राष्ट्रभाव के अभाव से बंटाधार हुआ अफगानिस्तान का - अरविन्द सिसौदिया

 


 


 राष्ट्रभाव के अभाव से बंटाधार हुआ अफगानिस्तान का - अरविन्द सिसौदिया

    एक समय पृथ्वी पर न कोई राजा था न ही शासन व्यवस्था थी। सब कुछ प्राकृतिक था, और इस तरह का जीवन करोडों - करोडों वर्षों तक चला है यह माना जाता है। मनुष्य के द्वारा शैने शैने सुव्यवस्थित जीवन व्यवस्था के क्रम में पति-पत्नि-संतान और परिवार,, समाज और गांव कस्बे शहर और अन्ततः देश के रूप में सभ्यता विकसित हुई । सनातन सभ्यता ही विश्व की प्रथम सभ्यता रही है। सम्पूण वसुधा एक कुटम्ब है और जम्बूदीप सनातन सभ्यता का मूल है। यह संस्कृत में उपलब्ध हमारे इतिहास के ग्रंथों एवं साहित्य में स्पष्टरूप से बताया है। पुराणो में भी 24 महान देशों में भारत को एक माना गया है। अर्थात 23 और भी हिदू महान देशों के सामा्रज्यों का अस्तित्व रहा होगा । सनातन में देव - दावन के कथन में अनगिनित युद्धों का वर्णन है। पूरा समाज शास्त्र और शस्त्र से युक्त रहा है। हिंसा जीवन में निरंतर बनी रहती है और उसको पराजित करना ही वीरता कहा गया है। पुरूषार्थ कहा गया है। इसी कारण सनातन में वीर वसुंधरा का भोग(शासन) करते है। येशा कहा गया है।

    सनातन संस्कृति के अनादीकालीन अस्तित्व को अहिंसा के सि़़़द्धांतो ने बहुत क्षती पहुंचाई है, जबकि जिन कोमों ने वीरता को साथ रखा वे आज भी जिन्दा है। माना जाता है कि ईसा मसीह भारत से बौध धर्म की शिक्षायें लेकर गये थे और ईसाईयत उसी के नवोत्थान का स्वरूप है। किन्तु उन्होने लगातार अपनी रक्षा की व्यवस्था की , बाद में उनके इस्लाम से 8-10 धर्म युद्ध भी हुये और पूरे विश्व में सबसे अधिक हिंसा का उपयोग अपनी रक्षा और विस्तार के लिये इसाई शासन व्यवस्था करती रही है। परमाणु बम का पहला प्रयोग अमरीका ने ही किया था। जो संस्कृति अपनी रक्षा की व्यवस्था नहीं करती वह समाप्त हो जाती है। इतिहासकार भी मानते हैं कि सभ्य संस्कृतियों को असभ्य संस्कृतियों ने बहुत नुकसान पहुचाया है।

    अफगानिस्तान जो कि जम्बू दीप का एक महाजनपद था जिसमें हिन्दू समाज निवास करता था, वह बौध प्रभाव में अत्याधिक समाहित हो गया था । भगवान बु़द्ध की विशाल प्रतिमाओं के इस देश को बलात ईस्लाम इसीलिये बना लिया गया कि वहां समाज प्रतिरोध नहीं कर सका । और एक दिन वह भी विश्व ने देखा कि जब तोपों से भगवान बुद्ध की प्रतिमाओं करे उडा दिया गया । 15 अगस्त 2021 को तालिवान ने इस देश पर फिर हिंसा के बल पर राज्य स्थापित कर लिया, सबसे बडी बात यही रही कि कहीं से भी कोई प्रतिरोध नहीं हुआ। अमरीका की मदद से बहुत अवसर मिला मगर अफगान शासक राष्ट्रभक्त सेना व समाज का निर्माण ही नहीं कर सके । जो प्रतिरोध करते । वही हुआ जो निर्बल लोग करते है,आत्म समर्पण या भाग जाना । ज्यादातर अफगानिस्तान के सैन्य कमाण्डरों ने बिना युद्ध हथियार डाल दिये और राष्ट्रपति भाग गये।

