अफगानिस्तान के लोगों को स्वंय आगे आना होगा - अरविन्द सिसौदिया
अफगानिस्तान के लोगों को स्वंय आगे आना होगा - अरविन्द सिसौदिया
कुल मिला कर अफगानिस्तान पर तालिवान का कब्जा हो गया है। फिलहाल अमरीका एवं आई एम एफ ने अफगानिस्तान का बैकों में जमा धन रोक दिया है। इससे तालिवान को आर्थिक लूट में बाधा आयेगी। वहां की जनता हैरान है, परेशान है , बच्चों और महिलाओं के भविष्य को लेकर चिन्तित है,विक्षिप्त है, उसे अभी यह नहीं सूझ रहा कि क्या करे क्या नहीं करे। महिलाओं की सूची मांगी जानें से सब दूर अफरा तफरी है। सभी असुरक्षित महसूस कर रहे है।
अमरीका के सैनिकों की वापसी तो पूर्व निर्धारित थी , किन्तु अफगानिस्तान की पूर्व सरकार ने देश की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की सही समीक्षा नहीं की। व्यवहारिक व्यवस्था नहीं बनाई । यदी तालिवान हिंसा करता है तो उन्हे किस प्रकार मुंह तोड जबाव दिया जायेगा, इस हेतु कोई रणनीति तय नहीं की गई। कुल मिला कर पूर्व सरकार को क्या करना होगा, यह ठीक से सोचा ही नहीं गया और जब वे माथे पर आ गये तो खडे - खडे भागना पडा । यदि तालिवान हिंसा करता है तो उस स्थित में , संयुक्त राष्ट्रसंघ एवं अमरीका को किस तरह से अपनी प्रभावी भूमिका निभानी है यह भी विचार नहीं किया गया। क्या कार्यवाही करेंगे इस हेतु पूर्व निर्धारित लक्ष्य तय नहीं किये गये । यही वह कारण है कि निरंकुश तालिवान ने मान लिया कि वह सर्वे सर्वा हो गया है।
सवाल यही है कि अब अफगानिस्तान का क्या होगा ? अफगानिस्तान के लोग शौर्य के लिये जाने जाते है। वे निश्चित ही अपने बच्चों एवं महिलाओं सहित मानव अधिकारों एवं लोकतंत्र के लिये उठ खडे होंगे। मनुष्य का जीवन जिल्लत की जिन्दगी जीनें के लिये नहीं वरन सम्मान का जीवन जीनें के लिये है। तालिवान का भी यही कर्त्तव्य है कि वह शासनकर्ता है तो, अफगानिस्तान को शांती का, अमन का, चैन का, खुशी का शासन दे । हिंसा का मानवता में कोई स्थान नहीं होता है।
किन्तु यदि तालिवानी हिंसा जारी रहेगी, बन्दूकों से बात की जायेगी,बात - बात पर गोलियों चलेंगी, कत्ले आम होगा, तो अफगानिस्तान के लोग सिर पर कफन बांध कर विरोध भी करेंगे। क्यों कि जुल्म सहनें की भी एक सीमा होती है। जुल्म सहना भी स्वंय के लिये ही अधिक दुखदायी होता है। यह भी तय है कि आवश्यकता से अधिक दबाव ही विस्फोट का कारण होता है। जनमत में विद्रोह इसी तरह के दबाव के विरूद्ध उत्पन्न होता ही है। पश्चिमी पाकिस्तान का पूर्वी पाकिस्तान पर अत्याधिक दबाव का नतीजा बांगलादेश के रूप में सामने आया था। तालिबान अगर यह समझे कि बन्दूक के बल पर वह सफल होगा, तो यह भूल होगी। अफगानिस्तान का स्वाभिमान जाग उठा, उसका शोर्य जाग उठा, तो तालिबान पहले की ही तरह शासन खो देगा।
कुल मिला कर अब अफगानिस्तान के लोगो को ही आगे आना होगा और अपने अधिकारों एवं सम्मानों का प्राप्त करना होगा।
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तालिवान के खिलाफ में अफगानिस्तान में विरोध प्रदर्शन
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद शुरुआत में लोग डर भले ही गए थे, लेकिन अब विरोध में आवाज उठाने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं. तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन अफगानिस्तान के कई शहरों तक फैल गए हैं, जिसमें राजधानी काबुल भी शामिल है. लोगों को समझाने के लिए तालिबान ने देश के इमामों की मदद भी ली है.
August 19, 2021
अफ़ग़ानिस्तान भर में आज फिर हुए तालिबान विरोधी प्रदर्शन, फायरिंग में कई लोगों की मौत
अफ़ग़ानिस्तान के कई शहरों में पिछले रोज़ की तरह आज भी लोगों ने अपने मुल्क का झंडा लेकर प्रदर्शन किए हैं. इनमें दारुल हुकूमत काबुल और पूर्वी शहर जलालाबाद भी शामिल है.
