शाबाश इसरो और शाबाश मोदी जी

शाबाश इसरो और शाबाश मोदी जी
Shabaash isro & Shabaash modi ji 

shaabaash isaro aur shaabaash modee jee

इस महान अभियान की शाबशी जितनी इसरो को बनती है उतनी ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की सरकार को भी बनती है। जिसने इस महान कार्य को करने में इसरो को सब कुछ दिया जो उसे चाहिए था।
किसी कवि नें कहा
चन्द्रयान 2 के संदर्भ में
"बेशक यान टूटा था हमारा, पर होंसला टूटा नहीं था।"
यहीं होंसला चन्द्रयान 3 की सफलता का मुख्य कारक बना 

चन्द्रयान 3 की सफलता पूर्वक चन्द्रमा की धरती पर उतरनेँ की ऐतिहासिक उपलब्धि के शुभ अवसर पर सभी भारतवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें...।
परिवार में जब कोई बच्चा बड़ी सफलता प्राप्त करता है तो सबसे ज्यादा ख़ुशी परिवार के मुखिया को होती है, क्योंकि सफल बच्चे के लिए संसाधन उपलब्ध करवाने में उसी की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। सारी व्यवस्थायें, सारे खर्च, सारी समस्याओं का निदान मुखिया ही करता है अर्थात अवसर तक लेकर जानें वाला परिवार का मुखिया ही होता है। उसके साहस विश्वास को कोई भुला नहीं सकता। यही बात देश के मुखिया की है जिसे हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नाम से जानते हैं।
इसरो पहले भी था, मगर काम नहीं था, अवसर नहीं दिए जाते थे, बजट नहीं होता था, संसाधन नहीं होते थे। अर्थात तब की सरकारें इसे पंगु रखती थी। अब की सरकार साहस भरती है, चन्द्रयान 2 जब मंजिल पर पहुँच कर मात्र कुछ मिनिट पहले संपर्क से बाहर हो गया, तब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नें इसरो चीफ को गले लगा कर कहा था, इसे हम ही करेंगे.. यह साहस चन्द्रयान 3 की सफलता का मंत्र बन गया और हमनें करके दिखाया। क्यों कि सरकार नें खर्च और सभी संसाधनों को उपलब्ध करवाया।

एक समय लाल-चौक पर तिरंगा नही पहरा सकते थे...., सेना और पुलिस की सुरक्षा के बीच तिरंगा लहरा पाते थे। आज चंद्रमा पर तिरंगा लहरा रहा है। सभी जानते हैं कि कारण क्या था...! सरकार में साहस होगा तो सभी कुछ संभव है। मोदी सरकार साहसी सरकार है।

सबसे से ज्यादा शाबाशी का हकदार भारत की इसरो के वर्तमान वैज्ञानिक गण हैं, जिनके अथक परिश्रम की बजह से हमें कॉलर ऊँचा करने का अवसर मिला। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी शाबाशी बनती है क्योंकि उन्होंने वैज्ञानिकों में ऊर्जा का संचार किया था। उन्होने चन्द्रयान 2 की विफलता पर कहा था हिम्मत न हारें यह हम ही करेंगे और भारत के वैज्ञानिकों नें कर दिखाया।

भाजपा हमेशा ही आधुनिक व वैज्ञानिक रही है.... प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नें बिना किसी देश की मदद के परमाणु विस्फोट करके देश को सुरक्षा कवच दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें कोरोना के समय वेक्सीन बनवाये जानें पूरी ताकत झोंक दी और कोरोना की सफल वेक्सीन बनाई और सेंकड़ों करोड़ भारतीयों को 2 बार वेक्सीन मुफ्त लगवाई।
यह कांग्रेस व उनके नेता मणीशंकर अय्यर यह कुंठा है कि भारत विश्व गुरु नहीं बन सकता,  सच यह है कि भारत हमेशा ही विश्वगुरु रहा है। भारत की मेधा अनंतकाल से सबसे आगे रही है, वेद पुराण उपनिषद शास्त्र सब के सब इसके गवाह हैं। भारत की कालगणना और ज्योतिषी ज्ञान इसका प्रमाण है।

हमारे पूर्वजों नें चन्द्रमा और सूर्य ही नहीं नवग्रहो और सप्त ऋषियों तक की खोज की,अभिजीत और 27 नक्षत्रों की खोज की..... आकाशगाँगाओ सहित कालगणना की खोज की.... वैज्ञानिक मेधा सनातन का शौर्य है.... हम विश्व गुरु थे और अब फिर साबित कर रहे हैं.... जय हिन्द जय भारत.....