वर्तमान समय में शक्ति के बिना अस्तित्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती ।
     विश्व के तमाम सुरक्षित देश अमरीका, चीन, रूस फ्रांस ब्रिटेन आदि सामरिक शक्ति को सर्वोपरी रखते है। भारत को प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में परमाणु सम्पन्नता प्राप्त हो चुकी है। किन्तु हमारा मुकाबला बहुत ही महत्वाकांक्षा विस्तारवादी चीन से है। इसलिये परमाणु शक्ति में पर्याप्त इजाफा करना होगा। साथ ही देश में आराजकतावादियों को समूल नष्ट करने हेतु निरंतर - निरंतर कार्य करना होगा । कोई समझौता नहीं सिर्फ समाप्त किया जाना ही प्रथम लक्ष्य रहना  चाहिये।

 

ये थीं अखंड भारत की सीमाएं

इतिहास की किताबों में हिंदुस्तान की सीमाओं का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिंद महासागर का वर्णन है, परंतु पूर्व व पश्चिम का वर्णन नहीं है। परंतु जब श्लोकों की गहराई में जाएं और भूगोल की पुस्तकों और एटलस का अध्ययन करें तभी ध्यान में आ जाता है कि श्लोक में पूर्व व पश्चिम दिशा का वर्णन है। कैलाश मानसरोवर‘ से पूर्व की ओर जाएं तो वर्तमान का इंडोनेशिया और पश्चिम की ओर जाएं तो वर्तमान में ईरान देश या आर्यान प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर पर हैं।
एटलस के अनुसार जब हम श्रीलंका या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की ओर देखेंगे तो हिंद महासागर इंडोनेशिया व आर्यान (ईरान) तक ही है। इन मिलन बिंदुओं के बाद ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है। इस प्रकार से हिमालय, हिंद महासागर, आर्यान (ईरान) व इंडोनेशिया के बीच का पूरे भू–भाग को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष या हिंदुस्तान कहा जाता है . 1857 से 1947 तक हिंदुस्तान के कई टुकड़े हुए और इस तरह बन गए सात नए देश। 1947 में बना पाकिस्तान भारतवर्ष का पिछले 2500 सालों में एक तरह से 24वां विभाजन था।
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कभी हिंदू राष्ट्र और अखंड भारत का हिस्सा रहे इस्लामिक देश अफगानिस्तान के बारे में खास बातें
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला Published by: अमर शर्मा Updated Sun, 10 Feb 2019

अफगानिस्तान 7वीं सदी तक अखंड भारत का एक हिस्सा था। यह पहले एक हिंदू राष्ट्र था। बाद में यह बौद्ध राष्ट्र बना और अब इस्लामिक राष्ट्र है। 17वीं सदी तक अफगानिस्तान नाम का कोई राष्ट्र नहीं था। आज कैसा है यह देश और कैसा जीवन जी रहे हैं यहां के लोग। आइए जानते हैं।

महाभारत में इसका जिक्र
अफगानिस्तान को आर्याना, आर्यानुम्र वीजू, पख्तिया, खुरासान, पश्तूनख्वाह और रोह आदि नामों से पुकारा जाता था, जिसमें गांधार, कम्बोज, कुंभा, वर्णु, सुवास्तु आदि क्षेत्र थे। ईसा पूर्व 700 साल पहले तक इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था, जिसके बारे में भारतीय स्रोत महाभारत तथा अन्य ग्रंथों में वर्णन मिलता है।


धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी, महान संस्कृत व्याकरणाचार्य पाणिनी और गुरु गोरखनाथ यहीं के बाशिंदे थे।

वैदिक धर्म का पालन होता था
आज भी अफगानिस्तान के गांवों में बच्चों के नाम कनिष्क, आर्यन, वेद आदि रखे जाते हैं। अफगानिस्तान में पहले आर्यों के कबीले आबाद थे और वे सभी वैदिक धर्म का पालन करते थे, फिर बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद यह स्थान बौद्धों का गढ़ बन गया।