काबुल: अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्ज़े के बाद से ही मुल्क भर में अफ़रा-तफ़री का माहौल है. तालिबान नें पूरे मुल्क में जमीनी रास्ते बंद कर दिए हैं और वहां उनका कंट्रोल है. सिर्फ काबुल हवाई अड्डा ही मुल्क छोड़ने वालों के लिए वाहिद जरिया बचा है. ऐसे में काबुल हवाई अड्डा पर मुल्क तालिबान के डर से मुल्क छोड़ने वाले अफगान शहरियों की भीड़ अभी तक कम नहीं हुई है. वहीं, दूसरी मुल्क कई हिस्सों में तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन का सिलसिला भी शुरू हो गया है.
अफ़ग़ानिस्तान के कई शहरों में पिछले रोज़ की तरह आज भी लोगों ने अपने मुल्क का झंडा लेकर प्रदर्शन किए हैं. इनमें दारुल हुकूमत काबुल और पूर्वी शहर जलालाबाद भी शामिल है. इस दौरान तालिबान लड़ाकू की तरफ से गोलियां चलाए जाने और लोगों के मारे जाने की भी ख़बर आ रही मगर अभी उनकी तसदीक नहीं हो सकी है.
August 19, 2021
लंदन में तालिबान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, अफगानी महिलाओं ने की सुरक्षा की मांग
सैकड़ों प्रदर्शनकारीयों ने तालिबान के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर लंदन के पार्लियामेंट स्क्वायर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया।
Afghanistan Taliban Crisis: तालिबान(Taliban) ने महज एक सप्ताह में लगभग पूरे अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जा कर लिया है। बुधवार को अफगान परिवार सहित सैकड़ों प्रदर्शनकारीयों ने तालिबान के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर लंदन के पार्लियामेंट स्क्वायर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। जैसे ही विधायक हाउस ऑफ कॉमन्स में लौटे, मध्य लंदन में संसद के बाहर कई विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें महिलाओं और बच्चों ने अपने चेहरों पर अफगानिस्तान के पोस्टर, गुब्बारे और झंडे का चित्र बनाकर अपना दर्द बयां किया।
यहां प्रदर्शनकारियों ने "मुक्त अफगानिस्तान" और "हम महिलाओं के अधिकार चाहते हैं" जैसे नारे भी लगाए। इस बीच, ईरान और इराक के लोग भी अफगानिस्तान के साथ एकजुटता दिखाते हुए विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।
प्रदर्शनकारियों ने अफगानिस्तान में गंभीर रूप से घायल हुए लोगों की तस्वीरें भी साथ ले रखी थी, जिस पर लिखा था "हमारे प्रियजनों की रक्षा करें।"
बता दें कि इस विरोध प्रदर्शन में लेबर पार्टी के पूर्व नेता जेरेमी कॉर्बिन, सांसद रिचर्ड बर्गन और कुछ अन्य लोग भी शामिल थे। इन सभी की नेताओं से मांग थी कि अफगानिस्तान में युद्ध को एक तबाही के रूप में मान्यता दी जाए, जिसे दोहराया नहीं जाना चाहिए।
DNA ANALYSIS: तालिबान के खिलाफ अफगान क्रांति का आगाज, तीन बड़े शहरों में प्रदर्शन
ज़ी न्यूज़ डेस्क Wed, 18 Aug 2021
अफगानिस्तान (Afghanistan) के जलालाबाद (Jalalabad) और खोस्त शहर में तालिबान (Taliban) का जबरदस्त बंदोबस्त है और भारी संख्या में उसके आतंकवादी सड़कों पर तैनात हैं. लेकिन इसके बावजूद अफगानिस्तान के कुछ लोगों ने हिम्मत दिखाई है और अब तक तीन बड़े शहरों में तालिबान के झंडे हटाने के लिए प्रदर्शन हुए हैं.
नई दिल्ली: अमरुल्ला सालेह ने खुद को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति घोषित करने के बाद तालिबान पर हमले शुरू कर दिए हैं. ये हमले वहां के परवान प्रांत में हुए हैं. इसके अलावा अफगानिस्तान के पूर्व उप-राष्ट्रपति अब्दुल रशीद दोस्तम ने भी उत्तरी अफगानिस्तान में तालिबान के आंतकवादियों पर हमलों का नेतृत्व किया है.
तालिबान का विरोध शुरू
67 साल के अब्दुल रशीद दोस्तम 2014 से 2020 तक अफगानिस्तान के उप राष्ट्रपति थे और 2001 में उन्होंने तालिबान की सरकार गिराने में बड़ी भूमिका निभाई थी. अभी उन्होंने उज्बेकिस्तान में शरण ली हुई है और वो उत्तरी अफगानिस्तान में तालिबान से भी लड़ रहे हैं. ये तालिबान के लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि तालिबान को लगा था कि उसके डर के आगे अफगानिस्तान का कोई नेता नहीं टिकेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
साल 2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक दोस्तम के पास अपनी एक सेना है, जिसमें 10 से 20 हजार सैनिक माने जाते हैं. इसके अलावा अफगानिस्तान के पंजशीर से अमरुल्ला सालेह के काफिले की भी कुछ तस्वीरें आई हैं, जो तालिबान को जरूर परेशान करेंगी.
