भूलें नही विभाजन को ...!!


जानवरों की तरह काट दिया देश को
- अरविन्द सीसोदिया
   भारत का विभाजन जिस  गैर जिम्मेवारी से किया गया है, वह दिखाता है की , अंग्रेज कितना खुद गर्ज होता है . उनकी करूणा , दया और सेवा के क्या मायनें हैं . जैसे जानवर को शिकार करते वक्त दया नही की जाती , उसी तरह   ब्रिटिश वाइसराय लुइस माउंटबैटन नें कोई भी दया का भाव नही दिखाया , जिम्मेवारी का परिचय नहीं  दिया और एक अहंकार पूर्ण निर्णय भारत पर थोप  दिया . जिस की बली वेदी  पर लाखों लोगों की जान चढ़ गई , करोड़ों लोगन के घर - बेघर हो गये ,सच यह है की यह विभाजन टाला जाना चाहिए था , मगर सही ढंग से प्रयास किसीने किया ही नहीं . विभाजन स्वीकार नहीं करने की हिम्मत यदी भारत के नेता कर लेते  तो देश का ना विभाजन होता और ना ही आज  जो परेशानिया हैं वे होती . हमारे देश को जिस तरह से बांटा  गया है ,उसका आत्म मंथन करके , देश फिरसे एक कैसे हो इस और ध्यान देना चाहिए . जब तक हम इस आपराधिक विभाजन  को समाप्त नही कर देते तब तक चैने  नही लेंगे , इस तरह का व्रत लेना चाहिए . आज की परिस्थितियाँ भविष्य नहीं हैं , भविष्य का राज आज पत्ता  नहीं है , आशा और विश्वास पर उम्मीदें हमेशा  ही पूरी होतीं हैं .    

आधी रात की संतान ...!
  1947 में जब ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता मिली तो साथ ही भारत का विभाजन करके 14 अगस्त को पाकिस्तानी डोमिनियन (बाद में इस्लामी जम्हूरिया ए पाकिस्तान) और 15 अगस्त को भारतीय यूनियन (बाद में भारत गणराज्य) की संस्थापना की गई। इस घटनाक्रम में मुख्यतः ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत को पूर्वी पाकिस्तान और भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बाँट दिया गया और इसी तरह ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत और भारत के पंजाब राज्य में बाँट दिया गया। इसी दौरान ब्रिटिश भारत में से सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है। नेपाल और भूटान इस दौरान भी स्वतंत्र राज्य थे और इस बंटवारे से प्रभावित नहीं हुए।
  15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत और पाकिस्तान कानूनी तौर पर दो स्वतंत्र राष्ट्र बने। लेकिन पाकिस्तान की सत्ता परिवर्तन की रस्में 14 अगस्त को कराची में की गईं ताकि आखिरी ब्रिटिश वाइसराय लुइस माउंटबैटन कराची और नई दिल्ली दोनों जगह की रस्मों में हिस्सा ले सके। इसलिए पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त और भारत में 15 अगस्त को मनाया जाता है।
   भारत के विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए। विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 5 लाख लोग मारे गए और करीब 1.45 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर बहुमत संप्रदाय वाले देश में शरण ली।
- सीमा रेखाएं तय होने के बाद लगभग 1.45 करोड़ लोगों ने हिंसा के डर से सीमा पार करके बहुमत संप्रदाय के देश में शरण ली, 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू / सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए। इसमें से 78 प्रतिशत स्थानांतरण पश्चिम में, मुख्यतया पंजाब में हुआ।
- मुस्लिम लीग ने अगस्त 1946 में डायरेक्ट ऐक्शन डे मनाया, जिस के दौरान कलकत्ता में दंगे हुए और करीब 5000 लोग मारे गये और बहुत से घायल हुए। ऐसे माहौल में सभी नेताओं पर दबाव पड़ने लगा कि वे विभाजन को स्वीकार करें ताकि देश पूरी तरह युद्ध की स्थिति में न आ जाए।

  हालांकी विभाजन के बाद इग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री चर्चिल ने  माउंटबेटन  से कहा था 'तुमने 20 लाख भारतीयों को मार डाला।' मुझे लगता है की सही संख्या बीस लाख से भी ज्यादा होनी चाहिए, लाखों येसे थे जो मर गए और उनकी बात कहने वाला  कोई नही रहा था.   मुस्लिम हिंसा को जिनने करीब से देखा है वही जनता है कि ये  निहत्थों पर कितने क्रूर होते हैं . यहां एक तथ्य और सामने है जो दर्शाता है की ब्रिटिश गवर्मेंट के लिए हिन्दुस्तानियों की कीमत  किसी  जानवर से ज्यादा  नही थी  कि ब्रिटिश शासन की गलती से 1942-44 के अकाल में ही बीस से तीस लाख लोग मारे गए थे। तब भी इनका दिल नहीं पसीजा था . अन्याय , अधर्म और अत्याचार का भिभत्स चेहरा ही अंग्रेजों की असलियत है .  
      माउंटबेटन कहते हैं, 'मुझे यकीन था कि अगर हम धीरे-धीरे चलते तो दिल्ली में सब कुछ ध्वस्त हो जाता। तब क्या होता? मैं चाहता तो धारा 93 के अंतर्गत पूरे भारत का शासन सीधे अपने हाथ में ले सकता था।मैंने जल्दबाजी इसलिए की क्योंकि स्थिति बहुत बिगड़ने लगी थी। यह बात भी गलत है पाकिस्तान की मांग तो बहुत पहले से चल रही थी , समय थोडा और गुजरता तो जिन्ना  ही मर जाता .

