मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पेपरलीक से बजटलीक तक, कुछ तो गडबड है ही - अरविन्द सिसौदिया CM Gahlot Budget Gadbad
पेपरलीक से बजटलीक तक, कुछ तो गडबड है ही - अरविन्द सिसौदिया
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जानते हैं कि जनता उन्हे गद्दी से उतारने बैठी है, उनकी पार्टी का हाई कमान भी उन्हे गद्दी से उतारना चाहता है। भाजपा उन्हे चुनावों में हरा कर स्वयं मुख्यमंत्री बिठाना चाहती है। किन्तु उन्हे हर हाल में अगले मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहिये । इसलिये उन्होनें राजस्थान की जनता को हर हाल में अपने कांटें में फंसानें के लिये अपने अत्यंत विश्वसनीय अधिकारियों एवं अपने विश्वस्थों को बजट की तैयारी में लगाया था। वे 100 प्रतिशत पुनः मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। निश्चित रूप से इस बजट की एक एक घोषणा की जानकारी अशोक गहलोत को रही होगी। वे अपने 2023-24 बजट से इतनें आशान्वित थे कि राजस्थान की जनता उनके कांटे में फंसी मान बैठे ! इसमें दो राय नहीं कि उन्होनें जनता को अपने पक्ष में करने का कोई भी प्रलोभन नहीं छोडा ! इसका एक बडा कारण यह भी है कि अशोक गहलोत कांग्रेस के बिना भी चुनाव में जानें की तैयार में भी जुटे हुये हैं। उन्होनें मुख्यमंत्री बनें रहनें के लिये कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद को भी ठोकर मारी है।
संभवतः इसी आशा एवं विश्वास में उन्होनें अंतिमबार इस भाषण को पढ़ना भी उचित नहीं समझा, वे अपने गेम प्लान से पूरी तरह सन्तुष्ट थे। किन्तु उन्हे पता ही नहीं था कि होनी को कुछ और ही खेल खेलनें जा रही है।
राजस्थान में बजट दस्तावेज का बदला जाना गंभीर चूक
राजस्थान विधानसभा के सदन में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नें वित्त वर्ष 2023-24 के लिए बजट सदन के पटल पर रखने की घोषणा की और इसके बाद उन्होंने भूमिका बांधी और बजट घोषणाएं करनी शुरू करदीं, गहलोत ने ’इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना’ और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) संबंधी घोषणाएं पढ़ीं ,जो कि पहले दोनों घोषणाएं बजट 2022-23 में की गई थीं। तब पता चला कि यह बजट पैराग्राफ तो पिछले वर्ष का है। यह गंभीर चूक थी इसके कारण दो बार सदन स्थिगित भी हुआ और मुख्यमंत्री को मॉफी भी मांगनी पढ़ी और जिन अधिकारियों के साथ उन्होने बजट पूर्व चित्र खिंचवा कर टिविट किया था । अब उन्ही में से दोषी कौन की खोज प्रारम्भ हो गई है। मुख्य सचिव को इसकी जिम्मेवारी सौंपी गई है।
मेरा व्यक्तिगत मानना है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की यह हास्यपद स्थिती अति उत्साह के कारण बनीं है। उन्हे ठीक से इसे स्वयं भी पढना चाहिये था और अपने एक दो विश्वस्थों से पढवाना भी चाहिये था। किसी भी दस्तावेज की निरंतरता टूटते ही समझ में आ जाता है कि कुछ गडबड है। चलो मुख्यमंत्री की बात ही मान लेते हैं कि यह मानवीय भूल के कारण हुआ । वे यह तो कह नहीं सकते कि उनके साथ षडयंत्र हुआ ।
मेरा अनुमान झूठ भी हो सकता है किन्तु मुझे लगता है कि यह मानवीय भूल नहीं थी बल्कि एक सुनियोजित षडयंत्र था और यह उनकी उसी विश्वसनीय टीम में से किसी का था। स्वयं गहलोत भी जानते हैं कि उनकी सरकार में उनकी पार्टी में उन पर तलवार लिये कई खडे हें। यह भी तथ्य है कि यह सब लीपिबद्ध करते समय ही हुआ है। लीपीबद्ध दस्ताबेज को फिर से पढा क्यों नहीं गया। यह चूक निश्चितरूप से जबावदेह अधिकारीवर्ग की टेबिल पर ही हुई है। जो मानवीय भूल से हुआ नहीं लगता बल्कि इसमें गहलोत के विरूद्ध षडयंत्र की बू आती है। इसकी प्रभावी जांच होकर सही तथ्य सामनें आनें चाहिये। किन्तु वे एक पक्षीय जांच से सामनें नहीं आयेंगे। निश्पक्ष जांच एजेंसी से यह जांच होनी चाहिये। हाई कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश से यह जांच हो तो दूध का दूध पानी का पानी हो सकता है।
पेपरलीक से बजटलीक तक, कुछ तो गडबड है ही - अरविन्द सिसौदिया
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