कठोर परिश्रम का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय होता है - अरविन्द सिसोदिया ( कोटा ) Pandit Deendayal Upadhyaya
आज भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस का स्थान लेकर भारत की केन्द्र सरकार और अनेकों राज्यों की सरकारों के साथ - साथ, पालिका एवं पंचायती राज और सहकारी क्षैत्र में निर्वाचन के माध्यम से सत्ता में है। देश की आजादी के 50 साल बाद तक भी कोई यह विश्वास नहीं कर पाता था कि भाजपा कभी अपने बलबूते स्पष्ट बहूमत से केन्द्र की सरकार में आ सकती है। मगर इसके बावजूद आज वह अपने बलबूत स्पष्ट बहूमत से सत्ता में है , इसका मूल कारण, इस पार्टी को मिले विचार थे। ये विचार घोर परिश्रमशील संगठन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से मिले, तो उन्हे भारतीय राजनीति में संघ के ही प्रचारक रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कठोरश्रम साध्य जीवन जीते हुये स्थापित किये। यही कारण है कि भाजपा को स्पष्ट बहूमत से सत्ता की कुर्सी पर भी कठोरतम परिश्रम करने वाले प्रचारक रहे नरेन्द्र मोदी ने पहुंचाया। कुल मिला कर भाजपा की पूंजी कठोर परिश्रम और सही दिशा वाली सोच है। जो कि उन्हे संघ और पंडित दीनदयाल उपाध्याय से पैतृक गुण के रूप में मिली है।
संस्कृतिनिष्ठा दीनदयाल जी के द्वारा निर्मित राजनैतिक जीवनदर्शन का पहला सूत्र रहा, उनके शब्दों में- “ भारत में रहनेवाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं . उनकी जीवन प्रणाली ,कला , साहित्य , दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है । इस संस्कृतिमें निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा। ”
वे पहले भारतीय हैं जिन्होने साम्यवाद, भौतिकवाद, पूंजीवाद जैसे विदेशी विचारों के अंधकूप से भारत को बचाने के लिये भारतीय जीवनमूल्यों से ओतप्रोत एकात्म मानववाद विश्व को दिया । जो कि आज सम्पूर्ण विश्व में शोध और स्वीकार्यता की ओर बड़ रहा है।
“वसुधैव कुटुम्बकम” हमारी सभ्यता से प्रचलित है । इसी के अनुसार भारत में सभी धर्मो को समान अधिकार प्राप्त हैं । संस्कृति से किसी व्यक्ति ,वर्ग , राष्ट्र आदि की वे बातें जो उनके मन,रुचि, आचार, विचार, कला-कौशल और सभ्यता का सूचक होता है पर विचार होता है । दो शब्दों में कहें तो यह जीवन जीने की शैली है । भारतीय सरकारी राज्य पत्र (गजट) इतिहास व संस्कृति संस्करण मे यह स्पष्ट वर्णन है की हिन्दुत्व और हिंदूइज्म एक ही शब्द हैं तथा यह भारत के संस्कृति और सभ्यता का सूचक है ।
दीनदयालजी का सारा जीवन कठोर परिश्रम भरा रहा, शिक्षा में भी उन्हे कठोर परिश्रम करना पडा, प्रचारक की जीवन भी अत्यंत कठोर वृति का होता है, इसके बाद वे जब राजननीति में आये तो उनके कंधों पर एक शिशु राजनैतिक दल जनसंघ को व्यवस्थित खडा करने का था, यह काम उन्होने पूरी सफलता से किया। जनसंघ के संस्थापक महामंत्री रहे दीनदयाल उपाध्याय ने जनसंघ के लिये विचारों का लेखन किया, विचारों के प्रवाह के लिये राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और स्वदेश जैसी पत्र-पत्रिकाएँ प्रारम्भ की।
तत्कालीन कांग्र्रेस पार्टी की राजनैतिक आलोचना , उस समय के दौर में अत्यंत कठिन थी, मगर उन्होने बहुत ही गंभीरता से इस कार्य को किया, सही आलोचना और आंदोलनों को जन्म दिया । बडे बडे संघर्ष कर जनसंघ की पहचान बनाई। 1967 के विधानसभा चुनावों में देश के कई राज्यो में कांग्रेस की सरकारें जनसंघ के प्रयासों से बदल गईं थीं। इन राज्यों में संविद सरकारें बनीं और केन्द्र भी बहुत ही कम मार्जिन से मात्र 283 सीटों पर कांग्रेस जीत पाई थी। तब दीनदयालजी उपाध्याय कांग्रेस के लिये खतरे की घंटी बन गये थे और दिस्मबर 1967 में वे जनसंघ के अध्यक्ष चुने गयें। इसके कुछ ही दिनों बाद संदिग्ध हालत में बिहार के मुगलसराय में 11 फरवरी को मृत पाये गये। उनकी राजनेतिक हत्या हुई थी, जिसकी गुत्थी आज भी अनसुलझी बनी हुई है।
