अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में मिलाया : राहुल बनाम स्मृति टिविट् वार

 


 

भारत सरकार के हर काम का विरोध करनें की आदत से ग्रस्त कांग्रेस के राहुल गांधी ने अस्थाई रूप से गत 50 सालों से शहीद सैनिकों की याद में जल रही अमर जवान ज्योति को स्थाई रूप से राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में शिफ्ट किये जाने का विरोध किया है। किन्तु सेना के सभी बडे अधिकारियों ने इसे सरकार का सही एवं आवश्यक कदम बताया है। क्यों कि अमर जवान ज्योति अभी तक जहां जल रही थी वह स्थान ब्रिटिश सरकार का बनाया हुआ है। उसमें स्वतंत्र भारत का कोई योगदान नहीं रहा है। 1971 में पाकिस्तान से युद्ध जीतनें के बाद अस्थाई तौर पर इस स्थान पर शहीद सैनिकों को नमन करने हेतु अमर जवान ज्योति की स्थापना की थी। नरेन्द्र मोदी सरकार ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का भव्य एवं नव निर्माण किया एवं स्वतंत्र भारत के लिये शहीद हुये सभी सैनिकों के नाम सम्मानपूर्वक दर्ज करवाये है, उसी स्थान पर अमर जवान ज्योति को भी ले जाया गया है। जिसका पूरा देश स्वागत कर रहा है। यह स्वतंत्र भारत के सैनिकों के सम्मान एवं गौरव की महान पहचान है। 

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राहुल गांधी बनाम स्मृति ईरानी टिविट्

राहुल गांधी....

बहुत दुख की बात है कि हमारे वीर जवानों के लिए जो अमर ज्योति जलती थी, उसे आज बुझा दिया जाएगा।
कुछ लोग देशप्रेम व बलिदान नहीं समझ सकते- कोई बात नहीं…
हम अपने सैनिकों के लिए अमर जवान ज्योति एक बार फिर जलाएँगे!
8:37 पूर्वाह्न · 21 जन॰ 2022·Twitter Web App
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स्मृति ईरानी....

जिन्होंने...
जवानों द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक का प्रमाण मांगा
शहीदों को समर्पित प्रथम राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि नहीं दी
सुना है, वो आज राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ा रहे है!
कोई कह दे उनसे, सच्चे राष्ट्रभक्त ‘भारत के टुकड़े’ का नारा लगाने वालों का समर्थन नहीं करते।
3:09 अपराह्न · 21 जन॰ 2022·Twitter for iPhone
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एक रिपोर्ट

अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में मिलाने के फैसला

नई दिल्ली -

 इंडिया गेट के नीचे जल रही अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में मिलाने के फैसले पर का सेना के अधिकारियों की तरफ से जहां स्वागत हुआ है वहीं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसका विरोध किया है। उनका कहना है कि जब तक अपना युद्ध स्मारक नहीं था तब तक अमर जवान ज्योति के सहारे युद्ध में सर्वाेच्च बलिदान देने वाले अपने सैनिकों की याद करना सही था, लेकिन अब जब राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बन गया है तो इसे अमर जवान ज्योति को अलग से बनाए रखने की जरूरत नहीं है।

जहां हमारे शहीदों के नाम, वहीं जले अमर जवान ज्योति - मेजर जनरल (रिटायर्ड) जीडी बख्शी
मेजर जनरल (रिटायर्ड) जीडी बख्शी ने कहा कि “ जहां हमारे सभी सैनिकों को नाम अंकित हैं, वहां अमर जवान ज्योति का जाना बिल्कुल उचित है। ” उन्होंने कहा, “1971 युद्ध में जीत के बाद सशस्त्र बलों ने युद्ध स्मारक बनाने की मांग की तब तत्कालीन सरकार ने कहा कि यह पैसे की बर्बादी होगी। तब प्रथम विश्वयुद्ध में शहीद जवानों की याद में बने इंडिया गेट के नीचे ही अमर जवान ज्योति स्थापित करके तात्कालिक तौर पर 1971 युद्ध के शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी गई। अमर जवान ज्योति बनाने का मकसद ही तात्कालिक था। विजन यह था कि जब कभी भी अपना वॉर मेमोरियल बनेगा तब इस वहीं शिफ्ट कर दिया जाएगा। 70 वर्ष के बाद वॉर मेमोरियल बन गया तो कुछ लोग कह रहे हैं कि अमर जवान ज्योति को वहां शिफ्ट नहीं करना चाहिए। लेकिन, देश में एक ही वॉर मेमोरियल होना चाहिए और समारोह भी वहीं होने चाहिए।”

