पंजाब का सच,चन्नी और कांग्रेस सत्ता से बाहर होंगे - अरविन्द सिसौदियाChanni and Congress will be out of power





पंजाब का सच,चन्नी अगले मुख्यमंत्री नहीं होंगे और कांग्रेस सत्ता से बाहर होगी - अरविन्द सिसौदिया

पंजाब में गैर कांग्रेसवाद की लहर लगती है

सबसे पहले तो हम यह जानें कि पंजाब में अभी जो कांग्रेस सरकार है वह तब किस तरह की परफोरमेंस से आई थी।
गत विधानसभा चुनाव 2017 के ठीक पहले तक अकाली - भाजपा गठबंधन सरकार पंजाब में काबिज थी, वह 10 साल से सरकार में थी । तथा  सत्ता विरोधी लहर के चलते हार गई , तब उसे मात्र 15 सीटें मिलीं थीं। सीटों की संख्या के हिसाब से वह तीसरे नम्बर का दल बना था, लेकिन उसका वोट प्रतिशत नम्बर दो पर रहा था,अकाली दल का वोट शेयर 25.24 प्रतिशत रहा था। जबकि आप पार्टी ने पंजाब में 20 सीटें जीत कर तब दूसरा नम्बर हांसिल कर लिया था किन्तु वोट प्रतिशत के लिहाज से वे तीसरे नम्बर पर रहे थे, आम आदमी पार्टी ने 23.72 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था। जबकि कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में 117 सीटों में से 77 सीटें जीत कर मजबूत पंजाब सरकार बनाई थी ।

वर्तमान राजनैतिक दृष्य इतना तो साफ हो गया है कि पंजाब से कांग्रेस जा रही है। कांग्रेस जोड तोड से मुख्यमंत्री बना भी पाती है तो वर्तमान मुख्यमंत्री चन्नी अगले मुख्यमंत्री नहीं होंगे। कांग्रेस की आंतरिक कलह ने उसे हांसिये पर खडा कर दिया है। इसका दोषी कांग्रेस हाई कमान है। यह तथ्य हम चन्डीगढ नगर निगम के चुनाव के चश्में से भी देख सकते है। कि वहां कांग्रेस तीसरे क्रम पर है, भाजपा दूसरे और आप पार्टी नम्बर एक पर है। इन परिणामों से इतना साफ हो रहा है कि चण्डीगढ में किसी को स्पष्ट बहूमत नहीं था त्रिशंकु स्थिती थी। कांग्रेस के अनुपस्थित रहनें से भाजपा को मेयर पदों पर विजयश्री मिली। पंजाब में नम्बर एक और नम्बर दो पर दल और नाम कुछ भी हो सकते है। मगर कांग्रेस को तीसरे नम्बर के लिये भी संर्घष करना पड सकता है।

1-निश्चित ही किसान आन्दोलन में भाजपा से अलग हुये अकाली दल को बसपा से उम्मीद है और कांग्रेस ने गत सरकार भी एससी सीटों पर मिली सफलता से ही बनाई थी। मगर अब ये समीकरण बे मानें हो गये है। वहां इस समय विचार का तरीका ही बदल चुका है। जिसका सबसे ज्यादा नुकसान अकालियों को ही होनें जा रहा है।

2- वहीं मुख्य विपक्षीय पार्टी आम आदमी पार्टी इस बार विपक्ष से सत्ता का सफर तय करने के लिए कोई कसर नहीं छोडेगी । उसके समर्थन में कोई कमी नहीं आई है, किसान आन्दोलन में दिल्ली में 5-स्टार सुविधायें आप पार्टी ने ही उपलब्ध करवाईं थीं। उसे उसका लाभ भी मिलेगा। किन्तु उसे सबसे तगडा छटका यह है कि 22 किसान संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने भी अलग से चुनाव लडनें की घोषणा कर दी है। जो आप पार्टी के मंसूबों पर पानी फेर सकता है।
 
3- कांग्रेस सत्तारूढ दल है वह जानती है कि किसान आन्दोलन का लाभ आप पार्टी उठाना चाहती है, जनता में आप को समर्थन भी है। कांग्रेस की पहली कोशिश आप पार्टी को रोकनें की है। यही कोशिश अकालियों की भी है। कोई चमत्कार ही कांग्रेस की इज्जत बचा सकता है। क्यों कि किसानों के साथ कांग्रेस और किसानों के बीच सेतु मुख्यकर्ता धर्ता कैप्टन अमरिन्दर सिंह भी कांग्रेस छोड़ कर अलग दल बना चुके है।

4- जहां तक भाजपा का सबाल है उन्हे पंजाब में कुछ भी खोनें के लिये नहीं है। वह पहले भी वहां साईडर पार्टी थी। इस बार उसे कांग्रेस की भगदड और केप्टन के सहयोग का लाभ मिलेगा । वह पहले से प्लस करेगी। भाजपा की गलती यही थी कि उसने अपने आपको पंजाब में स्थापित करने पर कभी ठीक से ध्यान नहीं दिया। अब वह पूरी तरह कमर कस चुकी है।

5- कांग्रेस निश्चित रूप से किसान आन्दोलन में प्रमुख भूमिका निभा रही थी,अभी तक पंजाब में मुख्यमुद्दा किसान आन्दोलन की छाया ही है। यह आन्दोलन मूल रूप से कुछ विदेशी शक्तियों के धन एवं ज्ञान की उपज था जो भारत में अपनीे हित चिन्तक पार्टी को स्थापित करवाना चाहतीं है। उन्होने पंजाब के रास्ते इसे रोपा, विपक्ष के नाते अपने हितों की दृष्टि से अन्य विपक्षी दल भी इससे जुडते चले गये । बल्कि उनमें जुडनें की प्रतिस्पर्ध भी हुई। मगर पंजाब में चुनाव के ठीक पूर्व कम से कम किसान आन्दोलन से जुडे लोग आप पार्टी, कांग्रेस और किसान संगठनों के नये दल में बंट गये है। इसलिये अभी तत्काल यह तो नहीं कहा जा सकता कि पंजाब में कौन सरकार बनायेगा । मगर इतना दिख रहा है कि वर्तमान मुख्यमंत्री और वर्तमान सत्तारूढ दल अपने स्वयं के बलबूते सरकार में नहीं आ रहे है।
 

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