श्री राम और दिवाली.... Ram Deepawali


दिवाली विशेष कथा 
श्री राम अयोध्या वापसी 
श्री राम कथा / 2023

|| जय श्रीराम ||

रावण की मृत्यु के बाद राम विभीषण का राज्याभिषेक के बाद शीघ्र अयोध्या वापस जाना चाहते है क्योंकि भरत ने उनसे कहा था कि यदि चौदह वर्ष के बाद उन्होंने अयोध्या वापस आने में एक दिन की भी देर करी तो वह अपने प्राण त्याग देंगे। विभीषण रावण का पुष्पक विमान राम की सेवा में प्रस्तुत करते हैं जो मन की गति से उड़ता है। सुग्रीव व जामवन्त की इच्छा पर राम सबको अयोध्या लेकर जाते हैं।

पुष्पक विमान से अयोध्या वापस जाते समय राम मार्ग में भारद्वाज मुनि के आश्रम में उतरते हैं। वह आश्रम में प्रवेश करने से पहले हनुमान को सूचना देने भरत के पास नन्दीग्राम भेजते हैं। राम को अपने मित्र निषादराज गुह को दिया वचन भी याद है। वह उसके पास भी जाते हैं। सीता गंगा मैया की आराधना करती हैं। गंगा उन्हें अटल सुहाग का आशीर्वाद देती हैं। हनुमान ब्राह्मण का रूप रखकर नन्दीग्राम पहुँचते हैं। वहाँ भरत राम की अयोध्या वापसी की कोई सूचना न मिलने पर अग्नि समाधि लेने की तैयारी कर रहे हैं। ब्राह्मण वेशघारी हनुमान भरत को राम का सन्देश देते हैं और उचित अवसर पर अपने असली कपि रूप में आते हैं। भरत की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है।

अपने राजा राम के वापस आने के समाचार पर पूरी अयोध्या नगरी झूमकर गा उठती है और दीपावली मनायी जाती है। उर्मिला, कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा भी रजनी को भोर बनाने के लिये महल में दीपमाला सजाती हैं। भरत बड़े भैया राम की चरण पादुकाएं लेकर नन्दीग्राम की कुटिया से बाहर निकलते हैं। राम का पुष्पक विमान नगर सीमा पर उतरता है।

जननी जन्म भूमि स्वर्ग से महान होती है, कहते हुए राम अपनी धरती माँ की वन्दना करते हैं। राम गुरुदेव वशिष्ठ के चरण स्पर्श करते हैं। वशिष्ठ बताते हैं कि उन्होंने आदिकाल में ब्रह्मा के कहने पर सूर्यकुल का पुरोहित बनने से इनकार कर दिया था, तब ब्रह्मा ने कहा था कि इसी कुल में भगवान का अवतार होगा। तब से वे नारायण के दर्शन के अभिलाषी थे। तीनों माताओं में राम सबसे पहले माता कैकेयी के चरण स्पर्श करते हैं और बालसुलभ अन्दाज में पूछते हैं कि माँ, उनके लिये राजभोग बनाकर रखा है न। माता सुमित्रा से कहते हैं कि देख लो, बड़ी माँ को दिया अपना वचन पूरा करते हुए लक्ष्मण को साथ लाया हूँ। मर्यादा पुरुषोत्तम अन्त में अपनी जननी कौशल्या से मिलते हैं। राम अपनी माता से कहते हैं कि उन्होंने हर विपत्ति के समय माता को अपने निकट खड़ा पाया। उनकी रगों में माता के दूध की शक्ति थी जिसके बल पर वे हर विपत्ति को पार कर माँ के चरणों में वापस आ सके। कौशल्या कहती हैं कि संसार उन्हें भगवान का अवतार कह रहा है लेकिन वह उन्हें अपने पुत्र के रूप में ही निहारना चाहती हैं।

कौशल्या राम को भरत के पास यह कहकर भेजती है कि उसने तुमसे अधिक कठिन वनवास काटा है। भरत राम के चरणों में गिरकर उन्हें उनकी खड़ाऊ पहनाते हैं। राम भरत को उठाकर गले लगाते हैं। सीता भी तीनों माताओें का आशीर्वाद लेती हैं। माता कौशल्या सीता का हाल पूछती हैं तो वह कहती हैं कि जब त्रिजटा उनपर हाथ फेरती थी तो उस क्षण मुझे उनमें आपकी छवि दिखायी पड़ती थी। उर्मिला, माण्डवी और श्रुतकीर्ति भी अपनी बड़ी बहन सीता के गले मिलकर रोती हैं। माँ का हृदय पुत्र के लिये कितना तड़पता है। कौशल्या लक्ष्मण से मिलकर सबसे पहले यह पूछती हैं कि उसे मेघनाद की बर्छी कहाँ लगी थी। लक्ष्मण माता कैकेयी और अपनी जननी माता सुमित्रा के चरण स्पर्श करते हैं। सुमित्रा कहती हैं कि जब भी संसार में भ्रात प्रेम की बात होगी, लक्ष्मण का उदाहरण दिया जायेगा।

 महर्षि वशिष्ठ कहते हैं कि वनवास का समय पूरा हो चुका है सरयू में स्नान करने के उपरान्त राम, लक्ष्मण, भरत अपनी जटाएं खुलवा कर राजसी वेश में राजमहल में जाएं। अभिनंदन गीत के बीच राम व सीता राजमहल में प्रवेश करते हैं। थाल में राजमुकुट लिये भरत उनके पीछे चल रहे हैं। राम अपने ससुर राजा जनक को प्रणाम करते हैं। सुहागिनें सिर पर मंगल कलश लिये हुए हैं।

ऋषि मुनि वैदिक मंत्रोच्चार कर रहे हैं। राम व सीता राजसिंहासन पर बैठने के पूर्व गुरु वशिष्ठ के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं। गुरुदेव पवित्र नदियों के जल से राम का अभिषेक करते हैं। उन्हें राजतिलक लगाते हैं। उधर महर्षि अगस्त्य अपनी मानसिक शक्ति से पूरा दृश्य दूर आश्रम में बैठ कर भी देखते हैं।

देवलोक में भगवान ब्रह्मा, भगवान शिव तथा समस्त देवी देवता भी इस पल के साक्षी बनते हैं। राम दरबार का दृश्य अनूठा है। छोटे भाई लक्ष्मण और शत्रुघ्न चँवर झुला रहे हैं। भरत हाथ के थाल में राजमुकुट लिये खड़े हैं। गुरु वशिष्ठ राम को राजमुकुट पहनाते हैं। सीता महारानी का मुकुट धारण करती हैं। तीनों लोकों में राजा रामचन्द्र की जय जयकार गूँजती है।

|| जय श्रीराम ||

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