जनसंख्या विस्फोट से भी ज्यादा खतरनाक है , जनसंख्या असंतुलन....!
जनसंख्या विस्फोट से भी ज्यादा खतरनाक है , जनसंख्या असंतुलन....!
- अरविन्द सिसोदिया
भारत में 1950 के दशक में प्रति महिला बच्चों का औसत छह था. भारत ने जनसंख्या विस्फोट की समस्या को समझा और जनसंख्या नियंत्रण के सुनियोजित प्रयास करने वाला पहला देश बना. तब से आधी सदी बाद आज भारत में जन्म दर घट के आधी रह गई है, लेकिन देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती, अब भी भारी जनसंख्या ही है. 20 वीं सदी के प्रारम्भ में जन्म दर और मृत्यु दर दोनो अधिक थीं, भारत में 1960 और 1970 के दौरान जनसंख्या विस्फोट हुआ जबकि मृत्यु दर में अचानक कमी आई क्यों कि महा संक्रामक बीमारियों पर काबू पा लिया गया , परन्तु जन्म दर अधिक (उच्च) ही बनी रही। इस अवधि के दौरान, भारत की जनसंख्या जो 1950 में थी उससे दुगुनी हो गई। तब लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया गया कि वे अपने परिवार का आकार घटाएं और प्रति महिला 6 बच्चों के स्थान पर दो बच्चों को ही जन्म दे। उस समय एक लोकप्रिय अभियान जैसे कि "हम दो हमारे दो " चलाया गया जिसका उद्देश्य छोटे परिवार की वांछनीयता पर ध्यान केन्द्रित करना था।
मगर इस जनसंख्या नियन्त्रण का असर हुआ यह कि समझदार वर्ग विशेष कर हिन्दुओं ने इस का पालन किया और वे एक और दो बच्चों तक सीमित हुए,वही मुसलमानों नें जनसंख्या वृद्धि को एक आन्दोलनात्मक तरीके से विस्फोटित किया , एक की चार पत्नियाँ और उनके असंख्य बच्चों का अधिकार ...! इस षड्यंत्रपूर्ण कायर्वाही के विरुद्ध कोई नहीं बोलता क्यों की यह वोट बैंक का मामला है. यदि इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये तो देश पर जनसंख्यात्मक तरीके से कब्ज़ा कर लिया जाएगा . एक नये पाकिस्तान के उदय की मानसिकता से काम हो रहा है, हस के लिया है पाकिस्तान - लड़ के लेंगें हिंदुस्तान के नारे को कुछ इस तरह से बढ़ाया जा रहा है. इस चेतावनी को सही तरीके से समझना होगा.
१- एक अच्छा तरीका -
केरल में जनसंख्या सन्तुलन की दृष्टि से देखें तो लगभग 30% ईसाई, लगभग 30% मुस्लिम और 10% हिन्दू हैं, बाकी के 30% किसी धर्म के नहीं है यानी वामपंथी है जहां पूरे देश में आबादी तेजी से बढ़ रही है वहीं केरल के कोट्टायम और अलपुझा जैसे जिलों में पूर्वी यूरोप के देशों की तर्ज पर जनसंख्या वृद्धि की दर घटने लगी है। 2001 में मिले आंकड़ों के अनुसार पिछले दशक के मुकाबले यहां सालाना जनसंख्या वृद्धि दर पांच प्रतिशत कम है। आबादी की दर कम होने का एक बड़ा कारण संख्या के बजाए गुणवत्ता पर जोर होना है। केरल विश्वविद्यालय के जनसंख्या विभाग में प्रवक्ता जीके मौली कहती हैं कि शिक्षा से स्वास्थ्य और छोटे परिवार के प्रति आई जागरूकता भी एक वजह है। इसके अलावा धार्मिक विश्वास, संयुक्त परिवार में आस्था, महिलाओं को परिवार का मुखिया बनाने की परंपरा से भी इस बदलाव में मदद मिली है। केरल के लगभग 65 प्रतिशत परिवारों में मातृसत्ता की परंपरा है।वहां समाजसेवियों ने महिलाओं के बीच शिक्षा के प्रति अभियान छेड़ा था। राज्य सरकारों ने भी इस मद में पैसा देने में कोई कंजूसी नहीं की। किसी भी समाज के उत्थान में और आबादी पर नियंत्रण में सबसे अहम भूमिका महिलाओं की ही होगी।
२- हिन्दुओं में दहेज की कुरीती -
हिन्दुओं में दहेज प्रथा के कारण लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है, भ्रूण हत्या के ९९ फीसदी मामले हिन्दुओं से जुड़े हैं . क्यों कि दहेज हत्यों के मामले भी ९५ फीसदी हिन्दुओं की लड़की के जलने या फांशी लगा लेने से जुड़े या पानी में डूबने से हैं . इसका मूल कारण आज भी हिन्दुओं में दहेज के खिलाफ प्रभावी जन जागरण नहीं होना है. दहेज का सामाजिक बहिष्कार नही हुआ है.इस हेतु सामाजिक संगठनों का प्रभावी कार्यक्रम नहं होना माना जाता है. आज पंजाब हरियाणा और देहली में तो लड़कियों की उत्पत्ति दर में काफी अधिक अंतर है.
३- अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण -
अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की एक ही बच्चे की नीति जिसमें एक से ज्यादा बच्चे होना बहुत बुरा माना जाता है. इस नीति के परिणाम स्वरुप जबरन गर्भपात, जबरन नसबंदी, और जबरन शिशु हत्या जैसे आरोपों को बढ़ावा मिला. देश के लिंग अनुपात में 114 लड़कों की तुलना में सिर्फ 100 लड़कियों का जन्म ये प्रदर्शित करता है कि शिशु हत्या प्रायः लिंग के चुनाव के अनुसार की जाती है.
मुझे लगता है कि यह किसी लोकतान्त्रिक देश में संभव नही है, चीन में लोक तन्त्र होता तो वह भी नहीं कर पाता. यह तरीका भी हल्के स्तर का है. मेरा मानना है कि दुष्प्रेरित जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए भारी जुर्माना लगाना एक उचित कदम होगा, मगर वह भी अभी संभव नही है. इसके लिए राजनीतिक इच्छा-शक्ती की जरूरत है. क्यों की देश कि तरक्की पर अनावश्यक जनसंख्या का भारी दवाब रहता है, जो राष्ट्र को अंदर ही अंदर से खोखला करता है . इन परिस्थितियों में केरल वाला रास्ता ही कामयाव हो सकता है , वह है शिक्षा पर ज्यादा जोर देना , गर्भ ग्रहण रोकने वाले उपायों पर ध्यान देना , उन्हें अधिकतम सुलभ बनाना, कम बच्चों के होने पर क्या क्या फायदा है यह बताना. .
- राधाकृष्ण मन्दिर रोड , डडवाडा , कोटा २ , राजस्थान .
- अरविन्द सिसोदिया
मगर इस जनसंख्या नियन्त्रण का असर हुआ यह कि समझदार वर्ग विशेष कर हिन्दुओं ने इस का पालन किया और वे एक और दो बच्चों तक सीमित हुए,वही मुसलमानों नें जनसंख्या वृद्धि को एक आन्दोलनात्मक तरीके से विस्फोटित किया , एक की चार पत्नियाँ और उनके असंख्य बच्चों का अधिकार ...! इस षड्यंत्रपूर्ण कायर्वाही के विरुद्ध कोई नहीं बोलता क्यों की यह वोट बैंक का मामला है. यदि इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये तो देश पर जनसंख्यात्मक तरीके से कब्ज़ा कर लिया जाएगा . एक नये पाकिस्तान के उदय की मानसिकता से काम हो रहा है, हस के लिया है पाकिस्तान - लड़ के लेंगें हिंदुस्तान के नारे को कुछ इस तरह से बढ़ाया जा रहा है. इस चेतावनी को सही तरीके से समझना होगा.
