सृष्टि के आदि पत्रकार देवर्षि नारद जी की प्राशंगिता,वर्तमान युग में कहीं अधिक उपयोगी है - अरविन्द सिसौदिया Narad ji

 


सृष्टि के आदि पत्रकार देवर्षि नारद जी की प्राशंगिता,वर्तमान युग में कहीं अधिक उपयोगी है - अरविन्द सिसौदिया

 
The relevance of Devarshi Narad ji, the first journalist of the universe, is more useful in the present era - Arvind Sisodia

भारत आजाद हुआ मगर उसे वास्तविक आजादी से बंचित रखा गया, कांग्रेस ने गुप्त षडयंत्र के तहत भारत में इस्लाम को मजबूत करनें पर ध्यान दिया और हिन्दू मूल्यों का क्षरण योजनाबद्ध तरीके से करवाया गया। 

 
India became independent but was deprived of real freedom, Congress focused on strengthening Islam in India under a secret conspiracy and the erosion of Hindu values ​​was done in a systematic manner.

यह एक लम्बा विषय है। किन्तु इसी षडयंत्र के तहत मुम्बई फिल्म इन्ड्रस्टी जिस पर मुस्लिम बर्चस्व था ने देवर्षि नारद जी को भी बहुत अपमानित किया और उनकी महानताओं के साथ अन्याय किया। 

 
This is a long topic. But under this conspiracy, the Mumbai film industry, which was dominated by Muslims, humiliated Devarshi Narad ji a lot and did injustice to his greatness.


जब पृथ्वी पर यूरोप सहित कई महादीप बर्फ में दबे हुये थे, तब भी भारत में मीडिया के महत्व को जाना जाता था। ईश्वर नें देवताओं की समाज व्यवस्था में पत्रकारिता, मीडिया अथवा समाचार संचालन व्यवस्था आदि व्यवस्थित थी, इसका प्रमाण देवर्षि नारद जी हैं। जिस पर भारतीय संस्कृति को गौरव है।

 
Even when many continents on Earth, including Europe, were buried in ice, the importance of media in India was well known. God had organized journalism, media or news management system in the social system of the gods, the proof of this is Devarshi Narad ji. On which Indian culture is proud.

 वे सत्य के प्रति दृड़़ता का संदेश देते हैं। समाज सुधार एवं संमाज कंटकों के संहार का संदेश देते हैं। वे समस्या समाधान में मध्यस्था एवं सुशासन हेतु इन्टव्यू के माध्यम से शासन व्यवस्था के सुधारका का, नीति का, धर्म का एवं ज्ञान का संदेश देते है। वे सत्य एवं न्याय की कसौटी पर सभी को कसते हैं किसी से भी अपना या परायापन नहीं करते हैं। वे हमेशा प्रभुसत्ताओं से अप्रभावित होकर सत्य के साथ रहे है। यही सत्य आज की पत्रकारिता के लिये महत्वपूर्ण एवं प्रेरणास्पद है।

 
They give the message of firmness to the truth. Gives the message of social reform and destruction of social thorns. They give the message of reform of governance, policy, religion and knowledge through mediation in problem solving and interview for good governance. He tightens everyone on the test of truth and justice, does not take himself or alienation from anyone. He has always been with the truth, unaffected by the sovereignty. This truth is important and inspirational for today's journalism.

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* देवर्षि नारद
* सहबद्धता हिन्दू देवता, देवर्षि, मुनि
* मंत्र नारायण नारायण
* शस्त्र वीणा
* वाहन त्रैलोक्य
* संवाद
• सम्पादन

          नारद मुनि, हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रो मे से एक है। उन्होने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों मे से एक माने जाते है।

देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के २६वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है - देवर्षीणाम्चनारद:। देवर्षियों में मैं नारद हूं। श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है, सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र

