राहुल गांधी का चीन-गुणगान क्या एम ओ यू के कारण

राहुल गांधी क्या चीन के किसी षडयंत्र को आगे बडा रहे हैं।

राहुल गांधी के मुंह से अक्सर वह बात सामनें आती है, जिसे चीन स्वयं न बोल कर किसी भारतीय के द्वारा बुलवाना चाहता है। साम्यवाद से मोतीलाल जी नेहरू  एवं जवाहरलाल जी नेहरू के भी गहरे सम्बंध रहे है। वे तब सोवियत रूस जाया करते थे। आजादी के बाद जो विश्वस्तरीय सैन्य गुट बना उसमें भी भारत सोवियत रूस गुट में रहा जबकि पाकिस्तान अमेरिका-ब्रिटेन के सैन्य गुट में था। भारत में कांग्रेस सत्ता में रही मगर उसने साम्यवादी विचारधारा एवं इतिहासकारों को बुद्धिजीवियों को लगातार संरक्षण ही दिया है। साम्यवादी चीन से भी जवाहरलाल नेहरू जी के गहरे सम्बंध रहे हैं।

सोनिया गांधी जी के बाद कांग्रेस का झुकाव अमेरिका के पक्ष में हुआ और परमाणु समझौते पर कांग्रेस और कम्युनिष्ट आमने सामने भी हुये। लेकिन चीन के साथ हुये राजनैतिक दल के नाते समझौते के बाद कांग्रेस की आवाज चीन प्रेम से ही लबरेज रहती है।

जो भी राहुल जी बोलते हैं वह लगभग वही होता है जो चीन की इच्छा है। सवाल यही खडा होता है कि क्या चीन भारत में कोई और बडे षडयंत्र की ओर बड रहा है। जिसके लिये वह कांग्रेस का इस्तेमाल कर रहा है। अन्यथा इस बात की क्या जरूरत आन पडी कि भारत राज्यों का संघ है। इस बेबजह की बहस को छेडनें का क्या मकसद----?

 

सवालों के घेरे में राहुल का चीनी पार्टी के साथ 2008 का समझौता, कांग्रेस-चीन के बीच का प्यार छिपाए नहीं छिपता! 

 राहुल गांधी चीन के गुणगान एम ओ यू जो है।
एम ओ यू को लेकर छपी एक रिपोर्ट
सवालों के घेरे में राहुल का चीनी पार्टी के साथ 2008 का समझौता,
कांग्रेस-चीन के बीच का प्यार छिपाए नहीं छिपता!

 - अभिनय आकाश जून 24, 2020   

सवालों के घेरे में राहुल का चीनी पार्टी के साथ 2008 का समझौता, कांग्रेस-चीन के बीच का प्यार छिपाए नहीं छिपता!
देशों के बीच तो आपने एमओयू यानी मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग तो कई बार सुने और पढ़े होंगे। लेकिन आपने दो राजनीतिक पार्टियों के बीच एमओयू जैसी चीजों के बारे में नहीं सुना होगा। दरअसल, ये समझौता ज्ञापन कांग्रेस और चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुआ है।

भारत-चीन के बीच तनाव का दौर जारी है। दोनों देशों के बीच 1962 में एक बार जंग हो चुकी है। वहीं 1965 और 1975 में भी दोनों देशों के बीच हिंसक झड़पें हुई हैं। इन तारीख़ों के बाद ये चौथा मौका है जब भारत-चीन सीमा पर स्थिति इतनी तनावपूर्ण है। ऐसे वक्त में जब सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर चीन से मुकाबला करना चाहिए। लेकिन कांग्रेस पार्टी लगातार भारत की सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर है। राहुल गांधी के हमलों को देखकर लग रहा होगा कि वह देश में चीनी घुसपैंठ को लेकर सरकार से सवाल जवाब कर रहे हैं। लेकिन राहुल गांधी के ट्विटर संदेशों के लहजे से साफ पता चलता है कि वह देश की जनता को ये संदेश देना चाहते हैं कि भारतीय सीमाओं में चीनी सेना घुस गई है और देश की सुरक्षा खतरे में है।


