कैलाश_मानसरोवर_शिवजी_की_रहस्यमय_दुनिया...
कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव का निवास स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि इस पर्वत पर भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजमान हैं। जो भी इस पर्वत पर आकर उनके दर्शन कर लेता है , उसका जीवन पूरी तरह से सफल हो जाता है। इस पावन स्थल पर हर साल लाखों श्रद्धालु मन में सिर्फ ये आस लिए आते हैं कि शिव के साक्षात दर्शन मात्र से उनके सारे कष्ट मिट जाएंगे। कैलाश पर्वत को धरती का केंद्र कहा जाता है, जहां धरती और आकाश एक साथ आ मिलते हैं।
कैलाश पर्वत की तलहटी में 1 दिन होता है 1 माह के बराबर ! इसका मतलब यह है कि 1 माह ढाई साल का होगा। दरअसल, वहां दिन और रात तो सामान्य तरीके से ही व्यतीत होते हैं लेकिन वहां कुछ इस तरह की तरंगें हैं कि यदि व्यक्ति वहां 1 दिन रहे तो उसके शरीर का तेजी से क्षरण होता है अर्थात 1 माह में जितना क्षरण होगा, उतना 1 ही दिन में हो जाएगा।
कैलाश पर्वत पर कंपास काम नहीं करता यहाँ आने पर दिशा भ्रम होने लगता है. यह जगह बहुत ही ज्यादा रेडियोएक्टिव है। लेकिन ये जगह बेहद पावन, शांत और शक्ति देने वाली है!
#कैलाश_मानसरोवर_रहस्य
#Kelash-mansrovar
#भगवान_शंकर_के_निवास_स्थान कैलाश पर्वत के पास स्थित है कैलाश मानसरोवर। यह अद्भुत स्थान रहस्यों से भरा है। शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण आदि में #कैलाश खंड नाम से अलग ही अध्याय है, जहां की महिमा का गुणगान किया गया है।
#पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी के पास कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के कर-कमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। #कैलाश_पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्यलोक है। आओ जानते हैं इसके 12 रहस्य।
#1_धरती_का_केंद्र: धरती के एक ओर उत्तरी ध्रुव है, तो दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव। दोनों के बीचोबीच स्थित है हिमालय। हिमालय का केंद्र है कैलाश पर्वत। वैज्ञानिकों के अनुसार यह धरती का केंद्र है। कैलाश पर्वत दुनिया के 4 मुख्य धर्मों #हिन्दू_जैन_बौद्ध_और_सिख धर्म का केंद्र है।
#2_अलौकिक_शक्ति_का_केंद्र : यह एक ऐसा भी केंद्र है जिसे एक्सिस मुंडी (Axis Mundi) कहा जाता है। एक्सिस मुंडी अर्थात दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है, जहां #दसों_दिशाएं मिल जाती हैं। रशिया के वैज्ञानिकों के अनुसार एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहां अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं।
#3_पिरामिडनुमा_क्यों_है_यह_पर्वत : कैलाश पर्वत एक विशालकाय पिरामिड है, जो 100 छोटे पिरामिडों का केंद्र है। कैलाश पर्वत की संरचना कम्पास के 4 दिक् बिंदुओं के समान है और #एकांत_स्थान पर स्थित है, जहां कोई भी बड़ा पर्वत नहीं है।
#4_शिखर_पर_कोई_नहीं_चढ़_सकता : कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद्ध है, परंतु 11वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी #मिलारेपा ने इस पर चढ़ाई की थी। रशिया के वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट 'यूएनस्पेशियल' मैग्जीन के 2004 के जनवरी अंक में प्रकाशित हुई थी। हालांकि मिलारेपा ने इस बारे में कभी कुछ नहीं कहा इसलिए यह भी एक रहस्य है।
#5_दो_रहस्यमयी_सरोवरों_का_रहस्य : यहां 2 सरोवर मुख्य हैं- पहला, मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार सूर्य के समान है। दूसरा, राक्षस नामक झील, जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार चन्द्र के समान है। ये दोनों झीलें सौर और चन्द्र बल को प्रदर्शित करती हैं जिसका संबंध सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से है। जब दक्षिण से देखते हैं तो एक स्वस्तिक चिह्न वास्तव में देखा जा सकता है। यह अभी तक रहस्य है कि ये झीलें प्राकृतिक तौर पर निर्मित हुईं या कि ऐसा इन्हें बनाया गया?
