मानवता पर सबसे बड़ा कलंक है परमाणु हमला
मेरी समझ में आज तक नहीं आ रहा कि अमरीका की नजर में मोदी अमानवीय कैसे हो गए थे ? सबसे ज्यादा हिंषक , देश के देश और हजारों लाखों निर्दोषों को निर्मम मौत के घाट उतरने वाला अमरीका, मानवता की बात का भी हक़ कैसे रखता हे … हिरोशिमा , नागासाकी ,वियतनाम, इराक और अफगानिस्तान …., अमरीका के मूल लोगों रेड इण्डियनन्स को किसने साफ़ कर दिया …… हमेशा अमरीका ने मानवता को मारा---- उसकी कोई और मिशाल हे …?
आधुनिक इस्लामिक आतंकवाद का जनक व प्रेरक भी अमेरिका ही है। जो साम्यवाद के खिलाफ तेल क्षैत्र में रूस को रोकने के उपाय के रूप में इसका उपयोग करता रहा। अफगानिस्तान में रूस के खिलाफ इस्लामिक आतंकवाद खडा किया। पाकिस्तान में आतंकवादी उत्पादन की फैक्ट्री अमेरिका के ही संरक्षण में फलीफूली ......इसके दुष्परिणाम भी अमेरिका को भुगतना पडा.....मगर विश्व मानवता इससे अभी भी पीडित है।
घोर घ्रणित हिंषक और अमानवीय अमरीका , मानवता का ठेकदार कैसे ?
मानवता पर सबसे बड़ा कलंक है परमाणु हमला
अगस्त, 1945 में अमेरिकी परमाणु हमले में जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पूरी तरह से तहस नहस हो गए थे । उस परमाणु हमले की विभीषिका आज भी रोंगटे खड़े कर देने वाली है ,ऐसा लगता है कि अब अगर परमाणु युद्ध हुए तो पूरी दुनियाँ ही तबाह हो सकती है । हिरोशिमा दुनिया का पहला ऎसा शहर है जहां अमेरिका ने 6 अगस्त 1945 में यूरेनियम बम गिराया था और इसके तीन दिन बाद यानी 9 अगस्त को नागासाकी पर परमाणु बम गिराया गया। इस बमबारी के बाद हिरोशिमा में 1 लाख 40 हजार और नागासाकी में 74 हजार लोग मारे गए थे। जापान परमाणु हमले की त्रसदी झेलने वाला दुनिया का अकेला देश है। यह परमाणु हमला मानवता के नाम पर सबसे बड़ा कलंक है । 6 अगस्त, 1945 की सुबह अमरीकी वायु सेना ने जापान के हिरोशिमा पर परमाणु बम लिटिल बॉय गिराया था। तीन दिनों बाद 9 अगस्त को अमरीका ने नागासाकी शहर पर फैट मैन परमाणु बम गिराया।
अमेरिका द्वारा किये गए परमाणु हमले के बाद अमरीका के राष्ट्रपति हैरी ट्रूमन ने कहा कि हिरोशिमा पर गिराया गया बम अब तक इस्तेमाल में लाए गए बम से दो हजार गुना शक्तिशाली है। इससे हुई क्षति का आज तक अनुमान नहीं लगाया जा सका है। बम को अमरीकी जहाज बी-29 से गिराया गया था जिसे इनोला गे के नाम से जाना जाता था। जहाज के चालक दल ने कहा कि धुंए का बड़ा सा गुबार और आग के जबरदस्त गोले ऊपर की तरफ उठे थे। हिरोशिमा पर गिराए गए इस बम ने दूसरे विश्व युद्ध का नक्शा ही बदल दिया था। बम गिराए जाने से पहले जापान को बिना शर्त हथियार डालने को कहा गया था। ब्रितानी प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली ने कहा कि इस परमाणु प्रोजेक्ट में इतनी संभावनाए थीं कि ब्रिटेन ने अमरीकी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम किया था। हिरोशिमा बम जिसे लिटिल बम का नाम दिया गया था के गिराए जाने के बाद 13 वर्ग किलोमीटर के दायरे में पूरी तरह उजड़ गया था ओर शहर में मौजूद 60 प्रतिशत भवन तबाह हो गए थे। शहर की साढ़े तीन लाख आबादी में से एक लाख चालीस हजार लोग मारे गए थे। बहुत सारे लोग बाद में विकिरण के कारण मौत का शिकार हुए। तीन दिनों के बाद अमरीका ने जापान के दूसरे शहर नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिराया जिसमें 74 हजार लोग मारे गए थे। जापान ने 14 अगस्त, 1945 को हथियार डाल दिए थे। इस परमाणु हमलें ने इंसानी बर्बरता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए थे , बच्चों और औरतों की हजारों लाशें, शहरों की बर्बादी ने मानवता को शर्मशार कर दिया था । वास्तव में इस बर्बरता को कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है। यहाँ तक कि किसी युद्ध में भी ऐसी बर्बरता को सही नहीं ठहराया जा सकता है।
