भगवान दत्तात्रेय और चौबीस गुरु
| | भगवान दत्तात्रेय और चौबीस गुरुओं | |
त्रिशक्तियों का समन्वय हैं भगवान दत्तात्रेय
दत्तात्रेय को शिव का अवतार माना जाता है, लेकिन वैष्णवजन उन्हें विष्णु के अंशावतार के रूप में मानते हैं। उनके शिष्यों में भगवान परशुराम का भी नाम लिया जाता है। तीन धर्म (वैष्णव, शैव और शाक्त) के संगम स्थल के रूप में त्रिपुरा में उन्होंने लोगों को शिक्षा-दीक्षा दी। तंत्र से जुड़े होने के कारण दत्तात्रेय को नाथ परंपरा और संप्रदाय का अग्रज माना जाता है। इस नाथ संप्रदाय की भविष्य में अनेक शाखाएं निर्मित हुईं। भगवान दत्तात्रेय नवनाथ संप्रदाय से संबोधित किया गया है। भगवान दत्तात्रेय की जयंती मार्गशीर्ष माह में मनाई जाती है। दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं इसीलिए, उन्हें परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु और श्रीगुरुदेवदत्त भी कहा जाता है। उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है। हिंदू धर्म के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था, इसीलिए उन्हें त्रिदेव का स्वरूप भी कहा जाता है। दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं। भगवान दत्तात्रेय से वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था।शिक्षा और दीक्षा- भगवान दत्तात्रेय ने जीवन में कई लोगों से शिक्षा ली। दत्तात्रेय ने अन्य पशुओं के जीवन और उनके कार्यकलापों से भी शिक्षा ग्रहण की। दत्तात्रेयजी कहते हैं कि जिससे जितना-जितना गुण मिला है उनको उन गुणों को प्रदाता मानकर उन्हें अपना गुरु माना है। इस प्रकार मेरे 24 गुरु हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी। पुराणों अनुसार इनके तीन मुख, छह हाथ वाला त्रिदेवमयस्वरूप है। चित्र में इनके पीछे एक गाय तथा इनके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। औदुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास बताया गया है। विभिन्न मठ, आश्रम और मंदिरों में इनके इसी प्रकार के चित्र का दर्शन होता है। भगवान दत्तात्रेय के चित्र से उनका अद्भुत संतुलनकारी व्यक्तित्व प्रकट होता है।
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दत्तात्रेय जी के 24 गुरू
दत्तात्रेय जी ने अपने 24 गुरूओं की कथा सुनाई और कहा कि मेरी दृष्टि जहाँ भी गई, मैंने वहीं से शिक्षा ग्रहण की|
दत्तात्रेय जी का प्रथम गुरू पृथ्वी है| पृथ्वी से मैंने उपकार और सहनशीलता ग्रहण की| पृथ्वी में यदि कोई एक दाना डाले तो वह अनंत में परिवर्तित हो जाता है| यही पृथ्वी का उपकार है| पृथ्वी के ऊपर कोई कुछ भी फेंके (कूड़ा, कचरा इत्यादि) फिर भी पृथ्वी सबको धारण करती है| यह पृथ्वी की सहनशीलता है| व्यक्ति को उपकारी एवं सहनशील होना चाहिए। पृथ्वी का एक नाम क्षमा भी है| क्षमाशील व्यक्ति प्रभु को बहुत प्रिय है|
दत्तात्रेय जी के द्वितीय गुरू वायु है| वायु का अपना कोई गन्ध नहीं है| उसको जैसा संसर्ग मिले, वह वही गुण ग्रहण कर लेती है| वायु यदि उपवन में चले तो खुशबू ग्रहण देती है और यदि नाली के पास हो तो बदबू देती है| जैसे कि अच्छे लोगों के मिलने से सुगन्ध आती है| जीवन में संग का असर अवश्य पड़ता है| अतः साधक को नित्य सत्संग में रहना चाहिए।
तृतीय गुरू आकाश है| आकाश सर्वव्यापक है| कोई भी जगह आकाश के बिना अर्थात् खाली नहीं है| इसी प्रकार आत्मा भी सर्वव्यापक हैं| चतुर्थ गुरू जल है| जल का कोई आकार नहीं होता| यह 0'c होता है| इसका तापमान बदलने से वाष्प, बर्फ इत्यादि का रूप बन जाता है| इसी प्रकार भक्तों की भक्ति की शीतलता से निराकार परमात्मा भी आकार ग्रहण कर लेता है|
