कांग्रेस की हिंदू विरोधी मानसिकता
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कांग्रेस को हिंदू विरोधी छवि भारी पड़ रही है
कांग्रेस में जिस आवाज की जरूरत तीन दशक से महसूस की जा रही थी, वह आवाज अब उठी है। वह आवाज़ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने उठाई है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस की हिन्दू विरोधी और मुस्लिम परस्त पार्टी की छवि बन गई है। कांग्रेस ने कई बार महसूस किया था कि सेक्यूलरिज्म के नाम पर उसके नेता अक्सर हिन्दू विरोधी और इस्लाम समर्थक लाईन अपनाते हैं। जिस कारण हिन्दू उससे दूर होता जा रहा है।
इंदिरा गांधी के जमाने तक यह दुविधा नहीं थी, क्योंकि इंदिरा गांधी संतुलन बना कर चलती थी। वह मन्दिरों और साधु संतों के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने जाती थीं। उनकी हिन्दू देवी देवताओं में अपार श्रद्धा थी। यहां तक कि आपातकाल के बाद जब कांग्रेस विभाजित हो गई, पार्टी और पार्टी का चुनाव चिन्ह गाय और बछड़ा भी छिन गया था, तो केरल में पालाकाट के अमूर भगवती मन्दिर में विराजमान मां पार्वती के दो हाथों को मां का आशीर्वाद मान कर हाथ के पंजे को कांग्रेस का नया चुनाव निशान बनाया था और चुनाव जीतने के बाद उस मन्दिर में गई थीं। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को सही अर्थों में सेक्यूलर बनाए रखा था, जिसमें मुस्लिम परस्ती बिलकुल नहीं झलकती थी।
कांग्रेस की मुस्लिम परस्ती 1986 में राजीव गांधी के समय शाहबानों केस पर आए गुजारा भत्ता फैसले को पलटने से शुरू हुई। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के भीतर इस क़ानून का विरोध नहीं हुआ था। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने बिल के विरोध में केबिनेट से इस्तीफा दे दिया था और कांग्रेस छोड़ दी थी। इसके बाद रामजन्मभूमि को लेकर शुरू हुए आन्दोलन के समय कांग्रेस के हिन्दू नेताओं की चुप्पी और मुस्लिम परस्तों की तरफ से राम मंदिर आंदोलन का खुला विरोध कांग्रेस को महंगा पड़ा।
रामजन्मभूमि आन्दोलन के दौरान 1989 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता में जबर्दस्त इजाफा हुआ था। 1984 में जहां वह सिर्फ दो लोकसभा सीटें जीती थीं, वहीं 1989 के चुनाव में 85 सीटें जीत गई थी। लाल कृष्ण आडवानी की रामरथ यात्रा रोके जाने के कारण हुए 1991 में हुए मध्यावधि चुनाव में भाजपा बढ़ कर 120 हो गई थी। 1996 में कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए 161 सीटें जीत गई, और 1998 में 182 सीटें जीत कर अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार ही बना ली।
चुनाव नतीजों के कुछ दिन बाद ही कांग्रेस ने सीता राम केसरी को हटा कर सोनिया गांधी को अध्यक्ष बना लिया था। 1989 के रामजन्मभूमि आन्दोलन के बाद कांग्रेस को लगातार चार चुनावों में बहुमत नहीं मिला था, हालांकि 1991 में चुनावों के दौरान राजीव गांधी की हत्या के कारण आई सहानुभूति की लहर ने कांग्रेस की अल्पमत सरकार बना दी थी। लेकिन कांग्रेस की इसी अल्पमत सरकार के दौरान 1992 में बाबरी ढांचा टूटने के बाद हिंदुत्व आधारित भाजपा की लोकप्रियता में जबर्दस्त इजाफा हुआ था।
1992 में जब बाबरी ढांचा टूटा था, तब भी कांग्रेस के भीतर सिर्फ एकतरफा आवाजें उठी। मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए कांग्रेस के भीतर से ही नरसिम्हा राव को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की गई थी। इसी मुद्दे पर कांग्रेस टूट गई थी। सीताराम केसरी और सोनिया गांधी के नेतृत्व में भी कांग्रेस ढांचा टूटने के लिए नरसिंह राव को जिम्मेदार मानती थी। इसलिए 1996 का चुनाव हारने के बाद राव को पहले अध्यक्ष पद से हटाया गया, और बाद में 1997 में कोलकाता अधिवेशन में उनके मंच पर बैठने का भी विरोध हुआ।
