स्वतंत्रता का अधिग्रहण, गुलामी की विदाई - अरविन्द सिसौदिया
स्वतंत्रता का अधिग्रहण : गुलामी की विदाई - अरविन्द सिसौदिया
१४-१५ अगस्त की मध्यरात्रि में भारतीय संविधान सभा के अधिवेशन में शपथ लेते हुए जवाहरलाल नेहरू एवं अन्य सदस्य
भारतीय संविधान सभा का पांचवा अधिवेशन, कान्स्टीट्यूशन हाउस (संविधान भवन), नई दिल्ली में 14 अगस्त 1947 रात्रि 11 बजे अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के सभापितत्व में प्रारम्भ हुआ। आजादी की अगुवाई की रात थी।
अध्यक्ष की आज्ञा पर सबसे पहले श्रीमती सुचेता कृपलानी ने ‘वन्दे मातरम्’ का गायन किया। इसके पश्चात अध्यक्ष का सम्बोधन हुआ।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद : हमारे इतिहास के इस अहम मौके पर जब वर्षों के संघर्षों और जद्दोजहद के बाद हम अपने देश के शासन की बागडोर अपने हाथों में लेने जा रहे हैं। हमें उस परमपिता परमात्मा को याद करना चाहिये जो मनुष्यों और देशों के भाग्य को बनाता है और हम उन अनेकानेक, ज्ञात और अज्ञात, जाने और अनजाने, पुरूष और स्त्रियों के प्रति श्रद्धाजंली अर्पित करते हैं। जिन्होंने इस दिन की प्राप्ति के लिये अपने प्राण न्यौछावर कर दिये, हंसते-हंसते फांसी की तख्तियों पर चढ़ गये, गोलियों के शिकार बन गये, जिन्होंने जेल खानों में और कालापानी के टापू में घुल-घुल कर अपने जीवन का उत्सर्ग किया। जिन्होंने बिना संकोच माता, पिता, स्त्री, संतान, भाई, बहन यहां तक कि देश को भी छोड़ दिया और धन-जन सबका बलिदान कर दिया। आज उनकी तपस्या और त्याग का ही फल है कि हम इस दिन को देख रहे हैं।
पं. नेहरू द्वारा प्रतिज्ञा का प्रस्ताव...
अध्यक्ष के भाषण की समाप्ति के पश्चात प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने एक भाषण के साथ ‘प्रतिज्ञा’ प्रस्तुत की जिसे ठीक रात्रि 12 बजे ही सदस्यों को लेनी थी, इस सम्बोधन के कुछ अंश इस प्रकार हैं :-
पं. जवाहर लाल नेहरू :
2.1 ....चन्द मिनटों में यह असेम्बली एक पूरी तौर से आजाद खुद मुख्तार असेम्बली हो जायेगी और यह असेम्बली नुमाइन्दगी करेगी एक आजाद, खुद मुख्तार मुल्क की। चुनाचे, इसके ऊपर जबरदस्त जिम्मेवारियां आती हैं...,
2.2 .....हमने एक मंजिल पूरी की और आज उसकी खुशियां मनाई जा रही हैं। हमारे दिल में भी खुशी है और किस कदर गुरूर है और इत्मीनान है, लेकिन यह भी हम जानते हैं कि हिन्दुस्तान भर में खुशी नहीं है। हमारे दिल में रंज के टुकड़े काफी हैं और दिल्ली से बहुत दूर नहीं, बड़े-बड़े शहर जल रहे हैं। वहां की गर्मी यहां आ रही है। खुशी पूरे तौर से नहीं हो सकती, लेकिन फिर भी हमें इस मौके पर हिम्मत से इन सब बातों का सामना करना है। जब हमारे हाथ बागडौर आयी तो फिर ठीक तरह से गाड़ी को चलाना है। आमतौर पर अगर मुल्क आजाद होते हैं, काफी परेशानियां मुसीबतों और खूंरेजी के बाद होते हैं। काफी ऐसी खूंरेजी हमारे मुल्क में भी हुई है और ऐसे ढंग से हुई जो बहुत ही तकलीफ देह हुई है। फिर भी हम आजाद हुए, शांतिमय तरीकों से और अजीब मिसाल हमने दुनिया के सामने रखी।
नेहरूजी ने एक प्रस्ताव का स्वरूप रखा जिसका समर्थन चौधरी खलीकुज्जमा (संयुक्त प्रांत) ने किया, इसी के समर्थन में डॉ. एस.राधाकृष्णन ने वक्तव्य दिया जिसके कुछ महत्वपूर्ण अंश इस प्रकार हैं :-
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन :
3.1......आज के दिन को इतिहास रचा जायेगा तथा गाथायें प्रस्तुत की जायेंगी। हमारे गणतंत्र प्राप्ति के इतिहास में आज का दिन विशेष महत्वपूर्ण है, इससे हमारा एक नया क्रम प्रारम्भ होता है।
