प्रश्न - दो माह तक वीडियो किसने छुपा रखा था और क्यों

बड़ा प्रश्न है - मणिपुर का वीडियो दो महीने तक किसने छुपा कर रखा और संसद सत्र के शुभारंभ पर ही क्यों रिलीज किया गया
- अरविन्द सिसोदिया 

मेरे पास कोई सबूत नहीं मगर मन इन प्रश्नों को उठाता है कि भारत की राजनैतिक पार्टी नें जबसे चीन के साथ एमओयू किया है, तब से मेरी सोच इस पार्टी के प्रति अघोषित गद्दार मानने की मजबूरी की हो गईं है।  क्यों की भारत की राजनीति में टूल किट आधारित षड्यंन्त्रों नें पैर जमा लिए हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के साथ ही लगातार कांग्रेस के फेवर में और मोदी सरकार के विरोध में,  टूल किट आधारित षड्यंत्र लगातार चल रहे हैं। भारत की इंटेलिजेंसी को जितना परिपक्व होना चाहिए, वह उस मानक पर शून्य नजर आ रही है। भारत में मोदी सरकार को विफल साबित करने के निरंतर षड्यंत्रपूर्ण कुप्रयास चल रहे हैं। इनके प्रति सचेत और इन्हे विफल करने की महारत इंटेलिजेंसी में होनी चाहिए। आंतरिक व्यवस्था कोई भी व्यवधान रोकना निश्चित रूप से इंटेलिजेंसी आई क्यू का सवाल बनता है। यूँ भी किसी भी दल को आपराधिक षड्यंत्र की अनुमति नहीं दी जा सकती, कानूनन सीधे जेल भेजनें की व्यवस्था है। राष्ट्र की सर्वोच्चता को क्षति बर्दास्त नहीं की जा सकती।

मणिपुर की सांम्प्रदायिक समस्या दो चार दिन की नहीं है। बहुत लंबा इतिहास है और कांग्रेस नें कभी इसका हल नहीं निकलने दिया था। स्वदेशी निवासी और विदेशी अतिक्रमी का संघर्ष इसके मूल में है।

भारत नें मंगोलों के नृसंस अत्याचारी आक्रमणों और उसमे स्त्री अस्मिता की दुर्दशा को देखा है। भारत नें इस्लामिक अत्याचारों और मातृशक्ति पर अत्यंत घृणित अत्याचारों को देखा है। भारत नें कश्मीरी पंडितों को अपनी स्त्रियों को छोड़ जाने के आदेश मस्जिदों से सुने हैं...। येशा सिर्फ भारत में ही नहीं तमाम दुनिया में भी होता आ रहा है। 

जहां जहां भी इस तरह के संम्प्रदायिक मामले उभरते हैं वहाँ वहाँ इस तरह के निम्नस्तरीय घटनाक्रम सामने आते ही हैं। इन्हे कोई एक दम रोक भी नहीं सकता। समाजशास्त्र और अपराधविज्ञान के तमाम महान आचार्य भी इन्हे रोक नहीं सकते। ये समस्या महाभारत काल से है और दोषी कोई एक समाज नहीं होता बल्कि असल दोषी इस तरह के षड्यंत्र का प्रथम सूत्रधार होता है।

गुजरात दंगों का प्रथम सूत्रधार गोधरा था, गोधरा को अंजाम देने वाले कांग्रेस पदाधिकारी थे। यह जांच बहुत जरूरी है की मणिपुर को सुलगाने की घटना का प्रथम सूत्रधार कौन है, दिल्ली के घटनाक्रम के चित्र को मणिपुर से जोड़ कर प्रथम अफवाह फैलाने वाले कौन थे। 

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की मणिपुर में यह वीडियो बनवाकर संसद सत्र तक झुपा कर रखना और ठीक संसद सत्र शुभारंभ के दिन रिलीज करने वाले कौन थे। उन्होंने कई अपराध तो किये ही हैं, बल्कि वीडियो के निर्माण पर भी कई प्रश्न उपस्थित किये हैं।

निश्चितरूप से घटना शर्मसार करने वाली है मगर सबूत को झुपाये रखना भी उससे बड़ा अपराध है। भारत की जनता की आई क्यू बहुत तेज है वह सब समझ रही है, मगर इसकी जाँच केंद्रीय गृह मंत्रालय को अविलंब करवानी चाहिए। 

माना जाता है कि मणिपुर में 4 मई 2023  को  ये अफवाह फैली थी कि , गांव में घुसी भीड़ ने महिलाओं से की दरिंदगी, दो महिलाओं को नग्न करके दौड़ाया गया।
सवाल यह उठता है कि इन दो महीनों में किसी ने भी इस घटना के विरुद्ध कोई आवाज क्यों नहीं उठाई ? मणिपुर से बाहर कोलकाता में नई दिल्ली में तो यह आवाज उठाई जा सकती थी, फिर संसद सत्र का इंतजार क्यों किया गया। 
और फिर इस घटना का वीडियो संसद सत्र के ठीक पूर्व ही क्यों वायरल करवाया गया। यह वीडियो जिसने दो महीने तक छुपा कर रखा क्या वह अपराधी नहीं है।

प्रश्न यही है कि वीडियो बनाने और झुपा कर रखने का क्या मकसद रहा। क्या वीडियो बनबाने में भी कोई षड्यंत्र था?
 बहुत से अनुत्तरित प्रश्न सही उत्तर की प्रतीक्षा में हैं।

मणिपुर से इंसानियत पर सवाल खड़ा कर देने वाले वीडियो की चर्चा जोरों पर है. यहां कुछ लोग इतने वहशी हो गए कि उन्होंने दो लड़कियों को निर्वस्त्र किया, उन्हें बिना कपड़ों के घुमाया और फिर कथित तौर पर उनके साथ रेप भी किया.

वीडियो पर मचे हंगामे के बीच इस घटना की एक टाइमलाइन सामने आई है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि ये शर्मसार करने वाली घटना एक फेक न्यूज फैलने की वजह से हुई। लेकिन मुझे लगता है कि यह भारत को बदनाम करने की सोची समझी साजिस थी।

 मणिपुर में तीन मई को मैतेई (घाटी बहुल समुदाय) और कुकी जनजाति (पहाड़ी बहुल समुदाय) के बीच हिंसा शुरू हुई थी। दरअसल, मणिपुर में मैतेई समाज की मांग है कि उसको कुकी की तरह राज्य में शेड्यूल ट्राइब (ST) का दर्जा दिया जाए। इसके खिलाफ कुकी समाज ने आवाज उठाई और आदिवासी एकजुटता रैली निकाली, जिसका विरोध और बात हिंसा तक पहुंच गई।

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