मेजर जनरल (रिटायर्ड) बख्शी ने कहा अंग्रेजों के इंडिया गेट को हमारी सरकार के राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर तवज्जो नहीं दी जा सकती है। जनरल बख्शी ने कहा, “ जो कहते हैं कि अमर जवान ज्योति से लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं तो आप उसे वहीं रख सकते हैं, लेकिन समारोह तो राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में ही होने चाहिए। वहां 1947-48 का युद्ध, गोवा ऑपरेशन, 1962 ऑपरेशन, 1965 वॉर, 1971 वॉर, कारगिल वॉर से लेकर हाल ही में गलवान में जान गंवाने वाले जवानों और ताजा-ताजा शहीद हुए जवानों के नाम खुदे हैं। उसी स्थल पर हमारे एक-एक शहीद जवान के नाम अंकित हैं। इसलिए अगर कोई राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर ब्रिटिश वॉर मेमोरियल को प्राथमिकता देना चाहता है तो मैं उसके समर्थन में नहीं हूं।“

भारतीय सेना के पूर्व डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) विनोद भाटिया ने कहा, “ आज 50 साल बाद अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के ज्योति में मिलाया जा रहा है ये बहुत ही अच्छा फैसला है क्योंकि अमर जवान ज्योति (इंडिया गेट) पर ब्रिटिश भारतीय सैनिकों का नाम है वो हमारे पूर्वज थे। ”

वॉर मेमोरियल में अमर जवान ज्योति को मिलाना सही - पूर्व डेप्युटी चीफ लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) बीएस यादव
1971 के युद्ध में हिस्सा ले चुके आर्मी के पूर्व डेप्युटी चीफ लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) बीएस यादव ने भी अमर जवान ज्योति को शिफ्ट करने करने के फैसले का समर्थन किया है।

उन्होंने कहा, “ जब हमारी सरकार ने हमारे योद्धाओं और जवानों की याद में तात्कालिक तौर पर अमर ज्योति के तौर पर स्मारक बनाने की आज्ञा दी थी। उस वक्त हमारा युद्ध स्मारक नहीं था। अब हमारे पास राष्ट्रीय युद्ध स्मारक है तो यह उचित होगा कि वॉर मेमोरियल के अंदर ही अमर जवान ज्योति को मिला दिया जाए। ”

हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड का आंखों देखा हाल (Republic Daya Parade Commentary) करने वाले ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) चित्तरंजन सावंत ने अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में मिलाने के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा, “ इंडिया गेट अंग्रेजों का बनाया युद्ध स्मारक है। उसके नीचे अमर जवान ज्योति 1971 के युद्ध में बलिदान हुए हमारे जवानों के लिए बनाई गई है। वहीं, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक 1947 से अब तक जान गंवाने वाले जवानों की याद में बनाया गया है। अमर जवान ज्योति भी राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में सम्मिलित हो जाएगी।“

पूर्व नौसेना चीफ एडमिरल अरुण प्रकाश ने कहा,“ अंग्रेजों ने इंडिया गेट का निर्माण प्रथम विश्वयुद्ध और उससे पहले के युद्धों में मारे गए 84 हजार जवानों की याद में किया था। बाद में तात्कालिक तौर पर अमर जवान ज्योति बनाई गई। अब हमारे पास राष्ट्रीय युद्ध स्मारक है। इसलिए, अब ज्योति को वहीं मिलाना उचित होगा। ”


