माता-पिता की उपेक्षा अक्षम्य अपराध - श्रीराम आचार्य shree ram aachary

➖➖➖➖‼️➖➖➖➖
            *‼ऋषि चिंतन‼*
➖➖➖➖‼️➖➖➖➖
〰️〰️〰️➖🌹➖〰️〰️〰️
*माता-पिता की उपेक्षा अक्षम्य अपराध*
〰️〰️〰️➖🌹➖〰️〰️〰️

👉 *परिवार में जब अपने स्वार्थ का भ्रष्टाचार बढ़ता है और लोग कर्तव्य की आध्यात्मिक भावना को भुला देते हैं तभी गृहस्थ की दुर्दशा होती है ।* कितने कृतघ्न होंगे वे लोग जो अपने स्वार्थ के लिए परिवार के प्रति अपने उत्तरदायित्व भुलाकर अपना चूल्हा चौका अलग रखने में अपनी बुद्धिमानी समझते हैं । *किसी ने ऐसे कुटिल व्यक्तियों को कभी फलते-फूलते भी नहीं देखा होगा जो फूट के बीज बोकर सारी पारिवारिक व्यवस्था को तहस-नहस कर डालते हैं ।*

👉 *पिता अपने पुत्र के लिए सारे जीवन भर क्या नहीं करता ?* श्रम करता है, जब वह खुद सो रहा होता है तब गए रात उठकर खेतों में जाता है, हल चलाता है, मजदूरी करता है, नौकरी बजाता है । *क्या वह सब कुछ अपने लिए करता है ?*  नहीं, एक व्यक्ति का पेट पालने के लिए तो चार पाँच रुपये मजदूरी ही काफी है, दिनभर श्रम करने से क्या लाभ ? पर  बेचारा बाप सोचता है कि बच्चे के लिए दूध की व्यवस्था करनी है, दवा लानी है, कपड़े सिलाने हैं, फीस देनी है, पुस्तकें लाना है और उसके भावी जीवन की सुख सुविधा के लिए कुछ छोड़ भी जाना है । जब तक शक्तियाँ काम देती है कोई कसर नहीं उठा रखता । *अपने पेट को गौण मानकर बेटे के लिए आजीवन अनवरत श्रम करने का साहस कोई बाप ही कर सकता है ।*

👉 पाल पोस कर बड़ा कर दिया,  शिक्षा दीक्षा पूरी कराई, विवाह शादी करा दी, धंधा लग गया ।  पिता से पुत्र की कमाई बढ़ गई, उसके अपने बेटे हो गए, स्त्री की आकांक्षाएँ बढ़ी, बेटे ने बाप के सारे उपकार पर पानी फेर दिया । *कोई न कोई बहाना बनाकर बाप से अलग हो गया । हाय री तृष्णा ! तेरे लिए इतना सब कुछ किया और तू उसकी वृद्धावस्था का सहारा भी न बन सका  । उस कृतघ्नता से बढ़कर इस संसार में और कौन सा पाप हो सकता है ? अपने स्वार्थ, भोग लिप्सा, स्वेच्छाचारी  के लिए बाप को ठुकरा देने वालों को "पामर" न कहा जाए तो और कौन सा संबोधन उचित हो सकता है ?*

👉 पिता परिवार का अधिष्ठाता, आदेशकर्ता और संरक्षक होता है, उसकी जिम्मेदारियाँ बढ़ी होती है । सबकी देख-रेख, सब के प्रति न्याय, सब की सुरक्षा करने वाला पिता होता है । *क्या उसके प्रति उपेक्षा का भाव मानवीय हो सकता है ? कोई राक्षस वृत्ति का मनुष्य ही कर सकता है जो अपने माता-पिता को वृद्धावस्था में छोड़ देता है ।*

➖➖➖➖🪴➖➖➖➖
  *"गृहस्थ"-
एक सिद्ध योग पृष्ठ-११
 पं.श्रीराम शर्मा आचार्य 
➖➖➖➖🪴➖➖➖➖

*एक ७४ वर्षीय रिटायर्ड अधिकारी द्वारा व्हाट्सप्प पर सभी वरिष्ठ साथियों व रिटायर होने वाले साथियों के लिए शेयर  किया गया एक उत्तम संदेश:*
*कृपया अंत तक अवश्य पढ़ें:*

*१. जीवन मर्यादित है और उसका जब अंत होगा तब इस लोक की कोई भी वस्तु साथ नही जाएगी*

*२. फिर ऐसे में कंजूसी कर, पेट काट कर बचत क्यों की जाए.... ? आवश्यकतानुसार खर्च क्यों ना करें..? जिन अच्छी बातों में आनंद मिलता है, वे करनी ही चाहिए.*

