चिन्तन शिविर - राहुल इज फस्ट राहुल इज मस्ट ! Congress Chintan Shivir

 

Congress Chintan Shivir

 कांग्रेस में कई बार चिन्तन हुये हैं, मामूलीतौर पर पार्टी में कुछ दिखावटी परिवर्तन होते रहे हैं , किन्तु मूलरूप से पार्टी अपनी पुरानी सोच से बाहर नहीं निकली है, कांग्रेस के इतिहास में हिन्दू के प्रति ईमानदारी कभी नहीं रही है । जबकि इसे हिन्दू नाम के नेता ही संचालित करते रहे हैं । मुख्य विषय यही है कि एक हिन्दू देश को आप कब तक धोका दे सकते हैं। वर्तमान में जो भी विचार हैं , वह हिन्दू के अपने देश के स्वामित्व के साथ है । वर्तमान हिन्दू पीढ़ी अपने हुटे हुये माल को कब्जाई सम्पत्तीयों को, अपने बर्चस्व को प्राप्त करना चाहती है। जिसे अभी तक टाला जाता रहा ।

 भारत का विभाजन जब हिन्दू मुस्लिम समस्या के कारण हुआ था और पाकिस्तान मुस्लिम पक्ष को दे दिया गया था तो भारत के हिन्दूओं को उनका हक , उनका न्याय, उनका स्वामित्व दिया जाना चाहिये था। जिसे लगातार नजर अंदाज किया गया। जो अन्याय इस्लामिक आक्रांताओं के स्वलिखित इतिहास में लिखें हैं, उनके साथ तक न्याय नहीं करवा गया। बल्कि कांग्रेस के द्वारा ही तुष्टिकरण की नीती पर काम हुआ। भारत के खजानें पर अल्पसंख्यकों का पहला हक बताया गया। इसी कारण कांग्रेस हिन्दूओं के मन से उतरती चली गई। यह सब कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व के कार्यकाल में ही हुआ है। कांग्रेस की समस्या ही हिन्दू है। जिसनें कांग्रेस पर विश्वास करना छोड दिया है।

चिन्तन शिविर की सभी बातें तो बाहर आईं नहीं हैं। मगर हिन्दुत्व के मुदृदे पर काफी चर्चा हुई है और उत्तर भारत और दक्षिण भारत के कांग्रेसियों में कुछ मतभेद भी रहे हैं। किन्तु कांग्रेस तो क्या कोई भी दल पूरी तरह अब हिन्दूओं को छोड दे इस स्थिती में नहीं हैं। वहीं
कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक के लोभ से बाहर निकल आये यह भी नहीं है। जकि मुस्लिम वोट भी कांग्रेस को वहीं मिलता है जहां भाजपा के विरूद्ध अन्य कोई सशक्त पार्टी नहीं है। अर्थात मजबूरी में ही कांग्रेस को मुस्लिम चुनता है।

कांग्रेस चिन्तन शिविर के बाद कुछ भी कहती रहे! मगर उसकी मूलभूत नीतियों में कोई बडा बदलाव नहीं आयेगा, अलबत्ता वह भाजपा की तरह विपक्ष की भूमिका निभाना इसलिये चाहेगी कि राहुल गांधी को अगला प्रधानमंत्री पद का सशक्त दावेदार बनाया जा सके। कांग्रेस की लगातार हार का दौर रोक कर लोकसभा में सीटें बढाई जायें, जीत का प्रतिशत बडाया जाये। कांग्रेस की मूल प्राथमिकतायें यहीं हैं।

     कांग्रेस एक बार फिर, अंग्रेजों की फूट डालो राज करो की नीति पर सवार होकर, जनता के बीच निकलनें जा रही है । वह जानती है कि हिन्दू भोली और भली कौम है, आसानी से उनके जाल में फंसी रहेगी । येशा प्रमाणित भी है कि हिन्दूओं का अहित करके भी कांग्रेस देश में 70 साल से महत्वपूर्ण है।