लौ बुझ नहीं रही, जगह बदल रही है:-
वहीं, सरकारी सूत्रों का कहना है कि अमर जवान ज्योति की लौ बुझ नहीं रही है। इसे राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के ज्वाला में मिला दिया जा रहा है। ये अजीब बात थी कि अमर जवान ज्योति की लौ ने 1971 और अन्य युद्धों में जान गंवाने वाले जवानों को श्रद्धांजलि दी, लेकिन उनका कोई भी नाम वहां मौजूद नहीं है। 1971 और उसके पहले और बाद के युद्धों सहित सभी युद्धों में सभी जान गंवाने वाले भारतीय जवानों के नाम राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में रखे गए हैं इसलिए वहां युद्ध में जान गंवाने वाले भारतीय जवानों को देने वाली ज्योति का होना ही सच्ची श्रद्धांजलि है।

उन्होंने कहा, “ ये विडंबना ही है कि जिन लोगों ने 7 दशकों तक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक नहीं बनाया, वे अब हंगामा कर रहे हैं जब युद्धों में जान गंवाने वाले हमारे भारतीय जवानों को स्थायी और उचित श्रद्धांजलि दी जा रही है। श् ध्यान रहे कि इंडिया गेट के नीचे अमर जवान ज्योति की स्थापना इंदिरा सरकार ने 1971 के बांग्लादेश युद्ध में बलिदान हुए 3,843 जवानों की याद में की थी।”

देश के प्रधानमत्री और पूर्व सैनिकों ने इस फैसले का स्वागत किया है । कांग्रेस की आदत है कि वह वर्तमान सरकार के द्वारा किये गये प्रत्येक कार्य का राजनीतिक कारणों से विरोध करती है । 

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कब से जल रही है अमर ज्योति की मशाल ?

1971 के युद्ध में शहीद होने वाले जवानों की याद में अमर ज्योति की मशाल को जलाया गया था।
1972 के गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था। इसकी मशाल तब से लगातार जल रही है।
शुक्रवार दोपहर होने वाले कार्यक्रम में इंडिया गेट से अमर जवान ज्योति के एक हिस्से को करीब 400 मीटर दूर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर ले जाया जाएगा। उसके बाद इंडिया गेट पर जलने वाली ज्योति बंद कर दी जाएगी।
जानकारी

इंडिया गेट के पास ही स्थित है युद्ध स्मारक

राष्ट्रीय युद्ध स्मारक को इंडिया गेट के पास ही करीब 40 एकड़ इलाके में बनाया गया है। इसमें 26,000 से अधिक उन भारतीय सैनिकों के नाम हैं, जिन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है।

इस स्मारक में चार चक्र हैं। इनमें सबसे अंदर अमर चक्र है, जिसमें 15.5 मीटर ऊंचा स्तंभ बनाया गया है। इसी स्तंभ में अमर ज्योति जल रही है, जो शहीद सैनिकों की आत्मा की अमरता का प्रतीक है।

राष्ट्रीय युद्ध स्मारक

बाकी तीन चक्रों में क्या है?

राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का दूसरा चक्र वीरता चक्र है। इसमें थलसेना, वायुसेना और नौसेना द्वारा लड़ी गई छह लड़ाईयों के बारे में बताया गया है।
तीसरे चक्र का नाम त्याग चक्र है और इसमें देश के लिए अपनी जान गंवाने वाले शहीदों के नाम लिखे हुए हैं। इसके बाद सुरक्षा चक्र आता है, जिसमें 695 पेड़ लगाए गए हैं। ये पेड़ देश की सुरक्षा में तैनात जवानों को दर्शाते हैं।
यह स्मारक 176 करोड़ की लागत से तैयार हुआ था।

