The secrets of the death of great men will never be revealed-Arvind Sisodia


 महापुरुषों की मृत्यु के रहस्य कभी सामने नहीं आएंगे
The secrets of the death of great men will never be revealed

 

- अरविन्द सिसौदिया
सवाल आज भी यही है कि महात्मा गांधी को तीन गोली गोडसे ने मारी थी, चौथी गोली किसने मारी थी ? यह आज भी रहस्य है। क्या वहां कोई ओर भी था जो इस सारे घटनाक्रम को बेकअप कर रहा था ?? व यह सुनिश्चित कर रहा था कि गांधीजी जिन्दा नहीं बचनें चाहिये। अस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया। सुरक्षा में इतनी बडी चूक किसनें की कि 10 दिन में ही हत्यारे आकर काम तमाम करने में सफल रहे।

 नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, नेता प्रतिपक्ष डॉ0 श्यामाप्रसाद मुखर्जी,देश के सबसे बडे नम्बर दो के दल जनसंघ से राष्ट्रीय अध्यक्ष पं.दीनदयाल उपाध्याय की रहस्यमत्री मृत्यु आज भी शंकाओं के बीच उलझी हुई है। इन के सच कभी सामनें नहीं आ पायेगें ? विश्व स्तर अपने अपने हित और हेतु के लिये चलने वाले षडयंत्रों को उच्चस्तर पर सब समझते भी हैं मगर साक्ष्य के अभाव में सब कुछ दफन हो जाता है। संजय गांधी का विमान क्रस होना, इन्दिरा गांधी की हत्या हो जाना, राजीव गांधी की हत्या हो जाना, माधवराव सिंधिया की हवाई दुर्घटना, राजेश पायलट दुर्घटना मृत्यु सहित अनेकों मृत्यु के घटनाक्रम समय की कोख में अभी तो काल कल्वित ही है। पर्दे के पीछे कौन है । यह पता चल सकेगा यह प्रतीत भी नहीं होता ।

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महात्मा गांधी की सुरक्षा में जान लेवा चूक पर चर्चा क्यों नहीं होती ?

महात्मा गांधी हत्याकांड का रहस्य
सुप्रीम कोर्ट में महात्‍मा गांधी की हत्‍या का मामला फिर पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट ने महात्मा गाँधी हत्याकांड की फिर से जाँच करने के लिए सुनवाई शुरू की है. सुप्रीम कोर्ट ने भूतपूर्व अडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमरेंद्र सरन को न्यायमित्र नियुक्त किया है. यह पिटीशन मुंबई के डाक्टर पंकज फडणवीस ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई है.

डॉ. पंकज एक रिसर्च स्कॉलर और अभिनव भारत संगठन के ट्रस्टी भी हैं. डॉ. पंकज इस मामले में कुछ नए तथ्य सामने लाना चाहते हैं. इनका मानना है कि देश के सबसे बड़े मामलों में से एक है और इस हत्याकांड की जांच में काफी महत्वपूर्ण तथ्य अनदेखे कर दिए गए थे.


डॉ. पंकज का कहना है कि गाँधी जी को ४ गोलियाँ मारी गयी थी. जिसमें से ३ गोलियाँ नाथूराम गोडसे की बरेटा पिस्तौल की थी, लेकिन चौथी गोली उस पिस्तौल से नहीं मरी गई थी. इसकी पुष्टि दिल्ली के तत्कालीन आई जी के एक पत्र के जवाब से होती है जो उन्होंने पंजाब सीआईडी की सायंटिफिक लैब के डायरेक्टर को लिखा था. सायंटिफिक लैब ने उन्हें बताया की यह गोली नाथूराम की पिस्तौल से नहीं चली थी. अब यहां सवाल यह है कि–


१. क्या वहां कोई और भी शूटर था जिसने गाँधी जी पर गोली चलाई? २. अगर ऐसा था उसे वहां किसने भेजा था? ३. पुलिस ने इस मामले को आगे क्यों नहीं बढ़ाया और  इसकी जाँच क्यों रोक दी गयी?


