महबूबा मुफ्ती पाकिस्तानी एजेन्ट न बनें,जम्मू-कश्मीर हमेशा से भारत का है - अरविन्द सिसौदिया
महबूबा मुफ्ती पाकिस्तानी एजेन्ट न बनें,जम्मू-कश्मीर हमेशा से भारत का है - अरविन्द सिसौदिया
जम्मू-कश्मीर की राजनीति में महबूबा मुफ्ती सामान्यतः कभी भी पूर्ण बहूमत की आवाज नहीं रहीं है। वे किसी न किसी के सहारे ही वहां की राजनिति में हैं। वहां 46 साल की राजनिति में 5 बार गठबंधन सरकारें बनीं और गिरी है। अस्थिर राजनिति के कारण वे सर्वमान्य कभी नहीं रहीं। अब जम्मू और कश्मीर में जो डिलिमेटेशन हो रहा है वह पूरी तरह न्यायिक प्रक्रिया से हो रहा है। पहले सीटें कपटपूर्ण तरीके से बनाई गईं थीं जिनका नुकसान हिन्दू बहुत क्षैत्र को होता था। अब हिन्दू बहुल क्षैत्र का न्याय मिल जायेगा । महबूबा की मुख्य बाखौलाहट यही है कि उन्हे सीटें कमतर मिलेंगी और वे फारूख अब्दुल्लाह की पार्टी से कमतर रहेगी।
इसलिये वे आतंकवादियों और पाकिस्तान को खुश करने के लिये भारत विरोधी बयान देती रहती है। उनके परिवार पर पहले भी आतंकवादियों से सांठ गांठ एवं उन्हे फायदा पहुचानें के आरेप लग चुके हे। उनकी देश विरोधी बयान वाजी उन्हे महंगी पढ सकती है। उन पर कार्यवाही भी हो सकती है। जम्मू-कश्मीर हमेशा से भारत का ही अविभाज्य अंग है । महर्षि कश्यप की भूमि अनादीकाल से भारत की है और रहेगी।
महबूबा जी अब वह सब कुछ गुजरी हुई बातें हो गई जब आप लोग मनमानी करते थे और न्याय तरसता रहता है। जन कल्याण और जनहित को फांसी के फंदे पर लटकाया हुआ था। आज वहां के लोग खुली हवा में सांस ले रहे हे। आतंकवाद की गुलामी से मुक्त है। आप लोग विशेष राज्य के नाम पर जनता का, देश के संविधान का और व्यवस्था का गला घोंटते थे। कश्मीरी जनता आतंकवाद से लहूलुहान होती थी और आप लोग सत्ता के सुखों को भोगते थे। झूठे अपहरणों के द्वारा खूखार आतंकवादी ठोडे जाते थे। अब वहां पूरा पूरा न्याय का शासन है। आतंकवाद को मुहतोड जबाव दिया जाता है ।
भाजपा अध्यक्ष रविंद्र रैना
बयान पर भाजपा का रिएक्शन
महबूबा के इस बयान पर भाजपा की ओर से भी रिएक्शन आने शुरू हो गए हैं. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि महबूबा मुफ्ती को ऐसे बयानों से बचना चाहिए. जम्मू-कश्मीर हमेशा से भारत का हिस्सा रहा है.
वहीं जम्मू-कश्मीर के भाजपा अध्यक्ष रविंद्र रैना ने कहा कि भारत एक ताकतवर देश है और हमारे पीएम नरेंद्र मोदी हैं ना कि जो बाइडेन. उन्होंने कहा कि भारत सभी आतंकवादियों का खात्मा कर देगा. उन्होंने कहा,
रैना ने मुफ्ती को देशद्रोही कहा. उन्होंने कहा कि क्या मुफ्ती कश्मीर में तालिबान का राज चाहती हैं. उन्होंने प्रदेश के देशभक्त लोगों का अपमान किया है.
जम्मू-कश्मीर भाजपा चीफ को मिली जान से मारने की धमकी, रैना बोले- बौखला गए हैं आतंकी
जम्मू कश्मीर में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र रैना को जान से मारने मिली है। उन्होंने बताया कि खुफिया एजेंसियों ने उन्हें सूचित किया है कि एक आतंकवादी संगठन की तरफ से उनके खिलाफ धमकी जारी की गई है।
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Written By जनसत्ता ऑनलाइनEdited By Nitesh Srivastava
नई दिल्ली
Updated: August 21, 2021
“जो देश के खिलाफ साजिश करेगा उसे मलियामेट कर दिया जाएगा. मिट्टी में मिलाकर रख देंगे उन सभी ताकतों को जो भारत की एकता और अखंडता को चैलेंज करेंगे. महबूबा मुफ्ती ने अपराध किया है. जम्मू-कश्मीर के लोगों ने शान से तिरंगा बुलंद किया है.”