कोलकाता अधिवेशन में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता ली, उन्हें मुख्य अतिथि की तरह मंच पर लाया गया था, सोनिया गांधी की मौजूदगी और सीता राम केसरी की रहनुमाई में नरसिम्हा राव को अपमानित किया गया था। देश का हिन्दू इसे देख रहा था, जो यह मानता था कि नरसिम्हा राव ने ढांचा टूटते समय कोई कार्रवाई न करके हिन्दुओं का पक्ष लिया था। लेकिन नरसिम्हा राव को अपमानित करके भी कांग्रेस को कोई फायदा नहीं हुआ। 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सिर्फ एक सीट बढ़कर 141 हुई थी, क्योंकि मुसलमान उससे खुश नहीं हुआ, और हिन्दुओं की नाराजगी और बढ़ गई।
कांग्रेस की करनी और कथनी का अंतर यहीं से शुरू हुआ। 96 और 98 की लगातार दो हार के बाद और सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की कार्यसमिति ने 16 जनवरी 1999 में एक प्रस्ताव पास किया था। जिसमें कहा गया था कि हिन्दुइज्म भारत में सेक्यूलरिज्म की सबसे प्रभावी गारंटी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वी.एन. गाडगिल उस समय कांग्रेस में हिन्दुओं की एक मात्र आवाज थे।
गाडगिल बार बार कहा करते थे कि कांग्रेस में सेक्यूलरिज्म खत्म हो रहा है, मुस्लिमपरस्ती बढ़ रही है। जबकि आज़ादी के आन्दोलन में और उसके बाद इंदिरा गांधी के समय तक कांग्रेस के भीतर हिन्दुओं की सशक्त आवाज हुआ करती थी, जो कांग्रेस को संतुलित बनाए रखती थी। वी.एन. गाडगिल 1989 से लेकर सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने तक कांग्रेस के प्रवक्ता थे। वह कांग्रेस की दशा से बेहद क्षुब्ध थे, पार्टी की रोजाना ब्रीफिंग के बाद पत्रकारों से निजी बातचीत के दौरान वह अक्सर कहा करते थे कि मुस्लिम सिर्फ 18 प्रतिशत हैं, वे सारे भी कांग्रेस को वोट दे दें, तो भी हिन्दुओं के वोटों के बिना कांग्रेस नहीं जीत सकती।
मुस्लिम परस्त और कम्युनिस्ट विचारधारा वाले कांग्रेसियों ने वी.एन. गाडगिल पर छींटाकशी की बहुत कोशिश की, लेकिन वह अपने स्टैंड पर कायम रहे। 16 जनवरी 1999 में कांग्रेस कार्यसमिति से पारित उस प्रस्ताव को बनाने में वी.एन. गाडगिल की ही भूमिका थी, जिसमें कहा गया था कि हिंदूइज्म ही सेक्यूलरिज्म की गारंटी है। उन्होंने इस प्रस्ताव को पास करवाने के लिए सोनिया गांधी को राजी किया था। प्रस्ताव पास करने के बाद कांग्रेस उस पर अमल करना भूल गई, या फिर वह प्रस्ताव मात्र एक औपचारिकता बन गया। क्योंकि 2004 में जब उसकी सत्ता आई तो उसने अपने दस साल के शासन में हिन्दुओं को अपमानित करने और मुसलमानों को खुश करने की कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। हिंदुत्व को बदनाम करने करने के लिए भगवा आतंकवाद की थ्योरी का इजाद किया गया। इस थ्योरी को जयपुर में कांग्रेस के चिन्तन शिविर में मंच से दोहराया गया।
आतंकवादी वारदातों को हिन्दुओं के सिर मढ़ने के लिए झूठे केस बना कर उन्हें गिरफ्तार किया गया। पाकिस्तान प्रायोजित मुम्बई में हुए 26/11 के आतंकी हमले का जिम्मेदार भी आरएसएस को ठहरा दिया गया, जबकि पूरी दुनिया सच्चाई जानती थी। समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट का जिम्मेदार भी हिन्दुओं को ठहराया गया। रामसेतु के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में हल्फिया बयान देकर कहा कि भगवान राम काल्पनिक हैं, उनके पैदा होने के सबूत नहीं हैं। इस तरह सिर्फ रामसेतु ही नहीं बल्कि राम जन्मभूमि पर भी कांग्रेस ने उनके अस्तित्व को नकार दिया था।
कांग्रेस की 2004 से 2014 की हिन्दू विरोधी मानसिकता का ही नतीजा है कि 2014 में हिंदुत्व का ऐसा उभार हुआ कि कांग्रेस 50-52 सीटों से आगे नहीं बढ़ पा रही। पिछले साल उदयपुर में हुए कांग्रेस के चिन्तन शिविर की राजनीतिक मामलों की कमेटी के मंथन में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने इन सब मुद्दों को उठाते हुए कहा था कि कांग्रेस की छवि हिन्दू विरोधी हो गई है। उन्होंने 2004 से 2014 तक की उन सारी घटनाओं का जिक्र भी किया था, जिनके कारण हिन्दू कांग्रेस से नाराज है और उसकी छवि मुस्लिम परस्त पार्टी की बन गई है।
