कांग्रेस ने भ्रष्टाचार न्यायपालिका तक फैला दिया
कांग्रेस ने भ्रष्टाचार न्यायपालिका तक फैला दिया
मार्कंडेय काटजू
(यह खुलासा सुप्रीम कोर्ट के जज और मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे मार्कंडेय काटजू द्वारा किया गया है। वर्तमान में वह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन हैं।)
मद्रास हाई कोर्ट के एक जज के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे। उन्हें सीधे तौर पर तमिलनाडु में डिस्ट्रिक्ट जज के तौर पर नियुक्त कर दिया गया था। डिस्ट्रिक्ट जज के तौर पर इस जज के कार्यकाल के दौरान उनके खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट के विभिन्न पोर्टफोलियो वाले जजों ने कम-से-कम आठ प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं। लेकिन मद्रास हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ने अपनी कलम की ताकत से एक ही झटके में सारी प्रतिकूल टिप्पणियों को हटा दिया और यह जज हाई कोर्ट में अडिशनल जज बन गए। वह तब तक इसी पद पर थे, जब नवंबर 2004 में मैं मद्रास हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनकर आया।
इस जज को तमिलनाडु के एक बहुत ही महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता का समर्थन प्राप्त था। मुझे बताया गया कि ऐसा इसलिए था क्योंकि डिस्ट्रिक्ट जज रहते हुए इस नेता को जमानत दी थी।
इस जज के बारे में भ्रष्टाचार की कई रिपोर्ट्स मिलने के बाद मैंने भारत के चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी को इस जज के खिलाफ एक गुप्त आईबी जांच कराने की गुजारिश की। कुछ हफ्ते बाद जब मैं चेन्नै में था तो चीफ जस्टिस के सेक्रेटरी ने मुझे फोन किया और बताया कि जस्टिस लोहाटी मुझसे बात करना चाहते हैं। चीफ जस्टिस लाहोटी ने कहा कि मैंने जो शिकायत की थी वह सही पाई गई है। आईबी को इस जज के भष्टाचार में शामिल होने के बारे में पर्याप्त सबूत मिले हैं।
अडिशनल जज के तौर पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने वाला था। मुझे लगा कि आईबी रिपोर्ट के आधार पर अब हाई कोर्ट के जज के तौर पर काम करने से रोक दिया जाएगा। लेकिन असल में हुआ यह कि इस जज को अडिशनल जज के तौर पर एक और साल की नियुक्ति मिल गई, जबकि इस जज के साथ नियुक्त किए गए छह और अडिशनल जजों को स्थायी कर दिया गया।
मैंने बाद में इस बात को समझा कि यह आखिर हुआ कैसे। सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम प्रणाली होती है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे सीनियर जज होते हैं जबकि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए तीन सबसे सीनियर जजों की कॉलेजियम होती है।
उस समय सुप्रीम कोर्ट के तीन सबसे सीनियर जज थे, देश के चीफ जस्टिस लाहोटी, जस्टिस वाईके सभरवाल और जस्टिस रूमा पाल। सुप्रीम कोर्ट की इस कॉलेजियम ने आईबी की प्रतिकूल रिपोर्ट के आधार पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद जज के तौर आगे न नियु्क्त किए जाने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी।
उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी। कांग्रेस इस गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन उसके पास लोकसभा में पर्याप्त बहुमत नहीं था और इसके लिए वह अपनी सहयोगी पार्टियों के समर्थन पर निर्भर थी। कांग्रेस को समर्थन देने वाली पार्टियों में से एक पार्टी तमिलनाडु से थी जो इस भ्रष्ट जज को समर्थन कर रही थी। तीन सदस्यीय जजों की कॉलेजियम के फैसले का इस पार्टी ने जोरदार विरोध किया।