      वह हिन्दूओं को बतायेगी कि हम हिन्दूवादी हैं! आदिवासी और दलितों को हिन्दूओं से दूर करने की चालें चलेगी। ताकि हिन्दू वोट बैंक का प्रतिशत कम किया जा सके। मुसलमानों को बतायेगी कि एक मात्र कांग्रेस ही उनकी हित चिन्तक है। यानि कि साफट हिन्दुत्व के साथ फूट डालो राज करो की नीति ही कांग्रेस की रहेगी। कोई नई बात नहीं बस शब्दों का फेर ही रहनें वाला है।

चिन्तन शिविर के बाद कांग्रेस कुछ मामलों में भाजपा की नकल करती जरूर नजर आयेगी...
1- भाजपा की तरह कांग्रेस की देश व्यापी यात्रा !  अर्थात भाजपा ने राम रथ यात्रा और एकता यात्रा निकालीं थीं उसी तरह कांग्रेस भी यात्रा पर निकलेगी। इसके द्वारा राहुल गांधी को एक मात्र नेतृत्वकर्ता के रूप में प्रोजेक्ट किया जायेगा। इससे कांग्रेस पार्टी के मतदाताओं को उत्साहित करनें का काम भी होगा।
2- कांग्रेस भाजपा की तरह ही , सामाजिक संगठनों एवं धार्मिक संगठनों में पैठ बना कर, कर अपने लिये सपोर्टर कार्यकर्ता खोजेगी। जो भाजपा को रोकें घेरें , सवाल जबाव कुतर्क करें। हिन्दू चोले में कांग्रेस के पक्षधर अधिक सक्रीय कियें जायेगें।जैसे कि आचार्य प्रमोद कृष्णन् जैसे लोगों की संख्या बढ़ाना। जो हिन्दूवादी चोले में रह कर कांग्रेस की रक्षा करें।
3 - सेवादल को और अधिक सक्रीय किया जायेगा, ताकि वह संघ की तरह स्वयंसेवकों की फौज तैयार करे।
4 - मानों या न मानों,
सभी को कडा और स्पष्ट संदेश, दे दिया गया है कि राहुल इज फस्ट राहुल इज मस्ट ! राहुल गांधी को स्विकार करना ही होगा, कांग्रेस से एक मात्र नेतृत्वकर्ता एवं प्रधानमंत्री पद के दावेदार राहुल गांधी ही रहेंगे। नेतृत्व की मूल आधार भी गांधी परिवार ही रहेगा।

5- कांग्रेस कुछ इस तरह की मांगे भी आगे बढायेगी जो कभी उसने स्वयं भी पूरी नहीं कीं न वे किसी भी सरकार से पूरी हो सकती हैं। जैसे कि किसानों की पूरी फसल समर्थन मूल्य पर खरीदनें की मांग !

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कांग्रेस के चिंतन शिविर से निकले हैं 3 मंत्र, क्या 2024 में पार लगेगी नैय्या?
By Ankur Singh

 Published: Monday, May 16, 2022,
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नई दिल्ली, 16 मई। पिछले 8 सालों में दो लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार, कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार और कई अहम जो कांग्रेस का गढ़ थे, वहां से पार्टी की विदाई के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी के सामने अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है। इस अस्तित्व के खतरे से कैसे निपटा जाए इसको लेकर कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान के उदयपुर में तीन दिन तक चिंतन शिविर का आयोजन किया। इस शिविर में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी समेत पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं ने हिस्सा लिया। बैठक के दौरान कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई और इस बात पर मंथन किया गया कि कैसे पार्टी को फिर से पुनर्जिवित किया जा सके।