दूतावास से हटाई गनी की तस्वीर
अमरुल्ला सालेह ने ये हिम्मत तब दिखाई है जब अशरफ गनी अपना देश छोड़कर भाग चुके हैं. इसी का नतीजा है कि ताजिकिस्तान में अफगानिस्तान के दूतावास में लगी अशरफ गनी की तस्वीरों को अब उतार दिया गया है और उनकी जगह अमरुल्ला सालेह की तस्वीरें लगा दी गई हैं.
ये अशरफ गनी को संदेश है कि वो अब अफगानिस्तान के लिए गद्दार और भगोड़े से ज्यादा कुछ नहीं हैं. ताजिकिस्तान में अफगानिस्तान की एम्बेसी ने इंटरपोल के जरिए भगोड़े राष्ट्रपति अशरफ गनी समेत कई नेताओं को लोगों को पैसा लूट कर भागने के लिए उन्हें हिरासत में लेने के भी निर्देश दिए हैं. हालांकि तालिबान के लिए अफगानिस्तान पर शासन करना इतना आसान नहीं होगा. क्योंकि अफगानिस्तान के कई हिस्सों में लोग तालिबान के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. आज काबुल से 150 किलोमीटर दूर जलालाबाद में तालिबान के आतंकवादियों ने तीन लोगों की हत्या कर दी.
जलालाबाद में तालिबान की गोलीबारी
अफगानिस्तान के लोग जलालाबाद और खोस्त शहर में तालिबान का झंडा लगाए जाने से नाराज थे, जिसके बाद उन्होंने इस झंडे को हटा कर अफगानिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए एक रैली निकाली. लेकिन ये विरोध तालिबानियों को पसन्द नहीं आया और उसने भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी.
अफगानिस्तान के जलालाबाद और खोस्त शहर में तालिबान का जबरदस्त बंदोबस्त है और भारी संख्या में उसके आतंकवादी सड़कों पर तैनात हैं. लेकिन इसके बावजूद अफगानिस्तान के कुछ लोगों ने हिम्मत दिखाई है. ये एक अच्छी खबर है. हमें ये भी खबर मिली है कि अब तक तीन बड़े शहरों में तालिबान के झंडे हटाने के लिए लोगों ने प्रदर्शन किए हैं और आने वाले दिनों में ये विरोध बढ़ सकता है.
लेकिन तालिबान कट्टरपंथी विचारधारा छोड़ने के लिए तैयार नहीं है. आज तालिबान ने अफगानिस्तान के बाम्यान में अब्दुल अली मजारी की मूर्ति को तोड़ दिया. बाम्यान वही शहर है, जहां वर्ष 2001 में तालिबान ने बुद्ध की प्रतिमा को बम से उड़ा दिया था.
अत्याचारों पर चुप पश्चिमी देश
अब्दुल अली मजारी अफगानिस्तान के हजारा समुदाय के नेता थे, जिनकी तालिबान ने वर्ष 1995 में हत्या कर दी थी. तालिबान कई वर्षों से हजारा समुदाय को निशाना बनाता रहा है. अफगानिस्तान की कुल आबादी में करीब 9 प्रतिशत की हिस्सेदारी हजारा समुदाय की है, तालिबान की वापसी के बाद इस समुदाय में काफी खौफ है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बात करने वाले पश्चिमी देश इस पर चुप हैं.
तालिबान अभी अपनी छवि चमकाने के लिए पूरी दुनिया में जबरदस्त कोशिशें कर रहा है और अब भारत में भी एक खास वर्ग यहां बैठ कर तालिबान की तारीफ कर रहा है. भारत के कई लिबरल बुद्धिजीवियों और नेताओं को लगता है कि तालिबान स्वतंत्रत प्रेस और महिलाओं की आजादी के लिए काम करेगा. ऐसे लोगों की नजर में तालिबान की कल की प्रेस कॉन्फ्रेंस सुपर हिट रही है. इसलिए आज एक बार फिर से हम हमारे देश के इन लोगों से ये कहना चाहते हैं कि कुछ दिन तो गुजारिए अफगानिस्तान में.
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की केंद्र सरकार को चेतावनी
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने सोमवार को केंद्र सरकार को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व भारत के लिए अशुभ संकेत है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हमारे देश के लिए शुभ संकेत नहीं है. यह भारत के खिलाफ चीन-पाक गठजोड़ को मजबूत करेगा. संकेत बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं, हमें अतिरिक्त सतर्क रहने की जरूरत है.'
भारत में भी तालिबान समर्थक
आज मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता सज्जाद नोमानी ने अफगानिस्तान में तालिबान की जीत के लिए अल्लाह को शुक्रिया कहा और ये भी कहा कि भारत का मुसलमान, तालिबान को सलाम करता है. हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि ये विचार व्यक्तिगत हैं, इसका मुस्लिम लॉ बोर्ड से लेना-देना नहीं है.
कल समाजवादी पार्टी के एक सांसद शफीकुर रहमान बर्क ने भी तालिबानियों की तुलना भारत के क्रांतिकारियों से की दी और अब उनके खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज कर लिया गया है.
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