जब हनुमान जी ने समाप्त किया सत्ताजनित अहंकार को Lord Hanuman Ji
जब सत्ता में कोई व्यक्ति होता है तो उसके इर्द-गिर्द रहने वालों में उस सत्ता के लाभों के कारण, उस सत्ता की सुविधाओं के कारण, इस सत्ता के बर्चस्व के कारण, एक अनापेक्षित अभिमान से घिर जाते है, फिर वही अभिमान उनके पतन का कारण बनता है। यह एक नियति का स्थिर नियम है जो कि हमेशा ही होता रहता है। विशेष कर यह अभिमान बड़े राजनैतिक लोगों के सहायक, गनमेन और अन्य कार्यों से निकट रहने वालों में तो अक्सर घर कर जाता है।
इस तथ्य को समझने के लिए हम भगवान कृष्ण से जुड़ी एक लोक कथा को यहां पर आलोकित करते हैं -सभी तरह के घटनाक्रमों के बाद भगवान श्री कृष्ण द्वारका में शांति पूर्वक शासन कर रहे थे, उनकी एक पत्नी सत्यभामा जो की अत्यंत रुपवती भी थीं , उन्होंने श्री कृष्ण जी से पूछा हे कि भगवन जब आप त्रेता युग में श्री राम के स्वरूप में थे तब क्या माता सीता जी भी मेरी ही तरह थी, सत्यभामा के प्रश्न से निश्चित रूप से उसके स्वरूप अभिमान, कहीं ना कहीं परिलक्षित हो रहा था, भगवान सर्वव्यापी हैं सब कुछ समझते हैं, उनको समझने में जरा सा भी विलंब नहीं हुआ और वे समझ गए कि सत्यभामा अपनी तुलना सीता से कर रही है।
सत्यभामा के स्वरों के साथ ही भगवान के निकट रहने वाले गरुड़ जी का भी स्वाभिमान जाग गया, गरुण जी ने भी भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि हे भगवान मेरे जैसी तेज गति से आकाश में विचरण करके विभिन्न प्रकार के कार्यों को संपन्न करने वाला कोई और भी है क्या। अभी गरुड़ की शांत ही नहीं हुए थे कि भगवान के ही साथ रहने वाले सुदर्शन चक्र का भी स्वाभिमान जाग गया, सुदर्शन चक्र ने कहा कि हे प्रभु मुझे यह बताइए क्या मैं मेरी तरह से कोई शत्रु का संहार करने में मुझ से भी श्रेष्ठ कोई है।
भगवान श्रीकृष्ण समझ गए कि यह सत्ता का स्वाभिमान या अभिमान है। सत्ता के साथ, शक्ति के साथ सम्पन्नता के साथ, वही उसके समापन का कारण भी बनता है, इसलिए शास्त्र कहते हैं अभिमान से बचो उसे समाप्त करो।
भगवान श्रीकृष्ण उनके अति निकट रहने वाले इन तीनों की अपनी - अपनी श्रेष्ठता की शक्ति को सर्वश्रेष्ठ मानने के अभिमान को समझ गए।उन्होंने कहा कि तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर मैं दूंगा तो यह ठीक नहीं होगा। क्यों कि उत्तर से संतुष्ट होना जरूरी नहीं होता। तुम सब लोग मेरे साथ निरंतर रहते हो और भविष्य में भी मेरे साथ ही निरंतर रहना है। इसलिए मेरा तुम्हारे साथ हित और स्वार्थ भी जुडा हुआ है।
इसलिए तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर, तुम्हारे तथ्यों का निर्णय ऐसा ही व्यक्ति कर सकता है जो किसी भी तरह के प्रलोभन से, लालच से परे हो, शुद्ध रूप से न्याय करे। तुम सभी मेरे साथ रहते हो, इसलिए जो तुम्हारी ताकतों से डरे बिना भी सच कहे है, वही सही बात कह सकता है। फिर जिसने श्रीराम युग की सीता जी को भी देखा हो और वर्तमान सत्यभामा को भी.... ऐसी शक्ति का कोई नाम ऐसे