जम्मू कश्मीर में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र रैना को जान से मारने मिली है। उन्होंने बताया कि खुफिया एजेंसियों ने उन्हें सूचित किया है कि एक आतंकवादी संगठन की तरफ से उनके खिलाफ धमकी जारी की गई है। रैना ने कहा कि जम्मू कश्मीर में जनजीवन के पटरी पर लौटने और भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता से आतंकी बौखला गए हैं। भाजपा नेता ने दावा किया कि जम्मू-कश्मीर में पिछले दो सालों में उसके 23 कार्यकर्ता मारे गए हैं।आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस महीने आतंकवादियों ने भाजपा के दो पदाधिकारियों की हत्या कर दी। 17 अगस्त को एक हमले में जावीद अहमद की मौत हो गई तो वहीं 10 अगस्त को अनंतनाग में गुलाम रसूल डार की हत्या कर दी गई। इस हमले में डार की पत्नी की भी मौत हो गई थी।
रैना ने समाचार एजेंसी से बात करते हुए बताया कि इंटेलिजेंस ब्यूरों ने कहा है कि सोशल मीडिया के जरिए TRF (द रेजिस्टेंस फ्रंट) ने मेरे खिलाफ धमरी भरे बयान जारी किए हैं। एजेंसी द्वारा मुझे सतर्क रहने के लिए कहा गया है। उन्होंने बताया कि फिलहाल खतरे से निपटने के लिए सभी जरूरी बंदोबस्त किए गए हैं। बताते चलें कि TRF पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से ही जुड़ा हुआ है।
भाजपा नेता का कहना है कि अब इस तरह की धमकियों से डर नहीं लगता है, शुरुआती दिनों में मुझे जरूर डर लगता था लेकिन अब यह सब मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। अप्रैल के महीने में भी उन्हें इसी तरह धमकी देने का मामला सामने आया था। पाकिस्तान के नंबर से आए कॉल और फिर वीडियो मैसेज के जरिए उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई थी। वीडियो कॉल करने वाले ने खुद को लश्कर का कमांडर बताया था।
रवींद्र रैना कहते हैं कि यह पाकिस्तान की हताशा को दर्शाता है। कश्मीर घाटी में भाजपा की बढ़ती ताकत से वह हताश हो गए हैं। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों दक्षिण कश्मीर में पार्टी की रैलियों में जबरदस्त भीड़ जुटी, लोगों ने घरों से निकलकर हमारी रैलियों में भाग लिया, जिसके आतंकी निराश हो गए हैं।
उन्होंने कहा कि निर्दोष बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमले करना उनकी निराशा को दिखाता है। वह यहां की जनता में भय पैदा करना चाहते हैं, पटरी पर लौट रही जिंदगी को एक बार फिर से बर्बाद करना चाहते हैं। रैना ने कहा कि भाजपा इस तरह की धमकियों से डरने वाली नहीं है। पार्टी ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ के मिशन के तहत जम्मू-कश्मीर की शांति, प्रगति और विकास के लिए काम करती रहेगी।
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में भाजपा अपनी पकड़ मजबूत कर रही है, जब भी विधानसभा चुनाव होंगे यहां भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार बनेगी। उन्होंने कहा कि “राष्ट्र-विरोधी तत्व डरे हुए हैं और उन्हें बख्शा नहीं जाएगा।”
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महबूबा मुफ्ती के पाकिस्तान वाले बयान पर विवाद, पैंथर्स पार्टी ने बीजेपी पर बोला हमला
पैंथर्स पार्टी ने आरोप लगाया कि बीजेपी पाकिस्तान समर्थित राजनीतिक दलों को मीटिंग में बुला रही है। पार्टी ने कहा कि महबूबा ने जब कभी ऐसे बयान दिए हैं तब इसका खामियाजा जम्मू कश्मीर में काम कर रहे सुरक्षाबलों और आम नागरिक उठाना पड़ा है।
Written By जनसत्ता ऑनलाइनEdited By shailendra gautam
June 23, 2021
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पाकिस्तान से बातचीत वाले महबूबा मुफ्ती के बयान से फारूक अब्दुल्ला ने किया किनारा, कही ये बात
प्रधानमंत्री के साथ बैठक के आमंत्रण के बाद गुपकर एलायंस की बैठक हुई थी. इस बैठक के बाद पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने एक बार फिर पाकिस्तान का राग अलापा. उन्होंने कहा कि सरकार को कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान से बात करनी चाहिए.