भारतवासी आज पुनर्निमाण के प्रयास में संलग्न है, वे अपना आमूल परिवर्तन करने में प्रयत्नशील हैं। इनके इस प्रयास के इतिहास में आज का दिन विशेष महत्व रखता है। एक चिरप्रतीक्षा की रजनी के अवसान पर, ऐसी रजनी जो भाग्य निर्णायक शुभ घटनाओं से परिपूर्ण थी, जिसमें स्वातंत्र्य सूर्य के दर्शन के लिये हमने नीरव प्रार्थनायें कीं, जिसमें क्षुधा मृत्यु के भयंकर भूत प्रेत सदा विभीषिश उत्पन्न करते रहे, जिसमें हमारे प्रहरी सदा जागरूक थे और जिसमें प्रकाश का आलोक सदा दीप्त रहा - अब स्वातंत्र्य सूर्य की रश्मियां निकल रही हैं और हम इसका साहोत्साह स्वागत करते हैं। जब हम आज दासता और पराधीनता से मुक्त होकर स्वतंत्रता के प्रांगण में पदार्पण कर रहे हैं तो वस्तुतः यह आनन्द का अवसर है।
3.2 ......अपनी ओर से हमने भी विश्व के इतिहास में एक अध्याय जोड़ दिया है। जरा गौर कीजिये कि इतिहास में पराधीन जातियों ने किस तरह अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की है। यह भी सोचिये कि किस तरह अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की है। यह भी सोचिये कि किस तरह लोगों ने अधिकार प्राप्त किये हैं। वाशिंगटन, नेपोलियन, क्रॉमवेल, लेनिन, हिटलर और मुसोलिनी सरीखे व्यक्तियों ने किस तरह सत्ता प्राप्त की है? बल प्रयोग,आतंक,हत्या, नरमेध और विप्लव की उन प(तियों पर जरा ध्यान दीजिये, जिनमें संसार के इन तथाकथित महापुरूषों ने सत्ता प्राप्त की थी।
3.3 यहां इस देश में हमने उस व्यक्ति के नेतृत्व (महात्मा गांधी ) में जो सम्भवतः इतिहास में इस युग का सर्वश्रेष्ठ महापुरूष कहा जायेगा (हर्ष ध्वनि की गड़गड़ाहट ) धीरता से क्रोध का सामना किया तथा आत्मिक शांति से नौकरशाही के अत्याचार के वार संभाले और आज हम सभ्य एवं शांति उपायों से सत्ता प्राप्त कर रहे हैं।
3.4 जो स्वाधीनता हमें आज उपलब्ध नहीं हो रही है, वह ब्रिटिश शासकों की इसी द्वैध मानसिकता का परिणाम है। भारत स्वाधीनता तो आज पा रहा है, पर जिस ढंग से इसकी प्राप्ति हो रही है उससे देशवासियों के हृदय में आनन्द नहीं उत्पन्न हो रहा है,उनके चेहरों पर स्वाभाविक आह्लाद की प्रभा नहीं दिखाई पड़ती है।
3.5 जिन पर इस देश के शासन की जिम्मेवारी थी उनमें से कुछ लोगों ने साम्प्रदायिकता की भावना को और उग्र बनाने की तथा वर्तमान स्थिति लाने की कोशिश की,जो ब्रिटेन के लघु मस्तिष्कों द्वारा अपनायी हुई नीतियों का स्वाभाविक परिणाम है।
कमजोरियों पर विजय का आव्हान....
3.6.....क्या हम चरित्र सम्बन्धी अपने उन जातीय दुर्गुणों को दूर नहीं करेंगे जिनके कारण हममें तरह-तरह के अंधकार संकुचित मनोवृत्ति और अन्धविश्वास जनित कट्टरताओं ने हमें दबा रखा है। दूसरे लोग हमारी कमजोरियों से लाभ उठाने में समर्थ हुए और इसलिये समर्थ हुए कि कमजोरियां हममें थीं। इसलिये इस अवसर पर मैं आपसे कहूंगा कि आप आत्मपरीक्षण करें, अपने हृदयों को टटोलें, हमने स्वाधीनता प्राप्त की है पर उस तरह नहीं जैसे चाहते थे और इसके लिए हम स्वयं जिम्मेवार हैं।
अखण्ड भारत की कल्पना : राधाकृष्णन
3.7....राजनैतिक दृष्टि से हम भले ही विभक्त हो गये हों, पर हमारी सांस्कृतिक एकता अभी पूर्ववत बनी है। (हर्षध्वनि) राजनैतिक विभाजन,धरातल का बंटवारा बाह्य वस्तु है, परन्तु मनोवैज्ञानिक विभाजन की नीति बड़ी गहरी होती है। सांस्कृतिक वैषम्य और भी सांघातिक होता है और हमें चाहिये कि इस वैषम्य को हम कभी न बढ़ने दें। हमारा कर्त्तव्य यह है कि हम उन सांस्कृतिक बंधनों को,उन आध्यात्मिक बंधनों को स्थायी बनाये रखें जिनके कारण अब तक हम सब एक प्राण थे। धीरतापूर्वक विचार, शिक्षा का शनैः - शनैः प्रसार, एक दूसरे की आवश्यकताओं का समन्वय, उन दृष्टि बिन्दुओं की खोज!