मुझे मिली जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उस समय संयुक्त राष्ट्र आमसभा की बैठक में भाग लेने के लिए न्यू यॉर्क जा रहे थे। दिल्ली एयरपोर्ट पर मनमोहन सिंह को तमिलनाडु की पार्टी के मंत्रियों ने कहा कि जब तक आप न्यू यॉर्क से वापस लौटेंगे उनकी सरकार गिर चुकी होगी क्योंकि उनकी पार्टी अपना समर्थन वापस ले लेगी। (उस जज को अडिशनल जज के तौर पर काम जारी न रखने देने के लिए)
यह सुनकर मनमोहन परेशान हो गए लेकिन एक सीनियर कांग्रेसी मंत्री ने कहा कि चिंता मत करिए वह सब संभाल लेंगे। वह कांग्रेसी मंत्री इसके बाद चीफ जस्टिस लाहोटी के पास गए और उनसे कहा कि अगर उस जज को अडिशन जज के पद से हटाया गया तो केंद्र सरकार के लिए संकट की स्थिति पैदा हो जाएगी। यह सुनकर जस्टिस लाहोटी ने उस भ्रष्ट जज को अडिशनल जज के तौर पर एक साल का एक और कार्यकाल देने के लिए भारत सरकार को पत्र लिखा। (मुझे इस बात का आश्चर्य है कि क्या उन्होंने इसके लिए कॉलेजियम के बाकी दो सदस्यों से भी राय ली) इस तरह की परिस्थितयों में उस जज को अडिशनल जज के तौर पर और एक साल का कार्यकाल मिल गया।
उसके बाद चीफ जस्टिस बने वाईके सभरवाल ने उस जज को एक कार्यकाल और दे दिया। उनके उत्तराधिकारी चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन ने उस जज को स्थायी जज के तौर पर नियुक्त करते हुए किसी और हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया।
मैंने इन सब बातों का एक साथ उल्लेख करके यह दिखाने की कोशिश की सिद्धांत के उलट सिस्टम कैसे काम करता है। सच तो यह है कि आईबी की प्रतिकूल रिपोर्ट के बाद इस जज को अडिशनल जज के रूप में काम करने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए थी।
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मेरे ख्याल से ये तो सबसे छोटी बात होगी पिछली भ्रष्ट सरकार की क्योकि अपने खुद के पैरो पर तो खड़ा रहने कि ताकत तो शुरू से ही नही थी लेकिन दोबारा सरकार बना लेना उनका सौभाग्य था और देश का दुर्भाग्य भी क्योकि शायद उस समय विरोध मे मोदी जी के बजाय कोई और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के पद के लिए प्रस्तावित थे जो कि जनता को नामंजुर थे शायद ऐसी ही छोटी छोटी बातों के कारण आज ये हालात बने है हो सकता है कि आज देश कि अर्थव्यवस्था को सही तरह से पटरी पर ना आ रही हो लेकिन कम से कम और नीचे जाने की नौबत तो नही आयेगी इस बात का यकीन है। कांग्रेस का इतिहास पड़ने से इस बात का पता चलाता है कि अपनी सरकार बनाने के लिए और गैर कांग्रेसी सरकार को गिराने मे ही कांग्रेस का पुरा समय निकला है।
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नई दिल्ली
पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल में एक जज को कथित तौर पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद प्रमोट किए जाने को लेकर आज एआईएडीएमके सदस्यों ने संसद में हंगामा किया। हंगामे के कारण राज्यसभा की बैठक एक बार के स्थगन के बाद दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित करनी पड़ी। नेताओं ने कहा कि कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जस्टिस मर्कंडेय काटजू के आरोपों पर अपना पक्षा रखना चाहिए।