By: एबीपी न्यूज़ | Updated : 24 Jun 2021
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August 21, 2021 17:16 IST
महबूबा मुफ्ती का बेतुका बयान, बोलीं- 'जिस दिन कश्मीरियों का सब्र टूटा, भारत का भी अमेरिका की तरह होगा हाल'
चेतावनी भरे अंदाज में महबूबा मुफ्ती ने कहा कि 'सरकार कश्मीरियों के सब्र का इम्तेहान न ले, उसे एक दिन परास्त होना पड़ेगा।'
Written By Ankur Shrivastava
जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती (PDP Chief Mehbooba Mufti) ने बेतुका बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि 'अपने पड़ोसी (अफगानिस्तान) को देखो, जहां से महाशक्ति कहे जाने वाले अमेरिका (America) को अपनी सेना बुलानी पड़ी। अमेरिका बोरिया बिस्तर बांधकर अफगानिस्तान से वापस जाने पर मजबूर हो गया।' मुफ्ती ने केंद्र सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि 'सरकार अगर वाजपेयी के सिद्धांतों पर वापस नहीं आती है और बातचीत शुरू नहीं करती है तो बर्बादी होगी।'
चेतावनी भरे अंदाज में महबूबा मुफ्ती ने कहा कि 'सरकार कश्मीरियों के सब्र का इम्तेहान न ले, उसे एक दिन परास्त होना पड़ेगा।' उन्होंने कहा, 'यह कश्मीरियों का साहस और धैर्य ही है कि उन्होंने अब तक बंदूक नहीं उठाई है। जिस दिन उनका धैर्य जवाब दे दिया, उस दिन सब कुछ खत्म हो जाएगा।' मुफ्ती ने आगे कहा कि 'जम्मू-कश्मीर के जो टुकड़े-टुकड़े किये उसे सुधारों नहीं तो बहुत देर हो जाएगी'। कभी-कभी एक चींटी, हाथी के सूंड में घुस जाती है तो जीना हराम कर देती है।'
महबूबा मुफ्ती ने कहा कि 'जिस वक्त देश आजाद हुआ, उस वक्त मुस्लिम बहुल जम्मू कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत था। पंडित नेहरू और कांग्रेस की नीतियों की वजह से जम्मू कश्मीर भारत में मिलने को तैयार हो गया। अगर उस समय बीजेपी केंद्र की सत्ता में होती और आज की तरह उस समय भी हठधर्मिता दिखाती तो जम्मू कश्मीर कभी भी भारत को नहीं मिलता। जानकारी के मुताबिक महबूबा मुफ्ती ने ये बयान कश्मीर संभाग के कुलगाम में दिया है।
महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) ने भारत सरकार और तालिबान को एक तराजू में तोलते हुए कहा कि वे ऐसी कोई भी हरकत न करें, जिससे पूरी दुनिया उनके साथ हो जाए।
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उपरोक्त आलेख 2014-15 का है इसलिये उसी संदर्भ से इसे देखें । अब यह क्षैत्र दो केन्द्र शसित क्षैत्रों में बदल चुका है। अनुच्छेद 370 समाप्त हो गई है। अब यह भारत का पूर्ण अंग है।
कश्मीर भारत का मूल राज्य
डा. राधेश्याम द्विवेदी
हिन्दू मूल निवासी:-कश्मीर के मूल निवासी सारे हिन्दू थे। कश्मीरी पंडितो की संस्कृति 5000 साल पुरानी है और वे ही कश्मीर के मूल निवासी हैं। प्राचीनकाल से ही कश्मीर महर्षि कश्यप के नाम पर हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का पालना रहा है। ब्रह्म से ब्रह्मा, ब्रह्मा से मरीचि, मरीचि से कश्यप ऋषि ही कश्मीर के मूल निर्माता थे। पुराणों में दर्ज एक कथा के अनुसार एक समय था जब भगवान ब्रह्मा देवों, असुरों तथा पित्रों का निर्माण करने के बाद काफी शक्तिहीन महसूस करने लगे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब वे किस चीज की रचना करें जिसके बाद उनके मन तथा मस्तिष्क को कुछ शांति हासिल हो सके।