कम उम्र में हो जाती है शादी
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के मुताबिक अफगानिस्तान की 50 फीसदी जनसंख्या का विवाह 15 साल की उम्र में ही हो जाता है। 33 फीसदी आबादी का विवाह 18 साल की उम्र में होता है। अफगानिस्तान में 14 जनजातियां निवास करती है। इस देश में मोबाइल फोन रखना प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है।

परिवार सबसे पहले
अफगानिस्तान में नया साल 21 मार्च को मनाया जाता है, जो बसंत का पहला दिन होता है। अफगान लोगों में परिवार का बहुत महत्व है और शादी के बाद सारा परिवार साथ रहता है।

हफ्ते में एक दिन कविता पाठ
अफगान के हैरत शहर में गुरुवार रात को कविताओं का आयोजन होता है। यहां महिला, पुरुष और बच्चे इकट्ठा होते हैं।

खेती है आय का जरिया
अफगानी लोग मुख्य तौर पर खेती करने अपना जीवनयापन करते हैं। हालांकि अफगानिस्तान में प्राकृतिक गैस और तेल का बड़ा भंडार है।

अरेंज मैरिज का चलन
अफगानी शिष्टाचार में हाथ मिलाना सामान्य बात है। लेकिन महिला-पुरुष का आपस में हाथ मिलाना दुर्लभ है। अफगानिस्तान में महिला और पुरुष की कोशिश होती है कि वे एक-दूसरे से आंख भी नहीं मिलाएं। अरेंज मैरिज का प्रचलन यहां ज्यादा है।

मंदिरों के अवशेष मौजूद
अफगानिस्तान के बामियान, जलालाबाद, बगराम, काबुल, बल्ख आदि स्थानों में अनेक मूर्तियों, स्तूपों, संघारामों, विश्वविद्यालयों और मंदिरों के अवशेष हैं।

गजनी ने कराया धर्म परिवर्तन
महमूद गजनी को सत्ता और लूटपाट के अलावा वह जीते हुए क्षेत्रों के मंदिरों, शिक्षा केंद्रों, मंडियों और भवनों को नष्ट करता जाता था और स्थानीय लोगों का धर्म परिवर्तन कराता था। यह बात अल-बेरूनी, अल-उतबी, अल-मसूदी और अल-मकदीसी जैसे मुस्लिम इतिहासकारों ने भी लिखी हैं।
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ऐसे तोड़ा गया पूरा हिंदुस्तानः 1857 से 1947 के बीच बने 7 नए देश

 1857 से 1947 तक हिंदुस्तान के कई टुकड़े कर अंग्रेजों ने सात नए देश बना दिए थे। 1947 में बना पाकिस्तान भारतवर्ष का पिछले 2500 सालों में 24वां विभाजन था।

आज तक किसी भी इतिहास की पुस्तक में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता की बीते 2500 सालों में हिंदुस्तान पर जो आक्रमण हुए उनमें किसी भी आक्रमणकारी ने अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया हो। अब यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह देश कैसे गुलाम और आजाद हुए। पाकिस्तान व बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं। बाकी देशों के इतिहास की चर्चा नहीं होती। हकीकत में अंखड भारत की सीमाएं विश्व के बहुत बड़े भू-भाग तक फैली हुई थीं।

(स्रोत- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक इन्द्रेश कुमार के अखंड भारत के खंडन का इतिहास लेख पर आधारित। फोटो इंटरनेट)

एवरेस्ट का नाम था सागरमाथा, गौरीशंकर चोटी
पृथ्वी का जब जल और थल इन दो तत्वों में वर्गीकरण करते हैं, तब सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं। हम इसमें से प्राचीन नाम जम्बूद्वीप जिसे आज एशिया द्वीप कहते हैं तथा इन्दू सरोवरम् जिसे आज हिन्दू महासागर कहते हैं, के निवासी हैं। इस जम्बूद्वीप (एशिया) के लगभग मध्य में हिमालय पर्वत स्थित है। हिमालय पर्वत में विश्व की सर्वाधिक ऊंची चोटी सागरमाथा, गौरीशंकर हैं, जिसे 1835 में अंग्रेज शासकों ने एवरेस्ट नाम देकर इसकी प्राचीनता व पहचान को बदल दिया।