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ले आरोप लगाया है कि तमिलनाडु के एक डिस्ट्रिक्ट जज के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप होने के बावजूद यूपीए सरकार की एक सहयोगी पार्टी के दबाव की वजह से मद्रास हाई कोर्ट में अडिशनल जज के रूप में प्रमोट किया गया था। उन्होंने हमारे सहयोगी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में लिखा है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो की तरफ से प्रतिकूल रिपोर्ट के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के दो-दो मुख्य न्यायधीशों ने उस आरोपी जज को बचाया, जबकि तीसरे चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन ने उन्हें प्रमोट करके दूसरे हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया।
मार्कंडेय काटजू के इस दावे के बाद कांग्रेस और डीएमके पर सफाई देने का दबाव बढ़ गया, लेकिन दोनों पार्टियों ने इस मुद्दे पर कोई जवाब नहीं दिया है। संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे पर हंगामा हुआ है। राज्यसभा की बैठक शुरू होते ही एआईएडीएमके के सदस्यों ने प्रश्नकाल निलंबित करने और जजों की नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप के मुद्दे पर चर्चा किए जाने की मांग की।
सभापति हामिद अंसारी ने सदस्यों से शांत रहने और प्रश्नकाल चलने देने की अपील की, लेकिन एआईएडीएमके सदस्य अपनी बात पर जोर देने लगे। कुछ सदस्यों ने अखबार की प्रतियां दिखाईं। सभापति ने उनसे ऐसा न करने के लिए कहा। कांग्रेस के राजीव शुक्ला और डीएमके की कनिमोड़ि कुछ कहते देखे गए लेकिन हंगामे के कारण उनकी बात सुनाई नहीं दी। सदन में व्यवस्था बनते न देख अंसारी ने कुछ ही देर में बैठक 10 मिनट के लिए स्थगित कर दी।
सदन की बैठक दोबारा शुरू हुई तो वही नजारा था। सभापति ने उनसे कहा कि अगर वे कोई मुद्दा उठाना चाहते हैं, तो समुचित तरीके से उठाएं, सदन की कार्यवाही बाधित न करें। उन्होंने सदन में एआईएडीएमके के नेता डॉ वी मैत्रेयन से कहा, 'आप जो कहना चाहते थे, वह कह चुके हैं. अब आप प्रश्नकाल चलने दें।' मैत्रेयन जानना चाहते थे कि क्या पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को न्यायाधीश के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जानकारी थी और क्या तत्कालीन यूपीए की सहयोगी डीएमके ने जज के प्रमोशन के लिए सरकार पर दबाव डाला था। हंगामे के दौरान मनमोहन सिंह सदन में मौजूद थे।
इसी बीच संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि सदस्य अभी प्रश्नकाल चलने दें और शून्यकाल में अपना मुद्दा उठाएं। इससे पूर्व संसदीय कार्य राज्य मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सभापति से कहा कि आसन सदस्यों को उनकी बात कहने के लिए थोड़ा समय दे सकता है और उसके बाद प्रश्नकाल चलने दिया जाए, लेकिन एआईएडीएमके सदस्य नहीं माने।
सभापति ने हंगामा कर रहे सदस्यों को चेताया कि अगर वह अखबार की प्रतियां सदन में दिखाएंगे तो उनके नाम बुलेटिन में शामिल किए जाएंगे। हंगामा थमता ना देख सभापति ने कहा कि कुछ सदस्यों द्वारा नियमों का उल्लंघन कर सदन की कार्यवाही बाधित किए जाने की वजह से वह बैठक दोपहर बारह बजे तक के लिए स्थगित करते हैं।
सीपीआई नेता डी राजा ने कहा कि कांग्रेस और मनमोहन सिंह को इस मामले में सफाई देनी चाहिए। उन्होंने कहा, 'जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में कुछ कमी है। यह सिस्टम हर किसी को मंजूर नहीं है। वक्त आ चुका है जब न्यायिक जवाबदेही तय करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर न्यायिक आयोग बने।' बीएसपी सुप्रीमो मायवाती ने कहा कि उनकी पार्टी हमेशा से राजनीति और न्यायपालिका को अलग-अलग रखने के पक्ष में रही है।
' सरकार बचाने के लिए भ्रष्ट जज को मिलता रहा प्रमोशन '