का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है।
वायुपुराण में देवर्षि के पद और लक्षण का वर्णन है- देवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाले ऋषिगण देवर्षिनाम से जाने जाते हैं। भूत, वर्तमान एवं भविष्य-तीनों कालों के ज्ञाता, सत्यभाषी,स्वयं का साक्षात्कार करके स्वयं में सम्बद्ध, कठोर तपस्या से लोकविख्यात,गर्भावस्था में ही अज्ञान रूपी अंधकार के नष्ट हो जाने से जिनमें ज्ञान का प्रकाश हो चुका है, ऐसे मंत्रवेत्तातथा अपने ऐश्वर्य (सिद्धियों) के बल से सब लोकों में सर्वत्र पहुँचने में सक्षम, मंत्रणा हेतु मनीषियोंसे घिरे हुए देवता, द्विज और नृपदेवर्षि कहे जाते हैं।

इसी पुराण में आगे लिखा है कि धर्म, पुलस्त्य,क्रतु, पुलह,प्रत्यूष,प्रभास और कश्यप - इनके पुत्रों को देवर्षिका पद प्राप्त हुआ। धर्म के पुत्र नर एवं नारायण, क्रतु के पुत्र बालखिल्यगण,पुलहके पुत्र कर्दम, पुलस्त्यके पुत्र कुबेर, प्रत्यूषके पुत्र अचल, कश्यप के पुत्र नारद और पर्वत देवर्षि माने गए, किंतु जनसाधारण देवर्षिके रूप में केवल नारदजी को ही जानता है। उनकी जैसी प्रसिद्धि किसी और को नहीं मिली। वायुपुराण में बताए गए देवर्षि के सारे लक्षण नारदजी में पूर्णत:घटित होते हैं।

महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारदजी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है - देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्‍‌वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानोंकी शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबलसे समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, क‌र्त्तव्य-अक‌र्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं।

अट्ठारह महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है। मत्स्यपुराण में वर्णित है कि श्री नारदजी ने बृहत्कल्प-प्रसंग में जिन अनेक धर्म-आख्यायिकाओं को कहा है, २५,००० श्लोकों का वह महाग्रंथ ही नारद महापुराण है। वर्तमान समय में उपलब्ध नारदपुराण २२,००० श्लोकों वाला है। ३,००० श्लोकों की न्यूनता प्राचीन पाण्डुलिपि का कुछ भाग नष्ट हो जाने के कारण हुई है। नारदपुराण में लगभग ७५० श्लोक ज्योतिषशास्त्र पर हैं। इनमें ज्योतिष के तीनों स्कन्ध-सिद्धांत, होरा और संहिता की सर्वागीण विवेचना की गई है। नारदसंहिता के नाम से उपलब्ध इनके एक अन्य ग्रंथ में भी ज्योतिषशास्त्र के सभी विषयों का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि देवर्षिनारद भक्ति के साथ-साथ ज्योतिष के भी प्रधान आचार्य हैं। आजकल धार्मिक चलचित्रों और धारावाहिकों में नारदजी का जैसा चरित्र-चित्रण हो रहा है, वह देवर्षि की महानता के सामने एकदम बौना है। नारदजी के पात्र को जिस प्रकार से प्रस्तुत किया जा रहा है, उससे आम आदमी में उनकी छवि लडा़ई-झगडा़ करवाने वाले व्यक्ति अथवा विदूषक की बन गई है। यह उनके प्रकाण्ड पांडित्य एवं विराट व्यक्तित्व के प्रति सरासर अन्याय है। नारद जी का उपहास उडाने वाले श्रीहरि के इन अंशावतार की अवमानना के दोषी है।

