स्वतंत्रता की यात्रा का पहला आगाज
सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूरी भूरी प्रशंसा की गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबैटन ने
स्वतंत्रता की यात्रा का पहला आगाज
अरविन्द सीसौदिया 9414180151
15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता ग्रहण के पश्चात प्रथम कार्यवाही का संक्षिप्त ब्यौरा
शुक्रवार, 15 अगस्त 1947 को 10 बजे कांस्टीट्यूशन हॉल, नई दिल्ली में भारतीय विधान परिषद, समवेत हुई। अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, भारत के गवर्नर लॉर्ड माउंटबैटन, श्रीमती माउंटबैटन के साथ परिषद भवन पहुंचे...। कार्रवाई के प्रारम्भ में विभिन्न राष्ट्रों से प्राप्त शुभकामना संदेश पढ़कर सुनाये गये। इससे पूर्व 14 अगस्त की रात्री 12 बजे हम स्वतंत्रता ग्रहण कर चुके थे।
महात्मा गांधी साम्प्रदायिक दंगों की आग में जल रहे देश को बचाने के लिये नोआलाखी में थे। पूरे देश में सन्नाटा ,सीमाओं पर चीखपुकार और पलायन की मारकाट चल रही थी। देश आजाद नहीं विभाजित हो रहा था,घावों से रिसते खून के फब्बारे थे।
गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबैटन ने भारत के प्रथम गवर्नर जनरल के रूप में सभा में,अपने सम्बोधन में ब्रिटेन के सम्राट का एक संदेश पढ़कर सुनाया तथा एक भाषण दिया कि भारत को किस तरह आजाद किया गया। उनके भाषण से बहुत कुछ साफ था कि भारत विभाजन योजना पूर्वनिर्धारित थी और हमारे नेताओं ने सिर्फ उस योजना के आगे आत्मसमर्पण किया था।
1.1 छः महीने से भी कम हुआ कि जब मुझे श्री एटली (ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री) ने मुझसे भारत का अंतिम वायसराय होने को कहा था। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि यह कोई सरल कार्य नहीं होगा, क्योंकि सम्राट की सरकार जून 1948 तक भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित करने का निश्चय कर चुकी थी।
इस समय बहुतों ने अनुभव किया था कि सम्राट की सरकार ने सत्ता हस्तांतरित करने के लिये बहुत थोड़ी अवधि रखी है। प्रश्न था कि यह महान कार्य 15 महीनों के अन्दर किस तरह समाप्त हो?
1.2 भारत में आये मुझे एक सप्ताह भी नहीं हुआ था कि मैंने अनुभव किया कि जून 1948 की अवधि बहुत थोड़ी नहीं बल्कि बहुत अधिक थी। साम्प्रदायिक मनमुटाव तथा उपद्रव इतनी अधिक मात्रा में बढ़ गये थे कि इंग्लैंड से रवाना होते समय मैं उनका अंदाजा नहीं लगा सका था। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि यदि सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में अव्यवस्था से बचना है,तो शीघ्र ही कुछ निर्णय होना चाहिये।
1.3 मैंने सभी दलों के नेताओं से तुरंत बातचीत प्रारम्भ कर दी और इसके परिणामस्वरूप 3 जून वाली योजना सामने आई।
1.4 जिस बैठक में 3जून वाली योजना स्वीकृत हुई थी, उसमें मैंने नेताओं के आगे विभाजन के शासन संबंधी परिणामों के विषय में एक विचार पत्र उपस्थित किया था और उसी समय हमने इतिहास की सबसे बड़ी शासन संबंधी कार्रवाई करने के लिए एक व्यवस्था भी स्थापित कर दी थी।
यह कार्रवाई 40 करोड़ निवासियों वाले इस उपमहाद्वीप के बंटवारे और ढ़ाई महीने से भी कम समय में दो स्वाधीन सरकारों को सत्ता हस्तांतरित किये जाने के सम्बन्ध में थी। इन बातों को शीघ्रता से सम्पन्न करने के कारण यह था कि एक बार विभाजन का सिद्धान्त स्वीकार करने के बाद शीघ्रातिशीघ्र उसे कार्यान्वित करने में ही सब दलों का हित था..!
1.5 मैं भलीभांति जानता हूं कि स्वाधीनता जिस प्रसन्नता को लाई है, वह आपके हृदयों की इस उदासी से कुछ फीकी पड़ गयी है, क्योंकि यह ( स्वाधीनता) अखण्ड भारत में न आ सकी। बंटवारे के शोक ने आज की घटनाओं के आह्लाद को कुछ कम कर दिया है!
