विश्व,तिब्बत को अलग देश के रूप में दिखाए - अरविन्द सिसोदिया
चीन लगातार खुराफात पर खुराफात करता जा रहा है, उसकी यह आदत 1950 से लेकर, अभी तक लगातार चल रही है। 2014 में भी जब राष्ट्रपति महोदय अरुणाचल प्रदेश जाना चाहते थे तभ भी चीन ने खुराफात की थी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अरुणाचल प्रदेश जाना चाहते थे, तब भी चीन ने नौटंकी की थी।
चीन छल कपट और झूठ के बल पर आस पास के तमाम देशों पर कब्जा करने में कामयाब रहा है। उसका कोई कड़ा प्रतिरोध नहीं हुआ, इस कारण उसके होंसले बड़े हुए हैं, उसे भारत में बैकअप देनें राजनैतिक दलों सहित अनेकों प्रकार की संस्थाओं का लाभ भी प्राप्त होता है।
चीन के द्वारा दबाव और न्यूसेंस की नीति लंबे समय से है। यह उसकी आदत में है। उसके न्यूसेंस में फंसे बगैर भारत दृढ़ता पूर्वक उसको लगातार जवाब दे रहा है।
वर्तमान में चीन ने जो नया नक्सा जारी किया है उसमें एक दर्जन से ज्यादा देशों और क्षेत्रो पर विवाद उत्पन्न किया है, जिसका विश्व स्तर पर विरोध हो रहा है। भारत नें भी विरोध किया है। यूँ तो कब्जा सच्चा नक्सा झूठा का सिद्धांत ही काम करता है, अरुणाचल प्रदेश भारत में ही है, चीन में नहीं। यूँ भी इसी वर्ष अमेरिकी कांग्रेस के द्वारा चीन के सभी दावे ख़ारिज करते हुए अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग होनें का प्रस्ताव पारित किया गया है। चीन इस प्रस्ताव से भी परेशान हुआ है और उसने खुन्नस निकालने ही यह न्यूसेंस की है।
भारत सहित तमाम विश्व के निष्पक्ष देशों को तिब्बत को स्वतंत्र राष्ट्र दिखाना चाहिए और उसको चीन से अलग रखते हुए स्वतंत्र राष्ट्र की तरह उसके अलग नक्शे को मान्यता देनी चाहिए। तथा प्रसारित करना चाहिए और चीन द्वारा प्रसारित सभी नक्शोँ को कैंसिल कर देंना चाहिए।
-----
अमेरिकी संसद ने अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए एक प्रस्ताव पारित किया
USA Parliament
अमेरिकी संसद ने अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है। प्रस्ताव में इस बात की पुष्टि की गई है कि अमेरिका, भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश और चीन के बीच मैकमोहन लाइन को अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता प्रदान करता है। अमेरिका ने चीन के इस दावे को खारिज कर दिया है कि अरुणाचल प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा उसका क्षेत्र है। अब यह प्रस्ताव मतदान के लिए सीनेट में जायेगा।
इस बीच सेनेटर हैगर्टी ने कहा है कि एक ऐसे समय में जबकि चीन स्वतंत्र और मुक्त हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है, अमरीका के लिए भारत के साथ मिलकर काम करना बहुत महत्वपूर्ण है।
------
नहीं सुधरेगा चीन, तिब्बत को लेकर मुखर हो भारत; ताइवान से संबंध भी बढ़ाए
चीन के मनमाने रवैये को पश्चिमी देश अच्छे से महसूस भी कर रहे और उनके पक्ष-विपक्ष के नेता एक सुर में उसकी हरकतों के खिलाफ आवाज भी उठा रहे। इसके विपरीत भारत में अलग स्थिति है। अपने देश के कई नेता चीनी सेना के अतिक्रमणकारी रवैये को लेकर मोदी सरकार को तो कठघरे में खड़ा करते हैं लेकिन चीन के प्रति एक शब्द भी नहीं बोलते।
नहीं सुधरेगा चीन, तिब्बत को लेकर मुखर हो भारत; ताइवान से संबंध भी बढ़ाए
अपनी आर्थिक शक्ति के नशे में चूर अहंकारी चीन अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों को जिस तरह धता बता रहा है।
