कांग्रेस की गाली गलोंच और गिरावट वाली भाषा से देश को नुकसान - अरविन्द सिसौदिया
कांग्रेस की गाली गलोंच और गिरावट वाली भाषा से देश को नुकसान - अरविन्द सिसौदिया
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने जब से कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभाली ( भले ही अभी पद छोड रखा है) तब से भारत की राजनीति में गाली - गलोंच और गिरे हुये शब्दों का , झूठ फलानें वाले शब्दों का, भ्रमित करने वाले शब्दों का युग प्रारम्भ हो गया है। जिसे छल कपट और पाखण्ड की राजनीती भी कह सकते हैं। कांग्रेस में असहष्णिता का लम्बा इतिहास रहा है। किन्तु चसर्वजनिक रूप से गिरावट की चिन्ता जनक स्थिती राहुल गांधी के माध्यम से आने वाली शब्दावली ने उत्पन्न ही है।
उन्हे लगता है कि मोदी जी को गाली देनें से उनके वोट बढ़ते है। इसलिये वे रोज व रोज अपशब्दो ंकी खोज करवा कर उनका दुउर्पयोग करते हे। लोग उनके भाषण या सम्बोधन को सिर्फ मजा लेने के लिये देखते या सुनते हैं । मनोरंजन का विषय अधिक और राजनीति का कम रह गया है। लोग देखते हैं कि आज कौन सी गाली लेकर आये हे। हलांती प्रधानमंत्री के विरूद्ध गाली गलौंच की भाषा को कोई भी अच्छा नहीं मानता बल्कि उनके नम्बर रोज व रोज कम ही हो रहे हे। इस गिरी हुई भाषा से उनकी समझ पर भी सवाल उठते है। नवज्योत सिंह सिद्धू के सलाहकारों की ही तरह राहुल गांधी जी के सलाहकार उन्हे सचमुच ही कांग्रेस मुक्त भारत बनानें में सहयोग की रहे है। क्यों कि जिस भाषा का फायदा शत्रु देश उठाता हो , उसका सम्मान देश में खत्म हो जाता है। राहुल गांधी की भाषा के कारण पूरे देश में राजनैतिक भाषा का प्रदूषण फल गया है। बदतमीजी की भाषा शैली सब दूर फैलती जा रही है। केन्द्रीय मंत्री नारायण राणे ने जो कुछ कहा उससे ज्यादा गलत तो राहुल गांधी बोलते हे।
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हिंदी न्यूज़
संपादकीय
हद पार करते राहुल: न सिर्फ पीएम मोदी के प्रति अभद्र भाषा का इस्तेमाल, बल्कि सेना का भी कर रहे अपमान
Publish Date:Sat, 13 Feb 2021 Bhupendra Singh
राहुल गांधी प्रधानमंत्री के प्रति अपनी नफरत का परिचय देने के लिए सामान्य शिष्टाचार और सार्वजनिक जीवन की मर्यादा का उल्लंघन करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। उनके रवैये से यही लगता है कि वह फूहड़ता का परिचय देने से बाज आने वाले नहीं हैं।
यह किसी से छिपा नहीं कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फूटी आंख नहीं सुहाते, लेकिन उनकी निंदा करने के लिए अब वह जैसी सड़कछाप भाषा का इस्तेमाल करने लगे हैं और बिना किसी शर्म-संकोच उसमें इजाफा करते जा रहे हैं, वह अकल्पनीय है। किसी के लिए भी समझना कठिन है कि आखिर राहुल गांधी इतनी क्षुद्रता पर क्यों उतर आए हैं और इससे उन्हेंं हासिल क्या हो रहा है? यदि वह अथवा उनके सहयोगी यह समझ रहे हैं कि गाली-गलौज वाली भाषा का इस्तेमाल करने से उनकी लोकप्रियता बढ़ जाएगी तो यही कहा जा सकता है- विनाशकाले विपरीत बुद्धि।
राहुल गांधी मोदी सरकार और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राजनीतिक हमला करने के लिए किस कदर आतुर रहते हैं, इसका ताजा और शर्मनाक उदाहरण है चीन से सैन्य तनाव घटाने संबंधी समझौते के मामले में उनका बेतुका और तथ्यों की अनदेखी करने वाला बयान। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का बयान सामने आने के बाद ही राहुल गांधी ने इस समझौते को चीन के समक्ष मोदी का समर्पण करार दिया। शायद उनका इतने से मन नहीं भरा तो उन्होंने नए सिरे से प्रधानमंत्री के खिलाफ भड़ास निकाली। उन्होंने प्रधानमंत्री को कायर बताते हुए यह भी कहा कि गद्दारों ने भारत माता को चीरकर एक टुकड़ा चीन को दे दिया। हैरानी है कि राहुल यह सब कहते हुए 1962 में चीन की ओर से हड़पी गई जमीन को कैसे भूल गए?
