राष्ट्रहित की दृडतापूर्वक पालना ही गणतंत्र की मजबूती है - अरविन्द सिसौदिया

 

Arvind Sisodia

      राष्ट्रहित की दृडतापूर्वक पालना ही गणतंत्र की मजबूती है - अरविन्द सिसौदिया
Firm adherence to the national interest is the strength of the republic - Arvind Sisodia

- अरविन्द सिसौदिया 9414180151

     राष्ट्र सर्वोपरी का भाव ही राष्ट्ररक्षा है और इसी तरह के नागरिकों से एक गणतंत्र सुरक्षित रहता है। जो लोग एक देश का खाते हैं और दूसरे देश का गुणगाण करते है। वे जिस देश में रह रहे है,उसमें दीमक की तरह होते है और दीमक जैसा ही काम करते है। किसी भी गणतंत्र की मजबूती उस देश के नागरिकों की राष्ट्रभक्ति पर आधारित होती है। 

     लोकतंत्र या गणतंत्र का बेसिक आधार आम जनमत होता है। भारतीय संस्कृति में लोकतंत्र का प्रयोग भी लाखों वर्ष पूर्व से होता रहा है। पंच फैसला इसी का आधार है। जिसे पंच परमेश्वर भी कहा गया है। लाखों वर्षों तक पंच निर्णय के आधार पर भारतीय संस्कृति ने अपनी जीवन यात्रा की है। इसलिये भारत को लाकेतंत्र किसी ने दिया नहीं बल्कि भारत से लोकतंत्र विश्व में फैलता गया । पुष्पित पल्लवित होता गया ।

      लोकतंत्र का आधार है उसमें रहने वाले व्यक्तियों की निष्ठा एवं आस्था , यदि किसी व्यक्ति को अपने देश में अपने लोकतंत्र में निष्ठा नहीं है आस्था नहीं है। तो उसे उसमें रहनें का अधिकार भी नहीं है। जब कोई व्यक्ति किसी भूमि पर जन्म लेता है,उसकी वायु से सांस चलाता है, उसके जल से प्यास बुझाता है। उसके अन्न से शरीर का पोषण करता है। तो वह उस धरती माता का ऋणी होता है।
धरती माता की कृपा के से जीवित होता है। इसलिये उसका कर्त्तव्य भी बनता है कि वह मातृभूमि के मान सम्मान एवं स्वाभिमान की रक्षा करे और जब कभी उस पर आंच आये तो प्राणों की बाजी लगा कर उसकी रक्षा करे। यही भाव एक लोकतंत्र के निवासी का होता है। जिसमें यह भाव नहीं है उसे निवास का अधिकार भी नहीं है।

नागरिकों के कर्तव्य एवं अधिकार नागरिकों के स्वयं अपने प्रति, अपने परिवार, पड़ौसी, समाज एवं देश के प्रति भी कर्त्तव्य होते हैं। अतः प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने शारीरिक, मानसिक व आर्थिक विकास के लिए प्रयास करे। अपने परिवार को सुखी बनाएं। अपने परिवार, ग्राम, नगर, समाज एवं देश के हित के कार्यों में सहयोग प्रदान करें।
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- 11 मौलिक कर्तव्य -
सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर संविधान के 42वें संशोधन (1976 ई.) के द्वारा मौलिक कर्त्तव्य को संविधान में जोड़ा गया । इसे रूस के संविधान से लिया गया है। इसे भाग 4(क) में अनुच्छेद-51(क) के तहत रखा गया।


मौलिक कर्त्तव्य की संख्या 11 है, जो इस प्रकार है:

1. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे व उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र-ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करे।
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे ।
3. भारत की प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
4. देश की रक्षा करे ।
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे।
6. हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे।
7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे ।
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे।
9. सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे।
10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे।
11. माता-पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना (86वाँ संशोधन)

 सियासीचा सशोधन( 2002 ई.)
इस संशोधन अधिनियम द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा लिए को मौलिक अधिकार रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है, इसे अनुच्छेद-21(क) के अन्तर्गत संविधान में जोड़ा गया है। संशोधन इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 45 तथा अनुच्छेद 51 (क) में संशोधन किये जाने का प्रावधान है।

 

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