'ताला है तो तोड़िए, पूरी ज्ञानवापी का सर्वे कीजिए'- जिला कोर्ट वाराणसी
तमाम अडंगेबाजी को नजर अंदाज कर, वाराणसी के जिला न्यायालय ने ज्ञापवापी के सर्वे करनें और सर्वे में आ रही तमाम अडचनों को हटानें का आदेश जिला प्रशासन को दे दिया है। साथ ही वर्तमान कमिश्नर को यथावत रखते हुये सहयोग हेतु एक कमिश्नर ओर लगा दिया है।
भारत में इस्लामिक आक्रमण के दौरान लाखों मंदिरों का ध्वस्त कर उसी मलवे से अन्य निर्माण कर लिये गये थे, जिनमें मस्जिदें भी हैं और अनेकों अन्य प्रकार के निर्माण भी है। वहीं करोडों मूर्तियों को खण्डित किया गया था। लाखों हिन्दू पुस्तकों एवं बहुत से पुस्तकालयों को जला दिया गया । करोडों हिन्दुओं का धर्मानतरण इस्लाम में करवा दिया गया।
देश 1947 में स्वतंत्र हो गया है। मुसलमानों को पाकिस्तान दिया जा चुका है, उनका भारत पर नैतिक अधिकार नहीं है। पाकिस्तान में 1947 के बाद भी हिन्दूओं का उन्मूलन किया गया वहां की हिन्दू जनसंख्या को धर्मान्तरिक करवा लिया गया।
भारत की स्वतंत्रता के साथ ही इस्लामिक शासन के दौरान ध्वस्त मंदिरों को हिन्दूंओं को लौटा दिया जाना चाहिये था, मगर उन पर कब्जे की हठ धर्मिता के कारण ही अयोध्या हुआ और अब मामलें वाराणसी,मथुरा, दिल्ली और आगरा की ओर बढ़ रहे है। अनादिकाल से मूल निवासी हिन्दूओं को अपने पुरखों के प्रतिष्ठानों को पुनः प्राप्त करनें का अधिकार है, उन्हे कानूनी रास्ते से प्राप्त करनें का अधिकार भी है ।
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कुछ स्वतंत्र रिर्पोटें.....
LIVE Varanasi Gyanvapi Case:
ज्ञानवापी केस में बड़ा फैसला-
'ताला है तो तोड़िए, पूरी ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कीजिए'
LIVE Mandir Masjid Issue: जैसे ही कोर्ट का फैसला आया। कोर्ट के बाहर हर हर महादेव के नारे गूंजने लगे।
Updated: | Thu, 12 May 2022
LIVE Varanasi Gyanvapi Case: ज्ञानवापी केस में बड़ा फैसला- 'ताला है तो तोड़िए, पूरी ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कीजिए'
LIVE Varanasi Gyanvapi Case: वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में जिला कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। मुस्लिम पक्ष को उस समय तगड़ा झटका लगा जब जिला जज रवि कुमार दिवाकर ने कहा कि कोर्ट कमिश्नर को नहीं हटाया जाएगा। कोर्ट ने 17 मई को सर्वे रिपोर्ट पेश करने को कहा है। इसका मतलब यह है कि यह एक बार फिर सर्वे होगा। रिकॉर्डिंग भी होगी। फैसला का एक अहम पक्ष यह भी रहा कि जज ने कोर्ट कमिश्ननर के साथ एक वकील और लगाया है। ये विशाल कुमार सिंह हैं। यानी अब 2 कोर्ट कमिश्नर होंगे।
LIVE Varanasi Gyanvapi Case: कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
जिला जज रवि कुमार दिवाकर ने स्पष्ट फैसला सुनाया है। साफ कहा कि पूरी ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे और वीडियो ग्राफी कराई जाए। जज ने कहा, ताला तोड़ने पड़े तो तोड़िए, जो बाधा आ रही हो, उसे हटाइये।
अब रोज सुबह 8 बजे से सर्वे होगा और 12 बजे तक चलेगा। यह काम रोज किया जाएगा। अब चबुतरे के आगे भी वीडियो कैमरा जा सकेगा।
अदालत ने पुलिस-प्रशासन को आदेश दिया है कि सर्वे टीम को उसका काम करने में मदद की जाए। जो बाधा पहुंचाए, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
सुनवाई से पहले सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की गई थी। सुरक्षा के चलते कोर्ट परिसर खाली करवा लिया गया थी। इससे पहले बुधवार को कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट के फैसले के दो पहलू थे।
पहला - क्या Gyanvapi Mosque (ज्ञानवापी मस्जिद) का दोबारा सर्वे किया जाएगा? यदि हां तो कब? और
दूसरा- क्या कोर्ट कमिशनर अजय मिश्रा को बदला जाएगा? इसके जबाव मिल गए हैं। मुस्लिम पक्ष का आरोप था कि अजय मिश्रा पक्षपात कर रहे हैं। जिला जज के कोर्ट नंबर 4 में यह सुनवाई होगी।
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GYANVAPI DISPUTE :
पहले मंदिर था या मस्जिद ? WHAT IS GYANVAPI DISPUTE ?