उस क्षण ब्रह्मा जी अपने कुछ कार्यों में व्यस्त ही थे कि अचानक उनके भीतर से एक काया उत्पन्न हुई और उनके सामने आकर खड़ी हो गई। उसे देख उन्हें बेहद अचंभा हो रहा था कि वह कोई मामूली काया नहीं बल्कि हूबहू उनके जैसी दिखने वाली परछाईं थी।उस परछाईं को देख कुछ देर तक तो भगवान ब्रह्मा समझ ना सके कि उनके साथ आखिरकार हुआ क्या है। यही मानव संसार का पहला मनुष्य था जिसे स्वयंभु मनु के नाम से भी जाना जाता है। ब्रह्म से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई और ब्रह्मा ने खुद को दो भागों में विभक्त कर लिया। उसका पुरुष रूप एक भाग का नाम था स्वायंभुव मनु और स्त्री रूप दूसरे भाग का नाम शतरूपा था।
कश्यप एक वैदिक ऋषि:- कश्यप ऋषि एक वैदिक ऋषि थे। इनकी गणना सप्तर्षि गणों में की जाती थी। हिन्दू मान्यता अनुसार इनके वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए। इन्हें सर्वदा धार्मिक एंव रहस्यात्मक चरित्र वाला बतलाया गया है एंव अति प्राचीन कहा गया है। महाभारत एवं पुराणों में असुरों की उत्पत्ति एवं वंशावली के वर्णन में कहा गया है की ब्रह्मा के छः मानस पुत्रों में से एक मरीचि थे जिन्होंने अपनी इच्छा से कश्यप नामक प्रजापति पुत्र उत्पन्न किया। कश्यप ने दक्ष प्रजापति की 17 पुत्रियों से विवाह किया। भागवत पुराण व मार्कण्डेय पुराण के अनुसार कश्यप की बारह भार्याएँ थीं। उनके नाम हैं: अदिति, दनु, विनता, अरष्ठा, कद्रु, सुरशा, खशा, सुरभी, ताम्रा, क्रोधवशा, इरा और मुनि इन से सब सृष्टि हुई। कश्यप एकगोत्र का भी नाम है। यह बहुत व्यापक गोत्र है। जिसका गोत्र नहीं मिलता उसके लिए कश्यप गोत्र की कल्पना कर ली जाती है, क्योंकि एक परम्परा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई। एक बार समस्त पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर परशुराम ने वह कश्यप मुनि को दान कर दी। कश्मीर का नाम कश्यप ऋषि के नाम पर पड़ा है।
कल्हण की “राजतरंगिणी”:-यहां का प्राचीन विस्तृत लिखित इतिहास है राजतरंगिणी, जो कल्हण द्वारा 12वीं शताब्दी ई. में लिखा गया था। तब तक यहां पूर्ण हिन्दू राज्य रहा था। यह अशोक महान के साम्राज्य का हिस्सा भी रहा। लगभग तीसरी शताब्दी में अशोक का शासन रहा था। तभी यहां बौद्ध धर्म का आगमन हुआ, जो आगे चलकर कुषाणों के अधीन समृध्द हुआ था। उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य के अधीन छठी शताब्दी में एक बार फिर से हिन्दू धर्म की वापसी हुई। उनके बाद ललितादित्या हिन्दू शासक रहा, जिसका काल 697 ई. से 738 ई. तक था। अवन्तिवर्मन ललितादित्या का उत्तराधिकारी बना। उसने श्रीनगर के निकट अवंतिपुर बसाया। उसे ही अपनी राजधानी बनाया, जो एक समृद्ध क्षेत्र रहा। उसके खंडहर अवशेष आज भी शहर की कहानी कहते हैं। यहां महाभारत युग के गणपतयार और खीर भवानी मन्दिर आज भी मिलते हैं। गिलगिट में पाण्डुलिपियां हैं, जो प्राचीन पाली भाषा में हैं। उसमें बौद्ध लेख लिखे हैं। त्रिखा शास्त्र भी यहीं की देन है। यह कश्मीर में ही उत्पन्न हुआ। इसमें सहिष्णु दर्शन होते हैं। चौदहवीं शताब्दी में यहां मुस्लिम शासन आरंभ हुआ। उसी काल में फारस से से सूफी इस्लाम का भी आगमन हुआ। यहां पर ऋषि परम्परा, त्रिखा शास्त्र और सूफी इस्लाम का संगम मिलता है, जो कश्मीरियत का सार है। भारतीय लोकाचार की सांस्कृतिक प्रशाखा कट्टरवादिता नहीं है।