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चार संकेंद्रित वृत्त हैं
अमर जवान ज्योति को बाहर किया जाएगा युद्ध स्मारक मशाल के साथ विलय किया जाएगा
अमर जवान ज्योति को बाहर किया जाएगा युद्ध स्मारक मशाल के साथ विलय किया जाएगा
“अमर चक्र”, “वीरता चक्र”, “त्याग चक्र” और “रक्षक चक्र”, जहाँ 25,942 सैनिकों के नाम ग्रेनाइट की गोलियों पर सुनहरे अक्षरों में अंकित हैं। स्मारक में वीरता चक्र में एक ढकी हुई गैलरी में भारतीय सेना, वायु सेना और नौसेना द्वारा लड़े गए प्रसिद्ध युद्धों को दर्शाते हुए छह कांस्य भित्ति चित्र भी शामिल हैं।इंडिया गेट ब्रिटिश सरकार द्वारा 1914 और 1921 के बीच प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिकों की याद में बनाया गया था। 1972 में, अमर जवान ज्योति को भारतीय सैनिकों की याद में जलाया गया था, जो भारत में शहीद हुए थे। 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध।

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यहां पहले किसकी मूर्ति लगी थी ?

बता दें कि दिल्ली में जहां इंडिया गेट बना है, वहां आसपास एक बड़ा सा पार्क है. इस पार्क में ही ये छतरी बनी है, जो इंडिया गेट के सामने है. बता दें कि जब इंडिया गेट बनकर तैयार हुआ था तब इसके सामने जार्ज पंचम की एक मूर्ति लगी हुई थी. इसे बाद में ब्रिटिश राज के समय की अन्य मूर्तियों के साथ कोरोनेशन पार्क में स्थापित कर दिया गया. यह 1960 के दशक तक यहां लगी थी और 1968 में इसे हटाया गया था. अब जार्ज पंचम की मूर्ति की जगह प्रतीक के रूप में केवल एक छतरी भर रह गई है, जहां अब नेताजी की फोटो लगाई जाएगी. बता दें कि कोरोनेशन पार्क दिल्ली में निरंकारी सरोवर के पास बुरारी रोड़ पर है.

कौन थे जॉर्ज पंचम ?

जॉर्ज पंचम यूनाइटेड किंगडम के किंग थे और ब्रिटिश भारत में 1910 से 1936 तक यहां के शासक भी थे. जॉर्ज के पिता महाराज एडवर्ड सप्तम की 1910 में मृत्यु होने पर वे महाराजा बने. वे एकमात्र ऐसे सम्राट थे जो कि दिल्ली दरबार में, खुद अपनी भारतीय प्रजा के सामने प्रस्तुत हुए. जहां उनका भारत के राजमुकुट से राजतिलक हुआ. जॉर्ज को उनके अंतिम दिनों में प्लेग और अन्य बीमारियों की वजह से मौत हो गई थी. साथ ही उन्होंने पहले विश्व युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी. उस दौरान वो ऐसे किंग थे, जिन्होंने अस्पताल,फैक्ट्रियों का दौरा किया था, जिसके बाद उनका आदर और भी बढ़ गया था. साथ ही इंडिया गेट का भी विश्व युद्ध से कनेक्शन है, इसलिए उनकी मूर्ति यहां लगाई गई थी.

इंडिया गेट क्यों बना ?

इंडिया गेट स्मारक ब्रिटिश सरकार द्वारा 1914-1921 के बीच अपनी जान गंवाने वाले ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिकों की याद में बनाया गया था. करीब अपने फ्रांसीसी समकक्ष के समान, यह उन 70,000 भारतीय सैनिकों को याद करता है, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के लिए लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी थी. स्मारक में 13,516 से अधिक ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के नाम हैं जो पश्चिमोत्तर सीमांत अफगान युद्ध 1919 में मारे गए थे.

इंडिया गेट की आधारशिला उनकी रॉयल हाइनेस, ड्यूक ऑफ कनॉट ने 1921 में रखी थी और इसे एडविन लुटियन ने डिजाइन किया था. स्मारक को 10 साल बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने राष्ट्र को समर्पित किया था.








 

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