चीन ने अपने नए मानचित्र में अरुणाचल प्रदेश को अपने हिस्से के रूप में दिखाकर यही स्पष्ट किया कि उसकी भारत से संबंध सामान्य करने में कोई रुचि नहीं। इसके पहले वह अरुणाचल के कुछ हिस्सों का नामकरण चीनी भाषा में कर चुका है। इसी तरह हाल में उसने अरुणाचल के कुछ खिलाड़ियों को नत्थी वीजा जारी करने की हिमाकत की थी, जिसके विरोध में भारत ने अन्य खिलाड़ियों को भी चीन जाने से रोक दिया था।
हम यह भी नहीं भूल सकते कि चीन किस बेशर्मी के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान के कुख्यात आतंकी सरगनाओं को प्रतिबंधित करने की पहल नाकाम कर चुका है। पाखंड की इससे बड़ी कोई मिसाल नहीं हो सकती कि कोई देश खुद को आतंकवाद का विरोधी भी बताए और आतंकी सरगनाओं का बचाव भी करे।
अपनी आर्थिक शक्ति के नशे में चूर अहंकारी चीन अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों को जिस तरह धता बता रहा है, उससे वह विश्व व्यवस्था के लिए खतरा ही बन रहा है। अब यह भी किसी से छिपा नहीं कि वह गरीब देशों को किस तरह कर्ज के जाल में फंसाकर उनका शोषण कर रहा है। चीन ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों की अनदेखी कर जिस तरह अपने नए नक्शे में दक्षिण चीन सागर को भी शामिल कर लिया, वह उसकी उपनिवेशवादी मानसिकता का ही परिचायक है।
चीन के मनमाने रवैये को पश्चिमी देश अच्छे से महसूस भी कर रहे और उनके पक्ष-विपक्ष के नेता एक सुर में उसकी हरकतों के खिलाफ आवाज भी उठा रहे। इसके विपरीत भारत में अलग स्थिति है। अपने देश के कई नेता चीनी सेना के अतिक्रमणकारी रवैये को लेकर मोदी सरकार को तो कठघरे में खड़ा करते हैं, लेकिन चीन के प्रति एक शब्द भी नहीं बोलते। इस मामले में राहुल गांधी सबसे आगे हैं। वह बार-बार ऐसे मिथ्या आरोप लगाते हैं कि चीन ने हमारी जमीन हड़प ली है और प्रधानमंत्री कुछ नहीं कर रहे हैं। समझना कठिन है कि वह चीन को रास आने वाली बातें क्यों करते हैं? कहीं इसलिए तो नहीं कि कांग्रेस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने एक समझौता कर रखा है?
कांग्रेस ने न तो यह बताया कि यह समझौता क्यों किया गया था और न ही यह कि राजीव गांधी फाउंडेशन को चीनी दूतावास से चंदा लेने की क्या जरूरत थी? यह ठीक है कि भारत ने चीन की ताजा हरकत पर दो टूक कहा कि अरुणाचल हमारा अभिन्न अंग है और रहेगा, लेकिन उसे कुछ और भी करना होगा, क्योंकि चीन कहता कुछ है और करता कुछ है।
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि हाल में ब्रिक्स सम्मेलन में चीन ने किस तरह पहले अपने राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री के बीच वार्ता का अनुरोध किया और फिर इससे मुकर गया। समय आ गया है कि भारत एक ओर जहां तिब्बत को लेकर मुखर हो, वहीं दूसरी ओर ताइवान से भी संबंध बढ़ाए।
======
China New Standard Map चीन ने इस साल अप्रैल में एकतरफा रूप से 11 भारतीय स्थानों का नाम बदल दिया था. ड्रैगन अपनी विस्तारवादी नीति को लेकर पूरी दुनिया में आलोचनाओं का सामना करता है.
China New Standard map
चीन ने जारी किया नया नक्शा, अरुणाचल और अक्साई चिन को बताया अपना क्षेत्र
China Released New Map
चीन (China) अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. चीन की सरकार ने बीते सोमवार ( 28 अगस्त 2023 ) को ऑफिशियली एक नया नक्शा जारी किया है, जिसमें उन्होंने भारत के अरुणाचल प्रदेश (Arunachal pradesh) और अक्साई चिन (Aksai Chin) को अपना क्षेत्र बताया है. ये पहली बार नहीं है जब चीन ने इस तरह के विस्तारवादी नीति को अंजाम दिया है. इससे पहले इसी साल अप्रैल के महीने में उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के 11 जगहों के नाम को बदलने की मंजूरी दे दी थी.
ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक नए नक्शे में भारत के हिस्सों के अलावा चीन ने ताइवान और विवादित दक्षिण चीन सागर को भी चीनी क्षेत्र में शामिल किया है. मैप में चीन ने नाइन-डैश लाइन परअपना दावा पेश किया है. इस तरह से उसने साउथ चाइना सी के एक बड़े हिस्से पर दावा पेश किया है. हालांकि, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और ब्रुनेई दक्षिण चीन सागर क्षेत्रों पर अपना-अपना दावा करते रहते हैं.
नेचुरल रिसोर्स मिनिस्ट्री ने जारी किया मैप चाइना डेली की रिपोर्ट के मुताबिक चीन के नेचुरल रिसोर्स मिनिस्ट्री की तरफ से नक्शे को सोमवार को झेजियांग प्रांत के डेकिंग काउंटी में जारी किया गया. इस दौरान चीन नेशनल मैंपिग अवेयरनेस वीक को सेलिब्रेट करता है. इसी दौरान चीन के नेचुरल रिसोर्स मिनिस्ट्री के हेड प्लानर वू वेनझोंग ने कहा कि सर्वेक्षण, मैप और भौगोलिक जानकारी राष्ट्र के विकास को बढ़ावा देने, जीवन के सभी क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करने में मदद करता है.
उन्होंने आगे कहा कि मैप हमारे नेचुरल रिसोर्स के मैनेजमेंट को सपोर्ट करने और मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. ये हमारी पारिस्थिति और सभ्यता का निर्माण करने में मददगार साबित होती है.
चीन के पड़ोसी देशों से क्षेत्रीय विवाद
चीन की सीमा जितने देशों के साथ लगती है उससे कहीं अधिक देशों के साथ उसके क्षेत्रीय विवाद हैं. शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने अन्य संप्रभु क्षेत्रों पर क्षेत्रीय नियंत्रण का दावा करने की कोशिश कई बार की है. इसके लिए उन्होंने धोखेबाजी वाली रणनीति का इस्तेमाल किया है. बीजिंग के अधिक क्षेत्र पर नियंत्रण करने की विस्तारवादी कोशिशों ने सभी अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन किया है. चीन ने अब भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों पर अपना दावा ठोक दिया है, यह तर्क देते हुए कि ये स्थान तिब्बत का हिस्सा थे.
भारतीय स्थानों का नाम बदल दिया था चीन ने इस साल अप्रैल में एक तरफा रूप से 11 भारतीय स्थानों का नाम बदल दिया था, जिसमें पहाड़ चोटियों, नदियों और आवासीय क्षेत्रों के नाम शामिल थे. यह पहली बार नहीं है कि बीजिंग ने इस तरह की रणनीति अपनाई है. इससे पहले 2017 और 2021 में, चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने अन्य भारतीय स्थानों का नाम बदल दिया था, जिससे एक और राजनीतिक टकराव शुरू हो गया था. हालांकि, अभी तक भारत ने तब चीन की विस्तारवादी योजनाओं को खारिज करते आ रहा है.
--------------
केंद्रीय तिब्बती राहत समिति
09 Apr 2022
भारत और इसके पड़ोसी
भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव
केंद्रीय तिब्बती राहत समिति, टीपीआईई (निर्वासन में तिब्बती संसद), शिमला कन्वेंशन।
भारत की तिब्बत नीति, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव।
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने दलाई लामा की केंद्रीय तिब्बती राहत समिति (Central Tibetan Relief Committee- CTRC) को 40 करोड़ रुपए के सहायता अनुदान प्रदान करने की योजना का विस्तार कर वित्तीय वर्ष 2025-26 तक पाँच वर्षों के लिये बढ़ा दिया है।
यह योजना देश के 12 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में फैली तिब्बती बस्तियों में रहने वाले तिब्बती शरणार्थियों के लिये प्रशासनिक खर्चों और सामाजिक कल्याण खर्चों को पूरा करने हेतु सीटीआरसी को 8 करोड़ रुपए का वार्षिक अनुदान प्रदान करती है।
केंद्रीय तिब्बती राहत समिति -
इसे वर्ष 2015 में शुरू किया गया था। समिति का मुख्य उद्देश्य निजी, स्वैच्छिक एजेंसियों और तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास एवं उन्हें बसाने के लिये भारत सरकार के प्रयासों के साथ समन्वय स्थापित करना है।
इस समिति में भारत, नेपाल और भूटान में स्थित 53 तिब्बती बस्तियों के सदस्य शामिल हैं।