कांग्रेस ने चंद्रयान-3 की सफल 'लैंडिंग' को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की बेमिसाल उपलब्धि करार देते हुए कहा कि यह किसी एक व्यक्ति नहीं, बल्कि सामूहिक संकल्प का नतीजा है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नया इतिहास रचते हुए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर ‘विक्रम’ और रोवर ‘प्रज्ञान’ से लैस एलएम की सॉफ्ट लैंडिग कराने में सफलता हासिल की।भारतीय समयानुसार शाम करीब छह बजकर चार मिनट पर इसने चांद की सतह को छुआ।

हलाँकि इस सफलता का कांग्रेस विरोध करने की स्थिति में नहीं थी.. इसलिए उनकी प्रतिक्रिया सदी हुई आईं.....

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता प्रत्येक भारतीय की सामूहिक सफलता है।

पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने चंद्रयान-3 की सफल 'लैंडिंग' को इसरो की शानदार उपलब्धि करार देते हुए कहा कि यह सफलता वैज्ञानिक समुदाय की प्रतिभा और कड़ी मेहनत का परिणाम है।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया,‘‘1962 में शुरू हुए भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने आज चंद्रयान-3 के रूप में एक नई ऊंचाई तय की, पूरा देश आज भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की इस गौरवशाली यात्रा पर गर्व महसूस कर रहा है।

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने एक बयान में कहा, ‘‘आज हम जो सफलता देख रहे हैं वो एक सामूहिक संकल्प, एक सामूहिक कामकाज है, एक सामूहिक टीम के प्रयास का नतीजा है। यह सिस्टम का नतीजा है, एक व्यक्ति का नहीं है। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले कुछ वर्षों में इसरो की जो साझेदारी है, जो भागीदारी है -‌ अलग-अलग शिक्षा के संस्थान हैं, निजी क्षेत्र की छोटी-छोटी कंपनियां हैं, जिन्हें आज स्टार्टअप्स कहते हैं, उनके साथ जो भागीदारी का कार्यक्रम इसरो की तरफ से हुआ है, उसका भी असर हम देख रहे हैं।आज का क्षण हमारे लिए बहुत ही गर्व का क्षण है और हम इसरो को सलाम करते हैं। ’’

इसरो -=-
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय कर्नाटक राज्य के बंगलौर में है।
 संस्थान का मुख्य कार्यों में भारत के लिये अंतरिक्ष सम्बधी तकनीक उपलब्ध करवाना व उपग्रहों, प्रमोचक यानों, साउन्डिंग राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास करना शामिल है।
संस्थापक: विक्रम साराभाई
स्थापना की तारीख : 15 अगस्त 1969

हलाँकि कांग्रेस नें इसे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जोड़ने की कोशिश की किन्तु पं जवाहरलाल नेहरू जी की मृत्यु के बाद इसरो की स्थापना हुई थी ।
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इसरो चीफ.... एस सोमनाथ....

चंद्रयान-3 के चांद पर उतरने के बाद एक नाम हर किसी की जबान पर है. एस सोमनाथ. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के प्रमुख. उन्हीं के नेतृत्व में 23 अगस्त की शाम लगभग 6.04 बजे भारत ने इतिहास रचा. चंद्रयान-3का विक्रम लैंडर चांद के साउथ पोल पर उतरा और ये कारनामा कर दिखाने वाला पहला देश बना भारत. इसके बाद से हर कोई एस सोमनाथ की बात सुनना चाहता है. उन्होंने अपनी बात रखी भी है. ISRO के फ्यूचर प्लान्स से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी तक.

एस सोमनाथ ने कहा है कि अगले 14 घंटे चंद्रयान-3 मिशन के लिए बहुत जरूरी हैं. सोमनाथ ने बताया कि भारत सिंतबर 2023 के पहले हफ्ते में आदित्य L1 लॉन्च कर सकता है. ये मिशन सूरज पर रिसर्च करने के लिए तैयार किया जा रहा है. इसी बातचीत के दौरान सोमनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी अपनी राय दी.

सोमनाथ ने कहा कि पीएम मोदीस्पेस वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए एक प्रेरणा हैं और उनकी इस विषय में काफ़ी दिलचस्पी है. 60 साल के सोमनाथ ने मोदी सरकार द्वारा स्पेस सेक्टर में लाए गए बदलावों की तारीफ भी की. सोमनाथ ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा,

‘वो हम सबके लिए एक इंस्पिरेशन हैं. ख़ासकर स्पेस डिपार्टमेंट के वैज्ञानिक और इंजीनियर्स के लिए. उन्होंने एक स्पेस बफर की भी बात की, जिससे पता चलता है कि वो जानते हैं कि हम क्या करते हैं. उनको टेक्नोलॉजी की अच्छी समझ है और वो हमसे कई बार कठिन सवाल भी पूछ लेते हैं. उनको इस विषय में काफी दिलचस्पी है. इसलिए उन्हें हमारी इस सफलता से बहुत खुशी होगी. इससे हमें सरकार और लोगों से आगे के लिए सपोर्ट और प्रोत्साहन भी मिलेगा और स्पेस सेक्टर में हम भारत का विस्तार भी कर पाएंगे.’
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बी बी सी से साभार ..
भारत के चंद्रयान-3 के लैंडर ने सफलतापूर्वक चांद के दक्षिणी ध्रुव में सॉफ्ट लैंडिंग कर ली है. भारतीय मीडिया में तो इससे जुड़ी ख़बरें छाई ही हुई हैं, विदेशी मीडिया में भी भारत की इस उपलब्धि की चर्चा है.