१- एक अच्छा तरीका -
केरल में जनसंख्या सन्तुलन की दृष्टि से देखें तो लगभग 30% ईसाई, लगभग 30% मुस्लिम और 10% हिन्दू हैं, बाकी के 30% किसी धर्म के नहीं है यानी वामपंथी है जहां पूरे देश में आबादी तेजी से बढ़ रही है वहीं केरल के कोट्टायम और अलपुझा जैसे जिलों में पूर्वी यूरोप के देशों की तर्ज पर जनसंख्या वृद्धि की दर घटने लगी है। 2001 में मिले आंकड़ों के अनुसार पिछले दशक के मुकाबले यहां सालाना जनसंख्या वृद्धि दर पांच प्रतिशत कम है। आबादी की दर कम होने का एक बड़ा कारण संख्या के बजाए गुणवत्ता पर जोर होना है। केरल विश्वविद्यालय के जनसंख्या विभाग में प्रवक्ता जीके मौली कहती हैं कि शिक्षा से स्वास्थ्य और छोटे परिवार के प्रति आई जागरूकता भी एक वजह है। इसके अलावा धार्मिक विश्वास, संयुक्त परिवार में आस्था, महिलाओं को परिवार का मुखिया बनाने की परंपरा से भी इस बदलाव में मदद मिली है। केरल के लगभग 65 प्रतिशत परिवारों में मातृसत्ता की परंपरा है।वहां समाजसेवियों ने महिलाओं के बीच शिक्षा के प्रति अभियान छेड़ा था। राज्य सरकारों ने भी इस मद में पैसा देने में कोई कंजूसी नहीं की। किसी भी समाज के उत्थान में और आबादी पर नियंत्रण में सबसे अहम भूमिका महिलाओं की ही होगी।
२- हिन्दुओं में दहेज की कुरीती -
हिन्दुओं में दहेज प्रथा के कारण लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है, भ्रूण हत्या के ९९ फीसदी मामले हिन्दुओं से जुड़े हैं . क्यों कि दहेज हत्यों के मामले भी ९५ फीसदी हिन्दुओं की लड़की के जलने या फांशी लगा लेने से जुड़े या पानी में डूबने से हैं . इसका मूल कारण आज भी हिन्दुओं में दहेज के खिलाफ प्रभावी जन जागरण नहीं होना है. दहेज का सामाजिक बहिष्कार नही हुआ है.इस हेतु सामाजिक संगठनों का प्रभावी कार्यक्रम नहं होना माना जाता है. आज पंजाब हरियाणा और देहली में तो लड़कियों की उत्पत्ति दर में काफी अधिक अंतर है.
३- अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण -
अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की एक ही बच्चे की नीति जिसमें एक से ज्यादा बच्चे होना बहुत बुरा माना जाता है. इस नीति के परिणाम स्वरुप जबरन गर्भपात, जबरन नसबंदी, और जबरन शिशु हत्या जैसे आरोपों को बढ़ावा मिला. देश के लिंग अनुपात में 114 लड़कों की तुलना में सिर्फ 100 लड़कियों का जन्म ये प्रदर्शित करता है कि शिशु हत्या प्रायः लिंग के चुनाव के अनुसार की जाती है.
मुझे लगता है कि यह किसी लोकतान्त्रिक देश में संभव नही है, चीन में लोक तन्त्र होता तो वह भी नहीं कर पाता. यह तरीका भी हल्के स्तर का है. मेरा मानना है कि दुष्प्रेरित जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए भारी जुर्माना लगाना एक उचित कदम होगा, मगर वह भी अभी संभव नही है. इसके लिए राजनीतिक इच्छा-शक्ती की जरूरत है. क्यों की देश कि तरक्की पर अनावश्यक जनसंख्या का भारी दवाब रहता है, जो राष्ट्र को अंदर ही अंदर से खोखला करता है . इन परिस्थितियों में केरल वाला रास्ता ही कामयाव हो सकता है , वह है शिक्षा पर ज्यादा जोर देना , गर्भ ग्रहण रोकने वाले उपायों पर ध्यान देना , उन्हें अधिकतम सुलभ बनाना, कम बच्चों के होने पर क्या क्या फायदा है यह बताना. .
- राधाकृष्ण मन्दिर रोड , डडवाडा , कोटा २ , राजस्थान .
9414180151
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