मध्ययुग में मुस्लिम आक्रान्ता:- मध्ययुग में मुस्लिम आक्रान्ता कश्मीर पर क़ाबिज़ हो गये। कुछ मुसलमान शाह और राज्यपाल हिन्दुओं से अच्छा व्यवहार करते थे। 14वीं शताब्दी में तुर्किस्तान से आये एक क्रूर आतंकी मुस्लिम दुलुचा ने 60,000 लोगो की सेना के साथ कश्मीर में आक्रमण किया और कश्मीर में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना की। दुलुचा ने नगरों और गाँव को नष्ट कर दिया और हजारों हिन्दुओ का नरसंघार किया। बहुत सारे हिन्दुओ को जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया। बहुत सारे हिन्दुओ ने जो इस्लाम नहीं कबूल करना चाहते थे, उन्होंने जहर खाकर आत्महत्या कर ली और बाकि भाग गए या क़त्ल कर दिए गए या इस्लाम कबूल करवा लिए गए। आज जो भी कश्मीरी मुस्लिम है ,उन सभी के पूर्वजो को इन अत्याचारों के कारण जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया था। भारत पर मुस्लिम आक्रमण विश्व इतिहास का सबसे ज्यादा खुनी कहानी है। ज़ैनुल-आब्दीन का 1420-1470 तक राज्य रहा था। सन 1589 में यहां मुगल का राज हुआ। यह अकबर का शासन काल था। मुगल साम्राज्य के विखंडन के बाद यहां पठानों का कब्जा हुआ। यह काल यहां का काला युग कहलाता है। फिर 1814 में पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह द्वारा पठानों की पराजय हुई व सिख साम्राज्य आया।
आधुनिक काल :- अंग्रेजों द्वारा सिखों की पराजय 1846 में हुई, जिसका परिणाम था लाहौर संधि। अंग्रेजों द्वारा महाराजा गुलाब सिंह को गद्दी दी गई जो कश्मीर का स्वतंत्र शासक बना। गिलगित एजेन्सी अंग्रेज राजनैतिक एजेन्टों के अधीन क्षेत्र रहा। कश्मीर क्षेत्र से गिलगित क्षेत्र को बाहर माना जाता था। अंग्रेजों द्वारा जम्मू और कश्मीर में पुन: एजेन्ट की नियुक्ति हुई। महाराजा गुलाब सिंह के सबसे बड़े पौत्र महाराजा हरि सिंह 1925 ई. में गद्दी पर बैठे, जिन्होंने 1947 ई. तक शासन किया।भारत की स्वतन्त्रता के समय राजा हरि सिंह यहाँ के शासक थे, जो अपनी रियासत को स्वतन्त्र राज्य रखना चाहते थे। शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व में मुस्लिम कॉन्फ़्रेंस (बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस) कश्मीर की मुख्य राजनैतिक पार्टी थी। कश्मीरी पंडित, शेख़ अब्दुल्ला और राज्य के ज़्यादातर मुसल्मान कश्मीर का भारत में ही विलय चाहते थे ,क्योंकि भारत धर्मनिर्पेक्ष है । पाकिस्तान को ये बर्दाश्त ही नहीं था कि कोई मुस्लिम-बहुमत प्रान्त भारत में रहे । इससे उसके दो-राष्ट्र सिद्धान्त को ठेस लगती थी । 1947-48 में पाकिस्तान ने कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया और क़ाफ़ी हिस्सा हथिया लिया। उस समय प्रधान मन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने मोहम्मद अली ज़िन्ना से विवाद जनमत-संग्रह से सुलझाने की पेशक़श की, जिसे जिन्ना ने उस समय ठुकरा दिया क्योंकि उनको अपनी सैनिक कार्रवाई पर पूरा भरोसा था। महाराजा ने शेख़ अब्दुल्ला की सहमति से भारत में कुछ शर्तों के तहत विलय कर दिया। भारतीय सेना ने जब राज्य का काफ़ी हिस्सा बचा लिया था, तब इस विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले गया। संयुक्तराष्ट्र महासभा ने उभय पक्ष के लिए दो क संकल्प पारित किये :-