पंचम गुरू अग्नि है| जिस प्रकार से अग्नि को किसी भी चीज का संसर्ग हो तो वह सबको भस्म कर देती है, उसी प्रकार से ज्ञान की अग्नि भी जीवन के सभी कर्म-समूह को भस्म कर देती है| षष्ठम गुरू चन्द्रमा है| चन्द्रमा सबको शीतलता देता है| चन्द्रमा की कलाएँ शुक्ल-पक्ष और कृष्ण-पक्ष के अनुसार घटती-बढ़ती रहती हैं, लेकिन इस घटने-बढ़ने का चन्द्रमा पर कोई प्रभाव नहीं होता| उसी प्रकार आत्मा भी विभिन्न शरीर धारण करती है लेकिन उन शरीरों की अवस्थायें परिवर्तित होने से आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता| सप्तम गुरू सूर्य है| सूर्य की प्रखर किरणें समुद्र पर पड़ती हैं, वही किरणें समुद्र का खारा पानी ग्रहण करती हैं और उस खारे पानी को मेघ बना कर अर्थात् मीठा जल बना कर पृथ्वी पर बरसाती हैं| इससे शिक्षा मिलती है कि कटुवचन सुनकर भी मीठे वचन ही बोलने चाहिए|
अष्टम गुरू कबूतर है| कबूतर ने मोह के कारण अपने बच्चे और कबूतरी के पीछे-पीछे बहेलिया के जाल में फँसकर, अपने प्राण त्याग दिए| इसी प्रकार मनुष्य भी अपने परिवार और बच्चों के मोह में फँसकर जीवन व्यर्थ गँवा देता है| भगवान का भजन नहीं करता| मोह सर्वनाशक होता है।
नवम गुरू अजगर है| मनुष्य को अजगर के समान जो भी रूखा-सूखा मिले, उसे प्रारब्ध-वश मानकर स्वीकार करें| उदासीन रहे और निरंतर प्रभु का भजन करे| मनुष्य के अन्दर अजगर की तरह मनोबल, इन्द्रियबल और देहबल तीनों ही होते हैं| अतः सन्यासी को अजगर की तरह ही रहना चाहिए|
अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम। दास 'मलुका' कह गये सबके दाता राम।।
अजगर से संतोष की शिक्षा मिलती है| यदि जीवन में संतोष रूपी धन आ गया (जब आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान) तो सब धन बेकार है| प्रभु ने हमें जो भी दिया है वह हमारी योग्यता से नहीं बल्कि अपनी कृपा से दिया है| चाहे वह मणिमाला ही क्यों न हो| मनुष्य की तृष्णा कभी भी नहीं मिटती, उसका पेट कभी नहीं भरता| मनुष्य दूसरे के सुख को देखकर दुःखी होता है, अपने दुःख से दुःखी नहीं होता, यही सबसे बड़ी दरिद्रता है|
दसवाँ गुरू सिन्धु (समुद्र) है| साधक को समुद्र की भाँति अथाह, अपार, असीम होना चाहिए और सदैव गम्भीर व प्रसन्न रहना चाहिए जैसे कि समुद्र में इतनी नदियों का जल आता है, परंतु समुद्र सबको प्रसन्नता व गम्भीरता से ग्रहण करता है| न तो किसी की उपेक्षा ही करता है और न ही किसी की इच्छा(कामना) ही करता है| हमें भी जो मिलता है, ईश्वर कृपा मानकर, प्रेम से स्वीकार करना चाहिए| मनुष्य के अन्दर शांति आनी चाहिए परंतु अहंकार नहीं होना चाहिए कि मेरे पास इतना कुछ है (बड़ा योगी हूँ, साधक, भक्त इत्यादि हूँ)| ग्यारहवाँ गुरू पतिंगा है| जिस प्रकार से पतंगा अग्नि के रूप पर आसक्त होकर भस्म हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य भी रूप की आसक्ति में फँस कर जीवन नष्ट कर देता है| रूपासक्ति भक्ति में बाधक है| सुन्दर संसार नहीं, संसार के अधिष्ठाता सुन्दर हैं| ऐसी एक कथा आती है कि ब्रह्मा जी जब सृष्टि रचने लगे तब ब्रह्मा जी के मन में आया कि सुन्दरता के बिना सृष्टि में आकर्षण भी नहीं होता| इसीलिये ब्रह्मा जी ने भी, सृष्टि रचने के लिये, भगवान से सुन्दरता माँगी थी| भगवान ने कहा कि "एक तिनका समुद्र में डाल देना| उस तिनके को समुद्र से निकालने पर उसके ऊपर जितने बिन्दु हों, उसी सिन्धु के बिन्दु की सुन्दरता से सृष्टि की रचना करना|" सुन्दरता कभी समाप्त नहीं होगी। अब सोचें कि जब सुन्दरता के सिन्धु के बिन्दु में इतना सामर्थ्य है तो फिर सिन्धु में कितना होगा? शिक्षा:-- अन्दर से तो हम सब एक हैं| शारीरिक सुन्दरता तो मात्र बाहर का पेकिंग है| वह packing किसी का golden है तो किसी का iron है| साधक को ठाकुर के सुन्दर-सुन्दर रूपों का चिंतन करके निहाल होना चाहिए और उसी में मिल जाना चाहिए| बारहवाँ गुरू मधुमक्खी है| मधुमक्खियाँ कई जगह के फूलों से रस लेकर मधु (शहद) एकत्रित करती हैं| मनुष्य को चाहिए कि जहाँ कहीं से अच्छी शिक्षा मिलती हो, ले लेना चाहिए| तेरहवाँ गुरू हाथी है| जिस प्रकार से हाथी नकली हथिनी के चंगुल के कारण पकड़ा जाता है, उसी प्रकार मनुष्य भी कामाशक्ति के कारण बन्धन में फँस जाता है| अतः मनुष्य को कामाशक्ति का त्याग करना चाहिए| चौदहवाँ गुरू मधुहा (शहद निकालने वाला) है| मधुमक्खियों ने शहद एकत्रित किया, किंतु शहद निकालने वाला संग्रहीत शहद को निकाल कर ले जाता है| इससे यह शिक्षा मिलती है कि संग्रह करने वाले उपयोग से वंचित रह जाते हैं| उपयोग दूसरा व्यक्ति करता है| अतः केवल संग्रह ही नहीं, अपितु संग्रह की गई वस्तुओं का सदुपयोग करना चाहिए|