टाइम्स न्यूज नेटवर्क | Jul 21, 2014,मार्कंडेय काटजू
(यह खुलासा सुप्रीम कोर्ट के जज और मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे मार्कंडेय काटजू द्वारा किया गया है। वर्तमान में वह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन हैं।)
मद्रास हाई कोर्ट के एक जज के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे। उन्हें सीधे तौर पर तमिलनाडु में डिस्ट्रिक्ट जज के तौर पर नियुक्त कर दिया गया था। डिस्ट्रिक्ट जज के तौर पर इस जज के कार्यकाल के दौरान उनके खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट के विभिन्न पोर्टफोलियो वाले जजों ने कम-से-कम आठ प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं। लेकिन मद्रास हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ने अपनी कलम की ताकत से एक ही झटके में सारी प्रतिकूल टिप्पणियों को हटा दिया और यह जज हाई कोर्ट में अडिशनल जज बन गए। वह तब तक इसी पद पर थे, जब नवंबर 2004 में मैं मद्रास हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनकर आया।
इस जज को तमिलनाडु के एक बहुत ही महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता का समर्थन प्राप्त था। मुझे बताया गया कि ऐसा इसलिए था क्योंकि डिस्ट्रिक्ट जज रहते हुए इस नेता को जमानत दी थी।
इस जज के बारे में भ्रष्टाचार की कई रिपोर्ट्स मिलने के बाद मैंने भारत के चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी को इस जज के खिलाफ एक गुप्त आईबी जांच कराने की गुजारिश की। कुछ हफ्ते बाद जब मैं चेन्नै में था तो चीफ जस्टिस के सेक्रेटरी ने मुझे फोन किया और बताया कि जस्टिस लोहाटी मुझसे बात करना चाहते हैं। चीफ जस्टिस लाहोटी ने कहा कि मैंने जो शिकायत की थी वह सही पाई गई है। आईबी को इस जज के भष्टाचार में शामिल होने के बारे में पर्याप्त सबूत मिले हैं।
अडिशनल जज के तौर पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने वाला था। मुझे लगा कि आईबी रिपोर्ट के आधार पर अब हाई कोर्ट के जज के तौर पर काम करने से रोक दिया जाएगा। लेकिन असल में हुआ यह कि इस जज को अडिशनल जज के तौर पर एक और साल की नियुक्ति मिल गई, जबकि इस जज के साथ नियुक्त किए गए छह और अडिशनल जजों को स्थायी कर दिया गया।
मैंने बाद में इस बात को समझा कि यह आखिर हुआ कैसे। सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम प्रणाली होती है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे सीनियर जज होते हैं जबकि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए तीन सबसे सीनियर जजों की कॉलेजियम होती है।
उस समय सुप्रीम कोर्ट के तीन सबसे सीनियर जज थे, देश के चीफ जस्टिस लाहोटी, जस्टिस वाईके सभरवाल और जस्टिस रूमा पाल। सुप्रीम कोर्ट की इस कॉलेजियम ने आईबी की प्रतिकूल रिपोर्ट के आधार पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद जज के तौर आगे न नियु्क्त किए जाने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी।
उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी। कांग्रेस इस गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन उसके पास लोकसभा में पर्याप्त बहुमत नहीं था और इसके लिए वह अपनी सहयोगी पार्टियों के समर्थन पर निर्भर थी। कांग्रेस को समर्थन देने वाली पार्टियों में से एक पार्टी तमिलनाडु से थी जो इस भ्रष्ट जज को समर्थन कर रही थी। तीन सदस्यीय जजों की कॉलेजियम के फैसले का इस पार्टी ने जोरदार विरोध किया।
