कल्याणसिंह : श्रीरामजन्म भूमि के संकट मोचक हनुमान - अरविन्द सिसौदिया Kalyan Singh & Ramjanm Bhoomi
- अरविन्द सिसौदिया
9414180151
अब कल्याणसिंह जी नहीं रहे, एक कारसेवक के नाते मेरे मन में भी इच्छा थी कि कल्याणसिंह जी किसी तरह श्रीराम जन्म भूमि मंदिर निर्माण तक जीवित रहें। किन्तु "हरी" इच्छा बलवान । कल्याणसिंह जी यह देख कर गये हैं कि उनके जीते जी श्रीराम जन्म भूमि मुक्त हो गई और उस पर भव्य मंदिर निर्माण का कार्य प्रारम्भ भी हो गया है।
एक श्रृद्धांजली सभा में मेरे मन में बार बार विचार आ रहा था कि कल्याणसिंह जी को उपमा क्या दी जाये, उन्होने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुये जो कर दिखाया वह असामान्य था, पद पर बनें रहने की इच्छा किसकी नहीं होती। इस तरह के निर्णय अदम्य साहस के होते है। हलांकी कल्याण सिंह जी एक स्वंयसेवक भी थे। एक स्वंयसेवक किस तरह के अदम्य साहस से भरा रहता है। यह भी कल्याणसिंह जी ने प्रमाणित किया। यह तो सर्वोच्च न्यायालय की भी महानता है कि उन्होने कल्याणसिंह जी को ढ़ाचे की रक्षा नहीं कर पाने की सजा मात्र कुछ घंटों की दी,लम्बी सजा भी दे सकता था,चुनाव लडने पर रोक भी लगा सकता था । खैर सवाल था उपमा क्या दी जाये, उन्हे किस तरह के शब्दों से अंलकृत किया जाये। बहुत सोचनें के बाद महज हनुमानजी का चरित्र ही इस तरह का जो श्रीराम जी को प्रत्येक विपरीत काल में संकट मोचक, कष्ट निवारक,उद्धारक बन कर सामनें आता है। सुग्रीव से मिलन, सीता माता की खोज, लंका दहन, अहीरावण से राम - लक्षमण की मुक्ति और लक्ष्मण शक्ति में संजीवनी लानें तक में हनुमान जी ही संकट मोचक, कष्ट निवारक रहे हे।
इतिहास बताता है कि इस्लामिक आक्रांताओं ने हमारे मंदिरो प्रतिष्ठानों को नष्ट किया, हिंसा के बल पर धर्मान्तरण करवाये, हमारे स्मारकों को उन्होने अपने स्मारकों में बदला । इसी तरह की एक आक्रांती कार्यवाही हतलावर बाबर के सेनापति ने अयोध्या में पवित्र पावन श्रीराम जन्म भूमि मंदिर के साथ की थी। 500 सालों से इस कष्ट में फंसी श्रीराम जन्म भूमि को मुक्त करवानें अनेकानेक लडाईयां लडी गईं, लाखों लोगों ने प्राणों का उत्सर्ग किया । अन्ततः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याणसिंह जी वह संकट मोचक होते हे। जिनके संरक्षण में बाबरी ढांचा ढह गया, पीढियों से चले आ रहे इस कलंक से मुक्ति मिली।
श्रीरामजन्म भूमि के संकट मोचक हे हनुमान ,
तुम ही हो, तुम ही हो हे कल्याण !