पन्द्रहवाँ गुरू हिरण है| हिरण संगीत के लोभ में पड़कर पकड़ा जाता है क्योंकि वह कान का कच्चा होता है| मनुष्य को भी विकार पैदा करने वाला या संसार की तरफ खींचने वाला संगीत नहीं सुनना चाहिए| सोलहवाँ गुरू मछली(मीन) है| मछुआरे मछली पकड़ने के लिये डेढ़ा में धागा बाँध कर, उस धागे में एक काँटा और उस काँटे में आटे की गोली का लालच देकर मछली पकड़ते हैं| इसी प्रकार से साधक को विषयों की आसक्ति का काँटा अर्थात् लोभ खींचता रहता है जिससे कि उसकी साधना भंग हो जाती है| सत्रहवाँ गुरू वेश्या पिंगला:--एक पिंगला नाम की वेश्या थी। उसे हमेशा अपने ग्राहक की अपेक्षा, आशा, चिंता लगी रहती थी | एक दिन पिंगला पुरूष की प्रतीक्षा में बैठी थी| सन्ध्या हो गई, कोई नहीं आया| उसने विचार किया कि जैसी प्रतीक्षा जो मैंने संसार के लिये की , वैसी प्रतीक्षा जो मैंने प्रभु के लिये की होती तो मेरा कल्याण हो जाता| तब से उसने संसार की आशा को त्याग दिया|
शिक्षा:--इसी प्रकार से मनुष्य की आशा, कामना ही उसके दुःख का कारण है| "आशा ही परमम् दुःखम्" आशा ही व्यक्ति को कमजोर बनाती है, आशा से व्यक्ति का आत्मबल चला जाता है| आशा के कारण ही व्यक्ति अपमान भी सहन करता है| आशा को त्यागने से ही जगत तमाशा लगने लगता है और व्यक्ति सामर्थ्यवान बन जाता है| उसका आत्म-विश्वास जग जाता है|
एक कवि ने लिखा है कि:-- आशा ही जीवन मरण निराशा अरू। आशा ही जगत की विचित्र परिभाषा है।। आशावश कोटिन्ह यज्ञ जप तप करत है नर। आशा ही मनुष्य की समस्त अभिलाषा है।। आशावश कोटिन्ह अपमान सहकर भी नर। बोलता बिहँसि के सुधामयी भाषा है।। आशावश जेते नर जग के तमाशा बने। तजि जिन्ह आशा तिन्ह जग ही तमाशा है।।
अठारहवाँ गुरू कुररपक्षी:---कुररपक्षी अपनी चोंच में माँस का टुकड़ा लेकर उड़ रहा था, तभी उसके पीछे कुररपक्षी से बलवान बड़ा पक्षी उसके पीछे लग गया और चोंच मार-मार कर उसको वेदना देने लगा| जब उस कुररपक्षी ने उस माँस के टुकड़े को फेंक दिया, तभी कुररपक्षी को सुख मिला| अन्य पक्षी मांस के टुकड़े की तरफ लग गये। कुररपक्षी उनके आक्रमण से मुक्त हुआ। इससे शिक्षा मिलती है कि संग्रह ही दुःख का कारण है, जो व्यक्ति शरीर या मन किसी से भी किसी प्रकार का संग्रह नहीं करता, उसे ही अनंत सुखस्वरूप परमात्मा की प्राप्ति होती है|
उन्नीसवाँ गुरू बालक:--बालक इतना सरल होता है कि उसे मान-अपमान किसी की चिंता नहीं होती| अपनी मौज में रहता है| इससे शिक्षा मिलती है कि निर्दोष नन्हें बालक की तरह, सरल, मान-अपमान से परे ही व्यक्ति ब्रह्मरूप हो सकता है और सुखी रह सकता है|
बीसवाँ गुरू कुमारी:--कुमारी से शिक्षा मिली कि साधना एकांत में होती है, चिंतन भी एकांत में होता है, यदि समूह में चर्चा हो तो वह सत-चर्चा| वही सच्चर्चा का आधार लेकर सत् परमात्मा से जुड़ जाये तो वह सत्संग है| सत् परमात्मा का ही नाम है|
एक कुमारी कन्या के वरण के लिये कुछ लोग आए थे| घर में कुमारी अकेली थी| उसने सभी का आदर-सत्कार किया| भोजन की व्यवस्था के लिये कुमारी ने घर के अन्दर धान कूटना शुरू किया जिससे कि उसके हाथ की चूड़ियाँ आवाज करने लगीं| कुमारी ने एक चूड़ी को छोड़कर बाकी सभी चूड़ियों को धीरे-धीरे हाथ से निकाल दिया और धान कूटकर, भोजन के द्वारा सभी का सत्कार किया| साधक को साधना एकांत में ही करना चाहिए| इक्कीसवाँ गुरू बाण बनाने वाला:--इससे सीखा कि आसन और श्वास को जीतकर वैराग्य और अभ्यास के द्वारा अपने मन को वश में करके, बहुत सावधानी के साथ, मन को एक लक्ष्य में लगा देना चाहिए| किसी भी कार्य को मनोयोग से करना चाहिए| एक बाण बनाने वाला अपने कार्य में इतना मग्न था कि उसके सामने से राजा की सवारी जा रही थी, किंतु उसे मालूम नहीं पड़ा कि कौन जा रहा है?