भगवान की अधिकांश लीलाओं में नारदजी उनके अनन्य सहयोगी बने हैं। वे भगवान के पार्षद होने के साथ देवताओं के प्रवक्ता भी हैं। नारदजी वस्तुत: सही मायनों में देवर्षि हैं।
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आदि पत्रकार : देवर्षि नारद जी
- अरविन्द सिसोदिया
कोटा में सृष्टि के प्रथम पत्रकार देवर्षि नारद जी  की जयंती के अवसर पर , १९ मई गुरुवार को सायं ६ बजे मानव विकास भवन , विश्व हिन्दू परिषद् कार्यालय में राष्ट्र चेतना अभियान  समिति के द्वारा  सी  ए  डी रोड पर आयोजित की गई है | सभी व्यक्ती इस में आ सकते हैं |
देवर्षि नारद जी सिर्फ ब्रह्माण्ड की ईश्वरीय व्यवस्था के सूचना तंत्र मात्र ही नहीं थे बल्कि वे बहुत सी समस्याओं का निदान भी करवाते थे | कलयुग में दुःखी  प्राणियों के लिए श्रीमद भागवत के माध्यम से कष्टों के निवारण और भगवान की भक्ति का मार्ग प्रशस्त करने वाले  देवर्षि नारद जी ही हैं !
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रो मे से एक है। उन्होने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों मे से एक माने जाते है।
देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के २६वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है - देवर्षीणाम्चनारद:। देवर्षियों में मैं नारद हूं। श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है, सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है।
महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारदजी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है - देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्‍‌वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानोंकी शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबलसे समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, क‌र्त्तव्य-अक‌र्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं।
अट्ठारह महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है। मत्स्यपुराण में वर्णित है कि श्री नारदजी ने बृहत्कल्प-प्रसंग में जिन अनेक धर्म-आख्यायिकाओं को कहा है, २५,००० श्लोकों का वह महाग्रंथ ही नारद महापुराण है। वर्तमान समय में उपलब्ध नारदपुराण २२,००० श्लोकों वाला है। ३,००० श्लोकों की न्यूनता प्राचीन पाण्डुलिपि का कुछ भाग नष्ट हो जाने के कारण हुई है। नारदपुराण में लगभग ७५० श्लोक ज्योतिषशास्त्र पर हैं। इनमें ज्योतिष के तीनों स्कन्ध-सिद्धांत, होरा और संहिता की सर्वागीण विवेचना की गई है। नारदसंहिता के नाम से उपलब्ध इनके एक अन्य ग्रंथ में भी ज्योतिषशास्त्र के सभी विषयों का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि देवर्षिनारद भक्ति के साथ-साथ ज्योतिष के भी प्रधान आचार्य हैं। आजकल धार्मिक चलचित्रों और धारावाहिकों में नारदजी का जैसा चरित्र-चित्रण हो रहा है, वह देवर्षि की महानता के सामने एकदम बौना है। नारदजी के पात्र को जिस प्रकार से प्रस्तुत किया जा रहा है, उससे आम आदमी में उनकी छवि लडा़ई-झगडा़ करवाने वाले व्यक्ति अथवा विदूषक की बन गई है। यह उनके प्रकाण्ड पांडित्य एवं विराट व्यक्तित्व के प्रति सरासर अन्याय है। नारद जी का उपहास उडाने वाले श्रीहरि के इन अंशावतार की अवमानना के दोषी है। भगवान की अधिकांश लीलाओं में नारदजी उनके अनन्य सहयोगी बने हैं। वे भगवान के पार्षद होने के साथ देवताओं के प्रवक्ता भी हैं। नारदजी वस्तुत: सही मायनों में देवर्षि हैं।
विभिन्न धर्म ग्रंथों  में ......
नारद मुनि को देवर्षि कहा गया है। विभिन्न धर्मग्रन्थों में इनका उल्लेख आता है। कुछ उल्लेख निम्न हैं:

    अथर्ववेद के अनुसार नारद नाम के एक ऋषि हुए हैं।
    ऐतरेय ब्राह्मण के कथन के अनुसार हरिशचंद्र के पुरोहित सोमक, साहदेव्य के शिक्षक तथा आग्वष्टय एवम् युधाश्रौष्ठि को अभिशप्त करने वाले भी नारद थे।
    मैत्रायणी संहिता में नारद नाम के एक आचार्य हुए हैं।
    सामविधान ब्राह्मण में बृहस्पति के शिष्य के रू प में नारद का वर्णन मिलता है।
    छान्दोग्यपनिषद् में नारद का नाम सनत्कुमारों के साथ लिखा गया है।
    महाभारत में मोक्ष धर्म के नारायणी आख्यान में नारद की उत्तरदेशीय यात्रा का विवरण मिलता है। इसके अनुसार उन्होंने नर-नारायण ऋषियों की तपश्चर्या देखकर उनसे प्रश्न किया और बाद में उन्होंने नारद को पांचरात्र धर्म का श्रवण कराया।
    नारद पंचरात्र के नाम से एक प्रसिद्ध वैष्णव ग्रंथ भी है जिसमें दस महाविद्याओं की कथा विस्तार से कही गई है। इस कथा के अनुसार हरी का भजन ही मुक्ति का परम कारण माना गया है।
    नारद पुराण के नाम से एक ग्रंथ मिलता है। इस ग्रंथ के पूर्वखंड में 125 अघ्याय और उत्तरखण्ड में 182 अघ्याय हैं।
    कुछ स्मृतिकारों ने नारद का नाम सर्वप्रथम स्मृतिकार के रू प में माना है।
    नारद स्मृति में व्यवहार मातृका यानी अदालती कार्रवाई और सभा अर्थात न्यायालय सर्वोपरि माना गया है। इसके अलावा इस स्मृति में ऋणाधान ऋण वापस प्राप्त करना, उपनिधि यानी जमानत, संभुय, समुत्थान यानी सहकारिता, दत्ताप्रदानिक यानी करार करके भी उसे नहीं मानने, अभ्युपेत्य-असुश्रुषा यानी सेवा अनुबंध को तोड़ना है। वेतनस्य अनपाकर्म यानी काम करवाके भी वेतन का भुगतान नहीं करना शामिल है। नारद स्मृति में अस्वामी विक्रय यानी बिना स्वामित्व के किसी चीज का विक्रय कर देने को दंडनीय अपराध माना है। विक्रिया संप्रदान यानी बेच कर सामान न देना भी अपराध की कोटि में है। इसके अतिरिक्त क्रितानुशय यानी खरीदकर भी सामान न लेना, समस्यानपाकर्म यानी निगम श्रेणी आदि के नियमों का भंग करना, सीमाबंद यानी सीमा का विवाद और स्त्रीपुंश योग यानी वैवाहिक संबंध के बारे में भी नियम-कायदों की चर्चा मिलती है। नारद स्मृति में दायभाग यानी पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकार और विभाजन की चर्चा भी मिलती है। इसमें साहस यानी बल प्रयोग द्वारा अपराधी को दंडित करने का विधान भी है। नारद स्मृति वाक्पारूष्य यानी मानहानि करने, गाली देने और दण्ड पारूष्य यानी चोट और क्षति पहुंचाने का वर्णन भी करती है। नारद स्मृति के प्रकीर्णक में विविध अपराधों और परिशिष्ट में चौर्य एवं दिव्य परिणाम का निरू पण किया गया है। नारद स्मृति की इन व्यवस्थाओं पर मनु स्मृति का पूर्ण प्रभाव दिखाई देता है।
    श्रीमद्भागवत और वायुपुराण के अनुसार देवर्षि नारद का नाम दिव्य ऋषि के रू प में भी वर्णित है। ये ब्रह्मधा के मानस पुत्र थे। नारद का जन्म ब्रह्मधा की जंघा से हुआ था। इन्हें वेदों के संदेशवाहक के रू प में और देवताओं के संवाद वाहक के रू प में भी चित्रित किया गया है। नारद देवताओं और मनुष्यों में कलह के बीज बोने से कलिप्रिय अथवा कलहप्रिय कहलाते हैं। मान्यता के अनुसार वीणा का आविष्कार भी नारद ने ही किया था।
    ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार मेरू के चारों ओर स्थित बीस पर्वतों में से एक का नाम नारद है।
    मत्स्य पुराण के अनुसार वास्तुकला विशारद अठारह आचार्यो में से एक का नाम भी नारद है। चार शक्ति देवियों में से एक शक्ति देवी का नाम नारदा है।
    रघुवंश के अनुसार लोहे के बाण को नाराच कहते हैं। जल के हाथी को भी नाराच कहा जाता है। स्वर्णकार की तराजू अथवा कसौटी का नाम नाराचिका अथवा नाराची है।
    मनुस्मृति के अनुसार एक प्राचीन ऋषि का नाम नारायण है जो नर के साथी थे। नारायण ने ही अपनी जंघा से उर्वशी को उत्पन्न किया था। विष्णु के एक विशेषण के रू प में भी नारायण शब्द का प्रयोग किया जाता है।