ये थीं अखंड भारत की सीमाएं
इतिहास की किताबों में हिंदुस्तान की सीमाओं का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिंद महासागर का वर्णन है, परंतु पूर्व व पश्चिम का वर्णन नहीं है। परंतु जब श्लोकों की गहराई में जाएं और भूगोल की पुस्तकों और एटलस का अध्ययन करें तभी ध्यान में आ जाता है कि श्लोक में पूर्व व पश्चिम दिशा का वर्णन है। कैलाश मानसरोवर‘ से पूर्व की ओर जाएं तो वर्तमान का इंडोनेशिया और पश्चिम की ओर जाएं तो वर्तमान में ईरान देश या आर्यान प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर पर हैं।
एटलस के अनुसार जब हम श्रीलंका या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की ओर देखेंगे तो हिंद महासागर इंडोनेशिया व आर्यान (ईरान) तक ही है। इन मिलन बिंदुओं के बाद ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है। इस प्रकार से हिमालय, हिंद महासागर, आर्यान (ईरान) व इंडोनेशिया के बीच का पूरे भू-भाग को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष या हिंदुस्तान कहा जाता है

अब तक 24 विभाजन
सन 1947 में भारतवर्ष का पिछले 2500 सालों में 24वां विभाजन है। अंग्रेज का 350 वर्ष पूर्व के लगभग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रूप में व्यापारी बनकर भारत आना, फिर धीरे-धीरे शासक बनना और उसके बाद 1857 से 1947 तक उनके द्वारा किया गया भारत का 7वां विभाजन है। 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किमी है। पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग किमी बनता है।

क्या थी अखंड भारत की स्थिति
सन 1800 से पहले विश्व के देशों की सूची में वर्तमान भारत के चारों ओर जो आज देश माने जाते हैं उस समय ये देश थे ही नहीं। यहां राजाओं का शासन था। इन सभी राज्यों की भाषा अधिकांश शब्द संस्कृत के ही हैं। मान्यताएं व परंपराएं बाकी भारत जैसी ही हैं। खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-नृत्य, पूजापाठ, पंथ के तरीके सब एकसे थे। जैसे-जैसे इनमें से कुछ राज्यों में भारत के इतर यानि विदेशी मजहब आए तब यहां की संस्कृति बदलने लगी

2500 सालों के इतिहास में सिर्फ हिंदुस्तान पर हुए हमले
इतिहास की पुस्तकों में पिछले 2500 वर्ष में जो भी आक्रमण हुए (यूनानी, यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फेंच, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल व अंग्रेज) इन सभी ने हिंदुस्तान पर आक्रमण किया ऐसा इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में कहा है। किसी ने भी अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण का उल्लेख नहीं किया है।

रूस और ब्रिटिश शासकों ने बनाया अफगानिस्तान
1834 में प्रकिया शुरु हुई और 26 मई 1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय हुआ और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात् राजनैतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया। इससे अफगानिस्तान अर्थात पठान भारतीय स्वतंत्रतता संग्राम से अलग हो गए। दोनों ताकतों ने एक-दूसरे से अपनी रक्षा का मार्ग भी खोज लिया। परंतु इन दोनों पूंजीवादी व मार्क्सवादी ताकतों में अंदरूनी संघर्ष सदैव बना रहा कि अफगानिस्तान पर नियंत्रण किसका हो? अफगानिस्तान शैव व प्रकृति पूजक मत से बौद्ध मतावलम्बी और फिर विदेशी पंथ इस्लाम मतावलम्बी हो चुका था। बादशाह शाहजहां, शेरशाह सूरी व महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में उनके राज्य में कंधार (गंधार) आदि का स्पष्ट वर्णन मिलता है