बाईसवाँ गुरू सर्प:----सर्प से सीखा कि भजन अकेले ही करना चाहिए| मण्डली नहीं बनानी चाहिए| सन्यासी ने जब सब कुछ छोड़ दिया तो उसे आश्रम या मठ के प्रति आसक्ति नहीं होनी चाहिए| गृहस्थी को भगवत्-साधन एवं भजन के द्वारा घर को ही तपस्थली बनाना चाहिए।
शिक्षा:--मनुष्य को अपने घर को नहीं छोड़ना चाहिए| घर को ही भगवान से जोड़ना चाहिए| मनुष्य यदि अपने भाई-बहिन को छोड़ेगा तो किसी और को भाई-बहिन बना लेगा| फिर कहेगा कि ये मेरे गुरू-भाई हैं, ये मेरी गुरू-बहन हैं| अतः घर में रह कर ही भगवान से जुड़ना चाहिए, घर को छोड़कर नहीं| तेईसवाँ गुरू मकड़ी:-- मकड़ी अपने मुँह के द्वारा जाला फैलाती है, उसमें विहार करती है और बाद में उसे अपने में ले लेती है| उसी प्रकार परमेश्वर भी इस जगत को अपने में से उत्पन्न करते हैं, उसमें जीव रूप से विहार करते हैं और फिर अपने में लीन कर लेते हैं| वे ही सबके अधिष्ठाता हैं, आश्रय हैं| चौबीसवाँ गुरू भृंगी (बिलनी) कीड़ा:--भृंगी कीड़ा अन्य कीड़े को ले जाकर और दीवार पर रखकर अपने रहने की जगह को बन्द कर देता है, लेकिन वह कीड़ा भय से उसी भृंगी कीड़े का चिंतन करते-करते, अपने प्रथम शरीर का त्याग किए बिना ही, उसी शरीर में तद्रूप हो जाता है| अतः जब उसी शरीर से चिंतन किए रूप की प्राप्ति हो जाती है, तब दूसरे शरीर का तो कहना ही क्या है? इसलिये मनुष्य को भी किसी दूसरी वस्तु का चिंतन न करके, केवल परमात्मा का ही चिंतन करना चाहिए| परमात्मा के चिंतन से साधक परमात्मा-रूप हो सकता है|
दत्तात्रेय जी ने कहा कि हे राजन्! अकेले गुरू से ही यथेष्ट और सुदृढ़ बोध नहीं होता, अपनी बुद्धि से भी बहुत कुछ सोचने-समझने की आवश्यकता है| भगवान के चरणों में निष्ठा होनी चाहिए| भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव से कहा कि इस प्रकार दत्तात्रेय जी ने राजा यदु को ज्ञान प्रदान किया| यदु महाराज ने उनकी पूजा की| दत्तात्रेय जी राजा यदु से अनुमति लेकर चले गये और राजा यदु का उद्धार हो गया| उनकी आसक्ति समाप्त हो गई और वे समदर्शी हो गये| इसी प्रकार हे प्यारे उद्धव! तुम्हें भी सभी आसक्तियों का त्याग करके समदर्शी हो जाना चाहिए|
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राजा यदु एक जंगल में भगवान दत्तात्रेय (Avadhoot) को देखा और उसे "स्वामी जी को संबोधित एक बार, तुम वास्तव में काफी सक्षम, ऊर्जावान और बुद्धिमान हैं. आप कर रहे हैं इस तरह के रूप में, क्यों आप सभी इच्छाओं से मुक्त, जंगल में रहते हैं? भले ही आप परिजनों और न ही एक भी परिवार, कैसे आप इतना आनंदित और आत्म - संतुष्ट हो सकता है न तो है? " Avadhoot (सभी सांसारिक इच्छाओं को हिलाकर रख दिया है जो एक) "मेरे आनंद और संतोष आत्म बोध का फल हैं. मैं 24 गुरुओं के माध्यम से, पूरी सृष्टि से आवश्यक ज्ञान अर्जित किया है. मैं तुम्हारे लिए ही विस्तृत होगा जवाब दिया," .
श्री दत्तात्रेय प्रकृति 20-4 शिक्षकों था "कई मेरे preceptors हैं," वह स्वतंत्र रूप से ज्ञान प्राप्त करने, मैं दुनिया में घूमते हैं जिस से मेरी गहरी भावना द्वारा चयनित राजा यदु, ", .... पृथ्वी, हवा / हवा, आकाश, बताया शिकार की आग, सूरज, कबूतर, अजगर, समुद्र, कीट, हाथी, चींटी, मछली, पिंगला वेश्या, तीर निर्माता, शिशु / चंचल लड़के, चाँद, मधुप, हिरण, पक्षी, युवती, सांप, मकड़ी, कमला और पानी मेरी चौबीस preceptors हैं.
1. पृथ्वी: सभी जीव, कर्म (कार्रवाई) की अपनी पिछली दुकान के अनुसार विभिन्न भौतिक रूपों मान और पृथ्वी पर रहते हैं. लोग हल, खुदाई और पृथ्वी चलना. इस पर उन्होंने प्रकाश आग. फिर भी, पृथ्वी भी एक बाल की चौड़ाई से अपने पाठ्यक्रम से भटकना नहीं पड़ता. दूसरी ओर, यह पूरी होती है और सभी प्राणियों मकान. यह देखकर, मैं बुद्धिमान एक किसी भी परिस्थिति में धैर्य, प्रेम और धर्म के अपने व्रत से भटकना नहीं करना चाहिए और एक जीवित प्राणियों के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित करना चाहिए कि सीखा. अपने पहाड़ों और नदियों के साथ साथ पृथ्वी मेरी पहली गुरु है.
2. एयर: मैं हवा शुद्ध और अपने आप में बिना गंध है कि मनाया. और यह किसी भी भेदभाव या वरीयता के बिना मिठाई और दुर्गंधयुक्त दोनों बातों पर चल रही है. यह क्षण भर थोड़ी देर में, अपने आसपास की गंध पर लेने के लिए लगता है लेकिन यह अपनी प्राचीन गुणवत्ता का पता चलता है. इस से मैं एक आध्यात्मिक आकांक्षी खुशी और गम की तरह जीवन के द्वंद्व से और इन्द्रियों की वस्तुओं से अप्रभावित, दुनिया में जीना चाहिए कि सीखा. वह अपने दिल की भावना और अपने भाषण व्यर्थ वस्तुओं से प्रदूषण मुक्त रखना चाहिए. मैं यह देख कर यह सब सीखा है, हवा मेरी दूसरी गुरु है.