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देवताओं के संवाददाता
अक्षरयात्रा की कक्षा में न वर्ण की चर्चा करते हुए आचार्य पाटल ने कहा- "अथर्ववेद" के अनुसार नारद नाम के एक ऋषि हुए हैं। "ऎतरेय ब्राह्मधण" के कथन के अनुसार हरिशचंद्र के पुरोहित सोमक, साहदेव्य के शिक्षक तथा आग्वष्टय एवम् युधाश्रौष्ठि को अभिशप्त करने वाले भी नारद थे। "मैत्रायणी संहिता" में नारद नाम के एक आचार्य हुए हैं। "सामविधान ब्राह्मधण" में बृहस्पति के शिष्य के रू प में नारद का वर्णन मिलता है। "छान्दोग्यपनिषद्" में नारद का नाम सनत्कुमारों के साथ लिखा गया है।
एक शिष्य ने पूछा- गुरूजी, हमने तो नारद नाम के एक ऋषि का नाम सुना है जो देवताओं के बीच में संवाद का सेतु बनते हैं। वे तीनों लोक की खबर इधर से उधर पहुंचाने के लिए जाने जाते हैं।
आचार्य ने कहा- तुम ठीक समझे हो वत्स। नारद नाम के एक ऎसे ही ऋषि हुए हैं जो मृत्यु लोक की खबर स्वर्ग लोक में और स्वर्ग लोक की खबर मृत्यु लोक तक पहुंचाते हैं। नारद नामक एक ऋषि भी हुए हैं जो "नारद स्मृति" के रचनाकार हैं। "महाभारत" में मोक्ष धर्म के "नारायणी आख्यान" में नारद की उत्तरदेशीय यात्रा का विवरण मिलता है। इसके अनुसार उन्होंने नर-नारायण ऋषियों की तपश्चर्या देखकर उनसे प्रश्न किया और बाद में उन्होंने नारद को "पांचरात्र धर्म" का श्रवण कराया। "नारद पंचरात्र" के नाम से एक प्रसिद्ध वैष्णव ग्रंथ भी है जिसमें दस महाविद्याओं की कथा विस्तार से कही गई है। इस कथा के अनुसार हरी का भजन ही मुक्ति का परम कारण माना गया है। "नारद पुराण" के नाम से एक ग्रंथ मिलता है। इस ग्रंथ के पूर्वखंड में 125 अघ्याय और उत्तरखण्ड में 182 अघ्याय हैं।
आचार्य ने बताया- नारद और शांडिल्य के रचे दो भक्ति सूत्र प्रसिद्ध है जिन्हें वैष्णव आचार्य अपना ग्रंथ मानते हैं। ये ग्रंथ "भागवत पुराण" पर आधारित हैं। "याज्ञवल्क्य स्मृति" में जिन स्मृतियों की सूची मिलती है उसमें नारद स्मृति का उल्लेख नहीं है। कुछ स्मृतिकारों ने नारद का नाम सर्वप्रथम स्मृतिकार के रू प में माना है। "नारद स्मृति" में व्यवहार मातृका यानी अदालती कार्रवाई और सभा अर्थात न्यायालय सर्वोपरि माना गया है। इसके अलावा इस स्मृति में ऋणाधान ऋण वापस प्राप्त करना, उपनिधि यानी जमानत, संभुय, समुत्थान यानी सहकारिता, दत्ताप्रदानिक यानी करार करके भी उसे नहीं मानने, अभ्युपेत्य-असुश्रुषा यानी सेवा अनुबंध को तोड़ना है। वेतनस्य अनपाकर्म यानी काम करवाके भी वेतन का भुगतान नहीं करना शामिल है।
आचार्य बोले- "नारद स्मृति" में अस्वामी विक्रय यानी बिना स्वामित्व के किसी चीज का विक्रय कर देने को दंडनीय अपराध माना है। विक्रिया संप्रदान यानी बेच कर सामान न देना भी अपराध की कोटि में है। इसके अतिरिक्त क्रितानुशय यानी खरीदकर भी सामान न लेना, समस्यानपाकर्म यानी निगम श्रेणी आदि के नियमों का भंग करना, सीमाबंद यानी सीमा का विवाद और स्त्रीपुंश योग यानी वैवाहिक संबंध के बारे में भी नियम-कायदों की