#6_यहीं_से_क्यों_सभी_नदियों_का_उद्गम : इस पर्वत की कैलाश पर्वत की 4 दिशाओं से 4 नदियों का उद्गम हुआ है- ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलज व करनाली। इन नदियों से ही गंगा, सरस्वती सहित चीन की अन्य नदियां भी निकली हैं। कैलाश की चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुख हैं जिसमें से नदियों का उद्गम होता है। पूर्व में अश्वमुख है, पश्चिम में हाथी का मुख है, उत्तर में सिंह का मुख है, दक्षिण में मोर का मुख है।
#7_सिर्फ_पुण्यात्माएं_ही_निवास_कर_सकती_हैं : यहां पुण्यात्माएं ही रह सकती हैं। कैलाश पर्वत और उसके आसपास के वातावरण पर अध्ययन कर चुके रशिया के वैज्ञानिकों ने जब तिब्बत के मंदिरों में #धर्मगुरुओं से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह है जिसमें तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलीपैथिक संपर्क करते हैं।
#9_येति_मानव_का_रहस्य : हिमालयवासियों का कहना है कि हिमालय पर यति मानव रहता है। कोई इसे भूरा भालू कहता है, कोई जंगली मानव तो कोई हिम मानव। यह धारणा प्रचलित है कि यह लोगों को मारकर खा जाता है। कुछ वैज्ञानिक इसे निंडरथल मानव मानते हैं। विश्वभर में करीब 30 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हिमालय के बर्फीले इलाकों में हिम मानव मौजूद हैं।
#10_कस्तूरी_मृग_का_रहस्य : दुनिया का सबसे दुर्लभ मृग है कस्तूरी मृग। यह हिरण उत्तर पाकिस्तान, उत्तर भारत, चीन, तिब्बत, साइबेरिया, मंगोलिया में ही पाया जाता है। इस मृग की कस्तूरी बहुत ही सुगंधित और औषधीय गुणों से युक्त होती है, जो उसके शरीर के पिछले हिस्से की ग्रंथि में एक पदार्थ के रूप में होती है। कस्तूरी मृग की कस्तूरी दुनिया में सबसे महंगे पशु उत्पादों में से एक है।
#11_डमरू_और_ओम_की_आवाज : यदि आप कैलाश पर्वत या मानसरोवर झील के क्षेत्र में जाएंगे, तो आपको
निरंतर एक आवाज सुनाई देगी, जैसे कि कहीं आसपास में एरोप्लेन उड़ रहा हो। लेकिन ध्यान से सुनने पर यह आवाज 'डमरू' या 'ॐ' की ध्वनि जैसी होती है
#12_आसमान_में_लाइट_का_चमकना : दावा किया जाता है कि कई बार कैलाश पर्वत पर 7 तरह की लाइटें आसमान में चमकती हुई देखी गई हैं ।
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नेहरू की मूर्खता से गया कैलाश
आजादी के वक्त का इतिहास और संसद में हुई बहसों के दस्तावेज इस बात के गवाह हैं कि कैलाश मानसरोवर ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक रूप से भारत का हिस्सा रहे एक बड़े इलाके को नेहरू ने चीन को दे दिया। यह बात सही है कि कैलाश मानसरोवर करीब हजार साल से भारत के किसी नक्शे का हिस्सा नहीं रहा। आज जैसे नेपाल है, वैसे ही तिब्बत देश हुआ करता था, जिसमें कैलाश मानसरोवर पड़ता था। लेकिन उससे पहले के प्राचीन भारत में तिब्बत नाम की कोई जगह नहीं थी। वो हिस्सा भी भारतीय राजाओं के अधीन था। बाद में जब मुगल और अंग्रेज आए तो उनको उस पहाड़ी इलाके में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। अंग्रेजों के जाने के बाद 1950 में चीन ने तिब्बत पर हमला करके उसे अपने कब्जे में ले लिया। उस समय वहां पर भारतीय सेना इतनी मजबूत थी कि चाहती तो तिब्बत की सुरक्षा के लिए चीन की सेना का मुकाबला कर सकती थी। लेकिन नेहरू ने चीन को मित्र देश मानते हुए ऐसा नहीं होने दिया। नेहरू ने बस इतना किया कि जब दलाई लामा और उनके समर्थकों को चीनी सेना ने खदेड़ा तो भारतीय सेना उन्हें अपनी सुरक्षा में भारत ले आई। चीन ने भले ही तिब्बत पर कब्जा कर लिया था, लेकिन उसकी सेना उतनी मजबूत नहीं थी। नेहरू चाहते तो कैलाश मानसरोवर को छुड़ा सकते थे। लेकिन उन्होंने इसकी जरूरत ही नहीं समझी।
संसद में भी जलील हुए थे नेहरू
1962 में चीन युद्ध के बाद संसद में देहरादून के सांसद महावीर त्यागी ने नेहरू से पूछा था कि “आपके देखते ही देखते चीन ने हमारी 72 हजार वर्गमील जमीन पर कब्जा कर लिया। आप उसको कब वापस दिला रहे हैं?” इस पर नेहरू ने जो बयान दिया वो आज तक लोग याद करते हैं। उन्होंने कहा कि “जो जमीन चली गई, वो चली गई। वैसे भी उस इलाके में घास का तिनका तक नहीं उगता।” इससे भड़क कर महावीर त्यागी ने अपना गंजा सर नेहरू को दिखाया और कहा, “यहां भी कुछ नहीं उगता तो क्या मैं इसे भी कटवा दूं”। नेहरू के पास इसका कोई जवाब नहीं था और वो अपना मुंह सा मुंह लेकर चले गए। उस दौर में भी यह चर्चा होती थी कि भारत को कम से कम कैलाश मानसरोवर का क्षेत्र मुक्त कराने की कोशिश करनी चाहिए। यह देश का दुर्भाग्य था कि बल्लभ भाई पटेल का 1950 में निधन हो गया और नेहरू पर यह दबाव बनाने वाला कोई नहीं था कि चीन अगर तिब्बत को हड़प सकता है तो वो आने वाले समय में भारत के लिए भी संकट बनेगा।
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