3. आकाश: आत्मा सर्वव्यापी है जो आकाश की तरह भी है. मैं कभी कभी आकाश (या स्थान) घना घटाटोप, या धूल या धुएं से भर जाता है कि देखा है. सूर्योदय के समय और रात के दौरान, यह स्पष्ट तौर पर अलग अलग रंग पर ले जाता है. लेकिन वास्तव में, यह कभी अपने बेरंग स्वयं को बरकरार रखे हुए है, और यह छुआ या कुछ से दाग नहीं है. इस से मैं एक सच्चा ऋषि अपने ही शारीरिक प्रक्रियाओं सहित समय में अभूतपूर्व ब्रह्मांड में कुछ भी, से अछूता या अप्रभावित आकाश या अंतरिक्ष, जैसे कभी शुद्ध रहना चाहिए कि सीखा. उनके भीतर की जा रही बातें और भी अंतरिक्ष की तरह की घटनाओं के लिए भावनात्मक प्रतिक्रिया से पूरी तरह से मुक्त है. इस प्रकार मैं अपने तीसरे गुरु के रूप में आकाश या अंतरिक्ष स्वीकार किए जाते हैं.
4. आग: मेरी चौथी शिक्षक आग का तत्व है. कभी कभी, यह आग की लपटों प्रज्वलन के रूप में प्रकट होता है, कभी कभी राख द्वारा कवर अंगारे, सुलगनेवाला के रूप में. लेकिन यह हमेशा अव्यक्त गर्मी के रूप में सभी वस्तुओं में मौजूद है. आग के देवता चाहे उसके नैतिक मूल्य और अपने पापों नीचे जलने से हर किसी की पेशकश को स्वीकार करता है, और यह अभी भी आग देवता के रूप में कभी शुद्ध देवत्व रहता है, वह इस तरह के भक्तों के पापों से बेदाग है. तो भी, उत्तम प्राप्ति का एक ऋषि, हर किसी के भोजन स्वीकार अपने पापों को जला और दाता आशीर्वाद चाहिए. आग यह जलता है, यह इस तरह के स्पष्ट रूपों मानता है कि ईंधन के साथ जुड़ा हुआ है जब अपनी खुद की कोई विशिष्ट रूप है, हालांकि. तो भी, सच स्वयं, अपने आप में हालांकि निराकार, देवताओं, मनुष्यों, पशुओं और इसे संबंधित शारीरिक संरचनाओं के साथ जुड़ा हुआ है जब पेड़ के रूपों में प्रकट होता है. ब्रह्मांड में सभी रूपों का स्रोत, उनके अंत के रूप में भी, कभी भी रहस्यमय बनी हुई है. सभी चीजों को केवल उनके मूल और उनके अंत के बीच में प्रकट होते हैं. उनके स्रोत और अंत, अनन्त अपरिवर्तनीय, अव्यक्त और सर्वव्यापी है जो सच स्व, है. आग का तत्व की प्रकृति ऐसी है. प्रकट आग में एक ही राख में यह खपत विभिन्न चीजों को बदल देती है. तो भी, आत्म बोध का ज्ञान भ्रम के रूप में चीजों के प्रकट रूपों और गुणों को खारिज कर दिया और खुद ही उनके एक मूल सार का एहसास है. इस प्रकार आग के तत्व अपने चौथे गुरु है.
5. सूर्य: मेरी पांचवें गुरु सूर्य है. हम अपने दैनिक जीवन में देखने के सूरज से एक है, हालांकि अलग बर्तन में पानी से परिलक्षित होता है, यह के रूप में कई प्रकट होता है. इसी तरह, एक वास्तविक स्व उनकी शारीरिक संरचना से परिलक्षित जब प्राणियों की कई स्वयं के रूप में प्रकट होता है. सूर्य हमारे सपने को प्रकृति में कई रूपों illuminates के रूप में, ऋषि भी अपने भक्तों को सब बातों की सही प्रकृति illuminates.
6. कबूतर: मैं भी एक कबूतर से ज्ञान अर्जित किया है. कबूतरों की एक जोड़ी के एक पेड़ पर एक साथ रहते थे एक बार. वे अपने युवा नस्ल और गहरा लगाव और प्यार से उन्हें ला रहे थे. एक दिन, एक शिकारी एक जाल में युवा fledglings के पकड़ा. अपने युवा लोगों के लिए भोजन के साथ जंगल से लौट आए, जो एक प्रकार का गुबरैला, उनकी दुर्दशा को देखा और उन्हें छोड़ करने में असमर्थ है, वह अपने भाग्य को साझा करने के लिए जाल में जोर से उछले. कुछ ही समय बाद, पुरुष कबूतर आए और, अपनी जान से जुदाई सहन करने में असमर्थ है, यह भी जाल में कूद गए और अपने अंत से मुलाकात की. इस पर दर्शाते, मैं भी, आदमी एक बुद्धिमान इंसान के अधिकार की कुंडलियों में पकड़ लिया और अपने ही आध्यात्मिक विनाश के बारे में लाता है के रूप में पैदा होने के बाद, कैसे एहसास हुआ. शरीर भावना के साथ जुड़ा हुआ है, जब मूल रूप से स्वतंत्र है जो स्वयं,,, इसके साथ की पहचान हो जाता है, और इस तरह जन्म, मृत्यु और दुख का अंतहीन चक्र में पकड़ा जाता है. इस प्रकार कबूतर मेरे छठे गुरु थे.
7. अजगर: अजगर अपने शिकार के लिए briskly बाहर ले जाने के लिए तैयार नहीं एक आलसी है. यह अपने मझधार में निहित है और यह सामने आता है जो भी प्राणी निगल, अपनी भूख को खुश करने के लिए यह पर्याप्त होगा. इस से मैं ज्ञान की खोज में आदमी के सुख के पीछे भाग रहा से बचना चाहिए कि सीखा है, और वह संतोष के साथ सहज हो जाता है जो कुछ भी स्वीकार करते हैं. अजगर की तरह, वह सोने और जागने से हिला चाहिए और स्वयं पर लगातार ध्यान की एक राज्य में पालन करना. इस प्रकार अजगर ज्ञान की मेरी सातवीं शिक्षक था.
