एक सैनिक बाबा हरभजन सिंह : जिनकी आत्मा करती है देश की रक्षा






एक सैनिक की आत्मा, जो करती है देश की रक्षा


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हमारा देश, जहां अलग-अलग धर्म और संस्कृतियों की झलकियां नज़र आती हैं, वहीं कुछ ऐसी अनोखी और विचित्र घटनाओं को सुनकर आप हैरान भी हो जाएंगे। आप न चाहकर भी यकीन करना जरूर चाहेंगे। ऐसी ही घटनाओं में शामिल है कैप्टन हरभजन सिंह की आत्मा की कहानी, जिसके बारे में आज भी कहा जाता है कि वह भारत-चीन सीमा पर बरसों से पहरेदारी कर रहे हैं। आगे जानें, उनके बारे में क्या कहानी है प्रचलित...

लोग कहते हैं कि पंजाब रेजिमेंट के जवान हरभजन सिंह की आत्मा पिछले कई सालों से लगातार देश की सीमा की रक्षा कर रही है। उन्हीं की याद में बाबा हरभजन सिंह मंदिर भी बनवाया गया है। बाबा हरभजन सिंह मेमोरियल मंदिर जेलेप्‍ला दर्रे और नाथू ला दर्रे के बीच में स्थित है और एक लोकप्रिय तीर्थ केंद्र है, जहां हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं। आइए, जानें क्या है कहानी...

वह आज भी देते है ड्यूटी :
बाबा हरभजन सिंह अपनी मृत्यु के बाद से लगातार ड्यूटी देते आ रहे हैं। उन्हें अपनी इस ड्यूटी के लिए सैलरी और प्रमोशन भी दी जाती है। कुछ समय पहले तक हर साल 14 सितंबर को वह अपनी सालाना छुट्टी पर जाते थे और पंजाब में अपने पैतृक गांव कपूरथला का दौरा करते। फिर उन्हें दो महीने बाद ससम्मान वापस भी लाया जाता था।

जब वह छुट्टी पर जाते तो इनके लिए ट्रेन में सीट रिजर्व की जाती थी। आस्थाओं ने उनकी इस विदाई और वापसी को धार्मिक यात्रा का रूप दे दिया था। सेना में किसी भी प्रकार के अंधविश्वास की मनाही होती है। कहीं यह आस्था भी अंधविश्वास का रूप न ले ले, इसलिए सेना मुख्यालय ने पिछले कुछ समय से उनकी सालाना छुट्टी अब बंद कर दी। कहा जाता है कि अब वह साल के बारहों महीने ड्यूटी पर तैनात रहते हैं।

मंदिर में बाबा का एक कमरा है, जहां हर रोज सफाई करने के बाद उनका बिस्तर लगाया जाता है। बाबा की वर्दी और जूते रखे जाते हैं। वहां के लोग कहते हैं कि रात में सब साफ-सफाई के वाबजूद सुबह उठने पर उनके जूते उल्टे-सीधे और उसमें कीचड़ तथा चादर पर सिलवटें पाई जाती हैं।

कहा जाता है कि जिन दो महीने बाबा छुट्टी पर रहते थे उस दौरान पूरा बॉर्डर हाई अलर्ट पर रहता था, क्योंकि उस वक्त सैनिकों को बाबा की मदद नहीं मिल पाती थी।

कहते हैं कि हरभजन सिंह की आत्मा, चीन की ओर से किसी भी तरह के खतरे या घुसपैठ को लेकर उन्हें पहले ही आगाह कर देती है। यह भी माना जाता है कि यदि भारतीय सैनिकों को चीनी सैनिकों का कोई मूवमेंट पसंद न आए तो इस बारे में उनकी आत्मा चीनी सौनिकों को पहले ही बता देती है, ताकि बात बिगड़ने से पहले सब संभल जाए। हम या आप भले इन बातों पर यकीन न करें, लेकिन एक सचाई यह भी है कि भारत और चीन के बीच होने वाली हर फ्लैग मीटिंग में हरभजन सिंह के नाम की एक खाली कुर्सी लगाई जाती है।

एक अजीब सी मान्यता यह है कि यदि यहां आप बोतल में पानी भरकर तीन दिन के लिए रख दें तो उस पानी में चमत्कारिक औषधीय गुण आ जाते हैं। लोग मानते हैं कि इस पानी को पीने से कई तरह के रोग मिट जाते हैं। आप यहां जाएंगे तो नाम लिखी हुई बोतलों का अम्बार नजर आएगा। कहते हैं कि इस पानी को 21 दिन के अंदर प्रयोग में लाया जाए तो फायदेमंद होता है और इस दौरान मांसाहार और शराब का सेवन निषेध है।

यहां लोग चप्पलें भी चढ़ाते हैं। मान्यता यह है कि देश की रक्षा करने के लिए हर वक्त ड्यूटी पर लगे बाबा की चप्पल जल्द घिस जाती है तो लोग उनके लिए चप्पलें लेकर आते हैं, इसलिए यहां एक कोने में चप्पलों का अंबार भी देखा जा सकता है।

आइए जानें बाबा हरभजन सिंह के बारे में
हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 को, जिला गुजरानवाला (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। 9 फरवरी 1966 को वह पंजाब रेजिमेंट के जवान के रूप में आर्मी में भर्ती हुए। पर, मात्र 2 साल की नौकरी करके 4 अक्टूबर 1968 को सिक्किम में, एक दुर्घटना में मारे गए।

हुआ यूं कि एक दिन जब वह खच्चर पर बैठकर नदी पार कर रहे थे तो खच्चर सहित नदी में बह गए। नदी में बहकर उनका शव काफी आगे निकल गया। कहते हैं कि दो दिन की तलाशी के बाद भी जब उनका शव नहीं मिला तो उन्होंने खुद अपने एक साथी सैनिक के सपने में आकर अपनी शव की जगह बताई।

एक बार बाबा के सहयोगियों ने उन्‍हें सपने में देखा और फिर उनकी स्‍मृति में यह मंदिर बनवाया गया। यहां उनके लिए एक समाधि बनाई गई है और कहा जाता है कि वह मंदिर में आते हैं और हर रात चक्कर लगाते हैं। यह मंदिर गंगटोक में जेलेप्ला दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच, 13000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पुराना बंकर वाला मंदिर इससे 1000 फ़ीट ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर के अंदर बाबा हरभजन सिंह की एक फोटो और उनका सामान रखा है।

नए मंदिर से 1000 फ़ीट की ऊंचाई पर बाबा का बंकर है, जो लाल और पीले रंगों से सज़ा है। सीढ़ियां लाल रंग की और खंभे पीले रंग के हैं। सीढ़ियों के दोनों साइड घंटियां बंधी हैं। बाबा के बंकर में कॉपिया रखी हैं, जहां लोग अपनी मन्नतें लिखते हैं। कहते हैं यहां लिखी मन्नतें पूरी हो जाती हैं। बंकर में एक ऐसी भी जगह है जहां लोग सिक्के गिराते हैं। यदि सिक्का उन्हें वापस मिला जाता है तो उसे भाग्यशाली मानकर अपने पर्स या तिजोरी में रखते हैं लोग। इन दोनों जगहों का संचालन आर्मी द्वारा ही किया जाता है।


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