उफ....बचपन पचपन सा bachapan pachapan sa
उफ....बचपन पचपन सा
Oops....childhood fifty-five
अचानक बचपन की फोटा मिल गई ।
बचपन पचपन सा !! बचपन को बचाया जाना चाहिये।
- अरविन्द सिसौदिया,प्रदेश सहसंयोजक मीडिया सम्पर्क विभाग,राजस्थान एवं पूर्व जिला महामंत्री भाजपा कोटा !!! 9414180151
लोगों का अपना बचपन बहुत याद आता हे। मगर में अपने बचपन की बात सोच कर ही कांप जाता हूं। वे दुःखों से भरे दिन किस तरह गुजर गये आज ताज्जुब होता हे। कहां से हिम्मत आई,उन कठिन दिनों का मुकाबला करने की। आज एक छोटी सी समस्या देख कर भी रात भर नींद नहीं आती।
तब में और मेरी मां,भाई ...!! जागीरदार मगर बीमार पिता..! जमीन जायदादों पर दूसरों के कब्जे ..! कर्ज में दबा कुचला जीवन , आमदनी अट्ठन्नी भी नहीं, मगर खर्च कम नहीं किये जा सकते ।
विज्ञान की शानदार जिज्ञासा और उसकी पढाई छोड कर गांव जाना पडा। आधे से ज्यादा उजडे हुये गावं में भय और आतंक के साये ! इन सबके बीच निडरता, मुकाबला और फिर विजय पर विजय !! महाभारत के युद्ध से कम नहीं होता गरीबी से लडना और इस तरह के युद्ध में अक्सर हार ही होती हे। मगर हम जीते और शान से आगे बडे, बडते ही गये। मगर आज भी कसक है कि हम बचपन में भी पचपन से हो गये थे । गरीबी ने बचपन को छीन लिया था।
1972 से 1975 के दौर में किसी छात्र ने अपने घर पर साईन्स की लेबोट्ररी बनाली हो , उसकी कितनी रूचि शिक्षा में रही होगी ....! मेनें अपनी निजि लेबोट्ररी बना रखी थी। 17 साल की उम्र में दिल्ली से भारत सरकार द्वारा प्रकाशित बाल मासिक में मेरे द्वारा लिखी रचना प्रकाशित हुई थी। प्रकाशित रचना के लिए मुझे उस समय में 5 रूपये का मनीआर्डर मिला था। सब कुछ छोड कर दफन हुये घर को पुनः खडा किया, बचपन में पचपन का अहसास रहा । ईश्वा इस तरह का कष्ट किसी भी बच्चे को नहीं दें।
संघर्ष के उन दिनों में साहस कहां से आया यह आज तक समझ नहीं आया।
एक मिनिट में निर्णय और दो मिनिट में समस्या का निदान ।
मगर धोका होता है , बेईमानी होती है। अन्याय अधर्म होते हैं।
मेरे साथ वे सब हुये जिनकी सामान्यतः कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
शंकर जी ने लंका को बनाया गढा संवारा और रावण ले उडा ।
कुछ इसी तरह के षडयंत्र चले जब वे जान लेवा हो गये तो सब कुछ छोडना पडा ।
मगर आज स्कूल बचपन को छीन रहे हैं ! शिक्षा पद्यती बचपन को छीन रही हे। बचपन को बचाया जाना चाहिये।
यह दौलत भी ले लो,यह शौहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी!
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