नितिश का चरित्र अपने साथीयों को धोखा देनें का रहा है - अरविन्द सिसौदिया

 

नितिश का चरित्र अपने साथीयों को धोखा देनें का रहा है - अरविन्द सिसौदिया

नितिश का चरित्र अपने साथीयों को धोखा देनें का रहा है - अरविन्द सिसौदिया
नितिश कुमार  : जातीय जनगणना तो बहाना है, भाजपा से हाथ छुडाना है।

मेंने पहले भी लिखा था कि भाजपा की बड़ती ताकत से जिस तरह शिवसेना प्रमुख भयभीत थे और मौका देखते ही अलग हो गये। उसी तरह नितिश कुमार भी भयभीत हैं। वे बहुत जल्द भाजपा का दामन छोडते नजर आ सकते हैं। यूं भी नितिश का चरित्र अपने साथीयों को धोखा देनें का रहा है। में तो क्या लिखूं आप स्वयं इनके इतिहास को देखेंगे तो मेरा कहा एक एक शब्द सही पायेंगें।


जब से बिहार में भाजपा जदयू से बडी पार्टी बनी है तब से ही नितिश परेशान हैं, अपने लिये ज्यूनियर पार्टनर तलाश रहे हैं। क्यों कि अब भाजपा सीनियर पार्टनर हो गई है। वे सिर्फ भाजपा से ही नहीं अपनी ही पार्टी के प्रशात किशोर अर्थात पीके से भी परेशान चल रहे हैं। जातीय जनगणना तो बहाना है, भाजपा से हाथ छुडाना है।


लगता है कि जदयू अब टूटेगा । राज्यसभा चुनाव की उठापठक नितिश कुमार को चुनौती भी दे सकती है। नितिश का कद सही मायनें में अब नरेन्द्र मोदी से काफी बौना हो चुका है। बगले चुनाव को लेकर भाजपा कतई भयभीत नहीं है। क्यों कि जो हाल मुलायम के बेटे का हुआ वही बिहार में लालू के बेटे का होना है। क्यों कि बिहार भी हिन्दूवादी मोड से अपने आपको बाहर नहीं रख सकता।

पहले से है ऊहापोह की स्थिति
बिहार की राजनीति में इन दिनों ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जदयू के सभी विधायकों को 72 घंटे तक पटना में रहने का आदेश दिया है तो वहीं 27 मई को उन्होंने जातिगत जनगणना पर सर्वदलीय बैठक भी बुला ली है। पिछले कुछ घटनाक्रमों को देखें तो नीतीश की राजद से नजदीकी बढ़ रही है और वे अपने सहयोगी दल भाजपा से नाराज चल रहे हैं। अगर ये सभी कड़ियां एकसाथ जोड़ी जाएं तो यही संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले कुछ दिनों में बिहार की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला है।

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सार-


राजद के लालू प्रसाद ने मारा था पलटूराम का तान
कभी पीके और पवन थे आंखों का तारा
नीतीश कुमार ने पहले लालू प्रसाद को छोड़ा
शरद के संग आए, जार्ज को मझधार में छोड़ा
भाजपा के साथ आए, गए और लौट आए
लालू को छोड़ने का निर्णय ले शरद यादव से अलग हुए


नीतीश कुमार
 

विस्तार
जद(यू) के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री कभी बिहार में सुशासन बाबू के नाम से मशहूर हो गए थे। सत्ता में मजबूत पकड़ बनाए रखने में माहिर नीतीश कुमार के बारे में आम है कि उन्हें किसी का साथ पकड़ने, छोड़ने में हिचक नहीं होती। वह पहले से इसके लिए जमीन तैयार कर लेते हैं। जद (यू) के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि वह पार्टी, विचारधारा, लोगों के हित से पहले खुद का हित देखकर राजनीति करते हैं।

पार्टी के एक प्रवक्ता भी नीतीश कुमार के इस तरह के व्यक्तित्व पर केवल मुस्कराकर चुप रह जाते हैं। कभी नीतीश कुमार के बहुत करीबी रहे एक अन्य सूत्र का कहना है कि आपको याद होगा, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने उन्हें पलटूराम का ताना माना था।


चर्चा में हैं नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिर चर्चा में हैं। इस बार चर्चा का कारण कभी नीतीश कुमार की आंख का तारा रहे पार्टी के पूर्व राज्यसभा सांसद पवन वर्मा और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा उठाए जा रहे सवाल हैं। पवन वर्मा के पत्र पर बिना किसी का नाम लिए नीतीश कुमार ने कहा कि जहां जाना है वहां जाएं। इस पर कोई एतराज नहीं है। नीतीश कुमार ने पवन वर्मा की तरह सवाल उठाने वालों को दल छोडऩे के लिए शुभकामनाएं भी दे दी हैं। पार्टी के भीतर इस तरह की पैदा हुई स्थिति के कारण नीतीश कुमार चर्चा में हैं।

तेजस्वी यादव ने कसा तंज
नीतीश कुमार और पवन वर्मा के बीच में छिड़े राजनीतिक संग्राम पर राजद के नेता तेजस्वी यादव ने भी तंज कसा है। तेजस्वी यादव ने जद(यू) को विचार धारा के स्तर पर कंगाल पार्टी की संज्ञा देते हुए नीतीश कुमार की चुटकी ली है। राजद के तेजस्वी खुद को नीतीश कुमार का प्रतिद्वंदी चेहरा मानते हैं। राजद ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए तेजस्वी को पार्टी का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर रखा है।
 

नीतीश कुमार ने साथ छोड़ने में नहीं लगाई देर...राजनीतिक सफरनामा
लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार पटना विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से निकले नेता है। 1990 में बिहार विधानसभा में जनता दल को स्पष्ट बहुमत मिला था। लालू प्रसाद यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। तब नीतीश कुमार लालू प्रसाद की आंख का तारा कहे जाते थे। 1994 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद का साथ छोड़ दिया। क्रांतिकारी नेता जार्ज फर्नांडीज के द्वारा समता पार्टी गठित करने के बाद नीतीश कुमार उनके साथ आ गए। समता पार्टी ने भाजपा के साथ मिलकर अपनी राजनीतिक यात्रा को आरंभ किया। नीतीश कुमार की राजनीति बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के विरोध पर टिक गई। शरद यादव ने अपने अलग पार्टी जद(यू) बनाई थी।

बाद में नीतीश कुमार ने शरद यादव से करीबी बढ़ाई। सूत्रधार बने और जार्ज को काफी हद तक नागवार लगने के बाद भी उन्होंने समता पार्टी का जद(यू) में विलय करा दिया। राजनीति के पंडित कहते हैं कि 2009 आते-आते नीतीश कुमार के लिए जार्ज फर्नांडीज बहुत महत्व के नेता नहीं रह गए थे। भाजपा के साथ तालमेल करके जद(यू) के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री बनते रहे। 2013 में भाजपा ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को 2014 के प्रचार अभियान का प्रमुख बनाया।

नीतीश कुमार ने इसे भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति की तरफ बढ़ना बताते हुए इस पर ऐतराज जताया और शरद यादव को काफी हद तक नागवार लगने के बाद भी जद(यू) का भाजपा से नाता तोड़ लिया। 2015 में परिस्थितियों ने करवट बदली तो नीतीश कुमार राजद नेता लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस के साथ तालमेल करके महागठबंधन बनाया। 2017 में फिर नीतीश कुमार नाराज हुए। इस बार फिर शरद यादव के विरोध के बाद भी लालू प्रसाद यादव की राजद और महागठबंधन से नाता तोड़ लिए। भाजपा के साथ मिलकर जुलाई 2017 में सरकार बनाई। मुख्यमंत्री बने। शरद यादव को पार्टी से बेदखल करने की कार्रवाई की।
 
जीतन राम मांझी भी नेता बन गए
2014 में लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बिहार में सफलता के झंडे गाड़ दिए। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। यह भी जद(यू) के तत्कालीन अध्यक्ष शरद यादव की इच्छा के विपरीत हुआ। नीतीश कुमार ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में महादलित समाज के जीतनराम मांझी का चुनाव किया। जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री बने। कुछ महीने में ही नीतीश कुमार जीतनराम मांझी की कार्यप्रणाली से ऊब गए। इसके बाद नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बन गए। जीतन राम मांझी को जद(यू) छोड़कर हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) बनानी पड़ी। 

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