हिंदुत्व का कैसे करें सामना
चिंतन शिविर के दौरान यह बात कही गई कि हाथी कमरे में है, लिहाजा इससे कैसे निपटे। भाजपा के हिंदुत्व का किस तरह से सामना किया जाए, आखिर जिस तरह से भाजपा हिंदुत्व की राजनीति कर रही है उसका किस तरह से देखा जाए। कई कांग्रेस नेताओं ने तर्क दिया कि आने वाले सालों में पार्टी को आर्य समाज के साथ करीबी बढ़ानी चाहिए, जिसपर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ का असर नहीं है। पार्टी को अल्पसंख्यकों के साथ खड़ा होना पड़ेगा, जिसे पार्टी में हर किसी ने स्वीकार किया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह था कि धार्मिक हिंदुओं को कैसे पार्टी में वापस लाया जाए।

हिंदू पर्व मनाने से हिचकना नहीं चाहिए
तीन दिन के चिंतन शिविर में कई नेताओं ने जिसमे मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तर्क दिया कि पार्टी को हिंदू पर्व मनाने से हिचकना नहीं चाहिए, धार्मिक कार्यक्रमों से परहेज नहीं करना चाहिए, धार्मिक गुटों के साथ करीबी बढ़ानी चाहिए। लेकिन दक्षिण भारत से आए कांग्रेस के नेताओं ने इसका विरोध किया। लेकिन उत्तर भारत के नेताओं का कहना है कि दक्षिण के नेता उत्तर भारत की राजनीति को नहीं समझते हैं। लंबी चर्चा के बाद कांग्रेस के पैनल ने सुझाव दिया कि पार्टी को सभी सांस्कृति संगठनों, एनजीओ, ट्रेड यूनियन, विचारकों, समाज सेवियों के साथ करीबी बनानी चाहिए, जबकि धर्म को एक दायरे में रखना चाहिए। कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने जो प्रस्ताव स्वीकार किया उसमे धर्म को नहीं शामिल किया गया है।

संगठन में बदलाव
पार्टी संगठन में बड़े बदलाव को तैयार नजर आ रही है। जो नेता 50 साल से कम उम्र के हैं उन्हें आगे बढ़ाने की बात कही गई। इन नेताओं को नेतृत्व की भूमिका में लाने की बात कही गई, इन्हें संगठन में नेतृत्व सौंपने को कहा गया। हालांकि पार्टी इस बात के लिए तैयार नहीं है कि वह जी-23 की मांग को स्वीवाकर करे,जिसमे पार्टी के असंतुष्ट नेताओं ने मांग की थी कि संसदीय बोर्ड में बदलाव होना चाहिए। पार्टी ने इस बात के भी संकेत दिए हैं कि बुजुर्ग नेताओं को कांग्रेस वर्किंग कमेटी से बाहर किया जा सकता है ताकि युवा नेताओं की एंट्री हो सके। सोनिया गांधी ने एक सुझाव मंडल का भी सुझाव दिया, जोकि भाजपा के मार्गदर्शक मंडल की ही तर्ज पर है। जी-23 के नेताओं को स्पष्ट तौर पर संकेत दिया गया है कि यह गुट संयुक्त रूप से फैसले लेने वाला ग्रुप नहीं है। बता दें कि जी-23 मांग कर रहा था कि संयुक्त रूप से मिलकर सुधार के फैसले लेने की जरूरत है।

दलित-अल्पसंख्यकों तक पहुंचना
पार्टी ने चिंतन शिविर के दौरान तीसरा अहम मुद्दा दलितों और अल्पसंख्यकों के बीच अपनी पैठ को बढ़ाने का था। पार्टी एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यकों तक अपनी पैठ को बढ़ाना चाहती है। हालांकि इस बात पर फैसला नहीं हो सका है कि पार्टी के संगठन में उन्हें कितना आरक्षण मिलेगा। मौजूदा समय में पार्टी का संविधान कहता है कि इन समुदायों का 20 फीसदी से कम आरक्षण नहीं हो सकता है। लेकिन इसे 50 फीसदी करने की मांग रखी गई, लेकिन इसपर सहमति नहीं बन सकी। माना जा रहा है कि दलित, ओबीसी, आदिवासी के जरिए पार्टी भाजपा के हिंदुत्व की राजनीति पर पलटवार करना चाहती है। पार्टी ने सोशल जस्टिस एडवायजरी काउंसिल के गठन का भी फैसला लिया है।