ब्रितानी अख़बार द गार्डियन लिखता है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडर उतारकर भारत ने वो कारनामा कर दिखाया है जो अब तक कोई नहीं कर पाया है.

अख़बार लिखता है कि इसके साथ ही भारत अब एक स्पेस पावर बन गया है.
अख़बार ने लिखा कि जैसे-जैसे चंद्रयान के चांद पर उतरने की तारीख़ नज़दीक आ रही थी लोगों में इसे ले कर घबराहट बढ़ रही थी.
इसकी सफलता के लिए मंदिरों और मस्जिदों में ख़ास प्रार्थना सभाएं आयोजित की गईं. वाराणसी में गंगा किनारे साधुओं ने मिशन की सफलता की कामना की.

चंद्रयान-3: चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचकर भारत ने रचा इतिहास

और फिर बुधवार की शाम क़रीब 6 बजे लैंडिंग हुई और उसके बाद भारत के लोग चांद पर सफलतापूर्वक लैंड करने वाला चौथा देश बनने की और चांद के दक्षिणी ध्रुव में लैंड उतरने वाला पहला देश बनने का जश्न मना रहे थे.

अख़बार लिखता है, "आख़िरी के कुछ पलों में लैंडर ने बेहद जटिल काम को अंजाम दिया. इसने अपनी स्पीड 3,730 मील प्रतिघंटे से कम कर लगभग शून्य मील प्रतिघंटे कर दी. साथ ही इसने अपनी पोज़िशन बदली और उतरने की तैयारी के लिए सीधी यानी वर्टिकल पोज़िशन ली."

"इस वक्त लैंडर को सही पोज़िशन में सही धक्का दिए जाने की ज़रूरत थी क्योंकि ज़ोर से धक्का देने से इसके लड़खड़ा जाने की ख़तरा था. वहीं ज़रूरत से कम ताक़त से धक्का देने पर ये चांद पर ग़लत जगह पर उतर सकता था."

अख़बार लिखता है कि इससे पहले 2019 में भेजे गए भारत के चंद्रयान-2 मिशन की नाकामी की वजह आख़िरी के कुछ पल थे. इसका लैंडर अपनी स्थिति बदलने में कामयाब नहीं हो सका था और तेज़ी से चांद की तरफ आ गया था.

अख़बार ने ये भी लिखा है कि चांद तक पहुंचने के लिए अमेरिका ने जो रॉकेट सालों पहले इस्तेमाल किए थे भारत से उससे भी कम शक्तिशाली रॉकेट का इस्तेमाल किया. बल्कि सही स्पीड के लिए चंद्रयान ने पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाए जिसके बाद उसने चांद की तरफ़ छलांग लगा दी.

चंद्रयान-2: चाँद की अधूरी यात्रा में भी क्यों है भारत की एक बड़ी जीत

चंद्रयान-3
भू-राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण

लेखक डेविड वॉन रियली ने वॉशिंगटन पोस्ट में लिखा कि खोज के लक्ष्य के साथ चांद के दक्षिणी ध्रुव पर गया चंद्रयान का लैंडर अमेरिका की उस कहानी की तरह है जो एक तरह की दौड़ की शुरुआत करता है.

उनका कहना है कि भारत की ये कामयाबी भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण क्षण का प्रतीक भी है. उन्होंने रूस के लूना-25 की नाकामी का ज़िक्र करते हुए कहा कि ये लैंडर चांद की सतह की तरफ़ ऐसे बढ़ा जैसे रूस के ताबूत की आख़िरी कील की तरफ़ हथौड़ा बढ़ा रहा हो.

उन्होंने चांद के लिए रूस के अभियानों के बारे में लिखा कि रूस (पहले सोवियत संघ का हिस्सा) ने वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए अपने स्पेस कार्यक्रम का इस्तेमाल किया.

उसी ने सबसे पहले इंसान को अंतरिक्ष में भेजा, सैटलाइट को कक्षा में स्थापित किया और चांद पर स्पेसक्राफ्ट उतारा. अमेरिका से तीन साल पहले 1966 में उसका लूना-6 चांद के ओशियानस प्रोसेलारम में उतरा, हालांकि बाद में अमेरिका ने सबसे पहले इंसान को चांद पर उतार कर इतिहास बनाया.