*३. हमारे जाने के पश्चात क्या होगा, कौन क्या कहेगा, इसकी चिंता छोड़ दें, क्योंकि देह के पंचतत्व में विलीन होने के बाद कोई तारीफ करे या टीका टिप्पणी करे, क्या फर्क पड़ता है?*   

*४. उस समय जीवन का और मेहनत से  कमाए हुए धन का, आनंद लेने का वक्त निकल चुका होगा.*

*५. अपने बच्चों की जरूरत से अधिक फिक्र ना करें....* 
*उन्हें अपना मार्ग स्वयं खोजने दें.*

*६.  अपना भविष्य उन्हें स्वयं बनाने दें। उनकी इच्छाओं, आकांक्षाओं और सपनो के गुलाम आप ना बनें.*

*७.  बच्चों को प्रेम करें, उनकी परवरिश करें, उन्हें भेंट वस्तुएं भी दें, लेकिन कुछ आवश्यक खर्च स्वयं अपनी आकांक्षाओं पर भी अवश्य करें।*

*८.  जन्म से लेकर मृत्यु तक सिर्फ कष्ट करते रहना ही जीवन नहीं है।* 
*यह ध्यान रखें.*

*९. आप छे  या सात दशक पूरे कर चुके हैँ ,*
*अब जीवन और आरोग्य से खिलवाड़ करके पैसे कमाना अनुचित है, क्योंकि अब इसके बाद पैसे खर्च करके भी आप आरोग्य खरीद नहीं सकते।*

*१०. इस आयु में दो प्रश्न महत्वपूर्ण है: पैसा कमाने का कार्य कब बन्द करें, और कितने पैसे से अब बचा हुआ जीवन सुरक्षित रूप से कट जाएगा.*

*११.  आपके पास यदि हजारों एकड़ उपजाऊ जमीन भी हो, तो भी पेट भरने के लिए कितना अनाज चाहिए_? आपके पास अनेक मकान हों, तो भी रात में सोने के लिए एक ही कमरा चाहिए.*

*१२.  एक दिन बिना आनंद के बीते तो, आपने जीवन का एक दिन गवाँ दिया और एक दिन आनंद में बीता तो एक दिन आपने कमा लिया है, यह ध्यान में रखें.*

*१३.  एक और बात: यदि आप खिलाड़ी प्रवृत्ति के और खुश-मिजाज हैं तो बीमार होने पर भी बहुत जल्द स्वस्थ्य होंगे और यदि सदा प्रफुल्लित रहते हैं, तो कभी बीमार ही नही होंगे.*

*१४.  सबसे महत्व-पूर्ण यह है कि अपने आसपास जो भी अच्छाई है, शुभ है, उदात्त है, उसका आनंद लें और उसे संभाल- कर रखें.*

*१५.  अपने मित्रों को कभी न भूलें। उनसे हमेशा अच्छे संबंध बनाकर रखें। अगर इसमें सफल हुए तो हमेशा दिल से युवा रहेंगे और सबके चेहते रहेंगे.*

*१६.  मित्र न हो, तो अकेले पड़ जाएंगे और यह अकेलापन बहुत भारी पड़ेगा।*

*१७.  इसलिए रोज व्हाट्सएप के माध्यम से संपर्क में रहें, हँसते-हँसाते रहें, एक दूसरे की तारीफ करें.... जितनी आयु बची है, उतनी आनंद में व्यतीत करें.*

*(ऊपर वाले मैसेज को कम से कम  तीन  बार पढ़ें और अभी से फॉलो  करें!)*

*१८.  *प्रेम व स्नेह मधुर है, उसकी लज्जत का आनंद लें.*

*१९. क्रोध घातक है। उसे हमेशा के लिए जमीन में गाड़ दें.*

*२०. संकट क्षणिक होते हैं, उनका सामना करें.*

*२१. पर्वत-शिखर के परे जाकर सूर्य वापिस आ जाता है, लेकिन दिल से दूर गए हुए प्रियजन वापिस नही आते.*

*२२. रिश्तों को संभालकर रखें, सभी में आदर और प्रेम बाँटें। जीवन तो क्षणभंगुर है, कब खत्म होगा, पता भी नही चलेगा। इसलिए आनंद दें,आनंद लें.*

*२३. दोस्ती और दोस्त संभाल कर रखें.*

*२४.  जितना हो सके उतने “गैट-टूगेदर"  करते रहें।*

*पढ़ कर यदि आपको आनन्द आया हो, तो अपने और वरिष्ठ-मित्रों को यह संदेश अवश्य फॉरवर्ड करें.* 

🌻🌞🙏🙏🙏🙏🙏🌞🌻

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

सफलता के लिए प्रयासों की निरंतरता आवश्यक - अरविन्द सिसोदिया

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism

जागो तो एक बार, हिंदु जागो तो !

11 days are simply missing from the month:Interesting History of September 1752