प्रधानमंत्री के प्रति अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर राहुल गांधी केवल उनके प्रति ही अपनी घृणा का परिचय नहीं दे रहे, बल्कि सेना के उन जवानों का भी अपमान कर रहे हैं, जो बेहद कठिन हालात में लद्दाख के दुर्गम इलाकों में चीनी सेना को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए डटे हुए हैं। क्या इससे बुरी बात और कोई हो सकती है कि जो सेना अपने पराक्रम से देश के मान की रक्षा करने में लगी हुई है, उसके प्रति कोई भारतीय नेता इस कदर अविश्वास जताए? लगता है सेना पर अविश्वास जताना राहुल गांधी का पुराना शौक है। र्सिजकल स्ट्राइक के बाद उनके बेतुके बयान को भूला नहीं जा सकता। चीन के साथ सीमा विवाद के मामले में तो यह लगता है कि उन्होंने प्रधानमंत्री और सेना के साथ देश को भी नीचा दिखाने की ठान ली है। वह प्रधानमंत्री के प्रति अपनी नफरत का परिचय देने के लिए सामान्य शिष्टाचार और सार्वजनिक जीवन की मर्यादा का उल्लंघन करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। उनके रवैये से यही लगता है कि वह फूहड़ता का परिचय देने से बाज आने वाले नहीं, लेकिन कांग्रेस को यह आभास हो जाए तो बेहतर कि वह अपनी हद पार कर रहे हैं।
Bhupendra Singh
30 years' experience in journalism. I am in Jagran.com from 2005 January. before this, I was in English daily Northern India Patrika (NIP), Allahabad, from 1989 to 2004 December. In NIP, I worked in many fields like Business reporting, University reporting, elections etc. Many articles have been published in Competition magzine Pragati Manjusha, Allahabad. Education Qualification: B.SC., MA, LL.B. and D.Phil (Allahabad University).
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राहुल की सड़क छाप भाषा कांग्रेस को ले डूबेगी…
“विनाश काले विपरीत बुद्धि “
राहुल गांधी को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से गहरी नफरत हो- ये बात समझी जा सकती है, लेकिन उनकी निन्दा या आलोचना के बहाने अत्यन्त घटिया शब्दों का उपयोग करते हुये, बिना शर्म-संकोच के सड़क छाप आदमी जैसी भाषा का उपयोग करने लगे-यह बात तो समझ के बाहर है।
आक्रोश सीमा से अधिक बढ़ जाये तो पागलपन के दौरे की सीमा तक जा सकता है। छुद्रता की सभी सीमायें पार हो गयीं हैं। इतना तो कांग्रेस का अदना सा कार्यकर्ता भी महसूस करने लगा है। गाली-गलौज की भाषा का उपयोग करने वालों की शोहरत बढ़ी हो ऐसा कोई उदाहरण तो सामने नहीं आया।
हाँ; इस मामले में राहुल गांधी की जग हंसाई जरूर शुरू हो गयी है। उनके चापलूस सहयोगी क्या समझ रहे हैं, क्या सलाह दे रहे हैं यह उनका विषय है। प्रधानमंत्री पर जब भी हमला करने की आतुरता दिखलायी गयी, उससे कांग्रेस और राहुल की ही भद्द पिटी है। अभी हाल में उनके द्वारा यह कहा गया कि चीन को देश का एक टुकड़ा देने वाला गद्दार है।
इसी सिलसिले में यह ध्यान दिलाया गया कि उनके नाना पं. जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में ही चीन ने भारत की 38000 किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर लिया था। जिस शब्द का उपयोग विपक्ष द्वारा पं. नेहरू के बारे में नहीं कहा जा सका, वह राहुल के मुंस से निकल गया। इसी बयान में प्रधानमंत्री मोदी को कायर भी कहा था।
निशाना मोदीजी को बनाया गया था। प्रधानमंत्री के प्रति अभद्रतापूर्ण भाषा का उपयोग कर वे न केवल अपनी घृणापूर्ण मूर्खता का परिचय दे रहे हैं, बल्कि सेना के बहादुर सैनिकों को भी अपमानित कर रहे हैं जो अत्यंत कठिन हालातों में चीनी सैनिकों को मुंहतोड़ जबाव दे रहे हैं। इसीका ही ठोस परिणाम है कि चीनी सेना पीछे हटने तैयार हुयी है।
किसी भारतीय नेता का यह कुत्सित एवं जघन्य प्रयास अत्यन्त निन्दनीय ही माना जायेगा। भारतीय सेना ने अपने जिस शौर्य और पराक्रम के बल पर चीन को पीछे हटने को बाध्य किया है। यह साधारण काम नहीं है। भारत के सैन्य रूख ने चीन को विवश किया है। यह वही चीन है, जो अपने पड़ोसियों को रौब दिखाकर अपना हित साधता रहा है।
अड़ियल चीन इस बार भले ही झुकने को तेयार हो गया हो, पर उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। चीन ने हर पड़ोसी देश के साथ दोगला ब्यौहार किया है उसके विस्तारवादी मनसूबे से कौन परिचित नहीं है? सन् 1951 में भारत ने (जो गलती की थी) तिब्बत पर चीन द्वारा कब्जा किये जाने पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।
उसी का परिणाम है कि आज तक भारत उसकी सजा भुगतता आ रहा है। उस मूल के कारण वह तिब्बत को लांघता हुआ भारतीय भूमि पर हमला कर सका। आज राहुल गांधी इस डाल से उस डाल फुदक रहे हैं। क्या वह कांग्रेस सत्ताधारियों का निकम्मापन या कायरता नहीं थी? राहुल गांधी को न तो सामान्य-ज्ञान है न ही इतिहास की जानकारी, साधारण जानकारी भी नही।
ऐसा व्यक्ति साधारण अदने से पद पर भी सफल नहीं हो सकता। उन्हें इस बात की भी सामान्य जानकारी नहीं है कि सन् 1962 में चीन के साथ हुये युद्ध में भारत को भारी पराजय का सामना करना पड़ा था। उस समय चीन द्वारा कब्जा कर लिये गये इलाके का क्षेत्रफल 37,244 वर्ग किलोमीटर है।
यह इलाका लगभग कश्मीर घाटी के बराबर है। लगभग इतना ही क्षेत्र है- अक्साई चीन का। राहुल के सलाहकारों को बयान देने के पहले इतनी जानकारी से अवगत तो कराना ही चाहिये था। ताकि वे देश के सामने बालबुद्धि वाले अज्ञानी साबित होने से बच जाते।
महाकौशल संदेश
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मोदी जी को गाली देते-देते अब देश को गाली देने लगे हैं राहुल गांधी: गिरिराज सिंह
गिरिराज सिंह ने कहा कि कश्मीर और pok की समस्या नेहरू जी की वजह से हुई. गिरिराज सिंह ने कहा कि अब समझ नहीं आ रहा है की पाकिस्तान इनकी भाषा बोल रहा है या ये उसकी भाषा बोल रहे हैं.
author TV9.com Updated On - Wed, 28 August 19
मोदी जी को गाली देते-देते अब देश को गाली देने लगे हैं राहुल गांधी: गिरिराज सिंह
पाकिस्तानी मंत्री की राहुल गांधी का जिक्र करते हुए संयुक्त राज्य को चिट्ठी भेजे जाने के बाद पूरी भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर हमलावर हो गई है. इसी कड़ी में केंद्रीय मंत्री और बेगूसराय से सांसद गिरिराज सिंह ने कहा कि देश का दुर्भाग्य है कि राहुल गांधी मोदी जी को गाली देते-देते अब देश को गाली देने लगे हैं. ये उनके डीएनए का दोष है.