8. सागर: सागर की अद्भुत प्रकृति पर विचार कर, मैं बहुत ज्ञान अर्जित किया है. बह निकला नदियों की कोई भी संख्या यह शामिल हो सकते हैं, अभी तक समुद्र अपने स्तर को बनाए रखता है. सभी नदियां सूख जब न ही अपने स्तर, गर्मियों में एक बाल की चौड़ाई से भी गिरावट है. तो भी, जिंदगी की खुशियों के ज्ञान के ऋषि उल्लसित नहीं है, न ही उसके दु: ख उसे दबाना है. समुद्र तट पर अपनी सीमा को पार कर कभी नहीं बस के रूप में, बुद्धिमान एक जुनून के पुल के नीचे नैतिकता के उच्चतम मानकों transgresses कभी नहीं. समुद्र की तरह, वह अजेय है और कुछ से परेशान नहीं किया जा सकता. अथाह समुद्र की तरह, अपने वास्तविक स्वरूप और उसके ज्ञान की गहराई आसानी से किसी के द्वारा comprehended नहीं किया जा सकता. इस प्रकार मुझे सिखाया है जो समुद्र,, मेरे आठवें गुरु है.
9. कीट: मैं अक्सर कीट (या, और अधिक ठीक, एक टिड्डा) उस में कूद और नीचे जला पाने के लिए अग्नि परीक्षा है कि मनाया. तो भी, कल्पनातीत आदमी होश में भ्रामक सुखों से मोहित हो जाता है और इस प्रकार जन्म और मृत्यु के निरंतर चक्र में पकड़ा जाता है. दूसरी ओर, वह ज्ञान की आग की एक झलक भी फैल जाती है जब बुद्धिमान एक,,, एक तरफ सब कुछ छोड़ देता है उस में आती है और एक सीमित स्वयं होने का भ्रम नीचे जलता है. इस प्रकार कीट मेरे नौवें गुरु थे.
10. हाथी: हाथी मेरे दसवें गुरु थे. मनुष्य जंगल में गाय हाथी एक भरवां बढ़ा. एक दोस्त के लिए जंगली हाथी गलतियों यह, यह दृष्टिकोण और फिर कुशलता चालाक मनुष्य द्वारा बेड़ियों में बंधे. तो भी, unregenerate आदमी विपरीत सेक्स के द्वारा परीक्षा है और मोह की बेड़ी से बाध्य हो जाता है. मुक्ति के बाद चाहने वालों को वासना से मुक्त होना सीखना चाहिए. हाथी इस तरह मेरे शिक्षकों में से एक था.
11. चींटी: यह न तो खाता है और न ही किसी अन्य प्राणी को दान में दूर देता है जो खाद्य सामग्री के बहुत सारे चींटी भंडार. परिणाम में, अन्य अधिक शक्तिशाली जीव लूट चींटियों के लिए कोशिश कर रहे हैं. तो भी, केवल भौतिक चीज़ों के खजाने से तैयार करती है जो आदमी डकैती और हत्या का शिकार हो जाता है. लेकिन चींटी भी, हमें सिखाने के लिए कुछ सकारात्मक है. यह एक अथक कार्यकर्ता है और अपने खजाने इकट्ठा करने के लिए अपने प्रयासों में बाधाओं और असफलताओं के किसी भी नंबर से हतोत्साहित नहीं है. तो भी, ज्ञान के बाद एक साधक आत्म बोध के लिए अपने प्रयासों में अथक होना चाहिए. इस महान सत्य छोटी चींटी ने मुझे सिखाया और मेरे ग्यारहवें गुरु बन गया है.
12. मछली: एक ही बार कोण हुक से पकड़ा मछली लालच से निगल चारा और है. इस से, मैं उस आदमी को स्वादिष्ट भोजन के लिए उसकी लालसा से अपने विनाश को पूरा करती है कि कैसे एहसास हुआ. तालू पर विजय प्राप्त किया जाता है, और सब पर विजय प्राप्त की है. इसके अलावा, मछली में एक सकारात्मक विशेषता है. यह पानी यानी, अपने घर कभी नहीं छोड़ता. तो भी, आदमी अपने सच स्वयं की दृष्टि खो कभी नहीं करना चाहिए, लेकिन कभी अपने उस में किया जा रहा है चाहिए. इस प्रकार मछली मेरे बारहवें गुरु बन गया.
13. पिंगला: मेरी भावना जागृत की है कि तेरहवीं गुरु पिंगला नाम की एक वेश्या है. एक दिन, वह बेसब्री से वह कथन से उसे भुगतान करना होगा इस उम्मीद में कि एक विशेष रूप से ग्राहक की प्रतीक्षा है. वह इंतजार कर रहे थे और रात में देर तक इंतजार किया. वह लौटकर नहीं आया तो वह निराश है और इस तरह परिलक्षित पिछले पर था:! "काश मैं कितना बेवकूफ शाश्वत आनंद की प्रकृति का है, जो भीतर परमात्मा आत्मा की उपेक्षा, मैं मूर्खता मेरी प्रेरणा मिलती है, जो एक विषयी (भोगवादी) की प्रतीक्षा वासना और लालच. इसके बाद, मैं स्वयं पर अपने आप को व्यय करेगा, उसके साथ एकजुट है और अनन्त आनन्द जीतने के लिए. ऐसे पश्चाताप के माध्यम से, वह धन्य प्राप्त कर ली. इसके अलावा, इसके स्पष्ट मुराद को दर्शाती है, मैं भी एक आध्यात्मिक आकांक्षी वैसे ही आकर्षण अस्वीकार करना चाहिए एहसास हुआ कि . कम आध्यात्मिक साधना की (साधना) द्वारा उत्पादों मात्र हैं जो शक्तियां, की मैं दूसरे के हाथ से चीजों को सुरक्षित करने के लिए प्रलोभन दुख के बीज होते हैं कि सीखा है, इनमें से जो त्याग अनन्त आनन्द को साकार करने का एकमात्र साधन है.
