पराक्रमी देशभक्त - महाराणा प्रताप Mighty Patriot - Maharana Pratap


Mighty Patriot - Maharana Pratap

पराक्रमी देशभक्त - महाराणा प्रताप 
_ विनोद बंसल
देश और धर्म की रक्षा के लिए प्रण-पण से अपने आपको आहूत कर देने वाले महान पुरूषों में मेवाड सपूत महाराणा प्रताप का नाम सदा अग्रणी रहा है। जब मुगलों के आतंक व अत्याचार के चलते लोग हताश हो रहे थे ऐसे समय वीर बालक महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की भूमि को मुगलों के चंगुल से छुड़ाने हेतु न सिर्फ वीरता पूर्वक संघर्ष किया बल्कि समस्त देशवासियों के लिए एक अनन्य प्रेरणा का संचार किया।
ज्येष्ठ शुक्ल तीज सम्वत् 1597 को मेवाड़ के राजा उदय सिंह के घर जन्मे उनके ज्येष्ठ पुत्र महाराणा प्रताप को बचपन से ही अच्छे संस्कार, अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान और धर्म की रक्षा की प्रेरणा अपने माता-पिता से मिली। उन दिनों दिल्ली में सम्राट अकबर का राज्य था जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था। मेवाड़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाने हेतु महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा, स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा किन्तु, अकबर का अधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करूंगा। 1576 में हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच ऐसा युद्ध हुआ जो पूरे विश्व के लिए आज भी एक मिसाल है। अभूतपूर्व वीरता और मेवाड़ी साहस के चलते मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिये और सैकड़ों अकबर के सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया।
बालक प्रताप जितने वीर थे उतने ही पितृ भक्त भी थे। पिता राणा उदयसिंह अपने कनिष्ठ पुत्र जगमल को बहुत प्यार करते थे। इसी कारण वे उसे राज्य का उत्ताराधिकारी घोषित करना चाहते थे। रामायण के प्राण धन भगवान श्रीराम के राज्य त्याग व वनवास के आदर्श के सदा पुजारी रहे महाराणा प्रताप ने पिता के इस निर्णय का तनिक भी विरोध नहीं किया। उनके मन में बाल्यावस्था से ही सदा यही बात खटकती थी कि भरत भूमि विदेशियों की दास्तां की बेड़ियों में सिसक रही है। स्वदेश मुक्ति की योजना में वे सदा चिंतनशील रहते थे। कभी-कभी बालक प्रताप महाराणा कुंभ के विजय स्तम्भ की परिक्रमा कर मेवाड़ की धूलि मस्तक पर लगा, कहा करते थे कि, ”मैने वीर छत्राणी का दुग्ध पान किया है। मेरे रक्त में राणा सांगा का ओज प्रवाहित है। चित्तौड़ के विजय स्तम्भ ! मैं तुमसे स्वतंत्रता और मातृ भूमि भक्ति की शपथ लेकर कहता हूं कि तुम सदा उन्नत और सिासौदिया गौरव के विजय प्रतीक बने रहोगे। शत्रु तुम्हे अपने स्पर्श से मेरे रहते अपवित्र नहीं कर सकते।”
जंगल-जंगल भटकते हुए तृण-मूल व घास-पात की रोटियों में गुजर बसर कर पत्नी व बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया। पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा खजाना समर्पित कर दिया। तो भी, महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने की एक पाई भी नहीं चाहिए। ऐसे पराक्रमी भारत मां के वीर सपूत महाराणा प्रताप को जन्म दिन तिथि के अनुसार (4 जून) पर राष्ट्र का शत्-शत् नमन।

1 महाराणा प्रताप: सूरवीर राष्ट्रभक्त 
2 वीर सपूत महाराणा प्रताप
3 महाराणा प्रताप की जयंती
महाराणा प्रताप कठे
http://arvindsisodiakota.blogspot.in/2010/06/blog-post_15.html 


महाराणा प्रताप वीरता के परिचायक
महाराणा प्रताप ने एक प्रतिष्ठित कुल के मान-सम्मान और उसकी उपाधि को प्राप्त किया। परन्तु उसके पास न तो राजधानी थी और न ही वित्तीय साधन। बार बार की पराजयों ने उसके स्वबन्धुओं और जाति के लोगों को निरुत्साहित कर दिया था। फिर भी उसके पास अपने वंशजों का स्वाभिमान था। उसने सत्तारूढ़ होते ही चित्तौड़ के उद्धार, कुल के सम्मान की पुनर्स्थापना तथा उसकी शक्ति को प्रतिष्ठित करने की तरफ़ अपना ध्यान केन्द्रित किया। इस ध्येय से प्रेरित होकर वह अपने प्रबल शत्रु के विरुद्ध जुट गये। उनने इस बात की चिन्ता कभी नहीं की कि परिस्थितियाँ उसके कितने प्रतिकूल हैं।

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