GYANVAPI CONTROVERSY :
पहले किसे तोड़ा गया मंदिर को या मस्जिद को ?
GYANVAPI DISPUTE :
पहले मंदिर था या मस्जिद ?
WHAT IS GYANVAPI DISPUTE ?
मस्जिद और मंदिर CHIRAG GOTHI
CHIRAG GOTHI
Published on :
11 May, 2022, 2:13 pm
GYANVAPI DISPUTE : क्या है ज्ञानव्यापी विवाद का सच? क्यों इतना हंगामा बरपा है ?
GYANVAPI DISPUTE : पहले मंदिर था या मस्जिद ? WHAT IS GYANVAPI DISPUTE ?
कुएं का सच : मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानव्यापी कहा जाता है। इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम पड़ा। स्कंद पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था।
शिवजी ने यहीं अपनी पत्नी पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इस जगह का नाम ज्ञान का कुआं पड़ा। यह कुआं सीधे पौराणिक काल से जुड़ता है।
मंदिर और मस्जिद सटे हुए क्यों बने है : वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानव्यापी मस्जिद को लेकर विवाद गर्म है, लेकिन यहां सवाल ये है कि मंदिर और मस्जिद सटे हुए क्यों बने है ?
क्या मंदिर तुड़वा कर मस्जिद बनवाई गई थी ? कइयों का दावा है कि ज्ञानव्यापी मस्जिद को औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर तुड़वाकर बनवाया था।
213 साल पहले हुआ था विवाद : मंदिर-मस्जिद का ये विवाद वर्षों पुराना है और इसे लेकर 213 साल पहले दंगे भी हुए थे, लेकिन आजादी के बाद इस मुद्दे को लेकर कोई दंगा नहीं हुआ।
मस्जिद की जमीन मंदिर को दी जाए, क्यों ? हालांकि ज्ञानव्यापी को हटाकर उसकी जमीन काशी विश्वनाथ मंदिर को सौंपने को लेकर एक याचिका दायर हुई थी। पहली याचिका अयोध्या में राम मंदिर मुद्दा गर्माने के बाद 1991 में दाखिल हुई थी।
WHAT IS GYANVAPI DISPUTE ? : ताजा विवाद : ताजा विवाद ज्ञानव्यापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देवी-देवताओं की रोजाना पूजा-अर्चना को लेकर है। कोर्ट ने पूजा की मांग वाली याचिका के बाद मस्जिद में आर्कियोलॉजिकल सर्वे का आदेश दिया था। 18 अगस्त 2021 को 5 महिलाएं ज्ञानव्यापी मस्जिद परिसर में मां श्रृंगार गौरी, गणेश जी, हनुमान जी समेत परिसर में मौजूद अन्य देवताओं की रोजाना पूजा की इजाजत मांगते हुए कोर्ट पहुंची थीं। अभी यहां साल में एक बार ही पूजा होती है।
WHAT IS GYANVAPI DISPUTE ? : 26 अप्रैल 2022 को वाराणसी सिविल कोर्ट ने ज्ञानव्यापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देव विग्रहों के सत्यापन के लिए वीडियोग्राफी और सर्वे का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश के बावजूद मुस्लिम पक्ष के भारी विरोध की वजह से यहां 6 मई को शुरू हुआ 3 दिन के सर्वे का काम पूरा नहीं हो पाया। मुस्लिम पक्ष सर्वे के लिए मस्जिद के अंदर जाने को गलत बता रहा है। हिंदू पक्ष का कहना है कि शृंगार देवी के अस्तित्व के प्रमाण के लिए पूरे परिसर का सर्वे जरूरी है।
WHAT IS GYANVAPI ? : 2019 में विजय शंकर रस्तोगी ने वाराणसी जिला अदालत में ज्ञानव्यापी मस्जिद परिसर के आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की। इस याचिका का विरोध हुआ। इसी साल रस्तोगी ने हाईकोर्ट द्वारा स्टे नहीं बढ़ाने का हवाला देते हुए निचली अदालत से सुनवाई फिर शुरू करने की अपील की। यहां सुनवाई चल रही है।
अलग अलग राय ?
शुरू में क्या था मंदिर या मस्जिद ?
कितनी बार मंदिर टूटा, कितनी बार मस्जिद टूटी ?
कब कब किसने क्या क्या बनवाया ?
औरंगजेब ने बनवाई मस्जिद : 1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर का एक हिस्सा तोड़कर ज्ञानव्यापी मस्जिद बनवाई थी।
शर्की सुल्तान ने बनवाई मस्जिद : कुछ इतिहासकार कहते हैं कि 14वीं सदी में जौनपुर के शर्की सुल्तान ने मंदिर को तुड़वाकर ज्ञानव्यापी मस्जिद बनवाई थी।
अकबर ने मंदिर मस्जिद दोनों बनवाए : अकबर ने 1585 में नए मजहब दीन-ए-इलाही के तहत विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानव्यापी मस्जिद बनवाई थी।
मोहम्मद गोरी के सेनापति ने तुड़वा दिया था मंदिर : मूल विश्वनाथ मंदिर को 1194 में मोहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने तुड़वा दिया था।
गुजरात के व्यापारी ने बनवाया मंदिर : माना जाता है कि 1230 में गुजरात के एक व्यापारी ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।
अकबर के मंत्री ने कराया मंदिर का पुनर्निर्माण : 1447-1458 के बीच हुसैन शाह शरीकी या 1489-1517 के बीच सिकंदर लोदी ने मंदिर को फिर से ढहा दिया था। 1585 में अकबर के मंत्री टोडरमल ने विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया मंदिर का निर्माण : विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था।
हिंदुओं का दावा मंदिर को राजा विक्रमादित्य ने बनवाया : 1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशजों ने याचिका में कहा कि मूल मंदिर को 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था।
GYANVAPI KYA HAI ? : मस्जिद हिंदू और मुस्लिम आर्किटेक्चर का मिश्रण : ज्ञानव्यापी मस्जिद हिंदू और मुस्लिम आर्किटेक्चर का मिश्रण है। मस्जिद के गुंबद के नीचे मंदिर के स्ट्रक्चर जैसी दीवार नजर आती है। ये विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा है, जिसे औरंगजेब ने तुड़वा दिया था। ज्ञानव्यापी मस्जिद का प्रवेश द्वार भी ताजमहल की तरह ही बनाया गया है।
शिव पुराण में भी है काशी विश्वनाथ मंदिर का जिक्र
काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है। ये मंदिर यूपी के वाराणसी जिले में गंगा नदी के किनारे स्थित है।
मंदिर और मस्जिद आसपास, लेकिन रास्ते अलग
WHAT IS GYANVAPI DISPUTE ? : काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी की विश्वनाथ गली में गंगा नदी के किनारे स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानव्यापी मस्जिद आपस में सटी हुई है, लेकिन यहां आने-जाने के रास्ते अलग हैं। मंदिर का प्रमुख शिवलिंग 60 सेंटीमीटर लंबा और 90 सेंटीमीटर की परिधि में है। मुख्य मंदिर के आसपास काल-भैरव, कार्तिकेय, विष्णु, गणेश, पार्वती और शनि के छोटे-छोटे मंदिर हैं। मंदिर में 3 सोने के गुंबद हैं, जिन्हें 1839 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने लगवाया था। मंदिर-मस्जिद के बीच एक कुआं है, जिसे ज्ञानव्यापी कुआं कहा जाता है। 1983 से इस मंदिर का प्रबंधन उत्तर प्रदेश सरकार कर रही है।
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इतिहासकार डा रामप्रसाद सिंह और ज्ञानवापी मंदिर का इतिहास
इतिहासकार डॉ. राम प्रसाद सिंह का दावा है कि, 'पत्थर लगाकर दरवाजा बंद किया गया है अगर यह खोल दिया जाए तो यह गर्भ गृह की ओर जाता है, जो ठीक बीच वाले गुम्बद के नीचे है. नाम ज्ञानवापी है, मस्जिद कह ही नहीं सकते. मंदिर के मलबे से ही 3 गुम्बद बनाए गए, यह अयोध्या और मथुरा में भी हुआ था.
GYANVAPI DISPUTE : वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर के सर्वे पर आज कोर्ट फैसला सुनाएगी। इस फैसले से पहले ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है। सर्वे कर रहे वीडियोग्राफर विभाष दुबे के दावों के बाद अब इतिहासकार और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. राम प्रसाद सिंह ने भी ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर कई दावे किए हैं, लेकिन सवाल ये उठता है कि उनके दावे कितने दमदार है ?
क्या बोले इतिहासकार ?
ज्ञानवापी मस्जिद : इतिहासकार डॉ. राम प्रसाद सिंह ने इस मुद्दे पर सालों रिसर्च की है। उन्होंने कहा, 'यह मस्जिद नहीं है, मंदिर है, मेरे पास तस्वीरे हैं जो यह सच्चाई बयां करती हैं। मंदिर का अवशेष बचा हुआ है तस्वीर में साफ दिख रहा है। ऊपर की तरफ से मस्जिद में 3 गुम्बद बने हैं, वह मंदिर तोड़कर ही बने हैं, उसी मलबे से गुम्बद बना है।'
GYANVAPI DISPUTE : इतिहासकार डॉ. राम प्रसाद सिंह का दावा है कि, 'पत्थर लगाकर दरवाजा बंद किया गया है अगर यह खोल दिया जाए तो यह गर्भ गृह की ओर जाता है, जो ठीक बीच वाले गुम्बद के नीचे है। नाम ज्ञानवापी है, मस्जिद कह ही नहीं सकते। मंदिर के मलबे से ही 3 गुम्बद बनाए गए, यह अयोध्या और मथुरा में भी हुआ था। इसके अलावा एक तहखाना है। तहखाने की लंबाई 7 फीट है, तहखाने के अंदर टूटे हुए शिवलिंग और देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। वीडियोग्राफी होते ही यहां सारा सच खुल जाएगा।'
डॉ. राम प्रसाद सिंह के पास मौजूद है कई सबूत
GYANVAPI CASE : डॉ. राम प्रसाद सिंह ने कहा, 'मेरे पास मौजूद सारे फोटो 1991 से 1993 के बीच के हैं। श्रृंगार गौरी से आगे बढ़कर बाएं ओर बढ़ेंगे तो कुआं दिखेगा, यह 400 साल पहले नहीं था। आज उसे कूप बनाकर उसे ढक दिया गया है। नंदी की तस्वीर देखिए वह हमेशा शिव की ओर होते हैं, इसके भी वही हैं। नंदी का मुंह मूल ज्ञानवापी की तरफ है, यह एक सिग्नल था नंदी का कि इस मंदिर का जब भी उद्धार होगा इधर ही होगा।'
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सत्य के अन्वेषण से ज्ञानवापी को घबराहट क्यों…!!
- विनोद बंसल
काशी में मां श्रंगार गौरी के दर्शन पूजन के अधिकारों को पुन: प्राप्त करने के लिए हिन्दू समाज दशकों से प्रतीक्षा कर रहा है. इस संबंध में काशी के न्यायालय में वाद पर माननीय न्यायाधीश ने उस परिसर की वीडियोग्राफी और सर्वे का आदेश दिया. एडवोकेट कमिश्नर के माध्यम से यह कार्य होना है. किन्तु, न्यायालय द्वारा नियुक्त अधिकारी को तथाकथित मस्जिद परिसर में जाने से रोक दिया गया.
उसके पीछे उस ज्ञानवापी इंतजामियां कमेटी के सचिव ने जो चार तर्क दिए वे हैरान करने वाले हैं. उन्होंने कहा कि –
1. हम किसी गैर मुस्लिम को मस्जिद के अंदर नहीं घुसने देंगे.
2. क्योंकि कोर्ट ने हमारी बात नहीं सुनी. इसलिए, हम कोर्ट की बात नहीं सुनेंगे.
3. मस्जिद के अंदर की वीडियोग्राफी या फोटो खींचने से हमारी सुरक्षा को खतरा है. वह वीडियोग्राफी मार्केट में आ जाएगी.
4. चौथी और बेहद आपत्तिजनक तर्क था कि ऐसे तो यदि कोर्ट कहे कि मेरी गर्दन काट के ले आओ तो क्या कोर्ट द्वारा नियुक्त अधिकारी को मैं अपनी गर्दन काटकर दे दूंगा..!
इस तरह की बातों को कोई भी सभ्य समाज का व्यक्ति, जो कानून में विश्वास रखता है, कुतर्क या न्याय की राह में रोड़ा ही बताएगा. एक मस्जिद की इंतजामियां कमेटी द्वारा दिया गया यह वक्तव्य न्यायालय के लिए तो कोई महत्त्व नहीं रखता, किंतु विदेशी आक्रांताओं के समर्थकों की चाल, चरित्र व चेहरे को अवश्य उजागर करता है.
प्रश्न उठता है कि…
क्या भारत में मस्जिदों के अंदर न्यायालय या देश के कानून का पालन करने वाली संस्थाओं को भी जाने की अनुमति नहीं है?
क्या अब न्यायालय का भी रिलीजन देखा जाएगा?
क्या न्यायालय को सरेआम यह धमकी दिया जाना कि आपने हमारी बात नहीं सुनी, इसलिए हम आपकी बात नहीं सुनेंगे, उचित है? और;
न्यायालय के अधिकारी को गला काटने वाले से तुलना करना, क्या इस्लामिक कट्टरपंथियों, मुस्लिम युवाओं और देश विरोधियों को उकसाया जाना न्यायोचित है?
प्रश्न एक और भी है कि मस्जिद के अंदर और बाहर जमातियों की भीड़ जमाकर न्यायालय की कार्यवाही में बाधा डालने का पुरजोर प्रयास, क्या न्याय की अवहेलना या अवमानना नहीं?
मामला सिर्फ इतना ही नहीं है. देश की राजनीति में कुछ लोग जो मुस्लिम युवाओं को उकसाने का ही काम सतत करते हैं, जो सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के बारे में सोचते हैं. जिहादियों को ही प्रोत्साहन देते हैं, लेकिन बात संविधान कानून और न्याय व्यवस्था की करते हैं. ऐसे लोग भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए और बहती गंगा में हाथ धोने के लिए कूद पड़े. हैदराबाद के वकील कहते हैं कि 1991 के कानून को सरकार मान नहीं रही. प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के बारे में न्यायालय ने विचार किया और इस संबंध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय तक में सुनवाई हो चुकी है. लेकिन इसके बावजूद भी उसे ढाल बनाकर ढोल पीटना क्या शोभा देता है. सत्य के अन्वेषण पर प्रहार किया जा रहा है. बार-बार माननीय न्यायालय द्वारा नियुक्त कोर्ट कमिश्नर को, जिसको सिर्फ सर्वे और वीडियोग्राफी कर गोपनीय रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है, को ना सिर्फ रोका जा रहा है, बल्कि उसके ऊपर पक्षपाती होने के झूठे आरोप भी मढ़े जा रहे हैं.
परिसर के सर्वे से बचने के पीछे दो ही तर्क हो सकते हैं. एक तो उस कथित मस्जिद के अंदर कुछ ऐसा अनिष्ट कारक या गैरकानूनी जमावड़ा है, जैसा कि भारत की अनेक मस्जिद, मदरसों और मुस्लिम बहुल बस्तियों में अनेक बार देखने को आया है. जिनको छिपाया जाना उनके लिए बहुत जरूरी है. अन्यथा दूसरा कारण यह हो सकता है कि इनको विश्वास है कि यदि सर्वे हुआ तो सारी पोल पट्टी खुल जाएगी कि इस परिसर का मस्जिद से कोई लेना देना नहीं है. देश समझ रहा है कि ये लोग सत्य पर पर्दा डाल असत्य की ढाल ओढ़कर देश में सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने का एक कुत्सित प्रयास कर रहे हैं. जनता यह जानना चाहती है कि आखिरकार मस्जिद में ऐसा क्या सीक्रेट होता है, जिसे छिपाया जा रहा है और क्या किसी मस्जिद में आज तक कोई गैर मुस्लिम घुसा ही नहीं? क्या भारत की न्याय व्यवस्था पर आपको कोई विश्वास नहीं? क्या न्यायाधीश आपका गला काटने के लिए भेज रहे हैं?
देखिए माता श्रंगार गौरी के मंदिर में पूजा अर्चना और दर्शन के लिए एक दशक पहले तक सब कुछ सामान्य था. भक्त दर्शन-पूजन के लिए जाते ही थे. वह मंदिर मस्जिद के दीवाल के बाहरी हिस्से में बना हुआ है तो भी हिन्दुओं को पूजा अर्चना से वंचित क्यों किया जा रहा है? क्या देश के इस बहुसंख्यक समाज को अपने आराध्य देव की पूजा का भी अधिकार तथाकथित अल्पसंख्यक समुदाय नहीं देगा? क्या दुनिया को नहीं पता कि मुस्लिम आक्रांताओं ने बड़े पैमाने पर हिन्दू धर्म स्थलों को ध्वस्त कर उसके मलबे से अनेक प्रकार के इस्लामिक ढांचे तैयार किए जो वास्तव में इस्लाम की मान्यताओं के अनुसार भी नहीं थे? इस कथित मस्जिद के नाम से ही संपूर्ण विश्व को इस बात का ज्ञान हो जाता है कि आखिर इसका नाम ज्ञानवापी क्यों है? इसके विचित्र रूप और आसपास बनी मूर्तियों से स्वत: सिद्ध हो रहा है कि वहां पर हिन्दू आस्था के केंद्रों को तोड़ कर ही वह ढांचा बनाया गया था? जो लोग शांति और भाईचारे की बात करते हैं, गंगा जमुना संस्कृति की बात करते हैं, मिल बैठकर बात करने की बात करते हैं वो उन्हें क्यों नहीं समझाते कि आखिरकार हिन्दू मान्यताओं के विश्व प्रसिद्ध आराध्य देव भगवान शंकर की इस पवित्र स्थली को, इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा तोड़े जाने के पाप का परिमार्जन करें, और यदि न्यायालय का ही रास्ता अपनाना है तो न्याय के मार्ग में कम से कम रोड़ा ना बनें. जिस सत्य की खोज के लिए न्यायालय ने पहली सीढ़ी चढ़ी है, उस सीढ़ी को काटने का दुष्प्रयास ना करें. देश अब जाग रहा है. इसको अब और भ्रमित नहीं किया जा सकता. इसलिए सभी भारतीय सच्चाई के साथ सहृदयता पूर्वक सौहार्द के साथ तभी रह पाएंगे जब हम एक दूसरे की मान्यताओं परंपराओं और विश्वास की बहाली करें. विदेशी आक्रांताओं के साथ स्वयं को या अपने परिजनों व समाज को जोड़ने के पाप से दूर रहें.
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