यह तिब्बत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को संरक्षित करने तथा निर्वासित तिब्बती लोगों के स्थायी लोकतांत्रिक समुदायों का निर्माण करने और उनके सतत् रखरखाव हेतु समर्पित है।
यह सरकारों, विशेष रूप से भारत, नेपाल और भूटान, परोपकारी संगठनों और व्यक्तियों की उदार अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर निर्भर है।
सभी CTRC गतिविधियाँ निदेशक मंडल की सहमति और समर्थन तथा TPiE (निर्वासन में तिब्बती संसद) से अनुमोदन के साथ की जाती हैं।
TPiE का मुख्यालय हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले के धर्मशाला में है, जिसके अनुसार पूरे भारत में 1 लाख से अधिक तिब्बती बसे हुए हैं।
तिब्बती शरणार्थियों के पलायन का कारण -
वर्ष 1912 से वर्ष 1949 में चीन के जनवादी गणराज्य की स्थापना तक किसी भी चीनी सरकार द्वारा चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region- TAR) पर नियंत्रण स्थापित नहीं किया गया।
कई तिब्बतियों का कहना है कि वे उस समय के अधिकांश समय अनिवार्य रूप से स्वतंत्र थे और वर्ष 1950 में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा TAR पर कब्ज़ा करने के बाद वहाँ चीन के शासन का वे विरोध करते रहे।
वर्ष 1951 तक अकेले दलाई लामा की सरकार ने इस भूमि/क्षेत्र पर शासन किया।
तिब्बत तब तक "चीन" के अंतर्गत नहीं था जब तक कि माओत्से तुंग की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ( People's Liberation Army- PLA) ने इस क्षेत्र में अपने सैनिकों के साथ मार्च नहीं किया।
इसे अक्सर तिब्बती लोगों और तीसरे पक्ष के टिप्पणीकारों द्वारा "सांस्कृतिक नरसंहार" (Cultural Genocide) के रूप में वर्णित किया गया है।
वर्ष 1959 का असफल तिब्बती विद्रोह, जिसमें तिब्बतियों ने चीन की सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयास में विद्रोह किया तथा यह 14वें दलाई लामा के भागकर भारत आने का कारण बना।
29 अप्रैल, 1959 में दलाई लामा द्वारा उत्तर भारतीय हिल स्टेशन मसूरी में तिब्बती निर्वासन प्रशासन (Tibetan Exile Administration) की स्थापना की गई।
इसे आध्यात्मिक दलाई लामा के केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (Central Tibetan Administration- CTA) का नाम दिया गया है जो स्वतंत्र तिब्बत की सरकार की निरंतरता का परिणाम था।
मई 1960 में CTA को धर्मशाला में स्थानांतरित कर दिया गया।
भारत की तिब्बत नीति:
तिब्बत वर्षो से भारत का एक अच्छा पड़ोसी रहा है, क्योंकि भारत की अधिकांश सीमाओं सहित 3500 किमी. LAC तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के साथ जुड़ा है, न कि शेष चीन के साथ।
वर्ष 1914 में चीन और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने ब्रिटिश भारत के साथ शिमला सम्मेलन पर हस्ताक्षर किये, जिसके तहत सीमाओं को चिह्नित किया गया।
हालाँकि वर्ष 1950 में चीन द्वारा तिब्बत के अधिग्रहण के बाद चीन ने इस सम्मेलन और मैकमोहन रेखा को अस्वीकार कर दिया, जिसने दोनों देशों को विभाजित किया था।
इसके अलावा वर्ष 1954 में भारत ने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें तिब्बत को ‘चीन के तिब्बत क्षेत्र’ के रूप में मान्यता देने पर सहमति हुई।
वर्ष 1959 में तिब्बती विद्रोह के बाद ‘दलाई लामा’ (तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक नेता) और उनके कई अनुयायी भारत आ गए।
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें और तिब्बती शरणार्थियों को आश्रय दिया तथा निर्वासन में तिब्बती सरकार की स्थापना में मदद की।
आधिकारिक भारतीय नीति यह है कि दलाई लामा एक आध्यात्मिक नेता हैं और भारत में एक लाख से अधिक निर्वासित लोगों वाले तिब्बती समुदाय को किसी भी राजनीतिक गतिविधि की अनुमति नहीं है।
भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव की स्थिति में भारत की तिब्बत नीति में बदलाव आया है।
नीति में यह बदलाव सार्वजनिक मंचों पर दलाई लामा के साथ सक्रिय रूप से संलग्न होने वाली भारत सरकार की नीति को चिह्नित करता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें