मंहगाई रोकनें की भूमिका में सी एम और डी एम क्यों सक्रीय नहीं होते - अरविन्द सिसौदिया

 
मंहगाई रोकनें की भूमिका में सीएम और डी
एम क्यों सक्रीय नहीं होते - अरविन्द सिसौदिया
Why are CM and DM not active in the role of preventing inflation - Arvind Sisodia

अरविन्द सिसौदिया

 केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय की तरफ से 12-5-2022 को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार अप्रैल महीने में खुदरा महंगाई दर (Retail Inflation Rate) बढ़कर 7.79% रही जो पिछले आठ सालों में सबसे ज्यादा है। मंत्रालय के मुताबिक मार्च 2022 में खदुरा महंगाई दर 6.95 प्रतिशत थी।

-------

मंहगाई रोकनें की भूमिका में सीएम और डीम क्यों सक्रीय नहीं होते - अरविन्द सिसौदिया


मंहगाई का अर्थ गणित हजारों साल से चल रहा है, ज्योतिष में तेजी मंदी की विशेष भविष्यवाणी भी होती है। सट्टा बाजार में भी स्वभाव से तेजडिया और मंदडिया व्यापारी होते हैं। देश की स्वतंत्रता के पश्चात से ही मंहगाई बढती रहती है, यह मुद्दा भी बनती है। मगर इसे कोई कम नहीं कर पाता क्यों कि इसमें मुख्य भूमिका माल की कमी या माल को बाजार से गायब कर लिया जाना होता है।

कोराना के बाद और रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में मंहगाई आनें की संभावना बनीं हुई थी। श्रीलंका और पाकिस्तान में मंहगाई ने सत्ता परिवर्तन करवा दिये है।

भारत में आलू प्याज और टमाटर ने मंहगाई के कई बार रिकार्ड तोडे है। इन पर सरकारें भी जाती देखीं है। आलू प्याज पर दिल्ली से भाजपा सरकार गई जो आज तक वापसी नहीं कर पाई।

सवाल यह है कि मंहगाई विश्वस्तर पर माल उपलब्धता एवं सप्लाई चौन पर निर्भर करती है किन्तु इसको अंदाजे मात्र से बडा कर मुनाफा कमाना क्या जायज है ? भारत के व्यापार सिस्टम में लाभ कमानें की असीमित आजादी है। कल रात्रि को 10 रूपये में आधा गिलास गन्ने का रस देनें वाला, सुबह एक दम 15 रूपये कर देता है तो उससे कोई पूछनें वाला नहीं कि उसने इस तरह की मंहगाई कैसे बढा दी। यूक्रेन से युद्ध के दस मिनिट के अंदर खाद्ध तेल के पीपे पर सीधे सीधे भयंकर मूल्यवृद्धि कर मुनाफा बटोरो गया और माल भी कुछ दिन गायब रहा । इस तरह की अनेकों मंहगाईयां जो बिना किसी बाजिव कारण के बड जातीं हैं। उन्हे रोकनें की भूमिका पीएम की तो हो नहीं सकती , हां डीएम चाहें तो इसे बहुत आसानी से रोक सकते है। मगर राज्य सरकारों को इससे मतलब नहीं होता है।

एक बार मूल्य बढ जानें के बाद वे सस्ते भी हो जाते हैं तो बहुत दिनों तक खुदरा व्यापारी उसे सस्ता नहीं करता । वहीं किसानों से समर्थन मूल्य पर वस्तुओं की खरीद में किसान को क्या उगाना चाहिये और सरकार को क्या खरीदना चाहिये इसका कोई पैमाना नहीं है, कोई नीति नहीं है। किसान को खुश रखनें का मतलब आम जन को जहर देदेना तो नहीं हो सकता। सरकारों को तय करना चाहिये कि अगले साल हमें किन किन  वस्तुओं की जरूरत है, उन्हे ही बोया जाये उन्हे ही खरीदा जाये। तो काफी मंहगाई नियंत्रित हो सकती है।
मंहगाई के अन्य कारणों में बाजार में नगदी का ज्यादा होना भी होता है, जिससे मंहगाई बडानें के लिये स्टाक किया जाता है, वस्तु उपलब्धता कम करके बाजार में मूल्य वृद्धि कर लाभ बटोरा जाता है। ऐसा ही कम ब्याज दर में उधार मिलनें पर भी होता है। इसी तरह स्टाक करनें की अधिकतम सीमा नहीं घटानें से भी होता है। इसके लिये घटती दर पर प्रत्येक माह की स्टाक लिमिट तय करनी चाहिये ताकि नई फसल आनें तक माल बाजार में उपलब्धता रहे। सच यह है कि उत्पादन,भण्डारण,विपणन,पूर्व अनुमान,वैकल्पिक संसाधनों एवं अधिकतम लाभ को लेकर कोई वैज्ञानिक सिस्टम अभी तक दुनिया में विकसित ही नहीं हुआ है। हर तरफ मनमर्जी विराजमान है। तेल देश जब चाहें अपनी दादागिरी करते है। तकनीकी देश अपनी तरह की शर्तों पर माल देते है। कृषि उत्पादनों की खरीद एवं वितरण में मुनाफाखोरी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है।

सवाल वहीं खडा है कि मंहगाई रोकनें की भूमिका में
सीएम और डीएम क्यों सक्रीय नहीं होते,क्या राजनीति की चक्की में जनता को ही पीसनें का क्रम चलता रहेगा। अभी देखा जाये तो विपक्ष की दिलचस्पी मंहगाई रोकनें की नहीं है, उसे तो केन्द्र सरकार को नीचा दिखानें में दिलचस्पी है। जनता को यह भी समझना होगा।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी

इंडी गठबन्धन तीन टुकड़ों में बंटेगा - अरविन्द सिसोदिया

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism