राष्ट्र रक्षा का संकल्प अवश्य लें - अरविंद सिसोदिया

 



 

राष्ट्र रक्षा का संकल्प अवश्य लें - अरविंद सिसोदिया

  रक्षाबंधन मूल रूप से राष्ट्र रक्षा का ही पर्व है । इसका प्रारंभ भी इंद्रासन की रक्षा के लिए देवताओं के गुरु बृहस्पति देव के द्वारा बताए गए “ रक्षा सूत्र “ बंधन व्यवस्था से प्रारंभ होता है । इंद्र की पत्नी इंद्राणी विधि विधान से पूजा अर्चना करके अपने पति इंद्र को रक्षा सूत्र बांधती हैं और इसके बाद इंद्र युद्ध में दानवों को पराजित कर देते हैं और इंद्रासन की रक्षा कर लेते हैं । इस तरह से राष्ट्र रक्षा भाव के लिए संकल्प बद्ध  होना और उस संकल्प बद्धता के लिए रक्षा सूत्र बांधा जाना ही मूल रूप से रक्षाबंधन है ।

  रक्षाबंधन  भाई बहन के प्रेम के अटूट बंधन का पर्व भी है । भाई, बहन का रक्षा के लिए सामाजिक व्यवस्था से ही वचन बद्ध है और बहन के द्वारा रक्षा सूत्र बांधा जाना आदिकालीन परंपरा है । इसके पीछे मूल रूप से वामन अवतार में दानवों के राजा बलि की रक्षा में भगवान विष्णु पाताल लोक में थे, उन्हें कार्य मुक्त करवाने हेतु पत्नि लक्ष्मी जी ने राजा बलि को भाई बना कर रक्षा सूत्र बांधा, राजा बलि ने बहन को भेंट में उनके पति भगवान विष्णुजी उन्हें सौंप दिये । तब से ही यह पर्व भाई बहन के प्रेम का पर्व भी है ।

कुल मिला कर सुरक्षा के कर्तव्य का बोध यह पर्व करवाता है । सुरक्षा की आवश्यकता निरन्तर होती है और उसे जाग्रत करने प्रति वर्ष रक्षा बंधन पर्व आता है ।

मानव सभ्यता में सुरक्षा का विशेष महत्व है । हिन्दू देवी देवताओं अधिकांशतः शास्त्रों से सुसज्जित होते हैं । जब श्री राम लक्ष्मण वनवास गये तब भी वे शास्त्रों से सुसज्जित थे और युद्धों में उन्होनें उनका उपयोग किया और विजयी हुये ।

अमोघ शस्त्रों को रखना और विजय के लिये संकल्पित रहने के भाव से ही भारतीय संस्कृति अकक्षुण्य एवं सनातन अर्थात निरन्तर नवीन रहते हुये विजयी और अक्षय संस्कृति बनीं हुई है। हजारों आक्रमण हम पर हुये हम कुछ समय के लिये पराजित भी हुये किन्तु न तो कभी पराजय स्विकार की , न संर्घष बंद किया और न ही कभी हम संघर्ष से पीछे हटे। इसी कारण शक, हूण, यूनानी, मुगल और अंग्रेज आये और अंततः पराजित हुये और हम फिर सत्तासीन हुये। विजय की जिजीविषा ही हमारी संस्कृति को अमर बनाती है। इसे निरन्तर बनाये रखने का संकल्प यह रक्षा बंधन पर्व स्मरण कराता है ।

वर्तमान में लोकतांत्रिक स्वरूप में भी राष्ट्र रक्षा की, संकल्पना की महती आवश्यकता है । जो राजनैतिक दल, संस्था अथवा व्यक्ति, राष्ट्र हित की उपेक्षा करे, भारत का बुरा करनें को प्रवृत हो, सत्ता प्राप्ती के इर्द गिर्द मंडराते हुये देश धर्म संस्कृति नुकसान पहुचायें । उनका पूर्ण बहिष्कार हमारा कर्तव्य है । उसे पराजित करना भी हमारी जबावदेही है । राष्ट्र रक्षा हमारा मूल तत्व है, मूल धर्म है। मूल संकल्पना है।

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