1904 में दिया आजाद रेजीडेंट का दर्जा  (नेपाल)
मध्य हिमालय के 46 से अधिक छोटे-बडे राज्यों को संगठित कर पृथ्वी नारायण शाह नेपाल नाम से एक राज्य बना चुके थे। स्वतंत्रतता संग्राम के सेनानियों ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध लडते समय-समय पर शरण ली थी। अंग्रेज ने विचारपूर्वक 1904 में वर्तमान के बिहार स्थित सुगौली नामक स्थान पर उस समय के पहाड़ी राजाओं के नरेश से संधी कर नेपाल को एक आजाद देश का दर्जा प्रदान कर अपना रेजीडेंट बैठा दिया। इस प्रकार से नेपाल स्वतन्त्र राज्य होने पर भी अंग्रेज के अप्रत्यक्ष अधीन ही था। रेजीडेंट के बिना महाराजा को कुछ भी खरीदने तक की अनुमति नहीं थी। इस कारण राजा-महाराजाओं में यहां तनाव था। नेपाल 1947 में ही अंग्रेजी रेजीडेंसी से मुक्त हुआ।

भूटान के लिए ये चाल चली गई
1906 में सिक्किम व भूटान जो कि वैदिक-बौद्ध मान्यताओं के मिले-जुले समाज के छोटे भू-भाग थे इन्हें स्वतन्त्रता संग्राम से लगकर अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण से रेजीडेंट के माध्यम से रखकर चीन के विस्तारवाद पर अंग्रेज ने नजर रखना शुरु किया। यहां के लोग ज्ञान (सत्य, अहिंसा, करुणा) के उपासक थे। यहां खनिज व वनस्पति प्रचुर मात्रा में थी। यहां के जातीय जीवन को धीरे-धीरे मुख्य भारतीय धारा से अलग कर मतांतरित किया गया। 1836 में उत्तर भारत में चर्च ने अत्यधिक विस्तार कर नए आयामों की रचना कर डाली। फिर एक नए देश  का निर्माण हो गया।

चीन ने किया कब्जा
1914 में तिब्बत को केवल एक पार्टी मानते हुए चीन भारत की ब्रिटिश सरकार के बीच एक समझौता हुआ। भारत और चीन के बीच तिब्बत को एक बफर स्टेट के रूप में मान्यता देते हुए हिमालय को विभाजित करने के लिए मैकमोहन रेखा निर्माण करने का निर्णय हुआ। हिमालय को बांटना और तिब्बत व भारतीय को अलग करना यह षड्यंत्र रचा गया। चीनी और अंग्रेज शासकों ने एक-दूसरों के विस्तारवादी, साम्राज्यवादी मनसूबों को लगाम लगाने के लिए कूटनीतिक खेल खेला।

अंग्रेजों ने अपने लिए बनाया रास्ता
1935 व 1937 में ईसाई ताकतों को लगा कि उन्हें कभी भी भारत व एशिया से जाना पड़ सकता है। समुद्र में अपना नौसैनिक बेड़ा बैठाने, उसके समर्थक राज्य स्थापित करने तथा स्वतंत्रता संग्राम से उन भू-भागों व समाजों को अलग करने हेतु सन 1935 में श्रीलंका व सन 1937 में म्यांमार को अलग राजनीतिक देश की मान्यता दी। म्यांमार व श्रीलंका का अलग अस्तित्व प्रदान करते ही मतान्तरण का पूरा ताना-बाना जो पहले तैयार था उसे अधिक विस्तार व सुदृढ़ता भी इन देशों में प्रदान की गई। ये दोनों देश वैदिक, बौद्ध धार्मिक परम्पराओं को मानने वाले हैं। म्यांमार के अनेक स्थान विशेष रूप से रंगून का अंग्रेज द्वारा देशभक्त भारतीयों को कालेपानी की सजा देने के लिए जेल के रूप में भी उपयोग होता रहा है

दो देश से हुए तीन
1947 में भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ। इसकी पटकथा अंग्रेजों ने पहले ही लिख दी थी। सबसे ज्यादा खराब स्थिति भौगोलिक रूप से पाकिस्तान की थी। ये देश दो भागों में बंटा हुआ था और दोनों के बीच की दूरी थी 2500 किलो मीटर। 16 दिसंबर 1971 को भारत के सहयोग से एक अलग देश बांग्लादेश अस्तित्व में आया।
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