धरणीधर भगवान बलदाऊजी

 धरणीधर भगवान बलराम , भगवान श्रीकृष्ण के बडे भाई बलदाऊजी है। वे शेषनाग के अवतार हैं जो भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों में उनकी सहायता हेतु जन्म लेते हे। उनके बलदाऊ जी के जन्म दिन को विषेशरूप से कृषक वर्ग आयोजित करता हे। मूलतः इस जयंती पर्व को मातायें संतानों को बलराम जी की तरह बलशाली , दीर्घ आयु एवं कुल गौरव बनानें की कामना से मनाती हें।

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अवतरण (जन्म)
भगवान धरणीधर बलराम जी का जन्म यदूकुल में हुआ। 

         कंस ने अपनी प्रिय बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव से विधिपुर्वक कराया। जब कंस अपनी बहन देवकी को रथ में बिठा कर वसुदेव के घर ले जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई और उसे पता चला कि उसकी बहन का आठवाँ संतान ही उसे मारेगा। कंस ने अपनी बहन को कारागार में बन्द कर दिया और क्रमशः 6 पुत्रों को मार दिया, 7वें पुत्र के रूप में शेष के अवतार बलराम जी थे जिसे श्री हरि ने योगमाया से रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। आठवें गर्भ में भगवान श्री कृष्ण थे।

परिचय
बलभद्र या बलराम जी, श्री कृष्ण के बड़े भाई थे जो रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। बलराम, हलधर, हलायुध, संकर्षण आदि इनके अनेक नाम हैं। बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी जिन्हें चित्रा भी कहते हैं। इनका ब्याह रेवत की कन्या रेवती से हुआ था। कहते हैं, रेवती 21 हाथ लंबी थीं और बलभद्र जी ने अपने हल से खींचकर इन्हें छोटी किया था।

इन्हें नागराज अनंत का अंश कहा जाता है और इनके पराक्रम की अनेक कथाएँ पुराणों में वर्णित हैं। ये गदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे। दुर्योधन इनका ही शिष्य था। इसी से कई बार इन्होंने जरासंध को पराजित किया था। श्रीकृष्ण के पुत्र शांब जब दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा का हरण करते समय कौरव सेना द्वारा बंदी कर लिए गए तो बलभद्र ने ही उन्हें छुडाया था। स्यमंतक मणि लाने के समय भी ये श्रीकृष्ण के साथ गए थे। मृत्यु के समय इनके मुँह से एक बड़ा साँप निकला और प्रभास के समुद्र में प्रवेश कर गया था।



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इस तरह का कुत्य पूरी दुनिया में इस्लामी आक्रमण कर्ताओं ने किये, भारत में सोमनाथ मंदिर पर , काशी विश्वनाथ मंदिर पर, अयोध्या के श्रीराम जन्म भूमि मंदिर पर, मथुरा में श्रीकृष्ण मंदिर पर ही नहीं अपितु लाखों मंदिरों और करोडा मूर्तियों सहित अनेको किलों और भव्य इमारतों का इस्लामी करण रूपी अतिक्रमण हुआ था। देश आजाद होते ही इन्हे पुनः अपने भव्य और मूल स्परूप में आनें का अधिकार है और किसी को भी, इसमें बाधा बनने का अधिकर नहीं हे। 

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 हलषष्ठी : बलराम जी कौन थे, कैसे करें उनका पूजन,

   भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्मोत्सव को हलषष्ठी के रूप में मनाया जाता है। बलराम जयंती का पर्व रक्षाबंधन के ठीक 6 दिन बाद जाता है। इस दिन पुत्रवती महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु की कामना करने के लिए यह व्रत रखती हैं। इस व्रत में हल से जुते हुए अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इस व्रत में वही चीजें खाने की मान्यता है जो तालाब में पैदा होती हैं। मान्‍यता है कि हलधर यानी बलराम सभी बच्‍चों को दीर्घायु प्रदान करते हैं। देश के कई राज्यों में बलराम जयंती को हलछठ, हरछठ, चंदन छठ, ललही छठ, तिन्नी छठ, बलदेव छठ के नाम से यह पर्व एक उत्सव की तरह मनाया जाता है।

बलराम जी
भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई को बलदाऊ, हलधर और बलराम के नाम से भी जाना जाता है। कई धर्मग्रंथों में इस बात का भी वर्णन है कि बलराम शेषनाग के अवतार थे। मान्यता के अनुसार जब-जब धरती पर धर्म की स्थापना के लिए श्री नारायण ने अवतार लिया है, तब-तब शेषनाग ने भी उनका साथ देने के लिए किसी न किसी रूप में जन्म लिया था। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार द्वापर युग में विष्णु के अवतार, श्रीकृष्ण के बड़े भाई और त्रेता युग में भगवान प्रभु श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में बलराम का जन्म हुआ।

बलराम जन्म कथा के अनुसार श्री विष्णु जी की आज्ञा से शेषनाग ने देवकी के गर्भ में सातवें पुत्र के रूप में प्रवेश किया था। कंस इस गर्भ के बालक को जन्म लेते ही मार देना चाहता था। तब नारायण श्रीहरि विष्णु ने योगमाया से कहकर माता देवकी के गर्भ को ले जाकर रोहिणी के गर्भ में रखवा दिया था। गर्भ से खींचे जाने के कारण ही बलराम जी का एक अन्य नाम संकर्षण भी पड़ा।

कैसे करें पूजन-
भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलछठ या बलराम जयंती के शुभ दिन धरती को धारण करने वाले शेषनाग जी ने भगवान बलराम के रूप में अवतार लिया था। आज के दिन बलराम जी की विशेष पूजा की जाती है। बलराम जयंती या हरछठ के दिन भुना हुआ चना, घी में भुना हुआ महुआ, अक्षत, लाल चंदन, मिट्टी का दीया, भैंस के दूध से बना दही, घी, महुआ का पत्ता, तिन्नी का चावल तालाब में उगा हुआ, हल्दी, नया वस्त्र, सात प्रकार के अनाज, धान का लाजा, जनेऊ और कुश इन सारी सामग्रियों को एकत्र करके पूजन किया जाता है। इन सभी सामग्रियों को 6-6 की संख्या में लेकर पूजन करना चाहिए।


धार्मिक मान्यता है कि षष्ठी व्रत से पुत्रों के जीवन में सुख, शांति, धन, यश आदि की प्राप्ति होती है. उन्हें लंबी आयु मिलती है और बलराम की तरह वे बलशाली होते हैं. इसीलिए महिलाएं इस व्रत को पूरे श्रद्धा भाव से रखती हैं.  
 इस दिन संतान की खुशहाली और दीर्घायु के लिए व्रत रखा जाता हैं। व्रत के दिन घर या बाहर कहीं भी दीवार पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाया जाता है। उसके बाद भगवान श्री गणेश और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं घर में ही गोबर से प्रतीक रूप में तालाब बनाकर, उसमें पलाश, झरबेरी और कांसी के पेड़ लगाती हैं और वहां बैठकर पूजन करके हलषष्ठी व्रत की कथा सुनती हैं। इस दिन नवविवाहित सुहागिनें सुयोग्य संतान पाने के लिए यह व्रत करती हैं। इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन नहीं किया जाता है।

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