14. तीर निर्माता: एक बार जब मैं पूरी तरह से ढलाई एक तेज तीर में समाहित कर लिया गया है जो एक तीर निर्माता मनाया. उन्होंने कहा कि वह द्वारा पारित कर दिया है कि एक शाही तमाशा नोटिस भी नहीं किया था और सब की तो अनजान बढ़ी. इस दृष्टि स्वयं की ऐसी एकल दिमाग, सभी को अवशोषित चिंतन अनायास दुनिया की तुच्छ हितों के लिए सभी प्रलोभन समाप्त सच करने के लिए मुझे जगाया. यह साधना में सफलता का एकमात्र रहस्य है. इस प्रकार तीर निर्माता मेरे चौदहवें गुरु है.
15. चंचल लड़का: छोटे लड़के और लड़कियों के सम्मान और न ही अनादर न तो पता है. वे नर्स किसी के खिलाफ कोई दुर्भावना या एक पूर्वाग्रह नहीं है. वे अपने ही क्या है पता नहीं है, या जो दूसरों के अंतर्गत आता है. उनकी खुशी अपने खुद, उनकी जन्मजात रचनात्मकता से स्प्रिंग्स और वे किसी भी बाहरी वस्तुओं या परिस्थितियों के खुश होने की जरूरत नहीं है. मैं सही ज्ञान के ऋषि भी ऐसी है कि एहसास हुआ. एक चंचल लड़के को इस तरह अपने पन्द्रहवें गुरु हो हुआ.
16. चंद्रमा: प्रकृति में सब बातों का, चाँद अद्वितीय है. यह उज्ज्वल और अंधेरे पखवाड़े के दौरान मोम और पतन होता है. वास्तव में, चंद्र दुनिया कभी एक ही रहता है. इस में, यह आदमी का आत्म की तरह है. एक आदमी शैशव, बचपन, जवानी, परिपक्वता और बुढ़ापे के चरणों के माध्यम से पारित करने के लिए प्रकट होता है, उसका असली स्वयं अपरिवर्तित बनी हुई है. स्वयं को शरीर के लिए केवल संबंधित है और नहीं सभी परिवर्तन. फिर, चाँद ही सूरज के प्रकाश को दर्शाता है, लेकिन अपनी खुद की कोई ऐसी है. तो भी, आदमी की आत्मा या मन ही असली स्वयं के बारे में जागरूकता की रोशनी का प्रतिबिंब है. इस सच्चाई सिखाया है, चाँद मेरे सोलहवीं गुरु बन गया.
17. शहद की मक्खी: शहद की मक्खी फूल को फूल से भटक और, कम से कम में उन्हें चोट पहुंचाए बिना, शहद खींचता है. तो भी, एक आध्यात्मिक साधक जो अपने आध्यात्मिक अभ्यास के लिए आवश्यक है ही नहीं, सभी पवित्र ग्रंथों का अध्ययन, लेकिन उसके दिल में बनाए रखने चाहिए. इस तरह मैं अपने सत्रहवाँ गुरु, मधुप से आत्मसात शिक्षण है.
18. हिरण: यह संगीत का बहुत शौकीन हैं हिरणों और कहा कि शिकारियों यह उन्हें शिकार करने से पहले उन्हें लुभाने के लिए रोजगार कहा जाता है. इस से, मुझे लगता है कि वह अंतत: वह पहले हासिल की है आध्यात्मिक जो भी प्रगति खो देता है जब तक जुनून और कामुक इच्छाओं को जल्द ही, केवल धर्मनिरपेक्ष संगीत के लिए एक कमजोरी है जो एक आध्यात्मिक आकांक्षी नीचे दलदल होगा सीखा. मुझे इस सच्चाई को पढ़ाया जाता है कि हिरण मेरे अठारहवें गुरु है.
19. शिकार के पक्षी: शिकार के एक पक्षी मेरे उन्नीसवीं गुरु है. एक दिन, मैं एक मरे हुए चूहे में इस तरह दूर ले जाने को देखा. कौवे और चील की तरह कई अन्य पक्षियों अब उसके सिर पर लात मार रहा है और फिर शिकार को बंद करने के लिए अपने प्रयास में अपने पक्ष पर चोंच, यह हमला किया. गरीब पक्षी इस प्रकार बहुत सताया गया था. अंत में, यह बुद्धिमानी से अपने शिकार गिरावट और अन्य सभी पक्षियों के बाद यह ले जाया करते हैं. इस प्रकार इतना परेशानी से खुद को मुक्त, यह राहत में sighed. इस से, मुझे पता चला है कि सांसारिक सुखों भी जल्द ही उसी के लिए चला जो अपने साथी प्राणियों के साथ संघर्ष में आ जाएगा के बाद चलता है, और बहुत संघर्ष और विरोध का सामना करना पड़ता है जो एक आदमी. वह सांसारिक बातों के लिए अपनी लालसा को जीत के लिए सीखता है, वह खुद को बहुत दुख दे सकते. मैं इस दुनिया में शांति के लिए एक ही रास्ता है कि एहसास हुआ.