व्यक्तित्व का कोई नाम हो तो बताओ, ताकि उन्हें न्यायाधीश बनाकर, इन प्रश्नों का उत्तर प्राप्त कर सकें सत्यभामा, गरुड़ जी और सुदर्शन चक्र.. तीनों ऐसे किसी व्यक्ति का नाम सुझा पाए जो रामायुग से लेकर के और वर्तमान तक का ज्ञाता हो ..., तब भगवान श्रीकृष्ण ने निर्णय दिया हे गरुड़जी श्रीराम युग के पूरी तरह निर्भीक श्री हनुमान जी ही इस समय हैं, वे चिरंजीवी आप उनको लेकर आइये वे ही आप सभी के प्रश्नों के उत्तर देंगे।
उन्होंने सत्यभामा से कहा कि देखो हमको राम और तुमको सीता के रूप में वस्त्र पहन कर के यहां रहना होगा, इस भेद को कोई न जाने इसलिए तब तक सुदर्शन चक्र तुम मुख्य दरवाजे पर रहोगे। किसी को भी अंदर आने नहीं दोगे। वहां से अंदर कोई भी नहीं आ पाए जब तक कि इसका निर्णय ना हो जाए, कोई यह ना देख पाए श्री कृष्ण और सत्यभामा यहां राम और कृष्ण सीता बने हुए हैं। गरुड़ जी आप तुरंत जाकर के हनुमान जी को लेकर के आइए ताकि जल्दी से जल्दी आप तीनों के प्रश्नों के उत्तर दिए जा सके।
भगवान श्री कृष्ण और सत्यभामा राम और सीता का स्वरूप धारण करने चले गए, गरुड़ जी हनुमान जी को लेने के लिए चले गए, सुदर्शन चक्र मुख्य दरवाजे पर तैनात हो गये कि कोई भी आ जा ना सके।
गरुड़ जी ने अपनी उड़ान भरी और हनुमान जी के पास पहुँचे गये और विनय की कि भगवान श्री कृष्ण ने आप को दर्शन हेतु बुलायाहै,आमंत्रित किया है, आप मेरे साथ चलें ताकी समय नष्ट न हो। मैं आपको लेकर के वहां तुरंत शीघ्र से शीघ्र पहुंचना चाहता हूं। हनुमान जी ने मुस्करा कर कहा कि जरूर पर में आप पर बोझ नहीं बनना चाहता, आप भगवान श्री कृष्ण जी के पास पहुंचें, मैं आता हूं।
गरुड़जी वापस जब भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचे तो वहाँ हनुमान जी पहले से ही बैठे हुए थे, गरुड़ जी को इस प्रश्न का उत्तर मिल गया कि उन से भी तेज गति से कोई आकाश में आ जा सकता है।उन्हें अपने अभिमान पर लज्जा भी आई।
तब ही गरुड़ जी के सामने ही भगवान श्री कृष्ण ने हनुमान जी महाराज से पूछा कि आप यहां तक कैसे आगये, मैंने अपने सुदर्शन चक्र को मुख्य दरवाजे पर तैनात किया हुआ था,उनसे कहा भी था कि मेरी अनुमति के बिना अंदर कोई आयेगा। हनुमान जी ने अपना मुंह खोला और उसमें से सुदर्शन चक्र को निकाल कर हथेली पर रख कर भगवान श्री कृष्ण जी को अर्पित कर दिया, उनके सामने रख दिया, और कहा इसने मुझे रोकने की कोशिश की थी किन्तु आपसे मुझे मिलने से कोई रोक सकता है क्या? भगवान श्री कृष्ण नें सुदर्शन चक्र की ओर देखा, सुदर्शन चक्र की आँखे नीचे झुकी हुई थीं, इन्हे उत्तर मिल चुका था की वे सबसे बल शाली नहीं हैं।
हनुमान जी के सामने गरुड़ जी और सुदर्शन चक्र की स्थिति देखकर सत्यभामा भी मन ही मन सहमने लगी, तभी हनुमानजी भगवान श्रीकृष्ण से बोले हे प्रभु आप श्रीराम युग में माता सीता जी के साथ विराजमान रहते हुए ही शोभित होते थे। जब माता सीता नहीं होती थीं तो कोई छाया भी आपके निकट नहीं पहुँचे सकती थी। माता सीता जी जैसी लज्जा की सुचिता, आत्मीयता की गरिमा, स्नेह भाव का अपनत्व आपकी शोभा को सम्मान प्रदान करता है। यह कैसी मजबूरी आ गई कि आपको अपने साथ एक दासी को बिठाना पढ रहा है।.... दासी शब्द सुनते ही सत्यभामा के पैरों के नीचे से भी जमीन निकल गई।