उनका संक्षिप्त जीवन परिचय निम्नानुसार है, पंडित दीनदयाल उपाध्याय का पैतृक गांव नंगला - चन्द्रभान, मथुरा जिले में है, उनके दादाजी वहां के सुप्रसिद्ध ज्योतिषी पं. हरीरामजी शास्त्री एवं पिता श्री भगवती प्रसाद उपाध्याय, रेल्वे स्टेशन मास्टर, जलेसर रोड़, उ.प्र. और माता श्रीमती रामप्यारी देवी थीं।
पं0 दीनदयाल जी के एक भाई शिवदयाल थे। दीनदयाल जी की माता श्रीमती रामप्यारी देवी , श्री चुन्नीलाल शुक्ल, स्टेशन मास्टर धानकिया रेल्वे स्टेशन, जयपुर- अजमेर रेल मार्ग, जयपुर की पुत्री थीं, दीनदयाल जी का जन्म भी नानाजी के यहां ग्राम धानकिया जिला जयपुर, राजस्थान में ही, 25 सितम्बर 1916 में हुआ था। आज वहां वह स्थान स्मारक के रूप में संरक्षित है। जब वे मात्र 3 वर्ष के थे तब पिताजी का तथा 8 वर्ष के थे तब माताजी का एवं जब वे 16 वर्ष के थे तब छोटे भाई का निधन हो गया।
उनका लालन-पालन नाना- मामा के पास ही हुआ। मामा राधारमण शुक्ल रेल्वें में गंगापुर सिटी जंक्शन पर गार्ड थे, वहा चौथी कक्षा तक, पांचवी से सातवीं कक्षा तक कोटा, राजस्थान में आठवीं कक्षा रायगढ जिला अलबर, नवीं एव दसवीं कल्याण हाई स्कुल पिलानी {सीकर} में पूरी की थी, 1935 में उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा, अजमेर बोर्ड से प्रथम श्रेणी में प्रथम क्रम रह कर उतीर्ण की थी। उन्होंने उत्तर पुस्तिकाओं में जिस तरह उत्तर दिये उन्हें बहुत ही सम्भाल करके, अविस्मरणीय मानते हुए काफी समय तक रखा गया था। वे उच्च शिक्षा के क्रम में उत्तर प्रदेश में गये वहां उन्होंने कानपुर स्थित सनातन धर्म कॉलेज से गणित में बी.ए. किया, सेन्ट जोन्स कॉलेज से अंग्रेजी में एम.ए. का प्रथम वर्ष उतीर्ण किया, इससे आगे वे पारिवारिक कारणों से नहीं पढ़ सके।
एक व्यक्ति कठोर परिश्रम द्वारा समाज और देशहित के विचारों से दीनदयाल उपाध्याय बनता है। यह बात आज की राजनीति में अप्रासंगिक भले ही हो गई हो और अब सम्पन्नता के आधार पर राजनीति में सफलता का दौर भले ही आसान गया हो , मगर नरेन्द्र मोदी की सफलता ने फिर से यह स्थापित किया है कि अनंततः विचार ही सबसे अधिक प्रभावी होते हैं, उनके साथ कठोर परिश्रम किया जाये तो सफलता अपने आप कदम चूमती है।
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अरविन्द सिसोदिया,
जिला महामंत्री भाजपा कोटा,
राधाकृष्ण मंदिर रोड, डडवाडा कोटा जं 2
9414180151
संस्कृतिनिष्ठा दीनदयाल जी के द्वारा निर्मित राजनैतिक जीवनदर्शन का पहला सूत्र रहा, उनके शब्दों में- “ भारत में रहनेवाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं . उनकी जीवन प्रणाली ,कला , साहित्य , दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है । इस संस्कृतिमें निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा। ”
वे पहले भारतीय हैं जिन्होने साम्यवाद, भौतिकवाद, पूंजीवाद जैसे विदेशी विचारों के अंधकूप से भारत को बचाने के लिये भारतीय जीवनमूल्यों से ओतप्रोत एकात्म मानववाद विश्व को दिया । जो कि आज सम्पूर्ण विश्व में शोध और स्वीकार्यता की ओर बड़ रहा है।
“वसुधैव कुटुम्बकम” हमारी सभ्यता से प्रचलित है । इसी के अनुसार भारत में सभी धर्मो को समान अधिकार प्राप्त हैं । संस्कृति से किसी व्यक्ति ,वर्ग , राष्ट्र आदि की वे बातें जो उनके मन,रुचि, आचार, विचार, कला-कौशल और सभ्यता का सूचक होता है पर विचार होता है । दो शब्दों में कहें तो यह जीवन जीने की शैली है । भारतीय सरकारी राज्य पत्र (गजट) इतिहास व संस्कृति संस्करण मे यह स्पष्ट वर्णन है की हिन्दुत्व और हिंदूइज्म एक ही शब्द हैं तथा यह भारत के संस्कृति और सभ्यता का सूचक है ।