मुझे मिली जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उस समय संयुक्त राष्ट्र आमसभा की बैठक में भाग लेने के लिए न्यू यॉर्क जा रहे थे। दिल्ली एयरपोर्ट पर मनमोहन सिंह को तमिलनाडु की पार्टी के मंत्रियों ने कहा कि जब तक आप न्यू यॉर्क से वापस लौटेंगे उनकी सरकार गिर चुकी होगी क्योंकि उनकी पार्टी अपना समर्थन वापस ले लेगी। (उस जज को अडिशनल जज के तौर पर काम जारी न रखने देने के लिए)
यह सुनकर मनमोहन परेशान हो गए लेकिन एक सीनियर कांग्रेसी मंत्री ने कहा कि चिंता मत करिए वह सब संभाल लेंगे। वह कांग्रेसी मंत्री इसके बाद चीफ जस्टिस लाहोटी के पास गए और उनसे कहा कि अगर उस जज को अडिशन जज के पद से हटाया गया तो केंद्र सरकार के लिए संकट की स्थिति पैदा हो जाएगी। यह सुनकर जस्टिस लाहोटी ने उस भ्रष्ट जज को अडिशनल जज के तौर पर एक साल का एक और कार्यकाल देने के लिए भारत सरकार को पत्र लिखा। (मुझे इस बात का आश्चर्य है कि क्या उन्होंने इसके लिए कॉलेजियम के बाकी दो सदस्यों से भी राय ली) इस तरह की परिस्थितयों में उस जज को अडिशनल जज के तौर पर और एक साल का कार्यकाल मिल गया।
उसके बाद चीफ जस्टिस बने वाईके सभरवाल ने उस जज को एक कार्यकाल और दे दिया। उनके उत्तराधिकारी चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन ने उस जज को स्थायी जज के तौर पर नियुक्त करते हुए किसी और हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया।
मैंने इन सब बातों का एक साथ उल्लेख करके यह दिखाने की कोशिश की सिद्धांत के उलट सिस्टम कैसे काम करता है। सच तो यह है कि आईबी की प्रतिकूल रिपोर्ट के बाद इस जज को अडिशनल जज के रूप में काम करने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए थी।
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मेरे ख्याल से ये तो सबसे छोटी बात होगी पिछली भ्रष्ट सरकार की क्योकि अपने खुद के पैरो पर तो खड़ा रहने कि ताकत तो शुरू से ही नही थी लेकिन दोबारा सरकार बना लेना उनका सौभाग्य था और देश का दुर्भाग्य भी क्योकि शायद उस समय विरोध मे मोदी जी के बजाय कोई और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के पद के लिए प्रस्तावित थे जो कि जनता को नामंजुर थे शायद ऐसी ही छोटी छोटी बातों के कारण आज ये हालात बने है हो सकता है कि आज देश कि अर्थव्यवस्था को सही तरह से पटरी पर ना आ रही हो लेकिन कम से कम और नीचे जाने की नौबत तो नही आयेगी इस बात का यकीन है। कांग्रेस का इतिहास पड़ने से इस बात का पता चलाता है कि अपनी सरकार बनाने के लिए और गैर कांग्रेसी सरकार को गिराने मे ही कांग्रेस का पुरा समय निकला है।
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'भ्रष्ट जज' पर संसद में हंगामा, कांग्रेस बैकफुट पर
एजेंसियां | Jul 21, 2014,नई दिल्ली
पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल में एक जज को कथित तौर पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद प्रमोट किए जाने को लेकर आज एआईएडीएमके सदस्यों ने संसद में हंगामा किया। हंगामे के कारण राज्यसभा की बैठक एक बार के स्थगन के बाद दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित करनी पड़ी। नेताओं ने कहा कि कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जस्टिस मर्कंडेय काटजू के आरोपों पर अपना पक्षा रखना चाहिए।