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...तो भाजपा की रणनीति पर चलेगी कांग्रेस? चिंतन शिविर में निकला फॉर्म्युला, पर नेताओं को खटक रही वो एक बात
Compiled by अनुराग मिश्र | नवभारतटाइम्स.कॉमUpdated: 15 May 2022, 8:55 am
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कांग्रेस के सामने उसके अस्तित्व का सवाल है। जिस तरह से 2014 के लोकसभा चुनाव के साथ भाजपा का विजयी अभियान शुरू हुआ, उससे पार्टी के लिए चुनौतियां बढ़ती गईं। आज स्थिति यह है कि अपने दम पर केवल दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। ऐसे में राजस्थान के उदयपुर में तीन दिन के चिंतन शिविर से कांग्रेस को क्या 'संजीवनी' मिलेगी?
 
हाइलाइट्स
राजस्थान के उदयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर का आज आखिरी दिन
भाजपा से मुकाबले को कई रणनीतियों पर हुआ गहन मंथन
धार्मिक, जाति और सामाजिक समूहों को साथ जोड़ने पर गंभीर चर्चा

नई दिल्ली: चुनावों में हार पर हार झेल रही कांग्रेस में चिंतन चल रहा है। शिविर (Congress Chintan Shivir) पार्टी शासित राजस्थान के उदयपुर में लगा है। आज आखिरी दिन है। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने करीबियों के साथ बैठ कर यह मंत्रणा कर रही हैं कि देश में खोए कांग्रेस के जनाधार और जनता के भरोसे को कैसे फिर से वापस पाया जाए जिससे भगवा दल के विजयी रथ को रोका जा सके। मुश्किल घड़ी है, 2024 के लोकसभा चुनाव के रूप में एक बड़ा इम्तिहान आगे आने वाला है। पूरे देश के कांग्रेसियों और दूसरे दलों की नजरें कांग्रेस के इस चिंतन शिविर की ओर हैं। लोगों में आम धारणा यही है कि क्या इस बार सच मायने में कुछ बदलाव जैसा दिखेगा या फिर पिछले कई वर्षों की तरह नतीजा एक जैसा ही रहने वाला है। बहरहाल, अब तक मिले संकेतों के मुताबिक कांग्रेस पार्टी सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्म्युले पर बढ़ना चाहती है। वह भी बीजेपी की तरह समाज के अलग-अलग समूहों, वर्गों से खुद को जोड़ना चाहती है। हालांकि पार्टी के भीतर इस पर आम सहमति नहीं दिख रही है।

फॉर्म्युले पर विरोध भी
चिंतन शिविर में राजनीतिक मसले पर चर्चा के दौरान एक नेता ने सुझाव रखा कि पार्टों को ऐसी संस्थाओं/निकायों के साथ जुड़ने की कोशिश करनी चाहिए जो समाज के प्रमुख वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह धार्मिक, जाति और सामाजिक समूहों को अपने साथ लाने का बेहतर तरीका हो सकता है। कर्नाटक के विधायक बीके हरि प्रसाद जैसे कुछ सदस्यों ने इसका विरोध किया।

उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह फॉर्म्युला तो कांग्रेस को भी भाजपा की तरह बना देगा जो लोगों को धर्म के आधार पर लुभाती है। हालांकि आचार्य प्रमोद और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जैसे नेताओं ने प्रस्ताव का समर्थन किया। इन्होंने तर्क देते हुए कहा कि कांग्रेस की पहुंच समावेशी हो सकती है जहां इसका जुड़ाव जाति और धार्मिक विभाजन से परे होगा और यह भाजपा की उस रणनीति की नकल नहीं होगी जो एक धर्म पर केंद्रित पर होती है।