20. युवती: एक बार, मैं एक परिवार को अपने बेटे के लिए शादी में उसका हाथ मांग, एक युवती के घर का दौरा मनाया. उस समय उसकी मां घर से दूर था. युवती तो खुद को नाश्ते के साथ मेहमानों के मनोरंजन के लिए किया था. वह एक बार में एक पैर के साथ खाद्यान्न तेज़ शुरू कर दिया. उसके हाथ में चूड़ियाँ एक दूसरे, तेज़ ध्वनि के खिलाफ दस्तक दे शुरू कर दिया. वह मेहमानों आवाज सुन और परेशानी का उसे इतना कारण होने के लिए दुखी हो सकता है कि डर लग रहा था. एक हिंदू युवती के रूप में, वह किसी भी समय उसके हाथ पर सभी चूड़ियों को दूर करने की उम्मीद नहीं है. तो वह एक हाथ पर दो रखा और सब आराम हटा दिया. फिर भी, वे एक दूसरे के खिलाफ दस्तक दे रहे थे और शोर कर रहे थे. इसलिए वह इस समय हर ओर केवल एक चूड़ी रखा और वह चुप में उसका काम खत्म कर सकता है. इस पर दर्शाते, मैं आध्यात्मिक चाहने वालों की संख्या में एक साथ रहते हैं, जब अवांछित गपशप का एक बहुत ensues महसूस किया कि और कोई साधना एक ईमानदार प्रयास से चलाया जा सकता है. केवल एकांत में, एक आध्यात्मिक आकांक्षी अपने काम ले सकते हैं. इस सच्चाई को जानने के बाद, मैं अब से एकांत का सहारा लिया. इस प्रकार, एक युवती मेरे बीसवीं गुरु हो हुआ.
21. नाग: मैं एक नागिन अपने लिए एक आवास बनाता है कि कभी नहीं मनाया. सफेद चींटियों को खुद के लिए एक वल्मीक उठाया है, जब नागिन अंततः यह निवास के लिए आते हैं. एक वैरागी साधु ऐसी बात करता कोई है, जबकि इसी प्रकार, सांसारिक लोगों को खुद के लिए घरों में बढ़ोतरी के लिए कई कठिनाइयों को सहन किया है. सांसारिक पुरुषों मठों बढ़ा और साधु उन में रहती है, या, वह पुराने जीर्ण - शीर्ण मंदिरों में छोड़ देता है, या छायादार पेड़ के नीचे. नागिन moults अपने पुराने त्वचा, बंद छोड़ने. तो भी अपने जीवन के अंत में योगी जानबूझ कर और अपने ही सच्चे आत्म से भरा जागरूकता में उसके शरीर छोड़ देता है और मौत की घटना से भयभीत नहीं है. वह अपने पहना बाहर कपड़े करता है और नए सरगनाओं के रूप में दूसरी ओर, के रूप में वह खुशी से अपने पुराने शरीर से दूर डाले. इस प्रकार मेरे बीस प्रथम गुरु ने मुझे सिखाया है.
22. मकड़ी: मकड़ी मेरे बीस दूसरी गुरु है. यह एक तरल पदार्थ के रूप में धागे से अपने वेब weaves. कुछ समय के बाद, यह अपने आप में वेब ऊपर इकट्ठा. सर्वोच्च खुद की सारी सृष्टि बाहर परियोजनाओं और कुछ समय के बाद, विघटन के समय में ही इसे वापस ले लेती है. जीवात्मा भी भीतर ही इंद्रियों और मन भालू और, एक इंसान या अन्य किसी भी जीवित प्राणी के रूप में अपने जन्म के समय, यह इंद्रियों, कार्रवाई के अंगों और पूरे शरीर के रूप में उन्हें बाहर परियोजनाओं. इसकी अव्यक्त प्रवृत्तियों के अनुसार, इस प्रकार का जन्म प्राणी, अपने जीवन के लिए आवश्यक सभी साधनों और वस्तुओं को इकट्ठा. अपने जीवन की अवधि के अंत में, आत्मा फिर मौत के घंटे में होश, मन और अधिग्रहण की प्रवृत्ति निकाल लेता है. इस प्रकार मैं मकड़ी से सीखा है.
23. कमला: कमला भी ज्ञान की मेरी शिक्षकों में से एक है. ततैया एक सुरक्षित कोने में अपनी कमला किया जाता है और अपने घोंसले में इसे बंद कर देता है और इसके बारे में गुलजार पर चला जाता है. युवा कमला तो यह गुलजार ततैया की तुलना में और कुछ भी नहीं सोच सकता है, लगातार गूंज से भयभीत है. अपनी मां के इस तरह के unintermittent चिंतन के माध्यम से, कमला भी, जल्द ही एक ततैया में बढ़ता है! एक तरह फैशन में, एक सच्चा शिष्य तो मन मोह लिया है और वह उसके अलावा अन्य किसी भी एक के बारे में सोच नहीं सकते हैं कि अपने ही गुरु की आध्यात्मिक श्रेष्ठता से ज्यादा awed. एक महान आध्यात्मिक गुरु खुद में इस तरह के चिंतन के माध्यम से, वह जल्द ही फूल. कमला इस प्रकार मेरे 23 गुरु है.
24. जल: जल मेरे बीस चौथे गुरु है. यह हर प्राणी की प्यास quenches असंख्य पेड़ों और सभी प्राणियों को बनाए. यह इस प्रकार सभी जीवित प्राणियों में कार्य करता है, यह अपने आप पर गर्व नहीं है. दूसरी ओर, यह विनम्रतापूर्वक स्थानों के lowliest चाहता है. बाबा भी इसी तरह स्वास्थ्य, शांति और उसके लिए सैरगाह है कि हर प्राणी को खुशी प्रदान करना चाहिए. अभी तक वह कभी भगवान के निर्माण की humblest के रूप में रहना चाहिए.
ऐसी विनम्रता और भक्ति के साथ, मैं अपने शिक्षक के रूप में भगवान के निर्माण के पूरे हेय दृष्टि से देखा ज्ञान एकत्र हुए और, रोगी प्रयास के माध्यम से मैं आध्यात्मिक ज्ञान के अपने लक्ष्य का एहसास हुआ.
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