स्वार्थ अभिशाप और प्रेम आशीर्वाद
स्वार्थ अभिशाप और प्रेम आशीर्वाद
*एक हृदयस्पर्शी लघुकथा !*
*सुबह सूर्योदय हुआ ही था कि एक वयोवृद्ध सज्जन डॉक्टर के दरवाजे पर आकर घंटी बजाने लगे।*
*"इतने सुबह-सुबह कौन आ गया ?"* कहते हुए डॉक्टर की पत्नी ने दरवाजा खोला।
वृद्ध को देखते ही डॉक्टर की पत्नी ने कहा,*"दादा आज इतनी सुबह ? क्या परेशानी हो गयी आपको ?"*
वयोवृद्ध ने कहा, *"मैं अपने ॲगूठे के टाॅके कटवाने आया हूॅ। मुझे 8:30 बजे दूसरी जगह पहुॅचना होता है, इसीलिए जल्दी आया हूॅ। सॉरी डॉक्टर।"*
डाक्टर के पड़ोस वाले मोहल्ले में ही वयोवृद्ध का निवास था, जब भी जरूरत पड़ती वह डॉक्टर के पास आ जाते थे। इसलिए डाक्टर उनसे परिचित था। उसने कमरे से बाहर आकर कहा,*"कोई बात नहीं दादा, बैठिए और देखाइये आप का ॲगूठा।*
डॉक्टर ने पूरे ध्यान से ॲगूठे के टाॅके खोले और कहा कि,*"दादा बहुत बढ़िया है। आपका घाव भर गया है, फिर भी मैं पट्टी लगा देता हूॅ कि कहीं चोट न लगे।"*
डाक्टर तो बहुत होते हैं, परंतु ये डॉक्टर बहुत हमदर्दी रखने वाले, आदमी का खयाले रखने वाले और दयालु थे।
डॉक्टर ने पट्टी लगाकर के पूछा, *"दादा आपको कहाॅ पहुॅचना पड़ता है 8:30 बजे ? आपको देर हो गई है तो मैं चलकर आपको छोड़ आता हूॅ।"*
वृद्ध ने कहा कि, *"नहीं-नहीं डॉक्टर साहब, अभी तो मैं घर जाऊॅगा, नाश्ता तैयार करूॅगा, फिर निकलूॅगा, और 9:00 बजे पहुॅच जाऊॅगा।"*
उन्होंने डॉक्टर का आभार माना और जाने के लिए खड़े हुए। बिल लेकर उपचार करने वाले तो बहुत डॉक्टर होते हैं, परंतु *दिल से उपचार करने वाले डॉक्टर कम होते हैं।*
दादा खड़े हुए तभी डॉक्टर की पत्नी ने आकर कहा कि,*"दादा आज नाश्ता यहीं कर लो।"*
वृद्ध ने कहा,*"नहीं बहन, मैं तो यहाॅ नाश्ता कर लूॅगा, परन्तु उसको नाश्ता कौन कराएगा ?"*
डॉक्टर ने पूछा,*"किसको नाश्ता कराना है ?"*
तब वृद्ध ने कहा कि,*"मेरी पत्नी को।"*
डाक्टर ने पूछा, तो वो कहाॅ रहती हैं ? और 9:00 बजे आपको उसके यहाॅ कहाॅ पहुॅचना होता है ?"
वृद्ध ने कहा, *"डॉक्टर साहब वह तो मेरे बिना रहती ही नहीं थी, परॅतु अब वह अस्वस्थ है और नर्सिंग होम में है।"*
डॉक्टर ने पूछा, *"क्यों, उनको क्या तकलीफ है ?"*
वृद्ध व्यक्ति ने कहा, *"मेरी पत्नी को अल्जाइमर है और पिछले 5 साल से उसकी याददाश्त चली गई है, वह मुझे पहचानती नहीं है। मैं नर्सिंग होम में जाता हूॅ, उसको नाश्ता खिलाता हूॅ, तो वह फटी ऑख से शून्य नेत्रों से मुझे देखती है। मैं उसके लिए अनजाना हो गया हूॅ।*
ऐसा कहते-कहते वृद्ध की ऑखों में ऑसू आ गए।
डॉक्टर और उसकी पत्नी की ऑखें भी गीली हो गईं।
*प्रेम निस्वार्थ होता है, प्रेम सबके पास होता है परंतु, एक-पक्षिय प्रेम, दुर्लभ होता है। पर होता है जरूर।*
कबीर ने लिखा है...
*प्रेम न बाड़ी ऊपजे, प्रेम न हाट बिकाय।*
डॉक्टर और उसकी पत्नी ने कहा,*"दादा 5 साल से आप रोज नर्सिंग होम में उनको नाश्ता करने जाते हैं ? आप इतने वृद्ध हैं, आप थकते नहीं हैं, ऊबते नहीं हैं ?"*
उन्होंने कहा कि,*"मैं तीन बार जाता हूॅ। डॉक्टर साहब उसने जिंदगी में मेरी बहुत सेवा की और आज मैं उसके सहारे जिंदगी जी रहा हूॅ। उसको देखता हूॅ तो मेरा मन भर आता है। मैं उसके पास बैठता हूॅ तो मुझमें शक्ति आ जाती है। अगर वह न होती तो अभी तक मैं भी बिस्तर पकड़ लिया होता। लेकिन उसको ठीक करना है, उसकी संभाल करनी है, इसलिए मुझमें रोज ताकत आ जाती है। उसके कारण ही मुझमें इतनी फुर्ती है। सुबह उठता हूॅ तो तैयार होकर काम में लग जाता हूॅ। यह भाव रहता है कि उससे मिलने जाना है, उसके साथ नाश्ता करना है, उसको नाश्ता कराना है। उसके साथ नाश्ता करने का आनंद ही अलग है। मैं अपने हाथ से उसको नाश्ता खिलाता हूॅ !"*
डॉक्टर ने कहा, *"दादा एक बात पूछूॅ ?"*
और डॉक्टर ने कहा, *"दादा, वह तो आपको पहचानती नहीं, न तो बोलती है, न हॅसती है, तो भी आप मिलने जाते हैं ?"*
तब उस समय वृद्ध ने जो शब्द कहे, वह शब्द बहुत अधिक हृदयस्पर्शी और मार्मिक हैं।
वृद्ध बोले, *"डॉक्टर साहब, वह नहीं जानती कि मैं कौन हूॅ, पर मैं तो जानता हूॅ ना कि वह कौन है !"*
और इतना कहते वृद्ध की ऑखों से पानी की धारा बहने लगी।
डॉक्टर और उनकी पत्नी की ऑखें भी भर आईं।
*पारिवारिक जीवन में स्वार्थ अभिशाप है और प्रेम आशीर्वाद है। जब प्रेम कम होता है, तभी परिवार टूटता है।*
यह शब्द
*"वह नहीं जानती कि मैं कौन हूॅ परंतु मैं तो जानता हूॅ ना !"*
*यह शब्द शायद परिवार में प्रेम का संचार प्रवाहित कर दें।*
*अपने वो नहीं जो तस्वीर में साथ दिखें।*
*अपने तो वो हैं जो तकलीफ में साथ दिखें !*
( पत्नी सारी उम्र सेवा करती है, बुजुर्गोवस्था में उनका विशेष ध्यान रखना चाहिये )
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