1.6 ..तीन जून वाली योजना में केवल ब्रिटिश भारत में सत्ता हस्तांतरण की व्यवस्था की गई थी। रियासतों के सम्बन्ध में तो सिर्फ एक पैराग्राफ में यह कहा गया था कि सत्ता हस्तांतरित होने पर रियासतें, जिनकी संख्या 565 है, स्वतंत्र हो जायेंगी।
1.7 रियासत विभाग के प्रधान दूरदर्शी राजनीतिज्ञ सरदार वल्लभ भाई पटेल को इसका श्रेय प्राप्त है कि एक ऐसी योजना तैयार हो सकी जो मुझे भारत के स्वाधीन उपनिवेश के लिये तथा रियासतों के लिये, दोनों के लिये समान रूप से हितकर जान पड़ी। अधिकांश रियासतों के भौगोलिक सम्बंध भारत के स्वाधीन उपनिवेश से हैं और इसलिये इस समस्या को हल करने में उसकी दिलचस्पी भी अधिक है।
1.8 एक तरफ रियासतों के राजाओं और उनकी सरकारों की तथा दूसरी तरफ भारत सरकार की यथार्थता और उत्तरदायित्व सम्बंधी भावना की ही विजय है कि दोनों पक्षों को स्वीकार होने योग्य प्रवेश पत्र बनाया जा सका और वह भी इतना स्पष्ट और सरल कि तीन सप्ताह से भी कम समय में प्रायः सभी सम्बंधित रियासतों के प्रवेश पत्र तथा ‘यथापूर्व’ (stand still) समझौते पर हस्ताक्षर हो सके। इस प्रकार 30 करोड़ मनुष्यों को इस उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग एक और अखण्ड राजनैतिक व्यवस्था स्थापित हो सकी।
1.9 आज से मैं आपका वैधानिक गवर्नर जनरल हूं और आपसे अनुरोध करूंगा कि आप मुझे आज से अपने ही जैसा एक व्यक्ति समझें जो भारत के हितों को अग्रसर करने के लिये सच्चे हृदय से प्रयत्नशील रहेगा।
1.10 युद्ध (द्वितीय विश्वयुद्ध) दो वर्ष पूर्व समाप्त हो चुका है। सच तो यह है कि दो वर्ष पूर्व इसीदिन, जब में भारत के महान मित्र एटली (लेबर पार्टी के नेता) के मंत्रीमण्डल वाले कमरे में था, मुझे जापान के आत्मसमर्पण का समाचार मिला था। वह कृतज्ञता तथा खुशी का क्षण था क्योंकि 6 वर्ष तक विनाश और रक्तपात होता रहा था। परन्तु भारत में हमने कहीं अधिक बड़ी सफलता प्राप्त की है,जिसे ‘युद्ध के बिना शांति-संधि’ कहा जा सकता है।
कार्यक्रम में झण्डारोहण से पहले सम्बोधित करते हुए अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने भाषण के अंत में कहा ‘‘...आज तक इस देश के लोग, देश को आजाद करने के लिये संकल्प किया करते थे और इस कार्य सिद्धि के लिए त्याग और बलिदान की प्रतिज्ञा किया करते थे। आज दूसरे प्रकार के संकल्प और प्रतिज्ञा का दिन आया है। हममें से कोई ऐसा न समझे कि त्याग का दिन बीत चुका और भोग का समय आ गया। जो देश को उन्नत करने का महान कार्य हमारे सामने है, उसमें आज तक हमने जितनी त्याग की भावना दिखलाई है उससे कहीं अधिक दृढ़प्रतिज्ञा के साथ तत्परता, त्याग और कार्यपटुता दिखलाने का समय है। इसलिये एक बार फिर भी भारत की सेवा में लग जाने का संकल्प करना है और ईश्वर से प्रार्थना करनी है कि जिस तरह से उसने हमारे पहले संकल्प को पूरा किया, उसी तरह से वह इसको भी पूरा करे।’’
राष्ट्रीय पताका का उत्तोलन
अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा ‘‘अब हिज एक्सीलेंसी झण्डोत्तोलन का संकेत देंगे।’’
(तोप की आवाज सुनाई पड़ी)
गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबैटन ने कहा ‘‘इमारत की छत पर झण्डा ( राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा झंडा ) फहराने का यह संकेत है।’’
भारत झण्डा फहराया गया
अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने इसी के साथ सभा की 20 अगस्त 1947 को प्रातः 10 बजे तक के लिये स्थगित कर दिया।
- राधाकृष्ण मंदिर रोड़, डडवाड़ा, कोटा जं.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें