सावधान फिर गुलामी न आये.... - अरविन्द सिसौदिया

 



शहीदों को सलाम....!
न फूल चढ़े, न दीप जले,
न नाम तुम्हारे जानें हैं।
पर लक्ष्य तुम्हारा गंगा सा पावन,
साहस तुम्हारा हिमालय से ऊंचा।
तुम बलिदान हुए, देश आजाद हुआ,
शत-शत तुम्हें प्रणाम हमारा है।।

आत्मनिरीक्षण अवश्य हो....!
    आजादी की बात यहीं से शुरू होगी। क्योंकि कंगुरों पर किसने ध्वज लहराये, सत्ता का सुख किसने भोगा, उसका महत्त्व नहीं है। महत्त्व इसका है कि इस मजबूत नींव में कौन-कौन समाये हैं। किनके बलिदान पर यह स्वतंत्रता की इमारत खड़ी है। इस इमारत में कौन से रंग भरने के सपने देखे थे, कौन-कौन पूरे हुए और कौन-कौन अधूरे हैं....।
फिर गुलामी न आये....!

    तथ्य की बात यह हे कि यह आजादी एक बहुत बड़ी कीमत अदा करके मिली है, इसे अक्ष्क्षुण्ण रखना होगा और यह भी याद रखना होगा कि अबके अगर गुलाम हुए तो शायद फिर आजाद नहीं हो पायेंगे।
    पिछले साठ साल की उपलब्धि है कि हम आजाद हैं, हमारी सीमायें काफी हद तक यथावत है। पड़ौसी चीन और पाकिस्तान ने हमारे कुछ भू भाग दबा रखे हैं, उन्हें मुक्त करवाना है। सत्ता की अदला बदली हो गई, मगर शेष स्वतंत्रतायें बाकी हैं, गुलामी के अवशेष हटाने हैं। पश्चिम से आ रहा सांस्कृतिक प्रदूषण रोकना है।

हिन्दुत्व की सनातन यात्रा
    हिमालय की हिम नदियों के किनारे पनपी और दुनियाभर में छा गई इस सभ्यता का नाम ‘हिन्दुत्व’ है। इस सभ्यता की यात्रा को ‘सनातन’ कहा जाता है क्योंकि यह सदा नूतनता से भरी हुई है। इसीलिये     संविधान सभा में पहले ही दिन अस्थायी अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा ने इस अमर सभ्यता को कवि इकबाल के शेर से सुशोभित किया था :

‘यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गये जहां से,
बाकी अभी तलक है नामो निशां हमारा।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर ए जहां हमारा।।’

नई विजय  : 15 अगस्त 1947

    हमारी हिन्दू संस्कृति पर आक्रमण होते रहे, क्रूर, असभ्य और बलशाली जातियां आती रहीं और कुछ संघर्ष, कुछ ज्यादतियों के बाद वे हममें ही गुम हो गई, पच गई। क्योंकि वे सब हमसे ही उपजी, हमसे ही बिछुड़ी और श्रेष्ठतायें भूल गईं थी, जिसके चलते अन्ततः हमारी विजय हुई। ऐसी नवीनतम विजय का दिन 15 अगस्त 1947 है, जिसे हम प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं।

सत्य को पहचानो और आगे बढो...!
    किसी भी बात को सोचने के दो तरीके हैं, पहला है गिलास आधा भरा हुआ है, यानि कि सकारात्मक विचारधारा और दूसरा है यह गिलास आधा खाली है यानि कि नकारात्मक विचाराधारा...! मगर दोनों का अपना-अपना महत्त्व है।
    स्वतंत्रता के पश्चात सकारात्मक तथ्य यह है कि आज हम परमाणु शक्ति सम्पन्न देश हैं। प्रक्षेपास्त्र प्रणाली में भी लगातार आगे बढ़ रहे हैं, कम्प्यूटर क्षेत्र में भी आगे हैं, उन्नति की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। कुल मिलाकर आधुनिक जमाने के साथ, विकसित देशों की बराबरी से चलने की कोशिश कर रहे हैं।

    नकारात्मक पहलू यह है कि गुलामी के तमाम अवशेष बने हुए हैं, मातृभाषायें गुलाम हैं। बिजली, पानी में अव्यवस्था है, 60 फीसदी क्षैत्रफल अभी भी वर्षा पर निर्भर है, कृषक आत्महत्यायें कर रहे हैं। गरीब और गरीब हो रहा है, अमीर और अमीर हो रहा है, दोनों की बीच खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है। अपराध बढ़ रहे हैं, पूरा देश संगठित अपराधियों की चपेट में आ रहा है, जनसंख्या आक्रमण हो चुका है, घुसपैठ जारी है, आतंकवाद और नक्सलवादी हिंसा से देश लहुलुहान है, साम्प्रदायिकता को सरकारी शह दी जा रही है। विदेशी षडयंत्र आसानी से फलफूल रहे है। विदेशी धर्मान्तरण की साम्प्रदायिकता अट्टाहस कर रही है।

    अच्छी-बुरी दोनों तरह की बातें हैं, मगर देश में लोकतंत्र है, स्वतंत्रता है और मूल अधिकार हैं। जिम्मेवार और लोकतंत्र रक्षक विपक्ष और अन्य दल है। आज देश अपनी प्रगति को स्वतंत्र हैं।

गांधीजी : अहिंसा से आजादी की ओर
    महात्मा गांधी ने आजादी की लडाई में जिस अहिंसा के मार्ग को चुना, उसे आज संयुक्त राष्ट्र महासंघ ने भी स्वीकार किया और उनके जन्म दिन 2 अक्टूबर को विश्व शांंत दिवस घोषित किया है। यह कोई नया अविष्कार नहीं था, वरन् यही सनातन सभ्यता है और यह उसका एक पड़ाव है। इससे पूर्व भी हिन्दुत्व ने हमेशा ही विश्व कल्याण और मानव कल्याण की बात की है, क्योंकि यह संस्कृति जानती है कि असली राजा तो परमपिता परमेश्वर ही है और उसकी आज्ञायें ही अक्ष्क्षुण्य है और यह पृथ्वी प्राणियों की विभिन्न प्रजातियों का एक कुटुम्ब है। महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा का प्रयोग किया जो सनातन विशेषता की ही विजय है।

शौर्य शिरोमणि : नेताजी सुभाषचंद्र बोस
    स्वतंत्र भारत की पहली सरकार सही मायने में, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में 21 अक्टूबर 1943 में बनी। इसका एक मंत्रीमण्डल भी था, इसे विश्व के 9 देशों ने मान्यता दे दी थी। नेताजी के भाषण रेडियो से प्रसारित होते थे। नवम्बर 1943 में जापान ने अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह इस सरकार को सौंप दिये। 31 दिसम्बर 1943 को इस सरकार ने इन द्वीपों पर अधिकार कर लिया और इनका नाम ‘शहीद’ और ‘स्वराज’ रख दिया। आजाद हिन्द फौज ने कोहिमा में भी तिरंगा फहरा दिया।

    इस बीच जापान का पतन हो गया,18 अगस्त 1945 को टोकियो जाते हुए विमान दुर्घटना में सुभाषचन्द बोस की कथित मृत्यु हो गई। नेताजी विश्व में हिन्दुत्व के शौर्य पुरूष बनें।

पटेल : 565 रियासतों का विलय
    यूं तो सारी कांग्रेस पार्टी और देश सरदार पटेल प्रधानमंत्री के रूप में चाहता था किंतु गांधीजी की जिद के कारण पं. जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने। अंग्रेजों ने और विशेषकर नेहरू जी के खासमखास लॉर्ड माउंटबैटन ने अपना पिण्ड छुड़ाने के लिए रियासतों को पूरी तरह स्वतंत्रता दी थी कि वह अलग स्वतंत्र राष्ट्र रहें अथवा भारत अथवा पाकिस्तान में से किसी में भी सम्मिलित हो जायें। ऐसी स्थिति में 565 रियासतें 565 लघु राष्ट्र हो गये थे, किंतु यह सरदार वल्लभ भाई पटेल का ही पुरूषार्थ था तथा यह उन रियासतों का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद था कि जो विशाल भारत के रूप में एक क्षैत्रफल और एक झण्डे के नीचे खड़े हुए। जिन्होंने एक नेता और एक संविधान को राज्यसत्ता और तमाम सम्मानों को त्याग कर स्वीकार किया।

आजादी के बहाने,  भागे अंग्रेज..
    अंग्रेजों ने आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें बड़ी सजा देने दिल्ली लाये। सैनिक विद्रोह हो गया, अंग्रेज समझ गये कि अब भागे नहीं तो हिन्दुस्तानी भगा-भगा कर मार देंगे और आजादी का असल कारक तत्व भी यही घटनाक्रम बना। सच यह है कि भारत तो आजाद 1948 में करना था, मगर1947 में ही आजादी देकर अंग्रेज भारत से भाग चुके थे। इसका एक ही कारण था कि फौज विद्रोही हो चुकी थी, जिसका मूल कारण नेताजी सुभाषचंद्र बोस की शहादत थी !!

पश्चिमी भाषा में, आजादी की गाथा
    कोलम्बिया विश्वविद्यालय के प्रो. सी.डी. हेजन ने अपनी पुस्तक आधुनिक यूरोप का इतिहास में लिखा है कि  ‘‘..1857 में सशस्त्र क्रांति की असफलता के पश्चात अंग्रेजों ने अपनी स्थिति को वहां पर ;भारत मेंद्ध अत्यंत सुदृढ़ कर लिया था किन्तु राष्ट्रीय भावना पूर्णतः दबाई नहीं जा सकती थी।

.....अंग्रेजों ने 1935 के अधिनियम के अनुसार प्रांतों को स्वाधीनता प्रदान की किन्तु भारतीय उससे संतुष्ट नहीं हुए।’’
    उन्होंने आगे लिखा है कि ‘‘..इसके पश्चात 1939 में द्वितीय विश्वयु( प्रारम्भ होने पर भारत में स्वतंत्रता की भावना और अधिक बलवती हुई। जनता ने अंग्रेजी शासन के साथ उसकी यु( सम्बन्धी नीति में पूर्ण सहयोग नहीं किया, किन्तु महात्मा गांधी विदेशी सहायता से भारत को मुक्त नहीं कराना चाहते थे। फलतः नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भारत छोड़कर चले गये और उन्होंने जापानी संरक्षण में आजाद हिन्द सरकार की स्थापना की। उधर महात्मा गांधी ने 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया।

    ‘‘....मुस्लिम लीग देश की स्वतंत्रता में बाधा उत्पन्न करती रही, किन्तु 1945 में यु( समाप्ति के पश्चात इंग्लैंड की श्रमिक सरकार ने भारत को स्वतंत्र करने का वास्तविक प्रयत्न किया। फलतः 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया किन्तु उसका विभाजन हुआ और पाकिस्तान की स्थापना हुई।’’

    अंत में मैं सिर्फ एक ही बात कहूंगा कि इस विश्व का सर्वोत्तम ग्रंथ जो मानव चेतना का एक महाभियान है ‘श्रीमद्भगवद् गीता’ में एक प्रेरणा है, एक मार्गदर्शन हैः

यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत,
अभ्युत्त्थानमधर्मस्य  तदात्मानं सृजाम्यहम्।

    उस तेजस्वी ईश्वर की हम तेजस्वी संतान हैं। हजारों अवसरों पर हमने यह सि( किया है, अब हमारे सामने फिर चुनौतियां हैं और उन पर विजय प्राप्त करने के लिये हम ईश्वर के सेनापति बनकर, दो-दो हाथ करें। आगे बढ़े, हीनता को परास्त करें, समस्याओं को परास्त करें और उठ कर आसमान छू लें। ताकि मातृभूमि को परम वैभव पर बिठाने का स्वप्न पूरा हो सके।

_ राधाकृष्णमंदिर रोड़, डडवाड़ा, कोटा जं.

9414180151

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