विश्व को मोदी सरकार की परिपक्वता का संदेश गया - अरविन्द सिसौदिया Delhi Services Bill

 


राज्यसभा में विपक्ष की बडी हार से,विश्व को मोदी सरकार की परिपक्वता का संदेश गया - अरविन्द सिसौदिया

Big defeat of opposition in Rajya Sabha has sent message of maturity of Modi government to the world - Arvind Sisodia


दिल्ली विधानसभा में सरकारों के अधिकारों को लेकर आये बिल में ताजा ताजा संयुक्त विपक्ष बनें गठबंधन को राज्यसभा में भी हार का सामना करना पडा है। सरकार के विरूद्ध लाये गये अनावश्यक अविश्वास प्रस्ताव पर भी विपक्ष की करारी हार होनें वाली है। कुछ ही समय में दोनों सदनों में विपक्ष की पराजय देश में नये गठबंधन की इमेज को धक्का पहुचानें वाले हैं। यह विपक्ष में आंतरिक एक जुटता में दरार का भी संकेत है और देश की अस्विकार्यता का भी संदेश है। 

In the bill regarding the rights of the governments in the Delhi Legislative Assembly, the coalition formed the latest joint opposition, had to face defeat in the Rajya Sabha as well. The opposition is going to face a crushing defeat even on the unnecessary no-confidence motion brought against the government. The defeat of the opposition in both the Houses within a short span of time will dent the image of the new alliance in the country. It is also an indication of crack in the internal unity in the opposition and also a message of unacceptability of the country.

कांग्रेस गठबंधन नें अपने पुरानी आलोच्य गतिविधियों पर पर्दा डालनें के लिये नया नाम रख लिया वह भी भ्रमित करने के लिये। इसी से तय है कि गठबंधन में कुछ नहीं है। भ्रम फैलाकर वोट बटोरना चाहते हैं। राज्यसभा में विपक्ष की बडी हार से,विश्व को मोदी सरकार की परिपक्वता का संदेश गया ।

The Congress alliance has kept a new name to cover up its old criticism activities and that too to confuse. From this it is decided that there is nothing in the alliance. They want to garner votes by spreading confusion. With the big defeat of the opposition in the Rajya Sabha, the message of maturity of the Modi government has gone to the world.


दिल्ली में विधानसभा कांग्रेस के समय 1951 में स्थापित हुई थी और 1956 में इसे भंग कर दिया गया था। क्यों कि दिल्ली भारत की राजधानी है, केन्द्र सरकार का मुख्यालय है। इसलिये तब भी यह विचार हुआ कि सत्ता के दो केन्द्र कम से कम राष्ट्रीय राजधानी क्षैत्र में नहीं होना चाहिये, इससे विदेशों के भारतीय राजधानी दिल्ली में निवास कर रहे राजदूत और अन्य बहुत सारी एजेन्सीज में गलत संदेश जाता है। यही बात रही की पं. जवाहरलाल नेहरू नें भी दिल्ली से विधानसभा समाप्त कर दी। 

The Legislative Assembly in Delhi was established in 1951 during the Congress and was dissolved in 1956. Because Delhi is the capital of India, it is the headquarters of the central government. Therefore even then it was thought that the two centers of power should not be at least in the National Capital Region, this sends a wrong message to the ambassadors of foreign countries residing in the Indian capital Delhi and many other agencies. The same thing remained that Pt. Jawaharlal Nehru also abolished the assembly from Delhi.


मेरा आज भी यही मानना है कि देश की केन्द्रीय राजधानी को केन्द्र शासित ही होना चाहिये, उसमें विधानसभा नहीं होना चाहिये। अरविन्द केजरीवाल बहुत उछल कूद करते रहते हैं प्रतिदिन न्यूसेंस के अतिरिक्त उनके पास कोई काम नहीं होता है, वे भूल जाते है, कि दिल्ली से ही सात लोकसभा सांसद भी चुने जाते हैं और उन्हे दिल्ली की ही जनता चुनती है। दिल्ली की जनता ने मुख्यमंत्री केजरीवाल के रहते ही सभी सातों के सातों सांसद भाजपा को दिये हैं। दिल्ली पर आप पार्टी का एकाधिकार नहीं है। 

Even today, I believe that the central capital of the country should be a Union Territory, it should not have a Legislative Assembly. Arvind Kejriwal keeps on jumping a lot everyday except nuisance he has no work, he forgets that seven Lok Sabha MPs are also elected from Delhi and they are elected by the people of Delhi only. The people of Delhi have given all the seven MPs to the BJP as long as Kejriwal was the Chief Minister. AAP does not have monopoly over Delhi.


फिर दिल्ली जो देश की राजधानी है को तो बुहत ही अनुशासित विधानसभा चाहिये जो देश की गरिमा और सम्मान का भी ध्यान रख सके। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि अरविन्द केजरीवाल अमेरिका से चन्दा प्राप्त कर अपनी सामाजिक राजनैतिक गतिविधयों में आगे आये हैं, वे इन चन्दा देनें वालों की उपज हैं और उनके एजेण्डे पर चलते हैं। यह किसी भी राजनैतिक दल को ठीक नहीं कि वह किसी विदेशी तौर तरीके पर चले । 

Then Delhi, which is the capital of the country, needs a very disciplined assembly which can also take care of the country's dignity and respect. My personal belief is that Arvind Kejriwal has come forward in his social political activities by receiving donations from America, he is the product of these donors and follows their agenda. It is not right for any political party to follow any foreign method.


