बड़े निर्णय लेने में ही समस्या ख़डी होगी कांग्रेस गठबंधन को - अरविन्द सिसोदिया modi - nda vs india

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी को केंद्र की सत्ता से हटाने के उद्देश्य को लेकर के बने अजीब से नाम के गठबंधन का शॉर्ट फॉर्म " इंडिया " रखा गया है। यह मूलतः एक प्रकार की राजनैतिक खुराफ़ात है। इस नये नाम को अंग्रेजी में रखा गया और जो फूल फॉर्म में कहा जाये तो किसी को याद ही नहीं रहेगा। मगर नाम रखना किसे है असल में तो देश के मतदाताओं को धोखा देना है। कुल मिलाकर यह यह एक प्रकार की अघोषित धोखाधड़ी है, यूपीए के नाम से गत दस वर्ष से लगातार असफल चल रहे थे, नाकाम हो रहे थे, लगातार फेल हो रहे थे, सीटें भी ऐतिहासिक रूप से कम हो गईं, इसलिए कांग्रेस गठबंधन नें अपना नाम बदलकर कर इंडिया गठबंधन रख लिया है और उनको आशा है कि अब हमने अपना नाम इंडिया रख लिया है, इसलिए जनता हमें ही सर्वोपरी मानेगी। इसलिए हम अच्छे भी हो गये, सच्चे भी हो गये, यूपीए ने नाम पर लगे सभी दाग भी धूल गये। अब हमें चुनो, हमें ज़िताओ हमें केंद्र की सत्ता दो और मोदीजी को सत्ता से हटाओ।
कश्मीर में एक समस्या देखी गई थी नाबालिग और छोटे-छोटे बच्चों से पत्थर सेना पर फिकवाओ और भाग जाओ। अर्थात पत्थर फेंको और भाग जाओ और अनसमझ कहके बच जाओ।

राजनीतिक रूप में इसी तरह झूठ के पत्थर फेंककर, केंद्र सरकार और उसके संस्थाओं को बाधित करना, परेशान करना, देश का कीमती समय जाया करना, इस तरह की एक नाबालिग राजनीति जो टूल किट आधारित भी है। वह कांग्रेस के नेताओं के माध्यम से देखने में आरही है। भ्रम आधारित, झूठ आधारित राजनीतिक पत्थरबाजी करना और भाग जाना।
इसका ताजा उदाहरण संसद में पेश किया गया अविश्वास प्रस्ताव था अविश्वास प्रस्ताव तो पेश कर दिया और बाद में भाग गए, फ्लोर पर नंबर तो आने चाहिए थे, कि आप के साथ वास्तविकता में कितने आ रहे हैं। पोल खुलने के डर से भाग खड़े हुए।
इस तरह की हल्की और गैर जिम्मेवार राजनीति देखने को आगे भी मिलेगी, क्योंकि दलगत राजनीति भी इसी तरह के लोगों के हाथ में चली गई है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस गठबंधन का नाम घमंडिया गठबंधन रखा है। सत्तामद के अहंकार में डूबे हुई राजनीतिक नेताओं का गठबंधन का नाम इंडिया गठबंधन के रूप से हमारे सामने आया है।

गत दो बैठकों और इस बीच आये संसद के सत्र में india गठबंधन को अजीब सी बेबसी में देखा गया की वे मात्र राहुल जी की इच्छा पर निर्भर रहे। पटना में भी यही देखने को मिला और बेंगलुरु में भी यही और संसद में लाये नाकाम अविश्वास प्रस्ताव पर भी यही.....।

जब इस गठबंधन का नामकरण हो रहा था तब भी सब ताकते रह गये जो राहुल ने कर दिया वही हुआ। मुंबई में भी पहले दिन की बैठक में यही हुआ।

कांग्रेस नेतृत्व बना यह गठबंधन पुरानी यू पी ए और कुछ और नए दलों के साथ india के नाम से बन तो गया, मगर वह बदलने वाली परिस्थितियों पर नजर रखे हुए है, वर्तमान में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा चुनाव हैं। साथ ही यह भी बात चलाई जा रही है कि आम चुनाव भी हो सकते हैं।

 हलाँकि भारत की राजनीतिक तस्वीर है, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगना में विधानसभा चुनावों के बाद बदल जाएगी। इन राज्यों में चुनावों के बाद राजनीतिक परिस्थितियां क्या होंगी उनका बहुत असर पड़ेगा। इसलिए अभी सीटों के बँटवारे पर अगर कोई बात हो भी जाये तो कल जो परिस्थितियां होंगी उसका असर पड़ेगा। इसलिए अभी सीटों के बंटवारे कि बात होती दिख नहीं रही।

अभी सिर्फ़ गठबंधन की पॉलिसी, प्रोग्राम और फ्रेमवर्क पर चर्चा होगी, ये तय किया जाएगा कि गठबंधन के प्रवक्ता कौन होंगे, गठबंधन कैसे काम करेगा, कुल मिला कर गठबंधन को राहुल के नेतृत्व को स्वीकार करने की दिशा में ही सब कुछ होगा। ”

गठबंधन की पहली समस्या मुंबई में बैठक का सबसे बड़ा निर्णय है, क्यों कि गठबंधन के संयोजक का नाम तय करना है। समान्यतः चाहे कांग्रेस रही हो, कांग्रेस सरकार रही हो, उसके गठबंधन की सरकार रही हो, उन पर सुपरलीड करने का काम हमेशा सोनिया गाँधी का रहा है।

मुझे यही लगता है कि इस गठबंधन की नेता सोनिया गाँधी हो सकती हैं... क्योंकि उनकी वरिष्ठता के आगे सभी उनसे छोटे हैं। अन्यथा ममता, शरद, लालू और नितीश की वरिष्ठता का संकट बना रहेगा। या फिर इतना कमजोर नाम होगा जिसे वक़्त जरूरत सीताराम केसरी की तरह टांगा टोली कर बाहर फेंका जा सके...। शुक्रवार ही बताएगा की क्या क्या होता है।

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