भगवान श्रीकृष्ण से पूछे गये प्रश्नों के उत्तर सभी को मिल गये,अपने अपने अभिमान के कारण तीनों को लज्जित होना पड़ा। हनुमान जी महाराज ने इन तीनों के अभिमान को ध्वस्त कर दिया।
प्रभु की लीला ही थी जिसने बिना खुद कुछ कहे तीनों को यह बता दिया कि संसार की परम श्रेष्ठ शक्ति होने के बावजूद भी ईश्वर की कृपा के बिना उसका कोई अस्तित्व नहीं है।
हनुमान जी ने बड़े आराम से कहा सर्वोच्चता आपमें नहीं है उसमें है जिसने आपको बनाया है। गरुड़ जी अपने कार्य, आकाशमार्ग में सबसे तेज गति से चलने में श्रेष्ठ हैं किन्तु उन्हें बनाने वाला उनसे भी श्रेष्ठ है। सुदर्शन चक्र जी तुम्हारे पास जो कुछ भी है वह मेरे मुंह में बेजान है, क्यों कि कोई भी सर्वोच्च नहीं ईश्वर के शिवाय। शक्ति उसमें है जिसने तुम्हें सुदर्शन चक्र बनाया।
उन्होंने कहा सत्यभामा जी आपसे तो कुछ कहना नहीं चाहता, आप राजमहल में सबसे उच्च हैं, रुपवती हैं, किन्तु माते स्त्री का सबसे बड़ा आभूषण उसका लज्जामय होना है, सदचरित्र है शीलवान गुणवान होनें से गरिमा होती है रूप का तो कोई महत्व ही नहीं है। मातृशक्ति को यह समझना चाहिए वो अपनी संतान की प्रथम गुरु है उसका सदचरित्र और सदविचार ही संतानों के प्रेरणा स्रोत होते है।
याद दिला दें माता सीता ने हनुमान जी को यह वर दिया था कि वे अमर रहे। इसलिए सनातन धर्म में जो सात चिरंजीवी कहे गए हैं उनमें एक हनुमान जी महाराज भी हैं जो मन्वंतर के अंत तक जीवित रहेंगे, यही ऐसे एकमात्र हैं जो श्री राम के युग से लेकर के श्री कृष्ण के युग तक थे और वर्तमान में भी हैं और भविष्य में भी रहेंगे। कलयुग में बालाजी की सर्वोच्चता स्वाभाविक है।
यह कहानी लोकथाओं में अनेकों प्रकार से सुनाई जाती है,मैंने यहां इसलिए सुनाई है कि राष्ट्रवाद की राजनीति में भी और सांस्कृतिक उत्िान की संस्थाओं में भी अहंकार दर्शन की अति सामनें आ रही है जो कि पूरी तरह अनुचित है। भारत में राष्ट्रवाद और सांस्कृति उत्थान का वैभव मात्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तपस्या से और लोकशिक्षण से प्राप्त हुआ है। संघ से शिक्षित स्वंयसेवकों में से ही पूर्व प्रधानमंत्री अटलविहारी वाजपेयी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जैसे रत्नों के कारण देश अपने आपको बचा पा रहा है।
किन्तु बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो बहुत बड़े-बड़े पदों पर बहुत बड़े-बड़े नेतृत्व पर आसीन हैं, मगर वे ये भूल गए हैं कि उनकी असली शक्ति, असली ऊर्जा कहां से है और इससे अलग होते ही उनका क्या हश्र होना है। इस पर किसी अन्य को कुछ कहने की जरूरत नहीं....जो लोग समझ जाएँ वे सुधार करलें....। कर्तव्यनिष्ठ बनें....। ध्येयपथ को न भूलें।
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