ओपन सोर्स इंटेलिजेंस अनैलिस्ट Detresfa ने सैटलाइट तस्वीरों के आधार पर खुलासा किया था कि चीन की सेना भारतीय सीमा के अंदर घुस ही नहीं पाई। इसके अलावा प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री बार-बार ये कह चुके हैं कि भारत की सीमा में कोई दाखिल नहीं हुआ है। लेकिन इन सब दावों, तथ्यों और बातों से बेपरवाह राहुल देश को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि चीन की सेना भारत की सीमा में घुस चुकी है।


अमूमन राहुल गांधी चीन को लेकर अलग रुख़ रखते रहे हैं। जब डोकलाम में भारत और चीन की सेनाएं आंखों में आंखे डालकर एक-दूसरे के सैनिकों की सेहत का अंदाज़ा लगा रही थी, तो राहुल गांधी ने चीन के राजदूत से मिलकर राजनीतिक हड़कंप मचा दिया था। तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राहुल गांधी पर चीन के साथ गुपचुप बातचीत करके भारत का पक्ष कमज़ोर करने का आरोप लगाया था। लोकसभा चुनाव 2019 के वक्त राहुल गांधी जब मानसरोवर यात्रा पर गए थे, तो चीनी दूतावास ने भारतीय विदेश मंत्रालय से आग्रह किया था, कि उन्हें प्रोटोकॉल देते हुए औपचारिक रुप से विदा करने की अनुमति दी जाए।  ऐसे में राहुल के चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी से कथित संबंधों को लेकर लगातार सवाल उठते हैं।


कांग्रेस और चीनी पार्टी के बीच 2008 की साइन एमओयू

देशों के बीच तो आपने एमओयू यानी मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग तो कई बार सुने और पढ़े होंगे। लेकिन आपने दो राजनीतिक पार्टियों के बीच एमओयू जैसी चीजों के बारे में नहीं सुना होगा। दरअसल, ये समझौता ज्ञापन कांग्रेस और चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुआ है। कांग्रेस ने 7 अगस्त 2008 को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के साथ एक एमओयू साइन किया। शी जिनपिंग उस वक्त सीपीसी के जनरल सेक्रेटरी हुआ करते थे। 2008 में सोनिया गांधी के सुपरविजन में एमओयू पर कांग्रेस के तत्तकालीन जनरल सेक्रेट्री राहुल गांधी इस ज्ञापन पर साइन करते हैं। राहुल के दस्तख़त किए जाने से पहले उन्होंने और सोनिया गांधी ने शी चिनपिंग के साथ एक अलग मीटिंग भी की थी। यह समझौता उस वक़्त हुआ जब भारत की कम्यूनिस्ट पार्टियां कांग्रेस सरकार से नाराज़ चल रही थीं। अमेरिका से परमाणु क़रार को लेकर दोनों में अनबन थी।


राहुल का चीन कनेक्शन?
भारतीय उद्योगपतियों के साथ हुई एक बैठक में राहुल गांधी ने उन्हें चीन से भी निवेश मंगाए जाने के बारे में सलाह दी थी।
राहुल गांधी जब जर्मनी के दौरे पर थे तो उनसे भारतीय उपमहाद्वीप में सत्ता संतुसन को लेकर सवाल किया गया था। जिसके जवाब में राहुल में भारत को अमेरिका के साथ चीन से भी अपने संबंधों में संतुलन साधने की वकालत की थी।

साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक के समय तत्कालीन कांग्रेस और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को ही नहीं बल्कि नाती-पोतों सहित उनके पूरे परिवार को चीन ने विशेष रुप से आमंत्रित किया था।

जवाहर लाल नेहरू और चीन
नेहरू हमेशा से चीन से बेहतर ताल्लुक़ चाहते थे और च्यांग काई शेक से उनकी अच्छी पटरी बैठती थी। इतिहास के हवाले से कई दावें ऐसे भी हैं कि जवाहर लाल नेहरू की गलती की वजह से भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता ठुकरा दी और अपनी जगह ये स्थान चीन को दे दिया। उस दौर में आदर्शवाद और नैतिकता का बोझ पंडित नेहरू पर इतना था कि वो चीन को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिलवाने के लिए पूरी दुनिया में लाबिंग करने लगे। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा दिया था और जवाब में भारत को 1962 के युद्ध का दंश झेलना पड़ा था।


 

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