अब जब मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस कार्यसमिति का गठन किया है और उसमें भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाने वाले पूर्व कम्युनिस्ट नेता कन्हैया कुमार और मुस्लिम परस्ती करने वाले दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश को तो कार्यसमिति में रखा गया है। जबकि हिन्दुओं की बात कहने वाले किसी को भी कार्यसमिति में नहीं रखा गया, तो आचार्य प्रमोद ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में कुछ ऐसे नेता आ गए है, जो कांग्रेस को वामपंथ के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं, इन नेताओं को वंदे मातरम, भारत माता की जय और भगवा से नफरत है।
वी.एन. गाडगिल की तरह कांग्रेस कार्यसमिति में हिन्दुओं की आवाज बन कर आचार्य प्रमोद कृष्णम कांग्रेस को सेक्यूलरिज्म के रास्ते पर लाने की सकारात्मक भूमिका निभा सकते थे। उनका कहना है कि क्योंकि वह तिलक लगाते हैं, श्वेत वस्त्र पहनते हैं, इसलिए कांग्रेस के भीतर कुछ लोगों को उनसे चिढ़ है। उन्होंने कहा कि वह अपनी वेशभूषा इस जन्म में नही छोड़ सकते। आचार्य प्रमोद कृष्णम ने वही अहम सवाल उठाया है, जो 1999 में वी.एन. गाडगिल ने उठाया था। लेकिन सोनिया गांधी और राहुल गांधी के दिशा निर्देशों में चल रही कांग्रेस हिंदू विरोधी रवैया छोड़ने के लिए तैयार नहीं दिखती।
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इन 10 प्वाइंट में जानिए कांग्रेस हिन्दू विरोधी है या नहीं
Drigraj Madheshia
25 Nov 2018
इन 10 प्वाइंट में जानिए कांग्रेस हिन्दू विरोधी है या नहीं
कांग्रेस का साफ्ट हिंदुत्व पर उठ रहे सवाल
कांग्रेस पर अकसर हिन्दू विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं. खासकर BJP और हिन्दूवादी संगठन कांग्रेस को इसके लिए निशाने पर लेते रहे हैं. खुद कांग्रेस के अंदर भी कई बार इसे लेकर आवाज उठ चुकी है और शायद इसलिए अब पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी 2019 के लोकसभा चुनाव और हालिया विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर हिन्दुओं को लुभाने के लिए मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं. कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार आशीष कुलकर्णी ने 2017 में पार्टी से इस्तीफा देते हुए कहा था, कांग्रेस हिंदू विरोधी दल है. आशीष कुलकर्णी की बातों से विरोधियों के आरोपों में दम नजर आता है. जो बात बाहरी लोग कहते थे, आशीष कुलकर्णी ने उसकी पुष्टि कर दी. कुछ जानकार तो यह भी कहते हैं कि अगर कांग्रेस हिन्दू विरोध की राजनीति नहीं करती तो BJP का उभार ही नहीं होता.
इसके अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस की आंतरिक एके एंटनी समिति की रिपोर्ट में भी इस बात की तस्दीक की गई थी कि पार्टी को हिन्दू विरोधी छवि के कारण नुकसान पहुंचा. एंटनी समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि पार्टी को छवि बदलने की कोशिश करनी चाहिए. शायद उसी रिपोर्ट का असर है कि राहुल गांधी कभी जनेऊ में नजर आते हैं तो कभी मंदिरों में पूजा करते दिखते हैं. आइए जानते हैं वो 10 कारण जिससे कांग्रेस पर हिन्दू विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं.
1. 26/11 के पीछे हिंदुओं का हाथ: मुंबई हमले के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने इसके पीछे हिंदू संगठनों की साजिश का दावा किया था. दिग्विजय के इस बयान का पाकिस्तान ने खूब इस्तेमाल किया और आज भी जब इस हमले का जिक्र होता है तो पाकिस्तानी सरकार दिग्विजय के हवाले से यही साबित करती है कि हमले के पीछे आरएएस का हाथ है. दिग्विजय के इस बयान पर उनके खिलाफ कांग्रेस ने कभी कोई कार्रवाई या खंडन तक नहीं किया. इसके अलावा तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और पी चिदंबरम ने हिन्दू आतंकवाद का मुद्दा उछाला था और अमेरिकी अधिकारियों को सौंपे डोजियर में भी हिन्दू आतंकवाद का जिक्र किया गया था.
