सौ से ज्यादा जरूरी दवाएं सस्ती होंगी


व्यापारिक क्षैत्र में कब कहां उपभोक्ता से लूट कर ली जाये, इसकी पूरी स्वतंत्रता है।
इनकी राजनीति पर भारी पकड भी है। इस कारण अभी तक न तो मुनाफे की उच्चतम सीमा तय है और नही स्टाक की उच्चतम सीमा तय है। इसका फायदा उठा कर हर तरफ लूट का साम्राज्य बना हुआ हे। इस मामले में राज्य सरकारें अधिक दोषी हैं उनको कोई चिन्ता ही नहीं है। केंद्र का प्रयास सराहनीय है किन्तु राज्य सरकारों को भी अपनी जिम्मेवारी निभानी चाहिए । 

सौ से ज्यादा जरूरी दवाएं होंगी सस्ती
Date:Monday,Jul 14,2014 


नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। हृदय रोग और मधुमेह सहित कई गंभीर बीमारियों की दवाएं अब सस्ती हो जाएंगी। राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने 108 और दवाओं का अधिकतम खुदरा मूल्य तय कर दिया है। ये दवाएं आवश्यक औषधि सूची (ईएलएम) में शामिल नहीं हैं। दवा कंपनियों ने इसे दवा उद्योग का गला घोटने वाला कदम बताया है।

एनपीपीए ने औषधि मूल्य नियंत्रण आदेश (डीपीसीओ) 2013 के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल करते हुए अब उन दवाओं की भी अधिकतम कीमत तय कर दी है जो आवश्यक औषधि सूची में शामिल नहीं रही हैं। इसने बीते बृहस्पतिवार को जारी अपने आदेश में कहा है कि ये दवाएं बनाने वाली सभी दवा कंपनियों को इन दवाओं की अधिकतम मूल्य सीमा का पालन करना होगा। आम तौर पर एनपीपीए सिर्फ आवश्यक औषधि सूची में शामिल दवाओं की कीमत ही तय करता है। इस सूची में 652 दवाएं शामिल हैं लेकिन डीपीसीओ के अनुच्छेद 19 के तहत इसे यह अधिकार दिया गया है कि जरूरत पड़ने पर यह अन्य दवाओं के लिए भी अधिकतम कीमत तय कर सकता है। जिन दवाओं की कीमत नियंत्रित की गई है, उनमें मधुमेह और हृदय रोग के अलावा एचआइवी और मलेरिया आदि की दवाएं भी शामिल हैं। रेनबैक्सी, सनोफी और एबॉट जैसी दवा कंपनियां अभी इन दवाओं को काफी ऊंची कीमत पर बेच रही हैं।

उधर, दवा कंपनियों के संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ फार्मास्यूटिकल प्रोड्यूसर्स आफ इंडिया (ओपीपीआइ) के अध्यक्ष शैलेश अयंगर कहते हैं कि पिछले साल लाए गए डीपीसीओ में साफ तौर पर लिखा गया है कि इस नीति का मकसद सिर्फ आवश्यक दवाओं की कीमत को नियंत्रण में रखना है, दवा उद्योग पर नियंत्रण रखना नहीं। इसके बावजूद इतनी बड़ी संख्या में ऐसी दवाओं की कीमत तय कर दिया गया है जो आवश्यक औषधि सूची में शामिल नहीं हैं। एनपीपीए का यह मनमाना कदम बहुत निराशाजनक है।

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