1.पाकिस्तान तुरन्त अपनी सेना क़ाबिज़ हिस्से से खाली करे।
2.शान्ति होने के बाद दोनो देश कश्मीर के भविष्य का निर्धारण वहाँ की जनता की चाहत के हिसाब से करे।
भारत में विलय :- 1947 में ब्रिटिश संसद के “इंडियन इंडीपेनडेंस इ एक्ट” के अनुसार ब्रिटेन ने तय किया की मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान बनाया जायेगा। 150 राजाओं ने पाकिस्तान चुना और बाकी 450 राजाओ ने भारत। केवल एक जम्मू और कश्मीर के राजा बच गए थे जो फैसला नहीं कर पा रहे थे। लेकिन जब पाकिस्तान ने फौज भेजकर कश्मीर पर आक्रमण किया तो कश्मीर के राजा ने भी हिंदुस्तान में कश्मीर के विलय के लिए दस्तख़त कर दिए। ब्रिटिशो ने यह कहा था की राजा अगर एक बार दस्तखत कर दिया तो वो बदल नहीं सकता और जनता की आम राय पूछने की जरुरत नहीं है। जिन कानूनों के आधार पर भारत और पाकिस्तान बने थे उन नियमो के अनुसार कश्मीर पूरी तरह से भारत का अंग बन गया था। इसलिए कोई भी कहता है की कश्मीर पर भारत ने जबरदस्ती कब्ज़ा कर रहे है वो बिलकुल झूठ है। 1947 ई. में कश्मीर का विलयन भारत में हुआ। पाकिस्तान अथवा तथाकथित ‘आजाद कश्मीर सरकार’, जो पाकिस्तान की प्रत्यक्ष सहायता तथा अपेक्षा से स्थापित हुई, आक्रामक के रूप में पश्चिमी तथा उत्तर पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्रों में अधिकृत हुए किए हैं। भारत ने यह मामला 1 जनवरी 1948 को ही राष्ट्रसंघ में पेश किया था किंतु अभी तक निर्णय खटाई में पड़ा है। उधर लद्दाख में चीन ने भी लगभग 12,000 वर्ग मील क्षेत्र अधिकार जमा लिया है। आज़ादी के समय कश्मीर में पाकिस्तान ने घुसपैठ करके कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया। बचा हिस्सा ही भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर का अंग बना है ।
ब्रिटिश इंडिया का विभाजन:- 1947 में 560 अर्ध्द स्वतंत्र शाही राज्य अंग्रेज साम्राज्य द्वारा प्रभुता के सिध्दांत के अंतर्गत 1858 में संरक्षित किए गये। केबिनेट मिशन ज्ञापन के तहत, भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा इन राज्यों की प्रभुता की समाप्ति घोषित हुई, राज्यों के सभी अधिकार वापस लिए गए व राज्यों का भारतीय संघ में प्रवेश किया गया। ब्रिटिश भारत के सरकारी उत्तराधिकारियों के साथ विशेष राजनैतिक प्रबंध किए गए। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान और भारत के साथ तटस्थ समझौता किया। पाकिस्तान के साथ समझौता पर हस्ताक्षर हुए। भारत के साथ समझौते पर हस्ताक्षर से पहले, पाकिस्तान ने कश्मीर की आवश्यक आपूर्ति को काट दिया जो तटस्थता समझौते का उल्लंघन था। उसने अधिमिलन हेतु दबाव का तरीका अपनाना आरंभ किया, जो भारत व कश्मीर, दोनों को ही स्वीकार्य नहीं था। जब यह दबाव का तरीका विफल रहा, तो पठान जातियों के कश्मीर पर आक्रमण को पाकिस्तान ने उकसाया, भड़काया और समर्थन दिया। तब तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद का आग्रह किया। 