2. मंदिर जाने वाले करते हैं छेड़खानी: राहुल गांधी ने कहा था कि लोग लड़कियां छेड़ने के लिए मंदिर जाते हैं. यह बयान भी कांग्रेस और उसके शीर्ष नेतृत्व की हिंदू विरोधी सोच की निशानी थी.
3. राम सेतु पर हलफनामा: 2007 में कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि चूंकि राम, सीता, हनुमान और वाल्मीकि वगैरह काल्पनिक किरदार हैं. इसलिए रामसेतु का कोई धार्मिक महत्व नहीं माना जा सकता है. जब बीजेपी ने इस मामले को जोर-शोर से उठाया, तब जाकर मनमोहन सरकार को पैर वापस खींचने पड़े. हालांकि बाद के दौर में भी कांग्रेस रामसेतु को तोड़ने के पक्ष में दिखती रही.
4. हिंदू आतंकवाद शब्द गढ़ा: इससे पहले हिंदू के साथ आतंकवाद शब्द कभी इस्तेमाल नहीं होता था. मालेगांव और समझौता ट्रेन धमाकों के बाद कांग्रेस सरकारों ने बहुत गहरी साजिश के तहत हिंदू संगठनों को इस धमाके में लपेटा और यह जताया कि देश में हिंदू आतंकवाद का खतरा मंडरा रहा है. इस केस में जिन बेगुनाहों को गिरफ्तार किया गया वो इतने सालों तक जेल में रहने के बाद बेकसूर साबित हो रहे हैं.
5. राम की तुलना इस्लामी कुरीति से: तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने इसकी तुलना भगवान राम से की. यह तय है कि कपिल सिब्बल ने यह बात अनजाने में नहीं, बल्कि बहुत सोच-समझकर कही. उनकी नीयत भगवान राम का मज़ाक उड़ाने की है. कोर्ट में ये दलील देकर कांग्रेस ने मुसलमानों को खुश करने की कोशिश थी.
6. वंदेमातरम से थी दिक्कत: आजादी के बाद यह तय था कि वंदे मातरम राष्ट्रगान होगा, लेकिन माना जाता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इससे मुसलमानों के दिल को ठेस पहुंचेगी. देश में तुष्टिकरण की राजनीति की शुरुआत तो अंग्रेजों ने ही शुरू कर दी थी, नेहरू ने उस पर विराम नहीं लगाया. नतीजा यह है कि वंदेमातरम को जगह-जगह अपमानित करने की कोशिश होती है. जहां भी इसका गायन होता है कट्टरपंथी मुसलमान बड़ी शान से बायकॉट करते हैं.
7. सोमनाथ मंदिर का विरोध: कांग्रेस ने हिंदुओं के सबसे अहम मंदिरों में से एक सोमनाथ मंदिर को दोबारा बनाने का विरोध किया था. कांग्रेस का कहना था, सरकारी खजाने का पैसा मंदिर निर्माण में नहीं लगना चाहिए, जबकि इस समय तक हिंदू मंदिरों में दान की बड़ी रकम सरकारी खजाने में जमा होनी शुरू हो चुकी थी. जबकि उसी समय बाबरी, काशी विश्वनाथ और मथुरा कृष्ण जन्मभूमि के विवादों को भी हल किया जा सकता था, लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं होने दिया.
8. बीएचयू में हिंदू शब्द से ऐतराज: कांग्रेस के तत्कालीन बड़े नेताओं को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदू शब्द पर आपत्ति थी. इसके लिए उन्होंने महामना मदनमोहन मालवीय पर दबाव भी बनाया था. जबकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से दोनों को ही कोई एतराज नहीं था.
9. हज के लिए सब्सिडी : ये कांग्रेस सरकार ही थी जिसने हज पर जाने वाले मुसलमानों को सब्सिडी देने की शुरुआत की. दुनिया के किसी दूसरे देश में ऐसी सब्सिडी नहीं दी जाती, जबकि कांग्रेस सरकार ने अमरनाथ यात्रा पर खास तौर पर टैक्स लगाया. इसके अलावा हिंदुओं की दूसरी धार्मिक यात्राओं के लिए भी बुनियादी ढांचा कभी विकसित नहीं होने दिया गया. अब मोदी सरकार के आने के बाद उत्तराखंड के चारों धाम को जोड़ने का काम शुरू हुआ है. कांग्रेस ने मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था, जबकि हिन्दुओं को खुश करने के लिए कांग्रेस ने कभी इस तरह के काम नहीं किए.
