गलवान घाटी में तिरंगा फहरायाCongress should not be China's toolkit - Arvind Sisodia

Congress should not be China's toolkit 

- Arvind Sisodia


कांग्रेस , चीन का टूलकिट न बनें - अरविन्द सिसौदिया

 


GalwanValley  IndianArmy 

कांग्रेस , चीन का टूलकिट न बनें - अरविन्द सिसौदिया

स्वतंत्रता से पहले तिब्बत की भारत के साथ संधि थी। जिसे कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरू जी ने चीन के पास भेज दिया। अर्थात यमं मानों कि कांग्रेस ने तिब्बत चीन को दे दिया, क्यों ?
 

चीन ने 1962 एवं अन्य अवसरों पर भारतीय भूभाग हडपा,  वह भारतीय भूभाग चीन से वापस नहीं लिया गया। जहां टकराव चल रहा है वह क्षैत्र कांग्रेस की वजह से ही चीन के पास है। 

पाकिस्तान से 1965 एवं 1971 यु़द्ध जीतनें के बाद भी अपना पाक अधिकृत कश्मीर वापस नहीं लिया गया। जबकि पाकिस्तानी क्षैत्र और सेना दोनों हमारे कब्जे में थीं। जिस कांग्रेस ने भारतीय भू भाग पाकिस्तान एवं चीन से  वापस नहीं लिया हो उन्हे अचानक एक एक इंच भूमि की चिन्ता कैसे होने लगी। अपने पूर्वजों की गलती पर देश से क्षमा मांगने के बजाये , उलटा चोर कोतबाव को डांटे !

चीन पहुंच कर जो कांग्रेस, चीन की कम्युनिष्ट पार्टी से प्रगाण सम्बंध बनानें का एमओयू करती है।वह चीन के प्रोपोगण्डाओं का बेकअप कर रही है। शर्म आनी चाहिये। 

कल को चीन कहे कि हमने दिल्ली का नाम हांगकांग रख दिया है तो क्या दिल्ली हांगकांग हो जायेगा। दुनिया भर के देश चीन की बात मान लेगें ? वे उनके देश में नौटंकी करेंगे वह भारत में लागू थोडे ही होगी। ना ही दूनिया उसे मानने वाली ।
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भारतीय सेना ने दिया चीनी प्रोपोगंडा का करारा जबाव

भारतीय सेना ने भी नए साल 2022 पर गलवान घाटी में भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया  कर, धूर्त चीन/ ड्रैगन की उसकी घूर्ततापूर्ण नीचता का मुंहतोड़ जवाब दे दिया है।

भारतीय सेना ने नए साल के अवसर पर गलवान घाटी लद्दाख में तिरंगा फहराया। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक भारतीय सेना के जवानों ने नए साल की पूर्व संध्या पर गलवान में राष्ट्रीय ध्वज फहराया था।

भारतीय सेना ने नए साल के अवसर पर गलवान घाटी, लद्दाख में तिरंगा फहराया। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक भारतीय सेना के जवानों ने नए साल की पूर्व संध्या पर गलवान में राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। भारतीय सेना द्वारा यह कदम उन खबरों के बीच उठाया गया है। जिनमें दावा किया गया था कि चीनी सैनिकों ने कुछ दिन पहले इस क्षेत्र में अपना झंडा फहराया था। इससे पहले, मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया था कि चीनी सरकार ने नए सीमा कानून को लागू करने से दो दिन पहले अपने नक्शे में अरुणाचल प्रदेश में 15 स्थानों का नाम बदलने की मांग की थी।

 पिछले गुरुवार भारत सरकार ने अपने एक बयान में कहा था कि, उन्होंने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश की कुछ जगहों का नाम बदलने की कोशिश को लेकर रिपोर्ट देखी है। यह प्रदेश हमेशा भारत का अभिन्न अंग रहा है और रहेगा, नए नाम रखने से इस तथ्य को कोई बदल नहीं सकता।

चीन के द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों का नाम अपनी भाषा में बदलने की खबरों पर मीडिया के सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि चीन ने भी अप्रैल 2017 में ऐसे नाम देने की मांग की थी। वर्ष 2020 में गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद, सैन्य और राजनयिक वार्ता के कई दौर गतिरोध में ही समाप्त हो गए हैं। कुछ सीमावर्ती इलाकों में चीन का हस्तक्षेप कम हुआ है, लेकिन पूरी तरह से हस्तक्षेप अभी समाप्त नहीं हुआ है। खासतौर से देपसांग और हाट स्प्रिंग्स में हस्तक्षेप चिंता का प्रमुख कारण बना हुआ है।
 

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