कई देशों द्वारा अमेरिका की इस हरकत पर कड़े शब्दों में उसकी निंदा की गयी थी। आज इस हमलें को 67 वर्ष हो गए हैं लेकिन जापान का ये हिस्सा आज भी उस हमले से प्रभावित है। आज भी यहाँ पर उत्पन्न हो रही संतानों पर इस हमले का असर साफ देखा जा सकता है।
वास्तव में अमेरिका ने परमाणु बम का इस्तेमाल वैश्विक राजनीति में अपना दबदबा कायम करने के लिए किया था। इस परमाणु हमले से छह महीने पहले तक अमेरिका ने जापान के 67 शहरों पर भारी भीषण बमबारी की थी । इस दौरान जापान की हार निश्चित हो गयी थी लेकिन फिर भी अमेरिका ने जानबूझकर परमाणु बम का इस्तेमाल किया ।
जहाँ सालों पहले ,1945 की गर्मियों के अंतिम महीने में पॉट्सडैम शांति सम्मेलन के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने इस बात का ऐलान किया कि अमरीका के पास एक नया सुपर हथियार है। कहा जा रहा था कि हैरी ट्रूमन इस जुमले को कहकर सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन की आँखों में डर और खौफ को देखना चाहते थे। लेकिन उनकी बातों से स्टालिन में कोई खौफ पैदा नहीं हुआ और इसके कुछ ही दिनों के बाद हिरोशिमा और नागासाकी की त्रासदी ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। जबकि इस परमाणु बमबारी का कोई सैन्य महत्व नहीं था। इन शहरों में हथियार बनाने वाले कारखाने मौजूद नहीं थे। न ही वहाँ कोई बड़ा सैन्य जमाव था। दरअसल अमरीका रूस को यह दिखाना चाहता था कि युद्ध के बाद दुनिया के भाग्य का फैसला कौन करेगा। और इसके लिए उसने लाखों जापानी नागरिकों के जीवन बलिदान कर दिए।
जापान पर परमाणु हमला इंसानी इतिहास में परमाणु हथियारों का सबसे पहला प्रयोग था। अफसोस की बात यह है कि ये परमाणु बम सैन्य ठिकानों और और उनके सेंटर्स पर नहीं बल्कि मासूम लोगों और कस्बों पर गिराए गए थे। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रसिद्ध पीडियाट्रिक और सर्जन लियोनिद रॉशाल ने कहा था - “हर इंसान को अपने जिन्दगी में कम से कम एक बार हिरोशिमा और नागासाकी की यात्रा करनी चाहिए ताकि इस त्रासदी की भयानकता को महसूस किया जा सके.”
आधुनिक विश्व में शक्तिशाली देशों के लिए किसी अन्य देश पर परमाणु हमला करना संभव नहीं लगता क्योंकि औद्योगिकीकरण के इस दौर में एक देश दूसरे पर आर्थिक एवं व्यापारिक हित को लेकर काफी निर्भरता है। परमाणु हमला होने पर ये हित प्रभावित हो सकते हैं। लेकिन फिर भी किसी परिस्थिति में परमाणु हमला होने पर उससे होने वाला नुकसान हिरोशिमा या नागासाकी पर परमाणु हमले से हुए नुकसान से कई गुना अधिक हो सकता है। अमेरिका की ओर से हिरोशिमा या नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम का वजन 12 से 15 किलोटन था जबकि वर्तमान में परमाणु बम का वजन सामान्य तौर पर 50 से 100 किलोटन तक होता है। और परमाणु तकनीक भी पहले से काफी उन्नत हो गई है।
इस घटना के सालों बीत जाने के बाद जापान ने आज आश्चर्यजनक रूप से प्रगति की है। जापान ने अपने आप को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा किया है ।उसने पूरे विश्व के सामने विकास का एक उदाहरण सेट किया है । परमाणु हमले के बाद जापान ने जान लिया है कि शान्ति का रास्ता ही सबसे अच्छा और मानवीय है। लेकिन इस परमाणु हमले की विभीषिका को जानने के बाद भी अमेरिका सहित विश्व के अधिकांश देश परमाणु हथियारों की होड में शामिल है । हमें अब यह समझना होगा की अगर फिर से तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो उसमे स्वाभाविक तौर पर परमाणु बम से हमलें होंगे जिससे सम्पूर्ण मानवता को खतरा है । इसलिए विश्व के सभी देशों को सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में परमाणु हमलें न होने पायें क्योंकि मानवता के लिए शांति ही एकमात्र और सर्वमान्य रास्ता हो सकता है ।
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