फ्रांस का संदेश, भारत को जमीनीस्तर पर कठोर जनसुरक्षा व्यवस्था करनी होगी - अरविन्द सिसोदिया bhart ki jan surksha

फ्रांस का संदेश, भारत को जमीनीस्तर पर कठोर जनसुरक्षा व्यवस्था करनी होगी - अरविन्द सिसोदिया 

- अरविन्द सिसोदिया
9414180151

किसी भी राज्य का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा, जमीनी स्तर पर कानून व्यवस्था को स्थापित किया जाना होता है, कानून व्यवस्था राज्य के कर्तव्य में आता है, संविधान में राज्य के कार्यों में कानून व्यवस्था सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं, कानून व्यवस्था के मामले में उन्हें विश्व स्तरीय प्रसिद्धि प्राप्त है। अभी फ़्रांस में दंगे हुये, दंगाई 6 दिन तक बेकाबू रहे। वहाँ से योगी जी की मांग बार बार हो रही थी।

 पूरे देश में लोकतंत्र के नाम पर आसमाजिक तत्वों को स्वतंत्रता मिल गईं और थाने कचहरी इनके अपरोक्ष सहयोगी हो गये इसी कारण, जमीनी स्तर पर कानून व्यवस्था हमेशा बड़ा मुद्दा रहा। उत्तर प्रदेश के नामीगिरामी माफिया और मुंबई का अंडरवर्ल्ड इसके उदाहरण रहे हैं। लगातार 75 वर्ष की स्वतंत्रता में भी गुंडे बदमाश समस्या ही बने हुये है। उत्तरप्रदेश ही इस समस्या से मुक्त हुआ है।

जो भी दल सरकार में होता है, वह जमीनीस्तर पर गुंडों बदमाशों से सांठ गाँठ रखते हैं और खुद ही भू माफिया बन जाते हैं। जो व्यक्ती जनप्रतिनिधि बन जाता है, वह तुरंत ही करोड़पति बनने में जुट जाता है। सरकारी अधिकारी कर्मचारी भी ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना चाहते हैं। इसी कारण जमीनीस्तर पर अपराधियों के होंसले बुलंद रहते हैं। 

राज्य में किसी भी दल की सरकार हो, कम से कम रिपोर्ट दर्ज करने के निर्देश इसलिए होते हैं की आंकड़ों में सुधार दिखाया जा सके। कानून व्यवस्था की स्थिति अच्छी बताई जा सके। जबकि वास्तविकता इसके उलट ही होती है। सिर्फ उत्तरप्रदेश सरकार में कानून व्यवस्था पर 100 प्रतिशत सही सही काम काज हुआ। जहां अपराधी स्वयं जेल जानें थाने पहुंच जाता है।

कांग्रेस जबसे गद्दी से उत्तरी है तब से उसका नेचर बदल गया, उसका प्रयास पूरे देश में कानून व्यवस्था को फैल करना, आराजकता फैलाना है, गुजरात में सबसे पहले गोधरा में ट्रेन बोगी में हिन्दू तीर्थ यात्रियों को कांग्रेस से जुड़े लोगों नें जिन्दा जला कर मारा, गुजरात तो फिर इसकी प्रतिक्रिया में सुलगा था। तब से अब तक लगातार भारत में संम्प्रदायिक जहर घोलने के तरह तरह के टूलकिट और कार्यक्रम बनते और चलते हैं।

 कॉंग्रेस की देखा - देखी बहुत से क्षेत्रीय राजनैतिक दलों का व्यवहार भी इसी तरह का हो रहा है। वे एक वर्ग विशेष को कानून और व्यवस्था से ऊपर रखते हैं, इसी तरह के प्रश्रय से फ्रांस जला और यही भारत में होना है।

चिंताजनक यह है की इस तरह के कृत्य में विदेशी हथियार, धन और संसाधनों का भी उपयोग भी किया जाता है। जिसमें परोक्ष - अपरोक्ष हमारे पड़ोसी देशों की संलिप्तता रहती है।

कुल मिला कर अभी हाल ही में फ़्रांस को जलते हुये देखा गया है, भारत को अब इस विषय पर तुरंत जागना व संभलना होगा। भारत में सभी तरह के मसलों में एक अलग तरह का संम्प्रदायिक दवाब देखने को मिल रहा है, xyz अर्थात सभी दल इस तरह के दवाब में हैं, जो देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरनाक है। केंद्रीय संस्थाओं को इस और अधिकतम ध्यान देना होगा कि जमीनी स्तर पर जनसुरक्षा व्यवस्था मज़बूत हो।

 कानून व्यवस्था के मसले पर, केंद्र सरकार को अत्यंत संवेदनशील होना पड़ेगा, केंद्रीय एजेंसियां राज्यों में अपराधियों को सीधे पकड़ सके इस तरह की व्यवस्था भी करनी होगी। राजस्थान में  उदयपुर में जिस तरह की शिथिलता राज्य सरकार ने बरती और समुदाय विशेष के अपराधियों को अपराध करने का अवसर दिया  वह गंभीर रूप से विचारणीय मसला है। राज्यपालों को भी इस तरह के विषयों पर निगरानी रखनी चाहिए और कठोर कार्रवाई करनी चाहिए, संविधान के रक्षक के रूप में नियुक्त हैं।

कुल मिलाकर केंद्र सरकार को जमीनीस्तर पर जनसुरक्षा के संदर्भ में बहुत ही गंभीर चैतन्य शील एवं सुरक्षा प्रबंधों में पूरी तरह से आत्मनिर्भरता युक्त सशस्त्र प्रणाली को अपनाना होगा,  ताकि जमीनी स्तर पर कोई एक हाथ अपराध के लिए उठे तो उसे 100 हाथ रोकने वाले भी हो। अन्यथा भारत में खतरा फांस से कई गुना अधिक खतरे वाला हो सकता है।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी

इंडी गठबन्धन तीन टुकड़ों में बंटेगा - अरविन्द सिसोदिया

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

सफलता के लिए प्रयासों की निरंतरता आवश्यक - अरविन्द सिसोदिया