उन्होंने कहा कि कश्मीर और pok की समस्या नेहरू जी की वजह से हुई. गिरिराज सिंह ने कहा कि अब समझ नहीं आ रहा है की पाकिस्तान इनकी भाषा बोल रहा है या ये उसकी भाषा बोल रहे हैं. उन्होंने कहा कि वो (राहुल गांधी) पाकिस्तान के हाथों का खिलौना बन गए हैं. जैसे नेहरू चले गए थे UN में वैसे ही इनका वक्तव्य भी चला गया यानी दोनों ने देश को नुकसान पहुंचाया.
गिरिराज सिंह ने कहा कि आज राहुल गांधी की नींद तब खुली जब देश की जनता उनके खिलाफ सोशल मीडिया और हर जगह आने लगी. देश से उन्हें माफी मांगनी चाहिए. ये तो वही हुआ सबकुछ लुटाकर होश में आए तो क्या हुआ. उन्होंने कहा कि अब तो सब कुछ लुटा दिया है. एक कहावत है सौ जूता भी खाए और प्याज भी खाए. इन्होंने देश का इतना बड़ा नुकसान किया है कि इन्हें देश से माफी मांगना चाहिए.
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गाली गलौज, अपशब्द और दोषारोपण नए राजनीतिक संवाद
Updated on 10/28/2020
लोकतंत्र हितों का टकराव है जो इस तीखे, धुआंधार चुनावी मौसम में सिद्धांतों के टकराव का रूप लेता जा रहा है। इस चुनावी मौसम में हमारे नेताओं द्वारा झूठ और विषवमन, गाली-गलौच, कड़वे बोल देखने सुनने को मिल रहे हैं और पिछले एक पखवाड़े से हम यह सब कुछ देख रहे हैं। गाली-गलौच, अपशब्द, दोषारोपण आज एक नए राजनीतिक संवाद बन गए हैं और जिन्हें सुनकर दर्शक सीटियां बजाने लगते हैं इस आशा में कि यह उन्हें राजनीतिक निर्वाण दिलाएगा।
बिहार और मध्य प्रदेश चुनाव 2020 में आपका स्वागत है। जहां पर इस चुनावी मौसम में अनैतिकता देखने को मिल रही है और राजनीतिक विरोधियों तथा जानी दुश्मन के बीच की लकीर धुंधली होती जा रही है। इन चुनावों में घृणित तू-तू, मैं-मैं देखने को मिल रही है। हमारे नेतागणों द्वारा राजनीतिक संवाद में गाली-गलौच, भड़काऊ भाषण, अर्थहीन बातें आदि सुनाई जा रही हैं और वे वोट प्राप्त करने के लिए राजनीतिक मतभेद बढ़ा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा, विपक्ष ने एक पिटारा बनाया है जो नक्सल आंदोलन को आगे बढ़ा रहा है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा हम पप्पू अर्थात राहुल और जोड़-तोड़ मंडली महागठबंधन के बीच फंसे हुए हैं तो राहुल ने कहा मोदी जहां कहीं जाते हैं केवल झूठ बोलते हैं। आग में घी डालते हुए राजद के तेजस्वी यादव ने कहा नीतीश मानसिक और शारीरिक रूप से थक गए हैं। उनके पास कुर्सी पर बैठने और इस तरह अपना जीवन बिताने के सिवाय कोई चारा नहीं है। तो जद (यू) अध्यक्ष ने इस पर कहा कहां भागे फिर रहे थे। तुम दिल्ली में कहां रहते थे।