आजाद हुआ भारत....
जैसे ही घड़ी के 12 बजे (
मध्य रात्रि ) अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने खड़े होकर हिन्दी में प्रतिज्ञा का एक-एक वाक्य पढ़ा जिसे सदस्यों ने दोहराया, बाद में यही प्रतिज्ञा अंग्रेजी में भी पढ़ी गई।
‘‘अब जबकि हिन्दवासियों ने त्याग और तप से स्वतंत्रता हासिल कर ली है, मैं ......;सदस्यों ने अपने अपने नाम लियेद्ध.. जो इस विधान परिषद का एक सदस्य हूं, अपने को बड़ी नम्रता से हिन्द और हिन्दवासियों की सेवा के लिए अर्पण करता हूं, ताकि प्राचीन देश संसार में अपना उचित और गौरवपूर्ण जगह पा लेवे और संसार में शांति स्थापना करने और मानव जाति के कल्याण में अपनी पूरी शक्ति लगाकर खुशी-खुशी हाथ बंटा सके।’’
इसके बाद अध्यक्ष ने प्रस्ताव किया कि -
1. भारतीय विधान परिषद ने भारत का शासनाधिकार ग्रहण कर लिया है।
2. लॉर्ड माउंटबैटन को 15 अगस्त 1947 से भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त किया।
इसके बाद अध्यक्ष के निर्देश पर भारतीय महिला समाज की ओर से श्रीमती हंसा मेहता ने राष्ट्रीय पताका भेंट की। उन्होंने एक छोटा सारगर्भित सम्बोधन भी किया। श्रीमती मेहता मुम्बई ने निर्वाचित सदस्य थीं।
श्रीमती हंसा मेहता ;बम्बई जनरलद्ध :
4.1....इस केसरिया के अभ्युदय का श्रेय हमीं को है। हमने देश की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष किया है, कष्ट उठाये हैं और बलिदान किए हैं। आज हमने अपना ध्येय प्राप्त किया है। ....
अंत से ठीक पहले ‘‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’’ तथा ‘‘जन गण मन अधिनायक जय है’’ की प्रथम पंक्तियों का गायन सुचित कृपलानी ने किया और इसी के साथ यह बैठक स्थगत हो गई।
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आजादी के जश्न के लिए अभिजीत मुहूर्त
लॉर्ड माउंटबेटन की योजना के तहत 15 अगस्त 1947 को आजादी का ऐलान करने का दिन तय किया गया क्योंकि इसी दिन 1945 में जापान ने आत्मसमर्पण किया था। लॉर्ड माउंटबेटन ने खुद इसके पीछे का तथ्य भी दिया था कि आखिर उन्होंने 15 अगस्त का दिन ही क्यों चुना था।
आजादी के जश्न के लिए 15 अगस्त की तारीख तय हो गई मगर ज्योतिषियों ने इसका जमकर विरोध किया क्योंकि ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह दिन अशुभ और अमंगलकारी था। ऐसे में दूसरी तारीखों का चुनाव किया जाने लगा मगर लॉर्ड माउंटबेटन 15 अगस्त की तारीख को नहीं बदलना चाहते थे।
ऐसे में ज्योतिषियों बीच का रास्ता निकलते हुए 14-15 तारीख की मध्य रात्रि का समय तय किया। क्योंकि अंग्रेजी समयनुसार 12 बजे के बाद अगला दिन लग जाता है। जबकि भारतीय मान्यता के मुताबिक सूर्योदय के बाहर अगला दिन माना जाता है। ऐसे में आजादी के जश्न के लिए अभिजीत मुहूर्त को चुना गया जो 11 बजकर 51 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 39 मिनट तक रहने वाला था और इसी बीच पंडित जवाहरलाल नेहरू को अपना भाषण भी समाप्त करना था।
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