अहो भाग्य हम सबके जो आपके दर्शन पाये,
करते हैं हम सब आपको बारम्बार प्रणाम ।
जब तक अयोध्या है और है जन्मभूमि धाम,
तब तक रहेगा अमर आपका नाम ।
सब मिलकर बोलो जयश्री कल्याण,
श्रीरामजन्म भूमि के जयश्री हनुमान।
- अरविन्द सिसौदिया 9414180151
ये सत्य है कि भगवान शंकर ने जिस तरह सागर मंथन में विष को स्वंय धारण कर लिया था उसी तरह बाबरी ढांचा ध्वस्त होने का सम्पूर्ण कथित अपराध, वायदा खिलाफी मुख्यमंत्री कल्याण सिंहजी ने अपने माथे धारण किया.... अमृत रूपी राह श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण को खोल दी, ढांचा नहीं ढहता तो आज मंदिर निर्माण कार्य प्रारम्भ नहीं होता । श्रीराम जन्म भूमि को मुक्त करने का असली काम कल्याणसिंह जी ने नाम है। जिस तरह श्रीराम के सहायक हनुमानजी को रामजी के साथ याद किया जाता है। उसी तरह कल्याणसिंह जी को भी श्रीरामजन्मभूमि के साथ याद किया जाता रहेगा ।
मैं उस पुण्य आत्मा को अपने हृदय और आत्मा में मौजूद समस्त ऊर्जा के साथ नमन करता हूं... प्रणाम करता हूं... ईश्वर आपको मोक्ष दे ! जय श्री राम
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नाम (Name) -कल्याण सिंह (Kalyan Singh)
राजस्थान के राज्यपाल -4 सितम्बर 2014 से 8 सितम्बर 2019 तक
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल -जनवरी 2015 से 12 अगस्त 2015 तक
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री -24 जून 1991 से 6 दिसम्बर 1992 तक (पहला कार्यकाल),
-21 सितम्बर 1997 से 12 नवम्बर 1999 (दूसरा कार्यकाल)
सांसद, - लोकसभा 2009 से 2014 तक
जन्म तिथि और स्थान
(Date of birth & place) - 5 जनवरी 1932 अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
मृत्यु की तिथि और स्थान
(Date of death & place) - 21 अगस्त 2021 (उम्र 89) लखनऊ, उत्तर प्रदेश
पत्नी का नाम (wife Name) - रामवती
माता पिता का नाम
(parents name) - श्रीमती सीता देवी (माता),
- श्री तेजपाल लोधी राजपूत (पिता)
जाती और धर्म
(Caste & religion) - राजपूत, हिंदू
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राम मंदिर के लिए दांव पर लगा दी थी अपनी सरकार,
जानें कल्याण सिंह के जीवन की खास बातें
Kalyan Singh Death - 1991 में उत्तर प्रदेश में पहली बार भाजपा की सरकार बनी...तो मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह...425 में 221 विधानसभा सीटें लेकर वह सत्ता में आये. लेकिन राम मंदिर के लिए उन्होंने पूर्ण बहुमत की अपनी सरकार कुर्बान कर दी.
Date Sun, Aug 22, 2021
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का शनिवार देर शाम निधन हो गया
दो बार बने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, लेकिन कभी पूरा नहीं कर सके अपना कार्यकाल
राम मंदिर के लिए कुर्बान कर दी थी सीएम की कुर्सी, जानें क्या था वह किस्सा
Kalyan Singh Death : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का शनिवार देर शाम निधन हो गया. 89 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली. कल्याण सिंह लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे और लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. कल्याण सिंह का राजनीतिक सफर संघर्षपूर्ण रहा. 1991 में उत्तर प्रदेश में पहली बार भाजपा की सरकार बनी...तो मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह...425 में 221 विधानसभा सीटें लेकर वह सत्ता में आये. लेकिन राम मंदिर के लिए उन्होंने पूर्ण बहुमत की अपनी सरकार कुर्बान कर दी.
6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने बाबरी ढांचा गिरा दी, पर कल्याण सिंह ने प्रशासन को कोई कार्रवाई नहीं करने दी. जबकि, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा दिया हुआ था कि वह बाबरी ढांचा की रक्षा करेंगे.
इस वादाखिलाफी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक दिन जेल की सजा भी दी. बाबरी ढांचा गिरने के तुरंत बाद कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. लेकिन अगले ही दिन 7 दिसंबर, 1992 को केंद्र की नरसिंह राव सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार को बर्खास्त कर दिया. कल्याण सिंह ने अपनी सरकार गंवा दी, लेकिन हिंदुत्ववादी खेमे में उन्होंने अपना कद ऊंचा कर लिया. वह अटल, आडवाणी के बराबर के नेता गिने जाने लगे.
1993 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार बनाने लायक सीटें नहीं ला पायी. 1996 में फिर से चुनाव हुए. कल्याण सिंह की अगुवाई में भाजपा 173 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, पर सरकार नहीं बना सकी. राष्ट्रपति शासन लगा. इस बीच भाजपा और बसपा की खिचड़ी पकी. भाजपा के समर्थन से मायावती मुख्यमंत्री बन गयी. समझौता हुआ था कि छह महीने बसपा और छह महीने भाजपा का मुख्यमंत्री रहेगा. मायावती के छह महीने पूरे हुए, तो कल्याण सिंह 21 सितंबर, 1997 को मुख्यमंत्री बने. लेकिन एक महीना भी नहीं बीता कि मायावती ने समर्थन वापस ले लिया. कल्याण सिंह का जाना तय था. लेकिन उन्होंने जंबो मंत्रिमंडल का इतिहास रचा और 90 से ज्यादा मंत्री बना कर अपनी सरकार बचायी
पहले कार्यकाल में कल्याण सिंह की छवि बोल्ड प्रशासक की बनी थी, लेकिन दूसरे कार्यकाल में कहानी अलग रही. राजा भैया जैसे बाहुबली उनके मंत्रिमंडल में शामिल हो गये. कल्याण सिंह की करीबी कुसुम राय के सरकार और पार्टी के कामकाज में बढ़ते दखल से भी पार्टी के कई नेता नाराज रहने लगे. 21 फरवरी, 1998 को यूपी के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सरकार को बर्खास्त कर दिया. जगदंबिका पाल को देर रात मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी गयी. इलाहाबाद हाइकोर्ट के आदेश पर जगदंबिका पाल को हटना पड़ा और कल्याण सिंह को अपनी कुर्सी वापस मिली.
1997 में पड़ी राह अलग होने की नींव : 1997 में छह महीने सीएम रहने के बाद जब मायावती ने भाजपा के लिए कुर्सी छोड़ने में आनाकानी की, तो कल्याण सिंह को लगा कि प्रधानमंत्री बनने के लिए वाजपेयी बसपा से राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की कोशिश में हैं. यहीं से उनका वाजपेयी से मनमुटाव हुआ. 1999 के लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा को काफी नुकसान हुआ. आरोप लगे कि वाजपेयी को पीएम बनने से रोकने के लिए कल्याण सिंह ने भितरघात किया. पर वाजपेयी पीएम बनने में सफल रहे. इसके बाद कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग ने जोर पकड़ लिया. 12 नवंबर 1999 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. रामप्रकाश गुप्त सीएम बनाये गये.
1962 में पहली बार लड़े थे चुनाव : कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी, 1932 को अलीगढ़ जिले के अतरौली में हुआ. बीए करने के बाद वह भारतीय जनसंघ में सक्रिय हो गये थे. 1962 में वह अतरौली विधानसभा सीट से लड़े, पर पराजित हुए. पांच साल बाद चुनाव में उन्हें जीत मिली. 1967 के बाद 69, 74 और 77 के चुनाव में भी जीते. 1985 के चुनाव में फिर जीते. तब से लेकर 2004 विधायक रहे.
1999 में आखिरकार पार्टी से निकाले गये: केंद्रीय नेतृत्व के दबाव में कल्याण सिंह ने इस्तीफा तो दे दिया, पर प्रधानमंत्री वाजपेयी के खिलाफ भड़ास निकालने से वह खुद को नहीं रोक पाये. 9 दिसंबर 1999 को उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. कल्याण सिंह ने नयी पार्टी बनायी, पर सफलता नहीं मिली.
मोदी युग में दोबारा घर वापसी, बने राज्यपाल : 2004 में उन्होंने भाजपा में वापसी का फैसला किया. 2007 का यूपी चुनाव उनकी अगुआई में लड़ा गया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. फिर उनकी राह भाजपा से अलग हो गयी.
2014 में मोदी युग के बाद कल्याण ने दोबारा भाजपा में वापसी की. वह राजस्थान का राज्यपाल बने.
नकल रोकने के लिए याद रखे जायेंगे : पहली बार मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद कल्याण सिंह कड़े प्रशासक के रूप में पेश आये. उन दिनों उत्तर प्रदेश में बोर्ड परीक्षाओं में धड़ल्ले से नकल होती थी. कल्याण सिंह और उनके शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे रोकने का फैसला किया. वे नकल रोकने के लिए कड़ा कानून लाये. बड़ी संख्या में छात्रों को जेल जाना पड़ा, पर नकल तो रुक गयी.