सूत्रों ने कहा कि वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने इस मसले पर मध्यस्थ की भूमिका निभाई और आपसी तालमेल बिठाया। कांग्रेस के शिविर में सॉफ्ट हिंदुत्व पर भी जोरदार चर्चा हुई है। एक नेता ने तर्क दिया कि ध्रुवीकरण के मुद्दे पर पार्टी को डिफेंसिव नहीं होना चाहिए और विभाजनकारी राजनीति के लिए भाजपा की कड़ी आलोचना की जानी चाहिए।

हालांकि कुछ सदस्यों ने महसूस किया कि पार्टी को प्रत्यक्ष तौर पर आक्रामकता से बचना चाहिए। बघेल ने तर्क दिया कि कांग्रेस बिल्कुल ठीक सांप्रदायिकता को निशाना बनाती है, इसे हिंदुओं तक सांस्कृतिक जुड़ाव के साथ आगे बढ़ना चाहिए जैसे कांग्रेस छत्तीसगढ़ में धार्मिक पर्यटन, गोरक्षा और गोबर की खरीद जैसी कई पहल अपना रही है। उन्होंने यह भी कहा कि मध्य प्रदेश के नेता कमलनाथ भी इसी नीति पर चल रहे हैं और उसके अच्छे नतीजे दिखे हैं और वह भाजपा को काबू में रखने में कामयाब रहे हैं।

कांग्रेस के भीतर हुई चर्चा की बड़ी बातें
कांग्रेस पार्टी अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए संगठन में हर स्तर पर 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर सकती है।
‘नवसंकल्प चिंतन शिविर’ में कांग्रेस ने महिला आरक्षण को लेकर ‘कोटे के भीतर कोटा’ के प्रावधान पर अपने रुख में बदलाव की तरफ कदम बढ़ाते हुए निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की पैरवी का मन बनाया है।
कांग्रेस ने किसानों के लिए ‘कर्जमाफी से कर्जमुक्ति’ का संकल्प लिया और कहा कि अब देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी अधिकार मिलना चाहिए और किसान कल्याण कोष की भी स्थापना होनी चाहिए।
इस पर भी चर्चा की गई कि क्या संगठनात्मक सुधार करने चाहिए जिससे पार्टी कमजोर तबकों को संदेश दे सके? चिंतन शिविर के लिए गठित कांग्रेस की सामाजिक न्याय संबंधी समन्वय समिति के सदस्य के. राजू ने बताया कि यह प्रस्ताव आया है कि एक सामाजिक न्याय सलाहकार समिति बनाई जाए जो सुझाव देगी कि ऐसे क्या कदम उठाए जाने चाहिए जिससे इन तबकों का विश्वास जीता जा सके।
समिति ने सिफारिश की है कि पार्टी को जाति आधारित जनगणना के पक्ष में रुख अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एससी-एसटी ‘सब-प्लान’ को लेकर केंद्रीय कानून और राज्यों में कानून बनाने की जरूरत है।
कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘सरकारी क्षेत्र में नौकरियां कम हो रही हैं। ऐसे में हम पार्टी नेतृत्व से सिफारिश कर रहे हैं कि निजी क्षेत्र की नौकरियों में भी एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण होना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय संबंधी समिति की ओर से लोकसभा और विधानसभाओं में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान करने की भी पैरवी की गई है।
महिला आरक्षण विधेयक UPA सरकार के समय राज्यसभा में पारित किया गया था, लेकिन कई दलों के विरोध के चलते यह लोकसभा में पारित नहीं हो पाया। महिला आरक्षण मामले पर पहले के रुख में बदलाव पर कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा ने कहा, ‘इस पर (कोटा के भीतर कोटा) ऐतराज कभी नहीं था। उस समय गठबंधन की सरकार थी। सबको एक साथ लेना मुश्किल था। उस समय हम इसे पारित नहीं करा पाए। समय के साथ बदलना चाहिए। आज यह महसूस होता है कि इसे इसी प्रकार से आगे बढ़ना चाहिए।’
यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपना रही है, पार्टी के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से सामाजिक न्याय होता है।

(TOI रिपोर्टर सुबोध घिल्डियाल, भाषा के इनपुट के साथ)
 

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