ईश्वर का ध्यान - साधना


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ध्यान साधना क्या है? ---
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अपने आप को सम्पूर्ण हृदय से, बिना किसी शर्त, और बिना किसी माँग के, भगवान के हाथों में सौंप देना ही ध्यान साधना है। यही उपासना है; और यही एकमात्र निष्काम कर्म है। किसी भी कामना की पूर्ति हमें कभी तृप्त नहीं करती। कामनाओं से मुक्ति ही तृप्ति है। परमात्मा में स्थित होकर ही हम तृप्त हो सकते हैं।

मार्ग में आने वाली बाधाओं से घबराएँ नहीं। भगवान के आश्वासन हैं --

(१) "मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥१८:५८॥"

🌷अर्थात् - "मच्चित्त होकर तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे; और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो तुम नष्ट हो जाओगे॥"

(२) "सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज। 
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"

🌷अर्थात् - समस्त धर्मों (सभी सिद्धांतों, नियमों व हर तरह के साधन विधानों का) परित्याग कर और एकमात्र मेरी शरण में आजा; मैं तुम्हें समस्त पापों और दोषों से मुक्त कर दूंगा --- शोक मत कर।
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एक आध्यात्मिक रहस्य --- 
"जो लोग भगवान से कुछ माँगते हैं, उन्हें वे वही चीज़ देते हैं जो वे माँगते हैं। परन्तु जो अपने आप को दे देते हैं, और कुछ भी नहीं माँगते, भगवान उन्हें अपना सब कुछ दे देते हैं।"
न केवल कर्ताभाव, कर्मफल आदि, बल्कि कर्म, और साक्षीभाव या दृष्टाभाव तक भगवान को समर्पित कर दो। साध्य भी वे ही हैं, साधक भी वे ही हैं और साधना भी वे ही है। यहाँ तक कि दृष्य, दृष्टी और दृष्टा भी वे ही हैं।
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शांतिपाठ ---
"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै। 
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। 
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥"
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ ॐ तत्सत ! 

🍃🌷देवभूमि भारतम्🌷🍃

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