कल्याण सिंह जी का जनमानस से अद्भुत जुड़ाव था. मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने साफ-सुथरी राजनीति की व शासन-व्यवस्था से अपराधियों, भ्रष्टाचारियों को बाहर किया.
रामनाथ कोविंद, राष्ट्रपति
एक सामर्थ्यवान नेता खोया है। मैं भगवान प्रभु श्री राम के चरणों में प्रार्थना करता हूं कि प्रभु राम कल्याण सिंह जी को अपने चरणों में स्थान दें। प्रभु राम उनके परिवार को इस दुख की घड़ी में इस दुख को सहन करने की शक्ति दे
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
'उन्हें जब जो दायित्व मिला, चाहे वो विधायक के रूप में या सरकार के रूप में या राज्यपाल के रूप में, हमेशा वो प्रेरणा का केंद्र बने। देश ने एक मूल्यवान शख्सियत, सामर्थ्यवान नेता को खोया है। हम उनके आदर्शों को लेकर अधिकतम पुरुषार्थ करें। मैं भगवान श्रीराम से प्रार्थना करता हूं कि वो उन्हें अपने चरणों में स्थान दें और परिवार को दुख को सहन करने की शक्ति दें।'
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
जन-जन के हृदय में बसनेवाले प्रखर राष्ट्रवादी आदरणीय कल्याण सिंह जी जैसा महान व्यक्तित्व ढूंढ़ने पर विरले ही मिलता है. वे राम जन्मभूमि आंदोलन के नायक रहे.
अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री
लाखों कार्यकर्ताओं को पार्टी की सेवा के लिए तैयार करनेवाले बाबू जी की छवि सदैव हमारे मन-मस्तिष्क में विराजमान रहेगी.
जेपी नड्डा, भाजपा अध्यक्ष
'कल्याण सिंह को नेता कहूं या बड़ा भाई कहूं या मित्र... फैसला करना कठिन'
कल्याण सिंह को नेता कहूं या बड़ा भाई कहूं या मित्र कहूं यह फ़ैसला करना कठिन है। उनकी भूमिका ऐसी रही है कि ऐसा लगता था कि इसमें वह नेता हैं, इसमें बड़े भाई हैं और इसमें मित्र हैं। अब वह हमारे साथ नहीं है, मैं उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
- केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
कल्याण सिंह ( 5 जनवरी 1932) भारतीय राजनीतिज्ञ थे वे राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रह चुके हैं। ... उन्हें प्रखर राष्ट्रवादी राजनेता के रूप में जाना जाता है । , उनका निधन 21 अगस्त 2021 को लखनऊ पीजीआई लखनऊ मे हुआ।
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भगवान शंकर ने जिस तरह सागर मंथन में विष को स्वंय धारण कर लिया था उसी तरह बाबरी ढांचा ध्वस्त होने का सम्पूर्ण कथित अपराध, वायदा खिलाफी मुख्यमंत्री कल्याण सिंहजी ने अपने माथे धारण किया.... अमृत रूपी राह श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण को खोल दी,
जब ढांचा टूट रहा था तब कल्याण सिंह 5 कालिदास मार्ग... मुख्यमंत्री आवास की छत पर आराम से जाड़े की धूप सेंक रहे थे... अगर तब कल्याण सिंह नहीं होते तो आज भूमिपूजन भी नहीं होता
- एक छोटे कद का आदमी... जो दिखने में बहुत सुंदर नहीं था... काला रंग...चेहरे पर दाग... लेकिन संघर्षों में तपा हुआ व्यक्तित्व... ऐसी पर्सनेलिटी की जहां वो पहुंच जाए वहां बड़े से बड़े नेता का कद छोटा हो जाए । व्यक्तित्व की धमक ऐसी बड़े बड़े किरदार बौने दिखने लगें... ऐसे थे कल्याण सिंह