इस मामले एक पेंच और भी है कि कभी इस बात का पता नहीं लग पाया कि नाथूराम गोडसे की बरेटा पिस्तौल का असली मालिक कौन है. यहां तक कि इटली की बरेटा कंपनी को भी बार-बार रिमाइंडर भेजने पर भी कंपनी ने कभी इसके असली मालिक का नाम नहीं बताया है.


डॉ. पंकज का दूसरा आधार है कि इस उच्च स्तरीय मामले में मामले में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण लोगों को गवाह ही नहीं बनाया गया और ना ही उनके बयान लिए गये हैं. ऐसे एक व्यक्ति थे अमेरिकन एंबेसी के वाइस कौसुल हार्बर्ट ‘टॉम’ रेनर जो कि घटना स्थल पर ही मौजूद थे. ये गाँधी जी से लगभग ५ फ़ीट कि दूरी पर ही थे जब नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी को गोलियों से बेध दिया था. इन्होंने ही दौड़कर नाथूराम को पकड़ा तथा उसके हाथ से पिस्तौल छीनी थी. इतने महत्वपूर्ण गवाह कि गवाही ना होना भी काफी संदेहास्‍पद है.


इसके अलावा इतनी बड़ी घटना में केवल दो लोगों को फांसी तथा ३ लोगों को उम्रकैद हुई थी. ३ लोगों को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया गया था. केवल ८ लोग ही मिलकर इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे यह बिलकुल ही स्वीकार योग्य तथ्य नहीं है.


नेहरू सरकार को अभी सत्ता में आये हुए केवल 5 महीने ही हुए थे और तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्‍लभ भाई पटेल से नेहरू जी के संबंध ठीक नहीं चल रहे थे. गाँधी जी इससे काफी व्यथित रहते थे. गाँधी जी अपने हत्या वाले दिन ४ बजे पटेल जी से इसी सिलसिले में एक मुलाकात की थी. इस मुलाकात के बाद बिरला भवन में प्रार्थना के लिए जाते वक़्त रास्ते में नाथूराम ने गाँधी जी की हत्या कर दी थी.


महात्मा गाँधी पर पहले भी जानलेवा हमले हो चुके थे. उनकी हत्या से १० दिन पहले ही मदनलाल पाहवा ने उन पर बम से हमला किया था, लेकिन निशाना चूक जाने के कारण गाँधी जी की जान बच गयी थी. इंटेलिजेंस की रिपोर्ट भी थी कि महात्मा गाँधी जी पर जानलेवा हमला हो सकता है. इसके बावजूद नेहरू सरकार ने महात्मा गाँधी जी की सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं किये थे. यहां कई सवाल उठते हैं:-


१. महात्मा गाँधी जी को पर्याप्त सुरक्षा क्यों नहीं मुहैया करवाई गयी थी? अगर गाँधी जी स्वयं के लिए सुरक्षा नहीं चाहते थे तो सादी वर्दी में उनके आसपास पुलिस वालों और ख़ुफ़िया विभाग के अधिकारियों की तैनाती क्यों नहीं की गयी? २. पुलिस का गुप्तचर विभाग इतने बड़े षड्यंत्र का पता क्यों नहीं लगा सका, जबकि केवल १० दिन पहले ही एक बड़ा हमला किया जा चुका था? ३. गोली लगने के बाद गाँधी जी को हॉस्पिटल न ले जाकर वापस बिरला हाउस में क्यों ले जाया गया? ४. जब देश के गृहमंत्री वहां आये थे तब भी कैसे एक आदमी भरी पिस्तौल लेकर वहां कैसे पहुँच गया? ५. गाँधी जी की हत्या से किसको तत्कालीन फायदा होने वाला था? ६. हार्बर्ट ‘टॉम’ रेनर गाँधी वध से कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान भी गया था. क्या रेनर की पाकिस्तान यात्रा से भी इस हत्याकांड का कुछ संबंध है?


सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. पंकज से पूछा है कि क्या घटना के इतने सालों के बाद में कोई सबूत और गवाह मिलेंगे? कोर्ट ने यह भी पूछा की जिस तीसरे व्यक्ति की बात याची कर रहा है वह जीवित है? इस पर डॉ. पंकज ने कहा कि उन्हें नहीं पता की वह व्यक्ति जीवित है या नहीं? उन्होंने यह भी कहा कि यह तीसरा व्यक्ति कोई संस्था भी हो सकती है, जिसने महात्मा गाँधी हत्याकांड का षड्यंत्र रचा हो. डॉ. पंकज ने इस बात पर जोर दिया कि इन सभी बातों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन इस मामले की जाँच होनी चाहिए, जिससे महात्मा गाँधी की निर्मम हत्या का सच भारत की जनता जान सके.


डॉ. पंकज का कहना है कि हार्बर्ट ‘टॉम’ रेनर ने महात्मा गाँधी हत्याकांड से सम्बंधित कुछ जानकारी महत्वपूर्ण अमेरिका भी भेजी थी. अमेरिकन सरकार के पास भी इस हत्याकांड से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण जानकारियाँ हो सकती हैं. इन जानकारियों से इस हत्याकांड में कई नए खुलासे हो सकते हैं.


महात्मा गाँधी की हत्या ३० जनवरी १९४८ की शाम में बिरला भवन में शाम की प्रार्थना के लिए जाते समय रास्ते में कर दी गयी थी. नाथूराम गोडसे और उसके ७ अन्य साथियो पर महात्मा गाँधी हत्याकांड का आरोप लगा. इस हत्याकांड के आरोपी थे:-


१. नाथूराम गोडसे – फाँसी की सजा २. नारायण आप्टे – फाँसी की सजा ३. विनायक दामोदर सावरकर – अदालत से बरी ४. विष्णु रामकृष्ण करकरे – आजीवन कारावास ५. मदन लाल पाहवा -आजीवन कारावास ६. गोपाल गोडसे -आजीवन कारावास ७. शंकर किस्तैया – अदालत से बरी ८. दिगंबर बड़गे – सरकारी गवाह बनाने के कारण अदालत से बरी

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चौथी गोली किसने चलाई थी
गांधीजी की हत्या के तीन फरार आरोपी और चौथी गोली का रहस्य कभी खुलेगा क्या?
सच तो यह है कि राष्ट्रपिता की हत्या से जुड़े कई पहलू ऐसे हैं, जिन पर कभी चर्चा तक नहीं हुई.
Nihar Ranjan Saxena | Edited By : Nihar Saxena | Updated on: 30 Jan 2020,

नई दिल्ली:
देश की आजादी खासकर महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की हत्या के बाद हिंदू राष्ट्रवाद (Hindu Nationalism) पर अंगुली उठाने की परंपरा सी चल पड़ी है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को कठघरे में खड़ा करने वाली इस परंपरा का पालन फिर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने वायनाड (Waynad) में किया. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) को लेकर निशाना साधा. बगैर यह विचार करे कि उनके परनाना और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भूमिका 'गांधी हत्या' के बाद आरएसएस को कठघरे में खड़ा करने की 'जल्दबाजी' में खुद ही तमाम प्रश्न खड़े करती है. सच तो यह है कि राष्ट्रपिता की हत्या से जुड़े कई पहलू ऐसे हैं, जिन पर कभी चर्चा तक नहीं हुई. गांधीजी की हत्या के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 4 फरवरी 1948 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया माधव सदाशिव गोलवलकर ऊर्फ गुरुजी को गिरफ़्तार करवाने के बाद आरएसएस समेत कई हिंदूवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था. यह अलग बात है कि गांधी की हत्या में आरएसएस की संलिप्तता का कोई प्रमाण नहीं मिलने पर छह महीने बाद 5 अगस्त 1948 को गुरु जी रिहा कर दिए गए थे. इसके साथ ही तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल ने संघ को क्लीनचिट देते हुए 11 जुलाई 1949 को उस पर लगे प्रतिबंध भी हटा दिए थे.