24 अक्टूबर, 1947 को नेशनल कांफ्रेंस, जो कश्मीर सबसे बड़ा लोकप्रिय संगठन था व अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला थे; ने भी भारत से रक्षा की अपील की। हरि सिंह ने गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन को कश्मीर में संकट के बारे में लिखा व साथ ही भारत से अधिमिलन की इच्छा प्रकट की। इस इच्छा को माउंटबेटन द्वारा 27 अक्टूबर, 1947 को स्वीकार किया गया। भारत सरकार अधिनियम, 1935 और भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत यदि एक भारतीय राज्य प्रभुत्व को स्वींकारने के लिए तैयार है, व यदि भारत का गर्वनर जनरल इसके शासक द्वारा विलयन के कार्य के निष्पादन की सार्थकता को स्वीकार करे, उसका भारतीय संघ में अधिमिलन संभव था। पाकिस्तान द्वारा हरि सिंह के विलयन समझौते में प्रवेश की अधिकारिता पर कोई प्रश्न नहीं किया गया। कश्मीर का भारत में विलयन विधि सम्मत माना गया। इसके बाद पठान हमलावरों को खदेड़ने के लिए 27 अक्टूबर, 1947 को भारत ने सेना भेजी व कश्मीर को भारत में अधिमिलन कर यहां का अभिन्न अंग बनाया।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद :-भारत कश्मीर मुद्दे को 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले गया। परिषद ने भारत और पाकिस्तान को बुलाया व स्थिति में सुधार के लिए उपाय खॊजने की सलाह दी। तब तक किसी भी वस्तु परिवर्तन के बारे में सूचित करने को कहा। 17 जनवरी, 1948 को भारत और पाकिस्तान के लिए एक तीन सदस्यी संयुक्त राष्ट्र आयोग (यूएनसीआईपी) 20 जनवरी, 1948 को गठित किया गया। 21 अप्रैल, 1948 को इसकी सदस्यता का प्रश्न उठाया गया।तब तक कश्मीर में आपातकालीन प्रशासन बैठाया गया, जिसमें, 5 मार्च, 1948 को शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में अंतरिम सरकार द्वारा स्थान लिया गया। 13 अगस्त, 1948 को यूएनसीआईपी ने संकल्प पारित किया जिसमें युध्द विराम घोषित हुआ, पाकिस्तानी सेना और सभी बाहरी लोगों की वापसी के अनुसरण में भारतीय बलों की कमी करने को कहा गया। जम्मू और कश्मीर की भावी स्थिति का फैसला ‘लोगों की इच्छा’ के अनुसार करना तय हुआ। संपूर्ण जम्मू और कश्मीर से पाकिस्तान सेना की वापसी, व जनमत की शर्त के प्रस्ताव को माना गया, जो- कभी नहीं हुआ। संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान के अंतर्गत युध्द-विराम की घोषणा की गई।, फिर 13 अगस्त, 1948 को संकल्प की पुनरावृति की गई। महासचिव द्वारा जनमत प्रशासक की नियुक्ति की जानी तय हुई। ऑल जम्मू और कश्मीर नेशनल कान्फ्रेंस ने अक्टूबर,1950 को एक संकल्प किया। एक संविधान सभा बुलाकर वयस्क मताधिकार किया जाए। अपने भावी आकार और संबध्दता, जिसमें इसका भारत से अधिमिलन सम्मिलित है का निर्णय लिया जाये व एक संविधान तैयार किया जाए। चुनावों के बाद संविधान सभा का गठन सितम्बर, 1951 को किया गया।
दिल्ली समझौता:- – कश्मीरी नेताओं और भारत सरकार द्वारा- जम्मू और कश्मीर राज्य तथा भारतीय संघ के बीच सक्रिय प्रकृति का संवैधानिक समझौता किया गया, जिसमें भारत में इसके विलय की पुन:पुष्टि की गई। जम्मू और कश्मीर का संविधान, संविधान सभा द्वारा नवम्बर, 1956 को अंगीकृत किया गया। यह 26 जनवरी, 1957 से प्रभाव में आया। राज्य में पहले आम चुनाव अयोजित गए, जिनके बाद मार्च, 1957 को शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस द्वारा चुनी हुई सरकार बनाई गई। राज्य विधान सभा में 1959 में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया, जिसमें राज्य में भारतीय चुनाव आयोग और भारत के उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार के विस्तार के लिए राज्य संविधान का संशोधन पारित हुआ। राज्य में दूसरे आम चुनाव 1962 में हुए जिनमें शेख अब्दुल्ला की सत्ता में पुन: वापसी हुई।अगस्त,1965 में जम्मू कश्मीर में घुसपैठियों की घुसपैठ के साथ पाकिस्तानी सशस्त्र बलों द्वारा आक्रमण किया गया। जिसका भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब दिया गया। इस युद्ध का अंत10 जनवरी, 1966 को भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौते के बाद हुआ।
राजनैतिक समेकन:- राज्य विधान सभा के लिए मार्च, 1967 में तीसरे आम चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस सरकार बनी फरवरी, 1972 में चौथे आम चुनाव हुए जिनमें पहली बार जमात-ए-इस्लामी ने भाग लिया व 5 सीटें जीती। इन चुनावों में भी कांग्रेस सरकार बनी। भारत और पाकिस्तान के बीच 3 जुलाई, 1972 को ऐतिहासिक ‘शिमला समझौता हुआ, जिसमें कश्मीर पर सभी पिछली उद्धोषणाएँ समाप्त की गईं, जम्मू और कश्मीर से संबंधित सारे मुद्दे द्विपक्षीय रूप से निपटाए गए । युध्द विराम रेखा को नियंत्रण रेखा में बदला गया। फरवरी, 1975 को कश्मीर समझौता समाप्त माना गया। भारत के प्रधानमंत्री के अनुसार ‘समय पीछे नहीं जा सकता’; तथा कश्मीरी नेतृत्व के अनुसार- ‘जम्मू और कश्मीर राज्य का भारत में अधिमिलन कोई मामला नहीं’ कहा गया। जुलाई, 1975 में शेख अब्दुल्ला मुख्य मंत्री बने, जनमत फ्रंट स्थापित और नेशनल कांफ्रेंस के साथ विलय किया गया। जुलाई, 1977 को पाँचवे आम चुनाव हुए जिनमें नेशनल कांफ्रेंस पुन: सत्ता में लौटी। 68% मतदाता उपस्थित हुए। शेख अब्दुल्ला का निधन 8 सितम्बर, 1982 होने पर, उनके पुत्र डॉ॰ फारूख अब्दुल्ला ने अंतरिम मुख्य मंत्री की शपथ ली व छठे आम चुनावों में जून,1983 में नेशनल कांफ्रेंस को विजय मिली।भारतीय संविधान के अन्तर्गत आज तक जम्मू कश्मीर मे सम्पन्न अनेक चुनावों में कश्मीरी जनता ने वोट डालकर एक प्रकार से भारत में अपने स्थायी विलय को ही मान्यता दी है। जम्मू कश्मीर के प्रमुख राजनैतिक दल भी पाकिस्तान के धर्माधारित दो-राष्ट्र सिद्धान्त को नहीं मानते। कश्मीर का भारत में विलय ब्रिटिश “भारतीय स्वातन्त्र्य अधिनियम” के तहत क़ानूनी तौर पर सही था।
आतंकवादी शिविर:- पाकिस्तान अपनी भूमि पर 1989 से आतंकवादी शिविर चला रहा है। ख़ास तौर पर और कश्मीरी युवकों को भारत के ख़िलाफ़ भड़का रहा है। ज़्यादातर आतंकवादी स्वयं पाकिस्तानी नागरिक या तालिबानी अफ़ग़ान ही हैं। ये और कुछ दिग्भ्रमित कश्मीरी युवक मिलकर इस्लाम के नाम पर भारत के ख़िलाफ़ छेड़े हुए हैं। राज्य को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्तता प्राप्त है। कश्मीर के भारत से अलग होने के बाद भारत की उत्तरी सीमा सुरक्षित नहीं रहेगी। हिन्दुओ पर आज अत्याचार देश के काफी जगहों में हो रहा है। लेकिन सेकुलर मीडिया कुछ बताती नहीं इसलिए आपको और हमें कुछ पता नहीं चल पता है । यह सेकुलर मीडिया हिन्दुओं के विनाश के बाद ही रुकेगी क्योकि हिन्दू संस्था, पार्टी कभी मीडिया पर ध्यान ही नहीं देती। आज की सेकुलर मीडिया आधी जिहादियो और आधी कांग्रेस्सियो के नियत्रण में है। हिन्दुओ के साथ हो रहे अत्याचार को बताने के लिए एक भी टीवी या प्रिंट मीडिया नहीं है।
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