भारत सरकार को देखना चाहिये कि क्या दिल्ली में विधानसभा रखनें से कोई जनहित है, यदी नहीं तो , दिल्ली में विधानसभा की आवश्यकता नहीं है। यह कार्य नगर निगम भी कर ही सकती है। पहले भी करती ही थी। 

The Government of India should see whether there is any public interest in keeping the Legislative Assembly in Delhi, if not, there is no need for the Legislative Assembly in Delhi. Municipal Corporation can also do this work. She used to do it before also.


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Delhi Services Bill Debate in Rajya Sabha : दिल्ली सर्विसेज बिल को राज्यसभा ने भी सोमवार को मंजूरी दे दी। बिल पर करीब 8 घंटे की लंबी चर्चा में बाद वोटिंग हुई। पक्ष में 131 वोट पड़े जबकि विपक्ष में 102 वोट। ये बिल मोदी सरकार और विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के बीच नाक की लड़ाई का सबब बना हुआ था। बिल को लोकसभा की पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। अब राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ यह कानून की शक्ल ले लेगा। इस कानून के बाद दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग में लेफ्टिनेंट गवर्नर की चलेगी। 

गृह मंत्री अमित शाह ने चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि बिल का उद्देश्य केवल और केवल दिल्ली में लोकाभिमुख और भ्रष्टाचारामुक्त शासन है। इतना आश्वस्त करना चाहता हूं कि बिल के किसी भी प्रावधान से पहले की व्यवस्थाओं में कोई फर्क नहीं आएगा। उन्होंने कहा कि जब हम दिल्ली का चुनाव लड़ते हैं तो हमें मालूम होना चाहिए कि ये यूनियन टेरिटरी है। उन्होंने इसके बाद दिल्ली की प्रशासनिक स्थिति और उसके इतिहास की बात की। शाह के कहा कि स्वतंत्रता से पूर्व भी दिल्ली कहीं न कहीं सत्ता का केंद्र रही। 1911 में दिल्ली तहसील और महरौली थाना को मिलाकर राजधानी बनाया। बाद में 1919 और 1935 के अधिनियम में दिल्ली को अंग्रेजों ने चीफ कमिश्नर स्टेट बनाया। उन्होंने कहा कि बाद में जब संविधान बनने की प्रक्रिया बनी तो दिल्ली के स्टेटस के बारे में पट्टाभिसीतारमैया और डॉक्टर आंबेडकर की एक समिति बनी। सीतारमैया ने दिल्ली को लगभग राज्य का दर्जा देने की सिफारिश की। लेकिन चर्चा के दौरान पंडित नेहरू, सरदार पटेल, सी राजगोपालाचारी, राजेंद्र प्रसाद और खुद आंबेडकर जैसे तमाम नेताओं ने अलग-अलग तर्क देकर इसका विरोध किया। आंबेडकर की रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली की जो प्रकृति है, उसे देखते हुए शायद ही उसे किसी अन्य स्थानीय प्रशासन के तहत रखा जाएगा। किसी विशेष क्षेत्र के बारे में क्या करना है, ये राष्ट्रपति अपने विवेक के अधिकार पर काम करेंगे, जिम्मेदार मंत्रियों की सलाह पर। इस दौरान आरजेडी सांसद मनोज झा पर तंज कसते हुए शाह ने कहा कि अगर आप स्टूडेंट को भी यही पढ़ाते होंगे तो उनकी बुरी गति है। उन्होंने कहा कि मनोज जी ने कहा कि कोटेशन को पढ़ाता हूं। मनोज जी अगर आप इसी तरह का कोटेशन का इंटरप्रिटेशन जेएनयू में पढ़ाते होंगे तो विद्यार्थियों की बुरी गत हो जाती होगी। भौगोलिक स्थिति और राजधानी का अस्तित्व है। दिल्ली राजधानी क्षेत्र है, इसीलिए कमिटी इसे पूर्ण राज्य नहीं बनाना चाहती। मनोज जी, क्या दिल्ली आ राजधानी नहीं है। कुछ सत्य सनातन होते हैं जो बदलते नहीं हैं। शाह ने कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि ये राष्ट्रीय राजधानी है। आजादी के बाद वर्ष 1951 में दिल्ली को सीमित अधिकारों के साथ विधानसभा दी गई। वर्ष 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के आधार पर दिल्ली विधानसभा भंग कर दी गई और इसे संघशासित प्रदेश बना दिया गया। 1987 में सरकारिया कमिटी बनी जो बाद में बालकृष्ण कमिटी में परिवर्तित हुई। कमिटी ने 1993 में सिफारिश दी। जिसके बाद 69वां संविधान संशोधन हुआ जिसमें संविधान में आर्टिकल 239 AA डाला गया और दिल्ली को विशेष दर्जा दिया गया। विधानसभा फिर से बहाल हुई। इसलिए ये भाषण देना कि आज दिल्ली की बारी है कल ओडिशा की बारी है, कल आंध्र प्रदेश की बारी है, ये कहना गलत है।

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