गोलवलकर से जलते थे पंडित नेहरू !
तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू गांधीजी की हत्या में गोलवलकर समेत आरएसएस को फंसाने के लिए मन सा बनाए बैठे थे. नाथूराम गोडसे ने अपने इकबालिया बयान में साफ़-साफ़ कहा था कि गांधीजी की हत्या केवल उसने (गोडसे ने) ही की है. इसमें कोई न तो शामिल है और न ही कोई साज़िश रची गई. गांधी की हत्या के लिए ख़ुद गोडसे ने माना था कि उसने एक इंसान की हत्या की है, इसलिए उसे फांसी मिलनी चाहिए. इसी आधार पर गोड्से ने जज आत्माचरण के फांसी देने के फ़ैसले के ख़िलाफ अपील ही नहीं की. यह अलग बात है कि गोलवलकर की गिरफ्तारी सुनिश्चित कराने के साथ ही पंडित नेहरू ने आरएसएस को भी प्रतिबंधित करा दिया. गांधी हत्या की जांच की प्रगति पर पैनी नजर रखे तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल की संस्तुति के बाद गोलवलकर को रिहा किया गया और आरएसएस से प्रतिबंध हटाया गया. ऐसे में प्रश्न उठना लाजिमी है कि पंडित नेहरू की गोलवलकर समेत आरएसएस से खुन्नस की प्रमुख वजह क्या थी? अगर बीबीसी की 1949 में जारी डॉक्यूमेंट्री की मानें तो गोलवलकर उन दिनों लोकप्रियता के शिखर पर थे. उनकी चमक एक समय पंडित नेहरू के आभामंडल तक को फीका करने लगी थी. संभवतः यही वजह है कि पंडित नेहरू गोलवलकर और आरएसएस से 'ईर्ष्या' करने लगे थे. एक जगह तो यह भी कहा गया है कि गांधीजी की हत्या से ठीक एक दिन पहले यानी 29 जनवरी को पंडित नेहरू कहते पाए गए, 'मैं आरएसएस को बर्बाद कर दूंगा.'


चौथी गोली का रहस्य
नाथूराम ने बाद में दूसरे आरोपी अपने छोटे भाई गोपाल गोडसे को बताया, 'शुक्रवार शाम 4.50 बजे मैं बिड़ला भवन के दरवाजे पर पहुंच गया. मैं चार-पांच लोगों के झुंड के साथ रक्षक को झांसा देकर अंदर जाने में कामयाब रहा. वहां मैं भीड़ में अपने को छिपाए रहा, ताकि किसी को मुझे पर शक न हो. 5.10 बजे मैंने गांधीजी को अपने कमरे से निकलकर प्रार्थना सभा की ओर जाते हुए देखा. गांधीजी दो लड़कियों के कंधे पर हाथ रखे चले आ रहे थे. जब गांधी मेरे क़रीब पहुंचे तब मैंने जेब में हाथ डालकर सेफ्टीकैच खोल दिया. अब मुझे केवल तीन सेकेंड का समय चाहिए था. मैंने पहले गांधीजी का उनके महान् कार्यों के लिए हाथ जोड़कर प्रणाम किया और दोनों लड़कियों को उनसे अलग करके फायर कर दिया. मैं दो गोली चलाने वाला था लेकिन तीन चल गई और गांधीजी 'आह' कहते हुए वहीं गिर पड़े. गांधीजी ने 'हे राम' उच्चरण नहीं किया था. मुंबई के रहने वाले शोधकर्ता पंकज फणनीस का यहां जिक्र करना मुनासिब होगा, जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में गांधी हत्या की नए सिरे से नए सबूतों के आलोक में जांच कराने की याचिका दायर की थी. हालांकि मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और एलएन राव ने इसे खारिज कर दिया. यह अलग बात है कि याचिका में पंकज ने कुछ किताबों और गांधीजी को लगी गोलियों के घावों की फोरेंसिक रिपोर्ट का हवाला दिया. पंकज ने अमेरिका स्थित फोरेंसिक विशेषज्ञ के हवाले से कहा था कि गांधीजी के शरीर पर तीन नहीं चार निशान थे. गौरतलब है कि बापू के हत्यारे गोडसे ने भी अपने बयान में तीन गोलियां चलाने की ही बात कही है. इसके अलावा उस वक्त मौजूद एक विदेशी पत्रकार ने भी कहा है कि उसने चार गोलियां चलने की आवाज सुनी थी. इसके बावजूबद आज तक चौथी गोली के रहस्य को सुलझाने की कोशिश नहीं की गई, बल्कि इस तथ्य को सिरे से खारिज कर दिया गया.