10. 90% मुस्लिम करें मतदान : हाल ही में मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ का कहना था, अगर 90% मुसलमानों ने मतदान नहीं किया तो कांग्रेस का जीतना मुश्किल हो जाएगा. मध्य प्रदेश में ही कांग्रेस के वचनपत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं को बंद करने की बात कही गई है.
ये हैं 5 कारण जो आरोपों को करते हैं खारिज
या यूं कहिये कि इनके द्वारा कांग्रेस अपना बचाव करती है।
1. भले ही कांग्रेस पर हिंदू विरोधी पार्टी होने के आरोप लगते रहे हैं और विरोधी पार्टियां उसे घेरती रही हैं, लेकिन कांग्रेस ने कुछ ऐसे काम भी किए हैं, जिनके बूते ऐसे आरोपों से पार्टी अपना पल्ला झाड़ सकती है. सबसे पहले तो प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1985 में अयोध्या में राम मंदिर के ताले खुलवाए. भले ही वह शाहबानों प्रकरण से नाराज हिन्दुओं को मनाने की कोशिश थी, लेकिन अगर राजीव गांधी मंदिर का ताला न खुलवाते तो आज राम मंदिर का मुद्दा इतना बुलंदियों पर न होता.
2. इसके अलावा, राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस खुद को हिंदूवादी दिखाने की कोशिश कर रही है. गुजरात चुनाव के पहले से ही राहुल गांधी सोमनाथ से लेकर कई छोटे-बड़े मंदिरों में गए. कई बार जनेऊ धारण करते उनकी फोटो वायरल हुई तो कई बार रुद्राक्ष की माला पहने फोटो सुर्खियां बनीं. गुजरात विधानसभा के दूसरे चरण के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन राहुल गांधी ने अहमदाबाद के जगन्नाथ मंदिर का दर्शन किया था. राहुल ने इस दौरान सफेद कुर्ता-पजामा पहन रखा था और इस दौरान उनके गले में रूद्राक्ष की माला दिख रही थी. राहुल की दादी और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी रूद्राक्ष की माला पहनती थीं. माना जा रहा है कि जगन्नाथ मंदिर के दर्शन के बाद राहुल गांधी ने यह माला पहनी.
3. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले दिग्विजय सिंह ने भी ऐसा एक काम किया था, जिससे उन्हें हिंदू विरोधी नहीं कहा जा सकता. दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत की और उसे पूरा कर दिखाया. इस दौरान उन्होंने सैकड़ों किलोमीटर तक नर्मदा नदी के किनारे यात्रा की.
4. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए जारी मेनिफेस्टो (घोषणापत्र, जिसे कांग्रेस ने वचनपत्र का नाम दिया है) में कांग्रेस ने हर गांव में गोशाला बनवाने का वादा किया है. गोशाला के जरिए गायों की सुरक्षा और संरक्षा की बात कांग्रेस ने कही है. इस तर्क के साथ भी यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस हिन्दू विरोधी पार्टी नहीं है.
5. 1965 में पाकिस्तान से लड़ाई के बीच प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने आरएसएस से दिल्ली की कानून और ट्रैफिक व्यवस्था संभालने के लिए स्वयंसेवकों को दिल्ली भेजने का आह्वान किया था. आरएसएस ने न सिर्फ दिल्ली को संभाला, बल्कि कश्मीर में सेना की हवाई पटि्टयों से बर्फ हटाने के लिए भी अपने स्वयंसेवकों को तत्काल रवाना कर दिया. इतना ही नहीं, सेना के घायल जवानों के बड़ी मात्रा में रक्त की आवश्यकता थी, इसलिए स्वयंसेवकों ने ही पहल की और सबसे पहले रक्तदान के लिए आगे आए. इससे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1963 को आरएसएस के स्वयंसेवकों को 26 जनवरी की परेड में शामिल होने के बुला आमंत्रित किया था. उस दिन 3500 से अधिक स्वयंसेवक सफेद शर्ट और खाकी नेकर में परेड में शामिल हुए. तब नेहरू ने कहा था– लाठी के बल पर भी बमों और चीन की सेनाओं का मुकाबला किया जा सकता है, यह आरएसएस ने साबित कर दिखाया है.
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