- कल्याण सिंह ऐसे इसलिए थे क्योंकि उनकी कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं था... उनके दिल और दिमाग में कोई अंतर नहीं था... उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा उसूल था... भगवान राम की भक्ति... भगवान राम के प्रति के समर्पण को लेकर उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया
- 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए जनसमर्थन इकट्ठा करने का लक्ष्य लेकर राम रथयात्रा निकाली । बिहार में तब लालू यादव मुख्यमंत्री थे और उन्होंने आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया । जिसके बाद राम राथ यात्रा को भारी मात्रा में जनसमर्थन मिल गया और उत्तर प्रदेश में पहली बार बीजेपी की सरकार चुन ली गई जिसके मुख्यमंत्री कल्याण सिंह चुने गए
- जून 1991 में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने और इसके बाद राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे विश्व हिंदू परिषद में उत्साह की लहर दौड़ गई और उसने ये घोषणा कर दी कि 6 दिसंबर 1992 को राम मंदिर का निर्माण आरंभ किया जाएगा
- वीएचपी की घोषणा के वक्त मुख्यमंत्री के पद पर कल्याण सिंह थे और प्रदेश की कानून व्यवस्था को संभालने का पूरा जिम्मा कल्याण सिंह पर था । वीएचपी की घोषणा के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के कान खड़े हो गए और उन्होंने बातचीत के लिए कल्याण सिंह को दिल्ली बुलाया
- कल्याण सिंह से पी वी नरसिम्हा राव ने कहा कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दीजिए लेकिन कल्याण सिंह ने साफ जवाब दिया कि विवाद का एक ही हल है और वो ये कि बाबरी मस्जिद की जमीन हिंदुओं को सौंप दी जाए । इस तरह बात नहीं बनी और केंद्र - राज्य के बीच टकराव तय हो गया
-नरसिम्हा राव ने ऐहतियात बरतते हुए पहले ही केंद्रीय सुरक्षा बल अयोध्या रवाना कर दिए... केंद्रीय सुरक्षा बल अयोध्या के चारों तरफ फैला दिए गए
- 6 दिसंबर तक अयोध्या में राम जन्मभूमि के आस पास 3 लाख कारसेवक इकट्ठे हो गए थे... ऐसे में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन के पास पूरी ताकत थी कि वो कारसेवकों पर गोली चला सकती थी... इससे पहले भी जब मुलायम सिंह यादव की सरकार थी तब मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलवाई थी
- कल्याण सिंह को इस बात का अंदेशा लग गया था कि 6 दिसंबर को कारसेवकों को कंट्रोल करने के लिए उनपर फायरिंग का आदेश कोई भी अधिकारी दे सकता है । इसलिए कल्याण सिंह ने 5 दिसंबर की शाम को ही समस्त अधिकारियों को एक लिखित आदेश जारी किया था और वो ये था कि कोई भी कारसेवकों पर गोली नहीं चलाएगा ।
- ये फैसला लेना... संवैधानिक पद पर बैठे हुए किसी व्यक्ति के लिए आसान नहीं था । कल्याण सिंह इस बात को जानते थे कि जब वो ये फैसला ले रहे हैं तो अगर अयोध्या में कुछ हो जाता है तो इससे उनकी कुर्सी चली जाएगी... सारी दुनिया उन पर आरोप लगाएगी... ये कहा जाएगा कि कल्याण सिंह एक अराजक मुख्यमंत्री हैं... ये आरोप ही मंदिर आंदोलन का वो विष था... जिसे कल्याण सिंह ने अमृत मानकर पी लिया ।
-आखिर वही हुआ 6 दिसंबर 1992 को दोपहर साढ़े 11 बजे कारसेवक ढांचे को तोड़ने लगे... कल्याण सिंह को पल पल की खबर मिल रही थी.... लेकिन वो आराम से अपने मुख्यमंत्री आवास पर जाड़े की धूप सेंक रहे थे... दिल्ली से फोन घनघना रहे थे लेकिन कल्याण सिंह ने राम भक्ति को प्राथमिकता दी और किसी की कोई बात नहीं सुनी
- केंद्र से गृहमंत्री चव्हाण का फोन आया और उन्होंने कहा कि कल्याण जी मैंने ये सुना है कि कारसेवक ढांचे पर चढ गए हैं तब कल्याण सिंह ने जवाब दिया कि मेरे पास आगे की खबर है और वो ये है कि कारसेवकों ने ढांचा तोड़ना शुरू भी कर दिया है लेकिन ये जान लो कि मैं गोली नहीं चलाऊंगा गोली नहीं चलाऊंगा गोली नहीं चलाऊंगा
- कल्याण सिंह के पूरे व्यक्तित्व और महानता का दर्शन सिर्फ इसी एक लाइन से हो जाता है... कि मैं गोली नहीं चलाऊंगा... मैं गोली नहीं चलाऊँगा... मैं गोली नहीं चलाऊंगा । ढांचा टूट रहा था और केंद्रीय सुरक्षा बल विवादित स्थल पर आने की कोशिश कर रहे थे लेकिन कल्याण सिंह ने ऐसी व्यवस्था करवा दी कि केंद्रीय सुरक्षा बल भी ढांचे तक नहीं पहुंच सके और आखिरकार ढांचा टूट गया... वो कलंक... वो छाती का शूल... वो बलात्कार अनाचार का दुर्दम्य प्रतीक भारत मां की छाती से हटा दिया गया... चारों तरफ हर्ष फैल गया... जन्मभूमि मुक्त हो गई
- नरसिम्हा राव अब कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त करने का फैसला लेने जा रहे थे लेकिन उससे पहले ही शाम साढे 5 बजे कल्याण सिंह राजभवन गए राज्यपाल से मिले और अपना इस्तीफा सौंप दिया... यानी कुर्सी छोड़ दी लेकिन गोली नहीं चलाई... सिंहासन को लात मार दिया और श्री राम की गोद में बैठ गए... श्रीराम के प्यारे भक्त बन गए । ऐसे थे हमारे कल्याण सिंह
- अगर कल्याण सिंह नहीं होते तो शायद किसी और मुख्यमंत्री में ये फैसला लेने की ताकत नहीं होती । कल्याण सिंह ने इसलिए भी गोली ना चलाने का लिखित आदेश दिया ताकि कल को कोई अफसरों को जिम्मेदार नहीं ठहराए । कल्याण सिंह ने कहा कि सारी जिम्मेदारी मेरी है जो करना है वो मेरे साथ करो । सजा मुझे दो ।
- अगर कल्याण सिंह नहीं होते तो बाबरी नहीं गिरती... अगर बाबरी की दीवारें नहीं गिरतीं तो पुरातत्विक सर्वेक्षण नहीं होता... बाबरी की दीवार के नीचे मौजूद मंदिर की दीवार नहीं मिलती... कोर्ट में ये साबित नहीं हो पाता कि यही रामजन्मभूमि है ।
- उस कलंक के मिटने का जो शुभ कार्य हुआ.... उसका श्रेय स्वर्गीय कल्याण सिंह जी को है... 6 दिसंबर कल्याण सिंह के पॉलिटिकल करियर को कालसर्प की तरह डस गया लेकिन कल्याण सिंह का यश दिग दिगंत में फैल गया ।
- सबसे जरूरी बात अगर कल्याण सिंह ने गोली चलवा दी होती तो बीजेपी और एसपी में कोई फर्क नहीं रह जाता और आज मोदी प्रधानमंत्री भी नहीं होते |
इसीलिए ये सत्य है कि भगवान शंकर ने जिस तरह सागर मंथन में विष को स्वंय धारण कर लिया था उसर तरह बाबरी ढांचा ध्वस्त होने का सम्पूर्ण कथित अपराध, वायदा खिलाफी मुख्यमंत्री कल्याण सिंहजी ने अपने माथे धारण किया.... अमृत रूपी राह श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण को खोल दी, ढांचा नहीं ढहता तो आज मंदिर निर्माण कार्य प्रारम्भ नहीं होता । श्रीराम जन्म भूमि को मुक्त करने का असली काम कल्याणसिंह जी ने नाम है। जिस तरह श्रीराम के सहायक हनुमानजी को रामजी के साथ याद किया जाता है। उसी तरह कल्याणसिंह जी को भी श्रीराम जी के साथ याद किया जाता रहेगा ।
मैं उस पुण्य आत्मा को अपने हृदय और आत्मा में मौजूद समस्त ऊर्जा के साथ नमन करता हूं... प्रणाम करता हूं... ईश्वर आपको मोक्ष दे !
जय श्री राम
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