सर्वोच्च न्यायालय में सीधी सुनवाई के मामलों में, जस्टिस एल.नरसिम्हा की टिप्पणी की सख्ती से पालना हो
सर्वोच्च न्यायालय में सीधी सुनवाई के मामलों में जस्टिस एल.नरसिम्हा की टिप्पणी का सख्ती से पाला हो
आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार में उपमुख्यमंत्री पद पर रहते हुये शराब कारोवारीयों से मिल कर लाभ कमानें वाली नीति बनानें और शराब कारोवारियों को लाभ पहुंचानें की नियत से नीति परिर्वन के भ्रष्टाचार के आरोपी मनीष सीसौदिया की जमानत के लिये कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी का दाव फैल हो गया है। उन्हे जमानत नहीं मिली न ही उनके प्रकरण को सुनने योग्य माना गया।चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल.नरसिम्हा की बेंच ने सिसोदिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि आपको यहां आने से पहले हाईकोर्ट जाना चाहिए।
बेंच के एक और जज एल.नरसिम्हा ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी मामले में केवल इसलिए दखल नहीं दिया जा सकता कि वह दिल्ली में हुआ है। अगर हम इस तरह सीधे तौर पर किसी मामले में सुनवाई करते हैं तो यह स्वस्थ परंपरा नहीं है।
मेरा तो बहुत ही स्पष्ट मानना है कि सुप्रिम कोर्ट में कोई भी मामला सीधे आना ही नहीं चाहिये, पहले उस पर निचली क्षैत्रअधिकार वाली अदालतों में ही सुनवाई होनी चाहिये। ताकि संविधान के समता के अधिकार की पालना हो, न्यायालय के समक्ष कोई राजनेता विशेष बन कर नहीं आ पाये अथ्ल्क उसकी भी सुनवाई आम नागरिकों की ही तरह हो। किन्तु दुर्भाग्यवश सर्वोच्च न्यायालय आधीरात को आतंकवादी के लिये खुल जाती है, अनेकों आरोपी क्षैत्राधिकार की अदालतों को ठेंगा दिख कर सीधे सर्वोच्च न्यायालय आ जाते है। मोटा पैसा व रसूख वाले वकीलों का सार्मथ्य जिन पर है । वे सुविधा पा जाते है । जो कि न्यायपालिका में नहीं होना चाहिये।
इस प्रकरण में न्यायमूर्ति एल.नरसिम्हा की सख्त टिप्पणी को भविष्य के लिये लक्ष्मणरेखा भी तय किया जाना चाहिये । क्यों कि इस तरह से सीधे तौर पर सुनवाई करनें से क्षैत्राधिकार वाली निचली अदालत का अपमान होता है और आरोपी को अनावश्यक संरक्षण मिल जाता है। जो कि अस्वस्थ परम्परा है।
न्यायमूर्ति एल.नरसिम्हा का अभिनन्दन किया जाना चाहिये कि उन्होने सर्वोच्च न्यायालय कसे गरिमा प्रदान करनेवाली टिप्पणी कर राजनैतिक अधिवक्ता को आईना दिखाया है।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेडा के द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध अपमानजनक टिप्पणीं की गई थी, जिसके कारण उनके विरूद्ध कई रिर्पोटें दर्ज हुईं थीं,जिसमें असम पुलिस ने उन्हे दिल्ली में गिरफतार किया था । यह मामला सीधे सर्वोच्च न्यायालय ने सुन लिया जो कि न्यायपालिका की गैर जिम्मेवार परम्परा का उदाहरण है । क्यों कि इस प्रकरण को क्षैत्राधिकार वाली अदालत में ही सुना जाना चाहिये था । भारत के सामान्य नागरिकों के साथ जो न्यायपालिका का व्यवहार है, वही व्यवहार खेडा के साथ भी होना चाहिये था। मगर रसूखदार राजनैतिक अधिवक्ता के कारण न्यायपालिका ने सुनवाई का अवसर देकर खेडा को लाभ पहुंचाया,जो कि सामान्य नागरिक को नहीं मिलता । इस तरह से समता के कानून का उल्लंघन हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय को पूरी तरह से प्रक्रियाबद्ध होना चाहिये । उन्हे सामान्यतः अपनी अपील न्यायालय की वरिष्ठता की रक्षा करनी चाहिये।
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