   प्रश्न यह भी है कि जो जिन्ना खिलाफत आंदोलन और एक प्रकार से मुस्लिम राजनीति के विरोधी थे, वे अचानक मुस्लिम राजनीति क्यों करने लगे? महात्मा गांधी ने एक प्रखर राष्ट्रवादी और सेकुलर राजनीति करने वाले जिन्ना की बजाय मुस्लिम साम्प्रदायिकता  करने वाले मौलाना मोहम्मद अली और शौकत अली को क्यों महत्व दिया? कहते हैं कि इतिहास क्रूर होता है। जिन्ना के पुनर्मूल्यांकन करने या जिन्ना पर बहस करने से इतिहास के कई क्रूर सत्य सामने आ सकते हैं, जिनसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम की अनेक उलझनें सुलझ सकती हैं तो अनेक सीधी-सरल लगने वाली चीजें उलझ भी सकती हैं। मगर यह सही तथ्य है की जिन्ना को परिणाम पाने की सही समझ थी , उसने अकेले दम पाकिस्तान बना लिया और हम बहुत सारे हो कर भी हाथ मलते रह गये ....!

स्वतन्त्रता दिवस भी उनकी खुशी का ....,
- लार्ड माऊंट बैटन ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई पेसिफिक लड़ाई में साऊथ ईस्ट एशिया कमांड के सुप्रीम कमांडर के नाते १५ अगस्त १९४५ के दिन जापान का औपचारिक समर्पण स्वीकार किया था। वे इस दिन को अपने लिए शुभ या विजय का दिन मानते थे। इसी जल्दी में उन्होंने सर रेडक्लिफ को भी जून के पहले हफ्ते में भारत बुला लिया। उन्होंने विभाजन की जो रूप रेखा तैयार की उस से कोई भी भारतीय नेता सहमत नहीं हो सकता था।सर  रेडक्लिफ ने इस काम को किया ज़रूर लेकिन उन के मन में भी एक अलग तरह का भय था। आने से पहले उन्हें इस काम की गंभीरता या विशालता का कोई अनुमान नहीं था। आने के बाद काम की जटिलता को देख कर वे इस भार से जल्दी से जल्दी मुक्ति चाहते थे।इस से पहले उन ने कभी भारत को देखा भी नहीं था। इस लिए जैसा उन की समझ में आया, वैसा नक्शों के आधार पर विभाजन उन्होंने कर के रख दिया।अपनी रिपोर्ट उन ने १४ अगस्त को शाम के समय लार्ड माऊंटबैटन को सौपी और १५ अगस्त की सुबह सुबह वे हवाई जहाज़ पकड़ कर लन्दन चले गए। उन ने स्वतंत्रता समारोह में भी भाग लेना ठीक नहीं समझा।वकील होने के नाते वे यह जानते थे और इस बात को उन ने कहा भी है की यदि मैं १५ अगस्त की सुबह दिल्ली में रुक गया तो मुझे चारों तरफ से जूते पड़ेंगे।जिन्ना को जब रेडक्लिफ की सिफारिशों का पता चला तो वे बहुत दुखी हुए।उनने कहा की – इस तरह के खंडित पाकिस्तान की मैंने कल्पना भी नहीं की थी. I never expected such a truncated Pakistan.मेरी धारणा है यदि लार्ड माऊंटबैटन जल्दी न करते और ब्रिटिश प्रधान मंत्री लार्ड एटली की बात मान कर भारत की आज़ादी की तारीख जून १९४८ ही रखते तो शायद न तो इतना खून खराबा होता और न दो देशों में इतनी रंजिश होती।लोगों को सोचने समझने का मोका मिलता , वे अपना अच्छा बुरा सोच पाते , मगर उन्हें एक झटके में अलग अलग कर दिया गया और उसी आतंक में जिससे  जो बना वह उसने किया. भयंकर मारकाट हुई ,

छै  हफ्ते में सीमा तय हो गई ....?
- नौकरशाह क्रिस्टोफ़र बोमांट 1947 में ब्रिटिश न्यायाधीश सर सिरिल रेडक्लिफ़ के निजी सचिव थे. रेडक्लिफ़ भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा निर्धारण आयोग के अध्यक्ष थे और सचिव होने के नाते बोमांट इस विभाजन का अहम हिस्सा रहे.इन दस्तावेज़ों में ब्रिटिश भारत के आख़िरी दिनों की स्थिति का विश्लेषण किया गया है. इसमें कहा गया कि बँटवारे के काम को बेहद जल्दबाज़ी में अंज़ाम दिया गया था.बोमांट ने दस्तावेज़ों में लिखा है कि वायसराय माउंटबेटन को पंजाब में हुए भीषण नरसंहार का ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए जिसमें महिलाओँ, बच्चों समेत लगभग पाँच लाख लोग मारे गए थे. उनके अनुसार माउंटबेटन ने रेडक्लिफ़ को सीमा निर्धारण के लिए सिर्फ़ छह हफ़्तों का समय दिया था .
अर्थात  भूलें नही विभाजन को ...!! अखंड भारत ही सभी समस्याओं का निदान !!! हम लाखों साल पुराने देश हैं और हैं आपना देश खुद बनाने का आधिकार है .

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