क्या आप इन सबको सुनकर हैरान होते हैं। बिल्कुल नहीं। जो भाषण जितना कड़वा होता है उतना अच्छा। आप इसे राजनीतिक संवाद का अंग कह सकते हैं किंतु सच यह है कि गत वर्षों में हमारे नेता असंयमित भाषा में सिद्धहस्त हो गए हैंं। आपको स्मरण होगा कि कांग्रेस ने मोदी को गंदी नाली का कीड़ा, गंगू तेली, अहंकारी दुर्योधन और कातिल तक कहा था तो उन्होंने कांग्रेस को पाकिस्तान का प्रवक्ता कहा। यही नहीं मायावती खुद रोज फेशियल करवाती हैं, उनके बाल पके हुए हैं और उनको रंगीन करवाकर अपने आपको जवान साबित करती हैं। 60 वर्ष उम्र हो गई लेकिन ये सब बाल काले हैं।
तूणमूल की बुआ ममता और उनके भतीजे द्वारा तोलाबाजी टैक्स लागू किया जा रहा है। हमारे नेतागणों ने एक झटके में चुनाव आयोग की आदर्श आचार संहिता को ताक पर रख दिया है जिसमें पार्टी और उम्मीदवारों को अन्य नेताओं के व्यक्तिगत जीवन पर टिप्पणी करने और असत्यापित आरोप लगाने पर प्रतिबंध है। किंतु नेताओं का दोगलापन किस तरह सफल होगा यदि वे जिस नैतिकता की बात करते हैं उसे अपने आचरण में ढालने लगें।
इससे एक विचारणीय प्रश्न उठता है। आदर्श आचार संहिता के मामलों में दोषसिद्धि की दर बहुत कम है। क्या ये मामले केवल प्रतीकात्मक हैं? क्या चुनाव आयोग को इस संबंध में तुरंत कार्रवाई नहीं करनी चाहिए? चुनाव के बाद शिकायतों पर कार्रवाई करने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। इन प्रश्नों से निर्वाचन आयोग भी जूझ रहा है। किंतु जब तक निर्वाचन आयोग कोई समाधान ढूंढता है तब तक मतदान हो चुका होगा और आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन निरर्थक बन जाएगा क्योंकि आदर्श आचार संहिता निर्वाचन आयोग और राजनीतिक दलों के बीच एक स्वैच्छिक सहमति है और जिसे कोई कानूनी दर्जा नहीं मिला हुआ है। राजनीतिक पाॢटयां और उम्मीदवार इसका खुलेआम उल्लंघन करते हैं और आयोग इस संबंध में नि:सहाय है।
सही या गलत को यह कहते हुए माफ कर दिया जाता है कि यह भावावेश में कहा गया या यह कहकर इसे खारिज कर दिया जाता है कि प्रेम और युद्ध में सब कुछ जायज है किंतु इस गाली-गलौच के खेल में एक चीज स्पष्टत: सामने आती है कि यह राजनीतिक असंयम हमारी व्यवस्था की कटु सच्चाई को उजागर करती है। आज राजनीति गटर स्तर तक गिर चुकी है। कुल मिलाकर हमारी व्यवस्था सरकार, पार्टियां और राजनेता गरिमा और शिष्टाचार की परवाह नहीं करते हैं। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि चुनाव कौन जीतता है क्योंकि अंतत: जनता हारती है।
इसके लिए किसे दोष दें? इसके लिए हमारे नेता और पाॢटयां दोषी हैं जिन्होंने असंयमित भाषा में महारत हासिल कर ली है। हमारे नेता अनैतिक, खतरनाक और वोट बैंक की राजनीति में संलिप्त रहते हैं और वे जनता में मतभेद पैदा करते हैं। आज के गाली-गलौच वाले चुनाव प्रचार के माहौल में लोकतंत्र का मूल विचार ही प्रभावित हो रहा है। समय आ गया है कि हमारे नेता अपने विभाजनकारी और व्यक्तिगत आरोपों-प्रत्यारोपों को सीमित करें और विरोधी उम्मीदवारों के साथ मुददों के आधार पर बात करें।
---पूनम आई. कौशिश
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