चर्चा मिलती है। "नारद स्मृति" में दायभाग यानी पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकार और विभाजन की चर्चा भी मिलती है। इसमें साहस यानी बल प्रयोग द्वारा अपराधी को दंडित करने का विधान भी है। "नारद स्मृति" वाक्पारूष्य यानी मानहानि करने, गाली देने और दण्ड पारूष्य यानी चोट और क्षति पहुंचाने का वर्णन भी करती है। "नारद स्मृति" के प्रकीर्णक में विविध अपराधों और परिशिष्ट में चौर्य एवं दिव्य परिणाम का निरू पण किया गया है। "नारद स्मृति" की इन व्यवस्थाओं पर "मनु स्मृति" का पूर्ण प्रभाव दिखाई देता है।
आचार्य ने बताया- "श्रीमद्भागवत" और "वायुपुराण" के अनुसार देवर्षि नारद का नाम दिव्य ऋषि के रू प में भी वर्णित है। ये ब्रह्मधा के मानस पुत्र थे। नारद का जन्म ब्रह्मधा की जंघा से हुआ था। इन्हें वेदों के संदेशवाहक के रू प में और देवताओं के संवाद वाहक के रू प में भी चित्रित किया गया है। नारद देवताओं और मनुष्यों में कलह के बीज बोने से "कलिप्रिय" अथवा कलहप्रिय कहलाते हैं। मान्यता के अनुसार वीणा का आविष्कार भी नारद ने ही किया था। आज भी लोक व्यवहार में इधर की उधर बात करके कलह का बीज बोने वाले व्यक्ति को नारद और उसकी कलाकारी को नारद विद्या कहते हैं। "ब्रह्मधवैवर्त पुराण" के अनुसार मेरू के चारों ओर स्थित बीस पर्वतों में से एक का नाम नारद है। "मत्स्य पुराण" के अनुसार वास्तुकला विशारद अठारह आचार्यो में से एक का नाम भी नारद है। चार शक्ति देवियों में से एक शक्ति देवी का नाम नारदा है। "रघुवंश" के अनुसार लोहे के बाण को नाराच कहते हैं। जल के हाथी को भी नाराच कहा जाता है। स्वर्णकार की तराजू अथवा कसौटी का नाम नाराचिका अथवा नाराची है। "मनु स्मृति" के अनुसार एक प्राचीन ऋषि का नाम नारायण है जो नर के साथी थे। नारायण ने ही अपनी जंघा से उर्वशी को उत्पन्न किया था। विष्णु के एक विशेषण के रू प में भी नारायण शब्द का प्रयोग किया जाता है।
आचार्य ने बताया- "महोपनिषद्" में कहा है कि नारायण अर्थात विष्णु ही अनंत ब्राह्मध हैं। उन्हीं से सांख्य के 25 तžव उत्पन्न हुए हैं। शिव और ब्राह्मध के बराबर नारायण की मान्यता है। "ओम् नमो नारायणाय" वैष्णवों का दीक्षा मंत्र माना गया है। धन की देवी लक्ष्मी और दुर्गा का नाम भी नारायणी है। नारीकेर का अर्थ नारियल होता है। "हितोपदेश" में इसी अर्थ में नारीकेल शब्द का प्रयोग हुआ है। स्त्री को नारी कहा जाता है। कामासक्ति को नारी प्रसंग कहते हैं। श्रेष्ठ स्त्री को नारीरत्न कहा जाता है। शिव की वीणा को नालंबी कहा गया है। हाथी के कानों को बींधने का उपकरण नालि कहा जाता है। शरीर की धमनी को भी नालि अथवा नाड़ी कहते हैं। कमल की डंडी को नालिक कहा जाता है। नली के अर्थ में भी इस शब्द का प्रयोग होता है। कमल के फूल को भी नालिक कहा गया है। बांसुरी का एक नाम भी नालिक है। "महाभाष्य" के अनुसार जहाज का कर्णधार चालक, पोतवाहक और मल्लाह को नाविक कहा जाता है।

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