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ले आरोप लगाया है कि तमिलनाडु के एक डिस्ट्रिक्ट जज के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप होने के बावजूद यूपीए सरकार की एक सहयोगी पार्टी के दबाव की वजह से मद्रास हाई कोर्ट में अडिशनल जज के रूप में प्रमोट किया गया था। उन्होंने हमारे सहयोगी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में लिखा है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो की तरफ से प्रतिकूल रिपोर्ट के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के दो-दो मुख्य न्यायधीशों ने उस आरोपी जज को बचाया, जबकि तीसरे चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन ने उन्हें प्रमोट करके दूसरे हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया।
मार्कंडेय काटजू के इस दावे के बाद कांग्रेस और डीएमके पर सफाई देने का दबाव बढ़ गया, लेकिन दोनों पार्टियों ने इस मुद्दे पर कोई जवाब नहीं दिया है। संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे पर हंगामा हुआ है। राज्यसभा की बैठक शुरू होते ही एआईएडीएमके के सदस्यों ने प्रश्नकाल निलंबित करने और जजों की नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप के मुद्दे पर चर्चा किए जाने की मांग की।
सभापति हामिद अंसारी ने सदस्यों से शांत रहने और प्रश्नकाल चलने देने की अपील की, लेकिन एआईएडीएमके सदस्य अपनी बात पर जोर देने लगे। कुछ सदस्यों ने अखबार की प्रतियां दिखाईं। सभापति ने उनसे ऐसा न करने के लिए कहा। कांग्रेस के राजीव शुक्ला और डीएमके की कनिमोड़ि कुछ कहते देखे गए लेकिन हंगामे के कारण उनकी बात सुनाई नहीं दी। सदन में व्यवस्था बनते न देख अंसारी ने कुछ ही देर में बैठक 10 मिनट के लिए स्थगित कर दी।
सदन की बैठक दोबारा शुरू हुई तो वही नजारा था। सभापति ने उनसे कहा कि अगर वे कोई मुद्दा उठाना चाहते हैं, तो समुचित तरीके से उठाएं, सदन की कार्यवाही बाधित न करें। उन्होंने सदन में एआईएडीएमके के नेता डॉ वी मैत्रेयन से कहा, 'आप जो कहना चाहते थे, वह कह चुके हैं. अब आप प्रश्नकाल चलने दें।' मैत्रेयन जानना चाहते थे कि क्या पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को न्यायाधीश के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जानकारी थी और क्या तत्कालीन यूपीए की सहयोगी डीएमके ने जज के प्रमोशन के लिए सरकार पर दबाव डाला था। हंगामे के दौरान मनमोहन सिंह सदन में मौजूद थे।
इसी बीच संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि सदस्य अभी प्रश्नकाल चलने दें और शून्यकाल में अपना मुद्दा उठाएं। इससे पूर्व संसदीय कार्य राज्य मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सभापति से कहा कि आसन सदस्यों को उनकी बात कहने के लिए थोड़ा समय दे सकता है और उसके बाद प्रश्नकाल चलने दिया जाए, लेकिन एआईएडीएमके सदस्य नहीं माने।
सभापति ने हंगामा कर रहे सदस्यों को चेताया कि अगर वह अखबार की प्रतियां सदन में दिखाएंगे तो उनके नाम बुलेटिन में शामिल किए जाएंगे। हंगामा थमता ना देख सभापति ने कहा कि कुछ सदस्यों द्वारा नियमों का उल्लंघन कर सदन की कार्यवाही बाधित किए जाने की वजह से वह बैठक दोपहर बारह बजे तक के लिए स्थगित करते हैं।
सीपीआई नेता डी राजा ने कहा कि कांग्रेस और मनमोहन सिंह को इस मामले में सफाई देनी चाहिए। उन्होंने कहा, 'जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में कुछ कमी है। यह सिस्टम हर किसी को मंजूर नहीं है। वक्त आ चुका है जब न्यायिक जवाबदेही तय करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर न्यायिक आयोग बने।' बीएसपी सुप्रीमो मायवाती ने कहा कि उनकी पार्टी हमेशा से राजनीति और न्यायपालिका को अलग-अलग रखने के पक्ष में रही है।
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