वो लिखते हैं, "ये वो दौर था जब हॉलेट-पैकार्ड ने अपना पहला कम्पयूटर बनाया था, आज रूस 1966 में किया अपना कारनामा दोहराना चाहता है, लेकिन वो नाकाम रहा. ये बताता है कि बेहद अधिक क्षमता वाले एक मुल्क ने कैसे अपनी क़ाबिलियत खो दी." "1989 में भारत की अर्थव्यवस्था सोवियत संघ की तुलना में आधी थी, लेकिन आज वो रूस से 50 फ़ीसदी बड़ी है. अमेरिका के साथ क़दम मिलाने की बात छोड़ दें, रूस आज भारत के साथ क़दम नहीं मिला पा रहा है."

23 अगस्त 2023
भू-राजनीति और मौजूदा विश्व व्यवस्था की बात करते हुए डेविड वॉन रियली लिखते हैं कि आधुनिक दुनिया की कल्पना में रूस की अहम जगह थी, लेकिन ये स्तंभ बिखर गया और चीन एक ताक़त के रूप में उभरने लगा.

वो लिखते हैं, "चीन की अपनी परेशानियां हैं. स्थिरता और योग्यता के मामले में दुनिया एक बार फिर अमेरिका की तरफ़ देख रही है. यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोप के देश पहले से अधिक मज़बूती के साथ नेटो के साथ आए हैं. पूर्वी पैसिफिक के देश चीन से नाराज़ हैं और अमेरिका की तरफ हाथ बढ़ा रहे हैं."

उन्होंने भारत की तरफ इशारा करते हुए लिखा, "कई देश चांद के लिए मानव मिशन की योजना बना रहे हैं लेकिन अमेरिका ने मंगल पर हेलिकॉप्टर उड़ाया है, डीप स्पेस में एक टेलीस्कोप लगाया है, बृहस्पति के वायुमंडल तक पहुंचा और सौर मंडल में और दूर जाने की कोशिश कर रहा है."

लैंडिंग, मगर स्टाइल में
इस ख़बर को द इकोनॉमिस्ट ने भी जगह दी है. अख़बार लिखता है कि भारत का लैंडर न केवल चांद पर उतरा बल्कि उसने ये कारनामा स्टाइल के साथ किया.
अख़बार लिखता है कि इस महत्वपूर्ण घटना को भारत में ऐसी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है, जो केवल कुछ ही महान देश कर सकते हैं और ये विश्व मंच पर एक नेता के तौर पर उसकी छवि को मज़बूत करता है. देश में अगले साल चुनाव हैं और मोदी के राष्ट्रवादी संदेश में ये छवि फिट बैठती है.

सोवियत संघ ने 1960 और 70 के दशक में चांद पर बेहद जटिल रोवर उतारे, वहां से चांद की मिट्टी के सैंपल इकट्ठा किए लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद से रूस ऐसा कोई कारनामा नहीं कर पाया है. लूना-25 के साथ रूस ऐसा करना चाहता था लेकिन वो इसमें कामयाब नहीं हो सका.

अख़बार लिखता है कि एक वक़्त ऐसा था, जब मून मिशन से जुड़े मामलों में भारत रूस से मदद लेता था.

अख़बार ने लिखा है, "क़रीब दस साल पहले भारत के चंद्रयान-2 के लिए रूस लैंडर बनाने वाला था. लेकिन रूस के मंगल अभियान को मिली नाकामी के बाद भारत ने अपने दम पर ही काम करने का फ़ैसला किया. चंद्रयान-2 कामयाब नहीं हुआ लेकिन चंद्रयान-3 की कामयाबी के बाद लग रहा है कि भारत का फ़ैसला सही था.''

''ये दुख की बात है कि अपने ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट का वॉरंट होने के कारण रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ब्रिक्स सम्मेलन के लिए जोहानिसबर्ग नहीं गए, लेकिन अगर वो वहां होते आमने-सामने मोदी को मुबारकबाद देना उनके लिए थोड़ा अटपटा होता."

अख़बार लिखता है कि "चांद को लेकर अमेरिका एक महत्वाकांक्षी आर्टेमिस मिशन पर काम कर रहा है जिसके तहत वो इंसान को इस दशक के आख़िर तक चांद पर भेजेगा. लेकिन उससे पहले उसकी योजना चांद पर रोबोट भेजने की है. अब तक तो वो चांद पर रोबोट नहीं भेज सका है. ऐसे में मौजूदा वक़्त में चांद पर अगर किसी एशियाई मुल्क की मौजूदगी है तो वो भारत ही है."

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