दीनदयालजी का सारा जीवन कठोर परिश्रम भरा रहा, शिक्षा में भी उन्हे कठोर परिश्रम करना पडा, प्रचारक की जीवन भी अत्यंत कठोर वृति का होता है, इसके बाद वे जब राजननीति में आये तो उनके कंधों पर एक शिशु राजनैतिक दल जनसंघ को व्यवस्थित खडा करने का था, यह काम उन्होने पूरी सफलता से किया। जनसंघ के संस्थापक महामंत्री रहे दीनदयाल उपाध्याय ने जनसंघ के लिये विचारों का लेखन किया, विचारों के प्रवाह के लिये राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और स्वदेश जैसी पत्र-पत्रिकाएँ प्रारम्भ की।
तत्कालीन कांग्र्रेस पार्टी की राजनैतिक आलोचना , उस समय के दौर में अत्यंत कठिन थी, मगर उन्होने बहुत ही गंभीरता से इस कार्य को किया, सही आलोचना और आंदोलनों को जन्म दिया । बडे बडे संघर्ष कर जनसंघ की पहचान बनाई। 1967 के विधानसभा चुनावों में देश के कई राज्यो में कांग्रेस की सरकारें जनसंघ के प्रयासों से बदल गईं थीं। इन राज्यों में संविद सरकारें बनीं और केन्द्र भी बहुत ही कम मार्जिन से मात्र 283 सीटों पर कांग्रेस जीत पाई थी। तब दीनदयालजी उपाध्याय कांग्रेस के लिये खतरे की घंटी बन गये थे और दिस्मबर 1967 में वे जनसंघ के अध्यक्ष चुने गयें। इसके कुछ ही दिनों बाद संदिग्ध हालत में बिहार के मुगलसराय में 11 फरवरी को मृत पाये गये। उनकी राजनेतिक हत्या हुई थी, जिसकी गुत्थी आज भी अनसुलझी बनी हुई है।
उनका संक्षिप्त जीवन परिचय निम्नानुसार है, पंडित दीनदयाल उपाध्याय का पैतृक गांव नंगला - चन्द्रभान, मथुरा जिले में है, उनके दादाजी वहां के सुप्रसिद्ध ज्योतिषी पं. हरीरामजी शास्त्री एवं पिता श्री भगवती प्रसाद उपाध्याय, रेल्वे स्टेशन मास्टर, जलेसर रोड़, उ.प्र. और माता श्रीमती रामप्यारी देवी थीं।
पं0 दीनदयाल जी के एक भाई शिवदयाल थे। दीनदयाल जी की माता श्रीमती रामप्यारी देवी , श्री चुन्नीलाल शुक्ल, स्टेशन मास्टर धानकिया रेल्वे स्टेशन, जयपुर- अजमेर रेल मार्ग, जयपुर की पुत्री थीं, दीनदयाल जी का जन्म भी नानाजी के यहां ग्राम धानकिया जिला जयपुर, राजस्थान में ही, 25 सितम्बर 1916 में हुआ था। आज वहां वह स्थान स्मारक के रूप में संरक्षित है। जब वे मात्र 3 वर्ष के थे तब पिताजी का तथा 8 वर्ष के थे तब माताजी का एवं जब वे 16 वर्ष के थे तब छोटे भाई का निधन हो गया।
उनका लालन-पालन नाना- मामा के पास ही हुआ। मामा राधारमण शुक्ल रेल्वें में गंगापुर सिटी जंक्शन पर गार्ड थे, वहा चौथी कक्षा तक, पांचवी से सातवीं कक्षा तक कोटा, राजस्थान में आठवीं कक्षा रायगढ जिला अलबर, नवीं एव दसवीं कल्याण हाई स्कुल पिलानी {सीकर} में पूरी की थी, 1935 में उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा, अजमेर बोर्ड से प्रथम श्रेणी में प्रथम क्रम रह कर उतीर्ण की थी। उन्होंने उत्तर पुस्तिकाओं में जिस तरह उत्तर दिये उन्हें बहुत ही सम्भाल करके, अविस्मरणीय मानते हुए काफी समय तक रखा गया था। वे उच्च शिक्षा के क्रम में उत्तर प्रदेश में गये वहां उन्होंने कानपुर स्थित सनातन धर्म कॉलेज से गणित में बी.ए. किया, सेन्ट जोन्स कॉलेज से अंग्रेजी में एम.ए. का प्रथम वर्ष उतीर्ण किया, इससे आगे वे पारिवारिक कारणों से नहीं पढ़ सके।
एक व्यक्ति कठोर परिश्रम द्वारा समाज और देशहित के विचारों से दीनदयाल उपाध्याय बनता है। यह बात आज की राजनीति में अप्रासंगिक भले ही हो गई हो और अब सम्पन्नता के आधार पर राजनीति में सफलता का दौर भले ही आसान गया हो , मगर नरेन्द्र मोदी की सफलता ने फिर से यह स्थापित किया है कि अनंततः विचार ही सबसे अधिक प्रभावी होते हैं, उनके साथ कठोर परिश्रम किया जाये तो सफलता अपने आप कदम चूमती है।
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अरविन्द सिसोदिया,
जिला महामंत्री भाजपा कोटा,
राधाकृष्ण मंदिर रोड, डडवाडा कोटा जं 2
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