गांधीजी को अस्पताल लेकर क्यों नहीं गए?
यह एक बड़ा सवाल है जिसे लेकर कोई तार्किक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया. गांधीजी को दो से तीन फुट के फासले से पिस्तौल से गोली मारी गई. उनके पेट और छाती से खून निकलना शुरू हो गया. प्राथमिकी में लिखा है महात्माजी को बेहोशी की हालत में उठाकर बिड़ला हाउस के रिहायशी कमरे में ले गए और उनका उसी वक्त इंतकाल हो गया. पुलिस मुलजिम को थाने ले गई. सवाल यह उठता है कि पुलिस गांधीजी को अस्पताल लेकर क्यों नहीं गई? इसके बजाए उन्हें लगभग चार घंटे तक बिड़ला हाउस में ही क्यों रखा गया? उन्हें वहीं घटनास्थल पर ही मृत घोषित कर दिया गया और उनका शव उनके आवास बिड़ला हाउस में रखा गया, जबकि क़ानूनन जब भी किसी व्यक्ति पर गोलीबारी होती है और उसमें उसे गोली लगती है, तब सबसे पहले उसे पास के अस्पताल ले जाया जाता है और वहां मौजूद डॉक्टर ही बॉडी का परिक्षण करने के बाद उसे 'ऑन एडमिशन' या 'आफ्टर एडमिशन' मृत घोषित करते हैं. इसके बाद गांधीजी के शव का पोस्टमार्टम भी नहीं किया जाता है. चौथी गोली का रहस्य इस तरह आज भी बरकरार है. यह सवाल भी अनुत्तरित है कि आखिर गांधीजी को मृत घोषित करने की इतनी जल्दी क्यों थी? क्यों नहीं उनके शव का पोस्टमार्टम हुआ ताकि चश्मदीद गवाहों के तीन-चार गोली चलने की आवाज की पुष्टि हो जाती?


गांधीजी की हत्या के तीन आरोपी जो आज भी फरार
गांधीजी की हत्या से जुड़े दस्तावेज़ गोपनीय हैं और इन्हें सार्वजनिक करने को लेकर केंद्रीय सूचना आयोग में एक मामले की सुनवाई चल रही है. इस दौरान ऐसे कई पहलुओं का ज़िक्र हुआ है जो बताते हैं कि गांधीजी की हत्या के केस में भी हद दर्जे की लापरवाही बरती गई थी. उनकी हत्या के मामले में नाथूराम गोडसे के अलावा 11 और लोगों को आरोपी बनाया गया था. इन 12 लोगों में से 9 लोगों को या तो सज़ा हुई या तो वे बरी हो गए. सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक तीन आरोपी-गंगाधर दंडवते, गंगाधर जाधव और सूर्यदेव शर्मा केस चलने के समय से ही फरार हैं. इन 71 सालों में इनका कोई पता नहीं चला. महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी का कहना है कि इन तीन फरार आरोपियों ने ही गोडसे को पिस्टल मुहैया कराई थी. बताते हैं कि गांधीजी की हत्या के चार घंटे से भी अधिक समय बाद तक प्राथमिकी में अपराधी के सामने का खाना खाली छोड़ा गया था और नाथूराम गोडसे के नाम का उल्लेख नहीं था, बल्कि एक चश्मदीद के बयान में नारायण विनायक गोडसे का नाम लिया गया था. मामले के शुरुआती जांच अधिकारी तुगलक रोड पुलिस थाने के तत्कालीन एसएचओ दसौंधा सिंह, पुलिस उप अधीक्षक जसवंत सिंह और कांस्टेबल मोबाब सिंह थे. मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दर्ज किया गया था. बताते हैं कि फरार आरोपी ग्वालियर में पकड़े गए थे, लेकिन उन्हें गैर-जरूरी बताकर गिरप्तार नहीं किया गया. उसके बाद से तो वह जैसे हवा में गायब हो गए. अगर वे पकड़े जाते तो चौथी गोली समेत गोडसे तक पहुंची बेरेटा रिवॉल्वर का रहस्य भी सामने होता.


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