैयारी कैसी थी, इसे अब पूरी दुनिया देख चुकी है। यानि, 83 बिलियन डॉलर खर्च कर अमेरिका ने जिस अफगान आर्मी का निर्माण किया था और जिसका काम तालिबान को रोककर रखना था, वो ताश के पत्तों की तरफ बिखर चुकी है।
अमेरिका की नाकामी, देश पर खतरा यानि, अमेरिका ने जो दावा किया था कि वो अफगानिस्तान में प्रोफेशनल आर्मी का निर्माण करेगा और फिर देश से निकलेगा, उसकी पूंगी तालिबान बजा चुका है और स्थिति तो यहां तक बन गई कि अमेरिका को खुद काबुल में अपनी सुरक्षा के लिए तालिबान से गुहार लगानी पड़ी। अब स्थिति ये है कि अफगानिस्तान की सरकार के साथ साथ अफगान सैनिकों के लिए अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो चुका है और अफगानिस्तान के भीषण गृहयुद्ध में जाने की संभावना है या फिर अगले कुछ दिनों में तालिबान पूरे देश पर नियंत्रण स्थापित कर सकता है। इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ अमेरिका की नाकामी है और अमेरिका की नाकामी, लापरवाही और गैर-जिम्मेदाराना रवैये की खामियाजा ना सिर्फ पूरा अफगानिस्तान चुका रहा है, बल्कि अफगानिस्तान का आने वाला भविष्य भी काला दिख रहा है। अफगानिस्तान के बच्चों के हाथ में रोटी नहीं है, किताब नहीं है, दूध नहीं है और वो असहाय रास्तों पर आ गये, इसकी जिम्मेदारी अगर किसी की है...तो सिर्फ और सिर्फ अमेरिका की।
क्यों हार रही है अफगानिस्तान की सेना? कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अमेरिका के संरक्षण में अशरफ गनी सरकार पूरी तरह से लापरवाह हो गई थी और अफगानिस्तान सरकार ने खुद को मजबूत करने पर जरा भी ध्यान नहीं दिया। अफगानिस्तान सरकार ने सिर्फ काबुल, कंधार और हेरात जैसे शहरों को ही पूरा देश मान लिया। इसके साथ ही कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अफगानिस्तान सेना के निर्माण में अफगानिस्तान सरकार के कुछ मंत्रियों ने भारी भ्रष्टाचार किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, दावा किया गया है कि अफगानिस्तान आर्मी के पास 3 लाख से ज्यादा जवानों की ताकत है, लेकिन हकीकत ये है कि ये जवान सिर्फ कागजों पर है। कागजों पर ही हजारों जवानों की भर्ती की गई, कागजों पर ही हजारों जवानों को ट्रेनिंग दी गई और कागजों पर ही उन्हें जंग में भेजा गया। यानि, सेना में भारी भ्रष्टाचार किया गया और कुछ भ्रष्ट नेताओं के किए की सजा पूरा अफगानिस्तान भुगत रहा है। 60 हजार सैनिकों की मौत न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान की आर्मी के पास खाने तक का बजट नहीं है। यानि भूखे पेट अफगानिस्तान की सैनिकों को तालिबान से लोहा लेने के लिए भेजा गया है। जिसकी वजह से तालिबान अफगान सैनिकों पर काफी ज्यादा हावी नजर आए। रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान सरकार की तरफ से देश के सैनिकों को खाने के नाम पर राशन और आलू दिए गये हैं। पुलिसवालों की भी यही स्थिति है। हजारों पुलिसवालों ने भूखे पेट रहकर देश की सेवा की है। एक पुलिसकर्मी ने तो यहां तक चिल्लाते हुए कहा था कि ''ये फ्रेंच फ्राइज पहली पंक्ति के सैनिकों की रक्षा नहीं कर पाएंगे''। और जिसका डर था वही हुआ। अफगानिस्तान सेना की पहली पंक्ति ध्वस्त हो चुकी है और अफगान सरकार के पास सिर्फ काबुल बचा है। रिपोर्ट के मुताबिक अब तक अफगानिस्तान में तालिबान के हाथों 60 हजार अफगान सैनिक मारे गये हैं और हजारों घायल हुए हैं।
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